Apang - 76 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 76

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अपंग - 76

76

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भानु रिचार्ड को अंदर ले आई थी, वह जानती थी वह काफ़ी परेशान था | उसने रिचार्ड से कहा ;

"मैं जानती हूँ, तुम बहुत परेशान हो---"

"तुम भी तो हो " रिचार्ड ने भानु का हाथ अपने में ले लिया जैसे उसे आश्वस्त करना चाहता हो |"

"मैं शिव मंदिर जाना चाहता हूँ ---"

"क्यों ?"

"मैं कन्फ़र्म करना और पुलिस को इन्फॉर्म करना चाहता हूँ ---|"

"यहाँ पुलिस क्या करेगी ?" भानु को समझ में नहीं आ रहा था |

"वहाँ करेगी न ! न्यू जर्सी की पुलिस की ब्लैक लिस्ट में इसका नाम आ चुका है ---"

भानु को बहुत अजीब लग रहा था जैसे परिस्थितियाँ रॉक एन्ड रोल खेल रही हों | पता ही नहीं चलता, आदमी न जाने कितने-कितने सपने बुनता है और वो कब?कहाँ?कैसे?उधड़ने लगते हैं, वह मुँह बाए देखता रह जाता है |

"ऐसे लोगों को पनिशमेंट मिलना ज़रूरी है --" रिचार्ड ने कहा |

"हाँ, बिलकुल मिलना चाहिए ---लेकिन ---"

"सोचती तो हो लेकिन कर नहीं पाती ---ठीक है न ?"

भानुमति चुप हो गई, क्या उत्तर दे? वह अपने साथ अन्याय करने वाले को कहाँ पनिश कर पाई थी ?

"यहीं मार खा जाता है इंसान, जब ज़रुरत हो तब उसका जवाब दे नहीं पाते इसीलिए उन्हें और भी गलतियाँ करने के मौके देते रहते हैं हम लोग ! सच कहूँ तो मैं इन सब बातों से बहुत थक गया हूँ --|"

"जबसे मुझसे मिले हो तब से परेशानी में ही रहते हो, इसके अलावा मिला क्या है तुम्हें ---?लीव मी रिचार्ड--यू विल बी रिलैक्स्ड| "

भानु सच में दुखी होती थी यह सोचकर कि न जाने रिचार्ड कौनसे जन्म का उधार उतार रहा है |

"तुम्हें लगता है कि अब ऐसा हो सकता है या तुमसे अलग रहकर मैं रिलैक्स रह सकता हूँ ?प्लीज़ डोंट बी अनप्रैक्टिकल ---" रिचार्ड के मुँह से निकला |

संबंधों का अपना संसार होता है जिसमें वे डूबते-उतरते चलते रहते हैं | मन की भाषा की कोई व्याख्या नहीं हो सकती | भानु और रिचार्ड एक दूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते और एक-दूसरे के पास आ चुके थे कि हज़ारों मील की दूरी भी उनके लिए अर्थहीन थी |

"हाऊ कैन यू टॉक लाइक दिस ?" रिचार्ड ने और भी परेशान हो गया था |कुछ संबंध ऐसे बन जाते हैं जिनका न कुछ नाम, न पहचान फिर भी एक-दूसरे के बिना अधूरे ! जिनको समाज कुछ मान्यता भी नहीं देता | लेकिन ऐसे दुहरे चेहरों से भरे समाज की मान्यता का कोई अर्थ है क्या?

