Apang - 79 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 79

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अपंग - 79

79

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"आ---प ----" वह जैसे चकराकर पीछे की ओर हटी | फिर शायद हिम्मत की होगी, आगे बढ़ी ;

"आप --कौन ---?" उसने नाटक करने का प्रयास किया | आज वह सफ़ेद साड़ी में थी | अमेरिका में तो 'वैस्टर्न ड्रैस' में रहती थी | पहले घबरा गई होगी फिर अचानक ध्यान आया होगा कि अपने लिबास का व बदले हुए रूप का सहारा ले लिया जाए | यहाँ तो सबके सामने देवी जी का यही रूप रहता था |

"ओह ! आप मुझे नहीं पहचानतीं ?" रिचार्ड के चेहरे पर व्यंग्य पसर गया |

"जी---जी---आप ---" रुक्मणी यानि अब की देवी जी के मन का चोर उसे पूरी तरह से न झूठ बोलने दे रहा था न ही सच ! अंदर से वह असहज है, स्पष्ट दिखाई दे रहा था |

" आप मिस रुक ----नहीं ?" रिचार्ड उसका पीछा छोड़ने के लिए जैसे तैयार ही नहीं था |

वह चुप्पी ओढ़े खड़ी रही जैसे सबसे अनजान हो, उसके चेहरे पर रंग आ-जा रहे थे | क्या करे? क्या उत्तर दे ? उसके सामने जैसे अचानक ही यम खड़ा हो गया था, आज तो उसे लेकर ही जाएगा |

"याद करिए, हम कहीं मिले ज़रूर हैं ---" उसने कमरे में एक कदम आगे बढ़ाया |

"ओके, आप मुझे नहीं पहचानी---इनको जानती होगी ---" उसने अपने पीछे खड़ी भानु का हाथ पकड़कर उसे आगे कर दिया और फिर कहा ;

"अंदर आने नहीं देंगी ?" कहकर वह भानु का हाथ पकड़े हुए कमरे में प्रवेश कर ही गया |

अंदर का सिटिंग-रूम बहुत बड़ा नहीं था लेकिन सुन्दर था | सभी आधुनिक उपकरण वहाँ दिखाई दे रहे थे | दीवार पर बड़ा सा टी.वी, सामने बड़ा म्युज़िक सिस्टम, मॉडर्न लाइट्स, , साइड्स में कॉर्नर टेबल्स पर बड़े-बड़े सुंदर कट-वॉज़ेज़ में सजे ताज़े फूल, दो ओर सुंदर कम्फर्टेबल सोफ़े, काँच की सैंटर टेबल ---यानि क्या सुविधा नहीं थी वहाँ ?

रिचार्ड भानु का हाथ पकड़े हुए ही सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया | रुक की कुछ समझ में नहीं आ रहा था, आख़िर करे क्या ? मंदिर से घंटों की अधिक ज़ोर से आवाज़ें आनी शुरू हो गईं, शायद यह संकेत था कि मंदिर में भक्तों की भीड़ जमा होने लगी थी |

देवी जी अभी तक असमंजस में थीं | दरवाज़ा खुला था, पीछे सफ़ाई करने वाले बच्चे आ खड़े हुए हुए थे और फुसर-फुसर करने लगे थे | देवी जी ने पीछे घूमकर बच्चों की ओर घूरा |

" देवी जी ! आपको मंदिर में बुला रहे ----" उन बच्चों में से एक ने दबी ज़बान में कहा |

"तुम लोग जाओ --उनको बोलो, आज देर लगेगी ---भागो---"उसने बच्चों को घूरकर देखा, बच्चे डरकर भाग गए | इस समय उस स्त्री का चेहरा देखने लायक था | गिरगिटी रंगत वाली औरत सामने थी और रिचार्ड समझ नहीं पा रहा था कि वह इस स्त्री को कैसे बर्दाश्त करे ?कमरे में कोई आवाज़ नहीं थी जैसे पिन ड्रॉप साइलेंस | अचानक ही भीतर से एक आवाज़ गूंजी और सबके मुँह आवाज़ की ओर घूम गए |

