Kimbhuna - 24 in Hindi Fiction Stories by अशोक असफल books and stories PDF | किंबहुना - 24

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किंबहुना - 24

24

सुबह उठी तो लगा, बीमार है। चेहरा मुरझाया हुआ। ऑफिस पहुँच कर भी किसी काम में मन नहीं लगा। जबकि एक प्रोजेक्ट तैयार करना था। अहमदाबाद में ट्रेनिंग होने वाली है। और यहाँ हर्ष को किसके सहारे छोड़ जाए! पुष्पा के पास छोड़े तो पढ़ाई मारी जाए और पुष्पा को यहाँ रखे पंद्रह दिन तो क्षेत्र का काम सफर हो। वो पूरा एक जोन सँभालती है। आरती की अनुपस्थिति में भी प्रोग्रेस निल नहीं होने देती। ऐसे ही मौकों पर लगता है कि कामकाजी और खास कर फील्ड वर्कर उस पर भी सोशल सेक्टर में काम करने वाली महिला के लिए एक घरेलू पति होना नितांत जरूरी है। पर ऐसे जीवन साथी तो हजारों में किसी एक को मिलते होंगे। भाग्य जिसका प्रबल हो। नहीं तो स्त्री बाहर भी खटे और फिर घर में आकर भी। तिस पर बच्चों की जिम्मेदारी तो बहुत बड़ी होती है। बिना बाप के बच्चे कैसे दर-दर के हो रहते हैं, इसका उसे तीक्ष्ण अनुभव है। आज पापा का साया सर पर बना रहता तो वह क्योंकर भटकती! डॉक्टर न होती। और डॉक्टर न भी होती तो सम्मानित गृहस्थिन तो होती। आज तो उसे कोई अच्छी नजर से ही नहीं देखता। हर कोई हथियाना चाहता है। जिसे देखो राल टपकाता मिलता है।

कल वकील ने कितनी अपमानजनक बात कही कि- आपको जरूरत हो तो कोई एक दोस्त बना लेना, ध्यान रहे एक से अधिक नहीं! जैसे हम यही करते फिरते हैं... उसे रोना आ गया। मगर कौन है जो उसके अंतरतम की जाने!

इन्हीं झंझावातों में उलझे उसने कम्प्यूटर खोल लिया कि चलो, प्रोजेक्ट में ही सिर मारें! लेकिन खोलते ही एक नया मेल शो होने लगा- एड. राठौर। दिमाग के सारे ऊतक यकायक सक्रिय हो गए। कर्सर रख उसने जैसे ही क्लिक किया, 5 सेकेंड की लोडिंग लेकर मेल खुल गया। लिखा था:

ड्राफ्ट की चार प्रतियाँ निकलवा कर, प्रत्येक पर तारीख डाल कर एवं हस्ताक्षर बना कर, एक प्रति मुख्य सचिव तथा एक प्रति अध्यक्ष राज्य महिला आयोग को स्पीड पोस्ट से भेज देना। एक प्रति स्वयं जाकर तथा अपनी पुत्री को साथ ले जाकर एसपी बलौदा बाजार को देना और एक प्रति पर साइन ले लेना, उसे सँभाल कर रखना।

पीडीएफ फाइल थी जो उसने तुरंत डाउनलोड कर ली। नोटिस उसके स्क्रीन पर झिलमिला उठा। साँस रोक तेजी से पढ़ना शुरू कर दिया:

प्रति,

श्रीमान् पुलिस अधीक्षक महोदय,

जिला-बलौदा बाजार (छ.ग.)

विषय-    परित्यक्ता स्त्री आवेदिका को जबरन शादी करने के लिए विवश करने के सम्बंध में।

महोदय,

निवेदन निम्नानुसार सादर प्रस्तुत हैः-

(1) यह कि आवेदिका का पति आलम शाह खांन उसे 5 वर्ष पूर्व छोड़ कर चला गया था। उसका अब तक कोई अता-पता नहीं है। वह दो बच्चे यथाः एक पुत्री रेश्मा, एक पुत्र हर्ष को छोड़ गया है, जिन्हें आवेदिका सिंधुजा सीमेंट फाउन्डेशन, रवान, जिला बलौदा बाजार में नौकरी करके पढ़ा रही है।

(2) यह कि इसी बीच आवेदिका की मुलाकात केपी सीमेंट फाउंडेशन भिलाई में डी.जी.एम. पद पर सेवारत भरत मेश्राम जो आवेदिका की पुलिस इंस्पैक्टर बहन रेखा नेताम के मामा ससुर हैं, से एक समारोह में हुई तो उन्होंने आवेदिका को शादी का प्रस्ताव दे दिया। जब आवेदिका ने कहा कि वह शादीशुदा है और आप भी शादीशुदा हैं तो भरत मेश्राम स्वयं तथा रिश्तेदारों के माध्यम से आवेदिका पर अवैध शादी करने का दबाव बनाने लगे। दुख यह है कि भरत मेश्राम ने आवेदिका की 15 वर्षीय पुत्री रेश्मा के साथ भी छेड़छाड़ की जो उसने आवेदिका को बताई। वर्तमान में हालात ये हैं कि वे आवेदिका से सम्बंध बनाने जबरन शादी करना चाहते हैं। आवेदिका को पैसे का प्रलोभन दिया जा रहा है। शादी न करने पर एसिड अटैक व बच्चों को खतरा पैदा करने की धौंस दी जा रही है। इससे आवेदिका तथा उसके बच्चे आए-दिन भयभीत रहने लगे हैं। आवेदिका बहुत भयभीत है, उसका कोई सहारा नहीं है। ऐसे में वह या तो जबरन शादी करने या आत्महत्या करने के लिए विवश है।