क्या कहे वह ? धीरे से रिचार्ड के और करीब आकर उसने उसकी पीठ पर सांत्वना का कोमल हाथ फिराया |

रिचार्ड उसके सीने से लग गया |दोनों के बीच में एक सुकून सा पसरने लगा | उसके लिए मानव-मूल्यों का बहुत महत्व था | वह दुखी इसलिए था कि कुछ कर ही नहीं पा रहा था | भारत से जाकर ये ऐसे लोग उसके ही एम्प्लॉई क्यों होते हैं ? कहीं और होते तो कब से निकाल फेंके जाते | वह इतना संवेदनशील है कि कभी किसी के साथ अनजस्टिस नहीं कर सकता | जबकि वह भानु को हड़काता रहता था कि वह राजेश जैसे व्यक्ति को कैसे सह पाई ? उसको क्यों उसने सज़ा नहीं दिलवाई ? जबकि उसको सज़ा तो मिली ही थी लेकिन वह यह सोचकर भी परेशान रहता कि भानु जैसी समझदार स्त्री एक मूर्ख के बनावटी प्रेम में कैसे फँस गई थी ?भानु एक ऊँचे कैरेक्टर के पार्टनर को डिज़र्व करती थी | वह तो न जाने कितने संबंध बना चुका था, उसके लिए वह सब टाइम पास था और इस बात को सब जानते थे लेकिन अब ---? कैसे कायाकल्प हो गया था एक ऐसे आदमी का जिसने कभी सिंसियर होकर प्यार के बारे में सोचा भी नहीं था |

रात में घंटाघर के घंटों की आवाज़ इस घर तक बड़ी ज़ोर से आती थी |घंटों की आवाज़ सुनकर भानु चौंकी ;

"अरे ! सोना नहीं है ? बारह बज गए |" भानु ने चौंककर कहा |

पुनीत आज बहुत जल्दी लाखी के साथ अपने कमरे में चला गया था | लाखी दीदी को नया वीडियो गेम सिखाना चाहता था वह, जिससे लखी के साथ खेल सके |

"जल्दी ऊपर आना आप ---" उसने बड़े प्यार से रिचार्ड के गले में बाहें डालकर कहा था |

"श्योर डार्लिंग ---" रिचार्ड ने उसको आश्वासन दिया और वह भानु के साथ ऊपर भाग गया था | बच्चे ने पिता का लाड़-दुलार रिचार्ड से ही तो पाया था |

लगभग एक घंटे में लाखी नीचे आ गई थी, उसने बताया कि पुनीत खेलते-खेलते ही सो गया था |

"चलो रिचार्ड, अब सो जाना चाहिए ---" भानु ने कहा रिचार्ड ने उसे एक बार गहरी नज़र से देखा और अपने से कसकर भींच लिया | वह न जाने क्यों बहुत ही असहज था |

"रात में नींद भी आएगी, आई डाउट ---"रिचार्ड ने कहा |

"क्यों ?प्लीज़ डोंट स्पॉयल योर हैल्थ वी कांट चेंज द वर्ल्ड --- " भानु ने प्यार से कहा |

"प्लीज़, मुझे अर्ली मॉर्निंग उठा देना ---इफ़ वी कैन डू ए लिटिल फॉर द बेटरमेंट टू द सोसाइटी " रिचार्ड ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया और उससे कहा |

"हाँ, मैं हूँ न --उठा दूंगी न जल्दी ---चिंता क्यों कर रहे हो ?"

रिचार्ड की बेचैनी उसके चेहरे पर पसरी दिखाई दे रही थी | भानु ने सोचा था दीवान अंकल से बात करके इसमें पड़ना चाहिए लेकिन वह जानती थी कि रिचार्ड जब तक इस बात की तह तक न पहुँच जाए, उसे चैन नहीं पड़ेगा | अगर वह उसे मना करेगी, वह अकेला चला जाएगा | भानु ने रिचार्ड को समझाकर उसे पुनीत के कमरे में भेज दिया |

"प्लीज़, सुबह, एकदम अर्ली ---" ऊपर कमरे में जाते-जाते भी रिचार्ड भानु से कहना नहीं भूला |

"ओह, यस--डोंट वरी ---गुड़ नाइट ---"

दोनों साथ ही ऊपर अपने-अपने कमरों में जा रहे थे | एक बार बरामदे की झीनी रोशनी में दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और आगे बढ़ गए |