"बोलती क्यों नहीं डार्लिंग ---कौन आया है ?" कहता हुआ एक पुरुष वहीं आ गया जहाँ ये लोग बैठे थे और उनमें फ़िलहाल चुप्पी पसरी रही थी |

अंदर से आने वाले आदमी ने अपने बदन को तौलिए में लपेटा हुआ था जैसे वह सीधा बाथरूम से निकलकर आ रहा हो | दो अजनबियों को देखकर वह सकपका सा गया |

" आप लोग कौन ? और यहाँ कैसे ? देवी जी यहाँ किसी से भेंट नहीं करतीं | अभी मंदिर में जाएँगी वहीं मिलना चाहिए आपको ----किसी ने बताया नहीं ?" वह कुछ गरम सा होने लगा था | और देवी जी की हालत पतली हुई जा रही थी |उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था |

"आप कौन ? वैसे हम देवी जी के पुराने दोस्त हैं ---" रिचार्ड इतनी सहजता से बोल रहा था कि वह आदमी मुस्कुरा दिया, वह अपने कपड़ों को देखकर खिसिया रहा था, शायद अंदर जाने के लिए मुड़ा ही था कि अचानक भानुमति पर उसकी दृष्टि पड़ी और वह भौंचक रह गया |

"सक्सेना ---?" भानुमति के मुँह से निकला | उसकी आँखें भी फटी रह गईं |

"लैट अस गो ---" भानु उठ खड़ी रही और उसने अपनी आँखों के इशारे से चलने का इसरार किया |

रिचार्ड चुपचाप खड़ा हो गया, रुक यानि यहाँ की देवी जी स्टैच्यु बनकर खड़ी हुई थी | उसके जैसे किसी ने प्राण निकाल लिए थे | यहाँ आकर अभी तो उसने अपनी नई ज़िंदगी शुरू की थी, उसे लगा था, अब बिना कुछ किए-धरे वह भगवान के नाम से मज़े से ज़िंदगी गुज़ारेगी | ये, उसकी ख़ुशियों के दुश्मन आख़िर कहाँ से आ गए थे ??

बीच में खड़ी हुई रुक के साइड में से दोनों निकलकर दरवाज़े के बाहर निकल आए और अंदर आते हुए किसी चुटियाधारी से टकरा गए |

"आज इतनी देर ----" अचानक वह चौंककर चुप हो गया और आँखें फाड़कर भानु और रिचार्ड की ओर देखने लगा |

" सदाचारी पंडित -----और अंदर सक्सेना ----??दोनों बदमाश जेल से बाहर और रुक अमरीका में कबाड़ा करके यहाँ ? " भानु ने बड़बड़ किया |

रिचार्ड और भानु बहुत अजीब मूड में वापिस घर जाने के लिए सीढ़ियों की ओर चलने लगे थे कि भानु के पैर काँपने लगे | वह सीढ़ियों पर बने चौंतरे पर बैठ गई | उसके पैर काँप रहे थे |

"ये वो ही सक्सेना और पंडित हैं जिनके बारे में तुम बात करती थी ?"

"हम्म---" भानु के मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी |

"स्ट्रेंज ---इन लोगों की इतनी हिम्मत कैसे हो गई ? इसी शहर में इतनी शिद्द्त से ये लोग ----" भानु बड़ी असहज स्थिति में बोली थी |

अचानक मंदिर से शोर आता हुआ सुनाई दिया, ज़बरदस्त शोर ! वहाँ से लौटने वाले लोग दुबारा से मंदिर के बड़े हॉल की तरफ़ दौड़े जा रहे थे | लोगों में बात हो रही थी कि देवी जी को माँ काली आ गई हैं और वे सबको इस स्थिति में जो आशीर्वाद देती हैं, पूरा होता है |

भानु ने अपने सिर पर हाथ मार लिया, हे भगवन ! इसने अब ये क्या नया नाटक करना शुरू कर दिया !

दुबारा लौटकर जाने वालों ने उन दोनों को भी देवी के दर्शन के लिए बुलाया |

भानु रिचार्ड का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतर आई |