(3) यह कि थाना सिटी कोतबाली बलौदा बाजार के थाना प्रभारी श्री केशव नेताम आरोपी भरत मेश्राम के रिश्तेदार हैं। इस कारण भी आवेदिका रिपोर्ट नहीं कर पा रही है।

अतः निवेदन है कि आवेदिका को भरत मेश्राम से बचाने तथा उसे व उसकी 15 वर्षीय पुत्री और 11 वर्षीय पुत्र को सुरक्षा प्रदान करने की कृपा करें।

दिनांकः-

आवेदिका

(आरती कुलश्रेष्ठ)

जी-63, जैन कॉलोनी, बलौदा बाजार (छ.ग.)

 

सत्य-प्रतिलिपि

(1)    श्रीमान् मुख्य सचिव महोदय, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर(छग)

(2)    अध्यक्ष महोदया, छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग, रायपुर(छग)

 

नहीं, ये हम न कर पाएँगे! वह बुदबुदाई। सिर में असहनीय पीड़ा शुरू हो गई। दोनों हाथों में सिर थाम कर बैठ गई वह। न फील्ड में गई न ऑफिस में कुछ किया। भयंकर डिप्रैशन में डूबी शाम को घर लौटी तो दोस्त का फोन मिला, वकील साहब ने ड्राफ्ट मेल कर दिया था, क्या तुम प्रिंट निकाल कर आवेदन दे आईं?

नहीं, हम न देंगे, उसने साफ मना कर दिया।

क्यों! उसे हैरत हुई।

अरे- आपको पता नहीं, उनके बड़े लम्बे हाथ हैं, वह झींकी!

अब उसकी समझ में नहीं आया कि उसे कैसे समझाए! तो उस वक्त फोन बंद कर दिया और रात 11 के बाद फिर लगाया। पूछा, सो गईं क्या?

नींद किसे है?

नींद की पुड़िया है हमारे पास लोगी!

ऐसे में कोई पुड़िया असर नहीं करती, वह हलाकान थी।

अच्छा ये बताओ, तुम्हें हम पर थोड़ा-बहुत भरोसा है!

आप पर तो पूरा है, आप पर नहीं तो किस पर!

फिर एक काम करो, सुबह रायपुर जाकर रेश्मा को ले आओ और एसपी को आवेदन दे आओ, बात मानो, साहिबा!

अरे, लड़की को तो बिल्कुल न फँसाएँगे!

इसमें फँसने जैसा कुछ नहीं, तुम बेकार डरती हो।

न, उसे नहीं।

बात मानो, डर के आगे जीत है।

हमारी कभी न हुई।

होगी!

नहीं होगी।

कोशिश तो करो! कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

हमारी होती है,

क्या?

हार!

तुम्हें हमारी कसम है, कोशिश करो, आरती, प्लीज!

थोड़ी देर के लिए दोनों तरफ शांति छा गई।

फिर वह सुबकने लगी और उसने कहा, ये क्या, हिम्मत से काम लो! तो रोने लगी। तो उसने कहा, तुम्हें हमारी कसम, अब रोओ नहीं, और अब रोओ तो हमारा मरा मुँह देखो!

आरती ने अपना मुँह हथेली से कस कर बंद कर लिया।

दिल दर्द से फटा जा रहा था। जब किसी तरह जब्र कर लिया तो रुँधे कण्ठ से बोली, आपको हमारी उमर लग जाए। हम क्या करेंगे, ज्यादा जी के, हमारी उमर के दस-बीस बरस मिल जाएँ आपको... ऐसी अशुभ बात फिर कभी न कहना, हमारे बच्चों को कौन पालेगा, एक आपका ही आसरा है।

उसी समय मूड चेंज करने के लिए उसने कहा, तुम्हें वो गीत याद है?

कौनसा?

जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए,

सुनते ही वह गीली आवाज में गाने लगी,

तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज

ना कोई है, ना कोई था, जिन्दगी में तुम्हारे सिवा, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज...

शीतल भी साथ देने स्वर में स्वर मिला कर गाने लगा। गीत और उससे उपजे अपनत्व में डूबे इस तरह वे देर तक गाते रहे...। तब उसने कहा कि अब सो जाओ और सुबह जल्दी उठ कर बाजार से प्रिंट निकलवा लेना और साढ़े दस पर एसपी को देकर तब ऑफिस जाना।

उसने कहा, नहीं ऑफिस तो सुबह ही जाना पड़ेगा। आठ-नौ तक हर हाल में अटेंडेस भरना पड़ती है, जाएँगे और वहीं से प्रिंट निकाल लेंगे फिर बीच के समय में दे आएँगे!

