दामिनी और अभय का विवाह हिंदु रीति से सम्पन्न हो गया था । रात्रि के 11:00 बज रहे थे । मंदिर में अल्पाहार की व्यवस्था तो थी पर भोजन की व्यवस्था वहा न रखकर दामिनी के घर पर थी । दामिनी के पापा ने अपने समधी से कहा समधी जी अब मुझ गरीब की झोंपड़ी भी देख लीजिए ! .. वही पर हम साथ मे भोजन करेंगे ..
सभी दामिनी के घर पहुंच जाते हैं वहां छत पर भोजन की व्यवस्था थी । ठंड अभी गयी नही थी । वहां छत पर ही तापने के लिए बीच में लकड़ियां धू धूकर जल रही थी । कुर्सियां लगी थी बफर सिस्टम की व्यवस्था थी । दामिनी व अभय भी एक तरफ चेयर पर बैठे थे । दामिनी बिना मेकप के ही दुल्हन के भेष में थी । वह अपनी स्वाभाविक सुन्दरता के कारण वैसे ही सुन्दर लग रही थी । आग की रोशनी मे दामिनी का सौन्दर्य ओर भी निखर रहा था । कजरी व बदली दोनों दामिनी के पास ही बैठी हैं । वहां पर माहौल पार्टी जैसा लग रहा था न कि विवाह जैसा ।
अभय और दामिनी दोनों की ही दूसरी शादी हुई है । अतः ज्यादा तामझाम नही था । दामिनी भी साधारण विवाह के पक्ष मे थी और अभय भी नही चाहता था कि ज्यादा हंसी खुशी का माहौल बने । अभय ने अभी 20 _ 25 दिन पहले अपनी पूर्व पत्नी को खोया था ।
यह बात अलग है कि अभय और उसकी पूर्व पत्नी केतकी का साथ डेढ माह तक ही रहा । दोनों में प्रगाढ प्रेम नही हुआ था ।
किन्तु पहले विवाह मे एक अलग खुशी रहती है , उसमे नये अरमान जागते हैं । सबसे बेस्ट करने की इच्छा सबमे होती है । द्वितीय विवाह में खाना पूर्ति ही होती है ।
अभय के मम्मी पापा शादी के खिलाफ थे । उन्होने तो विवाह मे शामिल न होने की बात भी कह दी थी । फिर ऐसा क्या हुआ जो वे विवाह में शामिल हुए ? क्या उन्हें अपने पुत्र के प्रति प्यार था, जो उनको आने के लिए विवश कर दिया था । या लोक लाज के डर से आ गये थे । या अपने पुत्र को नाराज नही करना चाहते थे । कुछ तो बात थी ।
अभय के पापा की नजरे चारों तरफ कुछ ढूंढ रही थी .. वे अपने समधी के साथ बैठे भोजन तो कर रहे थे लेकिन असहज भी थे ।
भोजन करते हुए ही अभय के पापा ने कहा ..सारी रश्मे हो गयी या कुछ बाकि है ? दामिनी के पापा ने कहा .. अब तो बिदाई है ..जो हम कल सुबह करेंगे ..अभी आप भोजन करके आराम करो .. अभय का पापा चुप हो गया ..
उधर दामिनी की बड़ी बहिन के कहने पर कजरी के निर्देशन मे अभय दामिनी के लिए शयन कक्ष सजाया गया ..
अगले दिन बिदाई से पहले ..
अभय के पापा ने नाराजगी से कहा ..समधी जी अब हम चलते हैं ..आप अपने दामाद को कुछ दिन बाद भेज देना ..
दामिनी के पापा ने अपनी बड़ी बेटी को इशारा किया ..वह अंदर गयी और एक छोटा ब्रिफ केस ला करके दिया..
दामिनी के पापा ने अभय के पापा से कहा समधी जी ! सब कुछ जल्दी मे हुआ , इस लिए मै कुछ' कर नही पाया .. इसमे 20 लाख रूपये हैं आप मेहरबानी करके गहने व दात का सामान व फर्निचर खरीद लेवे ..
अभय के पापा ने कहा ..समधी जी यह सब करने की क्या जरूरत है ..? आपने बेटी दी है वह भी सर्विस वाली ... हम तो चाहते हैं दोनो खुश रहें..
अब अभय के पापा ने मुस्कुराकराते हुए कहा .. अपने दामाद को यहीं रख रहे हो ? या भेज रहे हो .. ?
कुछ देर बाद दुल्हा दुल्हन रवाना होते हैं ...
मोटी रकम हाथ में आते ही अभय के पापा का व्यवहार बदल गया .. संभवतः पहले उसको विश्वास हो गया था कि ये लोग ऐसे ही विदा करेंगे ..उस समय उसकी नजरे दहेज के सामान को ही ढूंढ रही थी ..इस लिए नाराजगी भरे लहजे मे बोल रहा था ..
अब समझ मे आया कि अभय के पापा विवाह मे शामिल होने क्यों गये ..