विश्वास (भाग -3)
उमा जी के अंदर आते ही टीना की आँखों में सवाल थे जिन्हें पढ़ कर उनको जितना पता चला था, कह सुनाया। पोती के चेहरे पर दुख की लकीरें दादी देख पा रही थी।
रात भर साथ वाले कमरे से कराहने की आवाज़े आती रहीं। सुबह नर्स टीना का चेकअप करने आयी तो टीना ने साथ वाले कमरे के पेशेंट के बारे में अपनी डायरी में लिख पूछा। "उनके पैर की हडडी टूट गयी है इसलिए वो दर्द में हैं, उनका ऑपरेशन हो रहा है"। नर्स बता कर और उसको सुबह की दवाई खिला कर चली गयी।
नर्स के जाने के 5 मिनट बाद टीना के मम्मी पापा आ गए। "माँ आप घर चलो और थोड़ा आराम कर लो , आज मीनल रूक जाएगी, कितने दिन से आप यहीं हो, आप बीमार हो जाओगी"। उमेश ने कहा तो मीनल ने भी बोला , "माँ ये ठीक कह रहे हैं, आप को भी आराम की जरूरत हैं"।
"तुम दोनों बेकार में परेशान हो रहे हो, मैं टीना के साथ ही घर आऊँगी। इतना बड़ा कमरा और सबकुछ है, मुझे कोई परेशानी नहीं और मीनल तुझे पता है न आशु और आकाश तेरे बिना नही रहते, तो तुम घर और बच्चे संभालो, टीना अपनी दादी के साथ खुश है, क्यों टीना "? दादी ने पूछा, तो उसने भी मुस्करा कर सिर "हाँ "में हिला दिया।
"माँ आप दादी पोती बहुत जिद्दी हो, आप करो अपने मन की, पर जल्दी से नाशता कर लो", चाय का थरमस और नाशता टेबल पर लगाते हुए मीनल ने कहा।
इस परिवार की रोज की यही दिनचर्या है। उमा जी के तीन बेटे और 1 बेटी से भरा-पूरा परिवार है। सभी बच्चों की शादी हो गयी है और दादी नानी बन कर सब सुख भोगन् का समय आया तो जीवनसाथी ने साथ छोड़ दिया। पति के जाने के बाद पूरे परिवार ने उनको संभाला।
टीना की बहुत आदतें अपने दादा से मिलती थी। जिसकी वजह से उमा जी का उससे विशेष लगाव है। उमा जी को प्यार तो टीना के दोनो छोटे भाईयों से, उमेश से छोटे बेटे वीरेश के दोनो बेटों और तीसरे बेटे मुकेश की दोनो बेटियों से भी बहुत है। सही मायनो में उनके जीने का आधार ही सब बच्चे हैं।
आज के समय में भी संयुक्त परिवार में रहना किसी उपलब्धि से कम नहीं। इसका कारण वो अपने बड़े बेटे बहु को मानती हैं। मीनल और उमेश ने इस घर को जोडे रखा है, सिर्फ उनका ही नहीं सबका मानना है।
सभी बहु बेटे हर काम में उनकी सलाह लेते हैं, उनको मान देते हैं तो वो भी बहु बेटी में कोई फर्क नहीं करती। टीना बचपन से ही दादा दादी के ज्यादा करीब रही है तो उसका मन उनके साथ ज्यादा लगता है। टीना ने दादी को स्मार्ट फोन चलाना सिखाया तो दादी भी उसको खाना बनाना सिखाती।
उमा जी पढी़ लिखी थी, उन्होने अपने बच्चों को एक समय तक खुद ही पढाया था , अब पढाई और किताबो का स्वरूप थोड़ा बदल गया है , पर आज भी वो अपने पोते पोतियों को अँग्रेजी में गिनती और पहाड़े याद करवाती दिखती हैं।
क्रमश: