Ishq a Bismil - 41 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 41

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इश्क़ ए बिस्मिल - 41

ज़मान खान को ना तो अरीज ने कुछ बताया था और ना ही अज़ीन ने। दरासल वह अपनी बेगम आसिफ़ा को बोहत ही ज़्यादा अच्छी तरीके से जानते थे।
उन्हें पता था उनकी बीवी किसी ना पसंद शख़्स के साथ क्या सलूक कर सकती है, वो भी अरीज जो उनके दुश्मन की बेटी थी। वह उसके साथ कुछ उल्टा सीधा ना करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता था। वह अरीज और अज़ीन को हरगिज़ भी छोड़ कर business के सिलसिले में शहर से बाहर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन अगर वो नहीं जाते तो फिर और कौन जाता? जब से उमैर का उन्होंने निकाह अरीज से करवाया था तब से उमैर तो ऑफिस जाना ही छोड़ चुका था और उन्होंने उसे ऑफिस आने पर कोई ज़ोर भी नहीं दिया था। वह फिल्हाल उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहते थे। उमैर disturb था वह ये बखूबी जानते थे। और वह ये भी जानते थे की एक disturb माइंड कभी business या फिर ज़िंदगी के कोई भी सही फै़सले नहीं कर सकता था।
उनकी बीवी एक अच्छे पढ़े लिखे खानदान से ताल्लुक रखती है मगर उनकी हरकत एक जाहिल औरत से भी ज़्यादा गिरी हुई है।
जाहिलियत और अनपढ़ होना दो अलग अलग चीज़ें है। आप अगर पढ़ना लिखना नहीं जानते तो आप अनपढ़ कहलाएंगे लेकिन अगर आपके पास बड़ी बड़ी डिग्रीयां क्यों ना हो मगर आपके पास या दिल में तेहज़ीब, मैंनेरिसम् और सिम्पैथी नहीं है तो आप जाहिल कहलाएंगे। आसिफ़ा बेगम भी एक जाहिल औरत थी। अपने गुस्से और बदले की भावना में वह कुछ भी कर सकती थी जैसा की उन्होंने अपनी सास के साथ किया था। बुढ़ापे में उन्हें तंग करना, उन्हें खाने पीने के लिए तरसाना, सूखी रोटी खिलाना, जिस चीज़ से उनकी सेहत को नुकसान है वही चीज़ करना... ये सारी आदतें आसिफ़ा बेगम की ज़मान खान जानते थे मगर उनके सामने ये भेद खुलने मे काफी वक़्त लग गया था और तब तक उनकी माँ के जाने का वक़्त क़रीब आ गया था। ज़मान खान को गुस्सा तो बोहत आया था मगर अपने बच्चों का मूंह देख देख कर वह अब तक आसिफ़ा बेगम को अपनी ज़िंदगी में बर्दाश्त कर रहे थे। वरना कभी कभी उनका दिल चाहता था की वह उनसे रिश्ता ही खतम कर दें।
दरासल बात ये थी की इब्राहिम खान ने उनकी बहन को ठुकरा कर उनसे दुश्मनी मोल ली थी। एक तरफ़ सुलेमान खान उनके खिलाफ़ दीवार बन कर खड़े थे तो दूसरी तरफ़ आसिफ़ा बेगम। ज़मान खान की अम्मी इब्राहिम खान के लिए ममता भरा एक माँ का दिल रखती थी और क्यों ना रखती उन्होंने ही तो इब्राहिम खान को एक मां की तरह पाला था अपने दूध से उन्हें सींचा था तो मोहब्बत भी उन्हें इब्राहिम खान से वैसी ही थी जैसी की ज़मान खान से। इसलिए वह अक्सर अपने देवर सुलैमान खान के खिलाफ़ अपने बेटे इब्राहिम खान की वकालत में खड़ी हो जाती थी और ये बात आसिफ़ा बेगम को ज़हर लगती थी। जब तक घर की सारी बागडोर आसिफ़ा बेगम के हाथ में नहीं आ गई तब तक वह सब्र का घूँट पी कर रह जा रही थी मगर बाद मे जैसे ही ज़मान खान की अम्मी का बाँह समांग गिरा उन्होंने पूरे घर पे हुकूमत जमा ली और उनके साथ नौकरों से भी बदतर सलूक करने लगी। ज़मान खान की अम्मी ने सब कुछ बर्दाश्त किया ताकि घर का माहौल ना खराब हो... मासूम बच्चों पर बुरा असर ना पड़े। और उनकी इसी चुप्पी का फायदा आसिफ़ा बेगम ने बोहत आराम से उठाया।
