Mukti - 1 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | मुक्ति - अनचाहे सम्बन्ध से - 1

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मुक्ति - अनचाहे सम्बन्ध से - 1

पूरे एक महीने के बाद वह वापस लौटा था।पिछले कई वर्षों से वह इस स्टेशन से आता जाता रहा था।लेकिन इस बार यह स्टेशन बदला बदला अजीब सा नजर आ रहा था।स्टेशन से बाहर निकल कर वह पैदल ही घर की तरफ चल पड़ा था।शहर की वो ही सड़क जिस पर से पिछले वर्षों में वह न जाने कितनी बार गुजर चुका था।वो ही सड़क आज उसे अनजान नजर आ रही थी।एकदम बदली हुई नजर आ रही थी।वह खुद को आज शहर में अजनबी महसूस कर रहा था।इतना अजनबीपन तो उसे तब भी महसूस नही हुआ जब वह पहली बार इस शहर में आया था।
उसे ऐसा महसूस हो रहा था।पिछले एक महीने में यह शहर पूरी तरह बदल गया था।
ज्यो ज्यो वह घर के करीब पहुंचता जा रहा था।उसके दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी।उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था।वह मन ही मन मे सोचता हुआ चला जा रहा था।कैसे उससे नजर मिला पायेगा।क्या जवाब उसे देगा।दिल ही दिल मे कामना कर रहा था कितना अच्छा हो कि वह घर पर न हो।भगवान करे कुछ दिनों के लिए वह कहि बाहर चली गयी हो।इसी उधेड़बुन में सोच विचार करता वह घर पहुंच गया।एक बार घर के दरवाजे के बाहर खड़े होकर उसने चारो तरफ देखा था।उसे आस पास कोई नजर नही आया।गली दूनी थी।फिर वह अंदर चला गया।आंगन में आते ही वह ठिठक गया।उसका दरवाजा खुला हुआ था।उसने ध्यान से आंखे फाड़कर देखा।पर वह कहि नजर नही आई।वह दबे कदमो से तेजी से आंगन को पार करके सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।दबे कदमो से बिना आवाज किये वह अपने कमरे तक जा पहुंचा।आहिस्ता से उसने दरवाजा खोला था।फिर लाइट ऑन की थी।और उसने राहत की सांस ली थी।मन ही मन मे वह सोचने लगा।चलो अच्छा हुआ।वह खुद ही बदल गयी है।
पहले वह जब भी लौटकर आता।वह बेसब्री से उसका ििइंतजा करती हुई मिलटी थी।जैसे ही वह आता उसे देखते ही उसका चेहरा खिल उठता।उसका प्रेम से हाथ पकड़कर कमरे के अंदर ले जाती।
"बैठो,"उसे बैठने की कहकर वह उसके लिए चाय नाश्ते का प्रबन्ध करने के लिए किचन में चली जाती।वह सब कुछ इतनी तनमन्यता से करती मानो उसकी पत्नी हो और पतिव्रता धर्म का पालन कर रही हो।फिर वह उसके पास आकर बैठ जाती,"लो चाय नास्ता करो।"
"और तुम?"
"मै भी करूंगी,"वह बिस्कुट हाथ मे लेकर कहती,"मुह खोलो।"
और वह अपने हाथ से उसे बिस्कुट खिलाती।वह आधा बिस्कुट खाता और आधा हाथ मे लेकर कहता,"लो तुम भो लो।"
"रात में--वह अँखियों से उसकी तरफ देखकर मुस्कराती।वह उसके द्विअर्थी संवाद का मतलब समझकर कहता,"अभी तो तुम बिस्कुट लो।"
वह प्यार से उसे अपने हाथों से ऐसे खिलाती मानो वह कई दिनों से भूखा हो।उसने कुछ नही खाया हो।और उसे खिलाते हुए उससे प्यार से बातें करती रहती।
लेकिन आज से पहले उसने भी तो उससे कभी ऐसा बर्ताव नही किया था।वह जब भी गांव से वापस आता तो इस तरह चुपके से अपने कमरे में नही जाता था।वह सबसे पहले उसके पास ही जाता था।उसके पास काफी देर तक बैठता।उसके बाद वह अपने कमरे में जाता था।आज वह उससे बचना चाहता था