Apang - 78 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 78

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अपंग - 78

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मंदिर में पूजा की तैयारियाँ की जा रही थीं | छोटे-छोटे दो-तीन लड़के मंदिर की सफ़ाई में लगे हुए थे | अब तक सूर्य देवता की आभा छटक आई थी | मंदिर की बत्तियाँ बंद कर दी गईं थीं |

" चाइल्ड लेबर !" रिचार्ड के मुँह से निकला | उसके अंदर बहुत सा क्रोध भरा हुआ था लेकिन वह भी आसानी से कहाँ अपना क्रोध प्रदर्शित कर पाता था !

"देवी जी कहाँ हैं ?"लाखी ने बताया था कि मंदिर में जो रहती हैं उन्हें सब देवी जी कहकर पुकारते हैं |

"देवी जी ??वाव --द गौडस ---!!" रिचार्ड के मुख से फिर निकला |

भानु ने उसका हाथ धीरे से दबा दिया, वह चुप हो गया, अंदर से कितना असहज था, यह तो वही जानता था |

"वो सामने वाले कॉटेज में ---आप बैठिए, मैं अभी बुलाता हूँ ---" यह लगभग 8/9 साल का बच्चा होगा |

"अरे नहीं। तुम अपना काम करो | ये देवी जी की बहुत पुरानी दोस्त हैं अमेरिका की, इनको देखेंगी तो खुश हो जाएँगी ---|"रिचार्ड ने कुछ इस प्रकार कहा कि वहाँ काम में लगे हुए सारे बच्चों को विश्वास हो गया |वैसे भी एक विदेशी को इतनी अच्छी हिंदी बोलते देखकर वे पहले से ही उसका मुँह ताक रहे थे |

" जी साहब---"

"अकेली हैं वहाँ ?" रिचार्ड ने फिर पूछा |

"साब, उनके पति हैं न, बड़े साब हैं ---" दूसरे लड़के ने कहा |

"अच्छा !!" रिचार्ड के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे, दुसरे ही पल उसने खुद को नार्मल कर लिया |

"बहुत अच्छा काम कर रहे हो तुम लोग ---" रिचार्ड ने सौ-सौ रुपए के नोट निकालकर उन्हें पकड़ाए |

लड़कों की आँखों में चमक आ गई लेकिन उनके चेहरों पर घबराहट पसर गई | उन्होंने अपने चारों ओर देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा था फिर आँखों ही आँखों में जैसे एक-दूसरे से कुछ इशारेबाज़ी की फिर अलग-अलग जगहों पर जाकर सफ़ाई का दिखावा करने लगे | उनके चेहरों पर एक चमक अभी भी तारी थी |

वे दोनों उस तरफ़ चले जिधर लड़कों ने इशारा किया था | बीच में बरामदा था जिसमें एक छोटी लड़की फूलों की माला बना रही थी, शायद भगवान को पहनाने के लिए | उसके सामने एक टोकरे में कई रंगों के फूल थे और एक टोकरे में बनी हुई छोटी-बड़ी मालाएं थीं | हो सकता था, वह इन मालाओं को बेचने के लिए बना रही हो, पहले भानु ने सोचा कि उससे पूछे फिर याद आया कि वह किसलिए यहाँ आई थी | दोनों चुपचाप आगे की ओर बढ़ चले |

"ए न्यू हज़्बेंड ---?" रिचार्ड ने धीरे से कहा |

"डू यू हैव ऑब्जेक्शन ?" भानु ने उसे चिढ़ाने के लिए पूछा |

"व्हाई शुड आई हैव ऑब्जेक्शन ? एंड हू एम आई टु ऑब्जेक्ट ? यस---आई बिलीव, वन मस्ट हैव द करेज टू हैव रिलेशन बिफ़ोर एवरीबडी ---मीन्स --इन द सोसाइटी --" फिर न जाने क्या हुआ, बोला ;

"आई विल होल्ड योर हैंड बिफ़ोर एवरीवन ---"

"कमाल हो, मैं कहाँ से बीच में आ गई ----?" रिचार्ड ने उसकी बात सुन ली थी लेकिन कोई उत्तर नहीं दिया |

वे कॉटेज तक पहुँच चुके थे | पत्थरों से बनी बहुत सुन्दर सी कॉटेज थी | अंदर 4 /5 कमरे तो होंगे, अनुमान लगाया जा सकता था |एक कमरे में लाइट अब भी जल रही थी जबकि दिन पूरा चढ़ चुका था |खिड़कियों पर भारी रेशमी पड़े हुए थे |अंदर से फुसफुसाती हुई आवाज़ें आ रही थीं |

"छोड़ो, मंदिर भी जाना है ---"

"चली जाना, भगवान हमसे भी प्यारा है क्या?"

"भगवान के बारे में ऎसी बात क्यों बोलते हो ?"

"क्यों, पाप चढ़ेगा ?"

"तो ---उसी ने इतना कुछ दे रखा है --"

"अच्छा, तो उससे प्यार भी कर लोगी ?" अंदर से किसी के जैसे मज़ाक उड़ाने की आवाज़ आई |

"प्यार ! उस पत्थर से प्यार कैसे किया जा सकता है भला ?---उसे याद तो करना ही पड़ता है | जाने दो, अभी तैयार भी होना है | "

इतना सुनना बहुत था | रिचार्ड आगे बढ़कर कॉटेज के बरामदे कीओर आ गया और उसने दरवाज़ा नॉक कर दिया

"देखो, वो आ गए---" |अंदर से आवाज़ आई, भानु ने सुना |

"इस टाइम कौन होगा?"

"अरे ! वो ही होंगे लौंडे--कुछ चाहिए होगा, पहुँच गए मरे | बेकार ही उठा लाए हो --" ये रुक की आवाज़ थी | भानु कितनी अच्छी तरह से इस आवाज़ को पहचानती थी |

"हाँ जी, हम तो यूँ ही उठा लाए? मंदिर का फ़र्श कौन घिसता मेरी जान ---और सारे दिन तुम्हारी सेवा कौन करता ?"

"हाँ, इतने कम में नौकर कहाँ मिलते हैं, ठीक ही किया --देखूँ तोक्या चाहिए ?"

इतनी देर में एक बार और नॉक हो गया |

"क्या मुसीबत है --आ रही हूँ न --क्या आफ़त है --" झल्लाई हुई बोली और दरवाज़ा खोल दिया |

"आप ---??' देवी जी को जैसे चक्कर आ गए और वह हड़बड़ाकर दो कदम पीछे की ओर हो गई |