ज़मान खान अपनी कुर्सी से उठे थे और नसीमा बुआ को लेकर स्टोर रूम की तरफ़ बढ़ रहे थे। नसीमा बुआ हैरान थी के कल तक तो वो उपर होती थी आज नीचे कौन सा नया कमरा उनके लिए तैयार हो गया है। उसने देखा था ज़मान खान स्टोर रूम के दरवाज़े पे दस्तक दे रहे थे तभी अंदर से अरीज की आवाज़ उभरी थी।
“जी! अंदर आ जाएं।“ ज़मान खान नसीमा बुआ को लेकर अंदर आ गए थे। अरीज अज़ीन के ज़ख्म की ड्रेसिंग कर रही थी। नसीमा बुआ ने आते ही पूरे कमरे का जाइज़ा ले लिया। एक दिन में वह कमरा क्या से क्या हो गया था। नये फर्नीचर ना सही, पुरानी फर्नीचर को ही सलीके से अरेंज कर दिया गया था जिस से बोहत सारा समान होने के बावजूद कमरा काफी खाली खाली लग रहा था। नसीमा बुआ ये देख कर हैरान रह गई थी।
“कैसी है मेरी गुड़िया, मेरी शहज़ादी?” ज़मान खान ने अज़ीन के सर पर हाथ रख कर कहा था।
“अल्हमदुलिल्ला बाबा, अब पहले से बोहत बेहतर है।“ अरीज ने मुस्कुरा कर जवाब दिया था।
“इसकी ड्रेसिंग आप क्यों कर रहीं हैं? उमैर ने बताया था की उसने एक नर्स हायर कर दिया है।“ वह हैरानी से पूछ रहे थे।
“हाँ वह कुछ दिनों तक आई थी फिर मैंने ही मना कर दिया... उन्हें देख कर मैं ड्रेसिंग करना सीख गई हूँ।“ अरीज ने उन्हें बताते ही अज़ीन की ड्रेसिंग पूरी कर ली थी और साथ में मुस्कुरा भी रही थी। अरीज को हँसता मुस्कुराता देख ज़मान खान को दिली खुशी मिलती थी। उनका सेरो खून अरीज की एक मुस्कुराहट से बढ़ जाता था।
“ड्रेसिंग हो गई है, अब हाथ धो कर नाश्ता कर लीजिए।“ उन्होंने अरीज से कहा था। अरीज ने पहले नाश्ते को और उसके बाद फिर नसीमा बुआ को देखा था। उसने सोच लिया था की आज उसे भूके ही रहना पड़ेगा। मगर शुक्र था की अल्लाह ने उसके लिए ज़मान खान को भेज दिया था जो उसे ऐसे मुश्किलों से निजात दिलाते रहते थे।
“साहब अब मैं जाऊँ?” नसीमा बुआ अरीज की नज़रों को इग्नोर कर के नाश्ते का ट्रे टेबल पर रख कर ज़मान खान से इजाज़त मांग रही थी।
“ जी हाँ!... बिल्कुल जाओ।“ज़मान खान ने खुश दिली से इजाज़त दी थी। “आप दोनों नाश्ता कीजिए और फिर उसके बाद हम सब मिलकर थोड़ी गपशप भी लगाएंगे।“ उन्होंने कहा था और साथ ही कमरे का जाइज़ा लेने के लिए कमरे में टहल भी ले रहे थे।
कमरे को देख कर उनका दिल खुश हो गया था। अरीज ने इब्राहिम खान की एक एक निशानी को सजा दिया था। एक दीवार पर उनकी सारी तस्वीरें लगा दी थी। एक तस्वीर इब्राहिम खान के कॉलेज की थी जिसमें उसकी माँ इंशा ज़हूर भी मौजूद थी। कुछ तस्वीरें उनके बचपन की थी, कुछ जवानी की तभी ज़मान खान के दिल मे एक ना पूरी होने वाली हसरत ने सर उठाया... काश के कुछ तस्वीरें इब्राहिम खान की यहाँ पे उसकी अभी की मौजूदा उम्र की भी होती। वह काफी हसास हो गए थे। फिर ज़मान खान उन सब तस्वीरों पर हाथ फेर फेर कर जैसे उन्हें महसूस कर रहे थे।
सब कुछ देखने के बाद वह अरीज से मुखातिब हुए थे।
“बेटा आपने आगे क्या करनें का सोचा है? मेरा मतलब है आपकी कॅरिअर..आपकी education के हवाले से?” अरीज थोड़ी देर खामोश रही फिर उसने कहा
“फ़िल्हाल तो मैंने कुछ नहीं सोचा है बाबा, मगर यहाँ आने से पहले मैं डिस्टेंस से बी.ए. की तैयारी कर रही थी।“ उसने अज़ीन के मूंह में निवाला डालते हुए कहा था। तभी अरीज के हाथ पर ज़मान खान की नज़रें पड़ी और वह काफी परेशान हो गए थे।
“बेटा ये आपके हाथ को क्या हो गया है?” वह चलते हुए उसके पास आकर उसके हाथ को देख रहे थे।
“वो कॉफी गिर गई थी।“ उसने अपने हाथ को देखकर मुस्कुराते हुए कहा था और ज़हन के दीवार पर उस दुश्मने जाँ(उमैर) का चेहरा उभर आया था।
“कैसे गिरा लिया आपने बेटा?... ध्यान देनी चाहिए थी आपको।“ वह उसका हाथ उलट पलट कर देख रहे थे।
“उन्होंने अपने जेब से मोबाइल फोन निकाला था और एक नौकर को ओइंटमेंट् लाने को कहा था। ओइंटमेंट् के आते ही उन्होंने उसके हाथ मे वह ओइंटमेंट् लगा दी थी, और अब वह अपने हाथ से बारी बारी अरीज और अज़ीन के मूंह में निवाला डाल रहे थे।
अरीज उनकी इस कैरिंग वाले अंदाज़ पर अपने रब का दिल ही दिल में शुक्र अदा कर रही थी। उसे एक बाप का प्यार वापस से मिल गया था।
“बाबा?” उमैर ने आते ही ज़मान खान को आवाज़ लगाई थी मगर आगे का मंज़र देखते ही वह दंग रह गया था और बाकी की बातें उसके अंदर ही कहीं खो सी गई थी। उसके बाबा उसके दुश्मन को अपने हाथ से खिला रहे थे। उमैर को याद नहीं के उसके बाबा ने कभी उसे अपने हाथों से खिलाया हो। एक हसद का एहसास उसके दिल में पनपा था।
“बोलो।“ ज़मान खान उसे चुप देख कर बोले थे।
“Actually मैं आपको ढूंढ रहा था। नसीमा बुआ ने बताया के आप यहाँ है इसलिए मैं यहाँ आ गया।“ उमैर की नज़र अरीज के हाथ पर टिक गई थी जिसपर ओइंटमेंट् लगा हुआ था। उसने अरीज के हाथ को देखते हुए ज़मान खान को जवाब दिया था।
“मगर कोई बात नहीं... मैं आप से बाद में बात कर लूंगा।“ वह इतना कह कर चला गया था और ज़मान साहब अरीज और अज़ीन को खिलाते गए थे।
मोहब्बत दिखाने और जताने के लिए पैसों और दौलत की ज़रूरत नहीं होती।
कुछ कीमती लम्हें अपने प्यारों के साथ लुटाने की ज़रूरत होती है?
ये वक़्त और ये लम्हा किसी दौलत और खज़ाने से कम नहीं होती बल्कि दौलत आप लुटा कर वापस कमा सकते है लेकिन अगर आपने किसी को अपना वक़्त दे दिया तो समझो अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा दे दिया जो कभी भी वापस नहीं आ सकता।
ज़मान खान का अरीज पर इस क़दर अपनी मोहब्बत और वक़्त लूटते देख क्या होगा उमैर का?
क्या वह अरीज से और ज़्यादा बाग़ी हो जाएगा?
या फिर अपनी किये (अरीज का हाथ जलाना) पर अफसोस का एहसास होगा?
क्या होगा आगे?