पक्का!

जी।

तो अब सो जाओ।

अभी नींद नहीं, आप सो जाओ!

नींद तो हमें भी नहीं, चलो लिप्स भेजो, उसके बाद आएगी!

तो जनाब को अब लत लग गई... वह हँसी।

हाँ-जी! उसने मदहोश कर देने वाली आवाज में कहा। आरती को सुरूर-सा आ गया। पलंग पर तिरछी हो, एक साइड बाल बिखेर उसने सेल्फी ली और पोस्ट कर दी। फोन दुबारा लगा कर शीतल ने किस किया। खुद को जज्ब नहीं कर सकी, जवाब में आज उसने भी किस कर लिया। तो वह आतुर हो उठा, बोला, कहो तो आ जाएँ, दो-चार दिन के लिए।

तो वह चुप रह गई। और उसने फिर पूछा तो कानाफूसी सी कर दी, यहाँ जगह कहाँ, साहेब!

चलो कोई बात नहीं, तुम अजमेर आओ!

भाग्य में हुआ तो... उसने डूबते से स्वर में कहा।

है भाग्य में, आना है, उसने जोर दिया, फिर बोला, अच्छा अब सो जाओ, उदास न होओ! उसने कहा और जवाब न मिला तो बोला, अच्छा चलो, पहले हम सो जाते हैं, ओके! शुभरात्रि।

शुभरात्रि।

मगर उसे नींद नहीं आई। बुरे-बुरे खयाल आते रहे। बीमार-सी सुबह ऑफिस पहुँची। कोई काम नहीं किया, सिर्फ प्रिंट लिए एड. राठौर के ड्राफ्ट के और काँपती कलम से चारों प्रतियों पर तारीख डाल हस्ताक्षर बना दिए, मानों अपनी ही मौत के वारंट पर साइन किए हों! फिर देर तक बैठी रही पालग बनी, कोहनी कुर्सी के हत्थे पर जमाए और हथेली पर ठुड्डी टिकाए, अशगुन सोचती- कभी कत्ल होती, कभी अगवा होती...। लंच का समय हो गया, खाने की इच्छा न हुई। फिर हिम्मत बाँध कर उठी और स्कूटी उठा कर पोस्ट ऑफिस की सिंधुजा सीमेंट रवान ब्रांच में पहुँची, दो लिफाफे लिए, दोनों पर पाने वाले और भेजने वाले के नाम पते लिखे, काउंटर पर दिए, पैसे चुकाए और ततारोष में कि अब तो मरना या जीना दोनों में से एक करना पड़ेगा, हेलमेट पहन स्कूटी तेजी से चलाती हुई बलौदा बाजार स्थित एसपी ऑफिस आ गई।

साहब बैठे थे, उसने अपने नाम की पर्ची भेज दी! तुरंत बुला लिया गया, बैठिए मैडम, कहिए! अफसर बहुत भला था। उसने बमुश्किल गला खोल काँपती आवाज में कहना शुरू किया, सर मैं, आरती कुलश्रेष्ठ!

अगर मैं भूल नहीं रहा तो आप शायद, सिंधुजा के गणेश उत्सव में संचालन कर रही थीं...

जी-सर! उसे अचानक याद आ गया! उस दिन उसने शिफाॅन की गुलाबी साड़ी पहन रखी थी जिसका बार्डर नारंगी था और नारंगी ही बड़े गले का स्लीवलैस ब्लाउज! बाल हमेशा की तरह गालों को घेरे हुए कंधों पर झूल रहे थे। मुख्य अतिथि उसकी प्रस्तुति पर इतने भावुक हो गए कि जब वह अत्यंत श्लाघनीय शब्दों में उन्हें वक्तव्य के लिए आमंत्रित कर रही थी, वे डाइस पर जाने से पहले उसके र्बाइं ओर आ खड़े हुए और उसने बोलते-बोलते मुस्करा कर उनकी ओर देखा तो खुद को रोक नहीं सके, दायाँ हाथ उसके कंधे पर रख, मुस्कराते हुए आगे बढ़ गए थे। वे यही तो थे!

कहिए! एसपी की मुस्कान में उसी दिन वाली ताजगी आ घुली। पर आरती ने आँखों में आँसू भर लिए और बैग से वह शिकायती आवेदन-पत्र निकाल उनके हाथों में थमा दिया। जिसे गौर से पढ़ कर उन्होंने एक क्षण कुछ सोचा, फिर पूछा, क्या कार्यवाही चाहती हैं, आप?

वे हमारा पीछा छोड़ दें तो हम अपने बच्चे पाल लें, सर! कहते वह सुबक पड़ी। अफसर नेकदिल था, उसके दिल में दया उमड़ पड़ी। उसने आश्वस्त किया, आप जाइए, आज से आपकी ओर कोई आँख उठा कर नहीं देखेगा।

दिल में आया कि उनके पैर छू ले, मगर वह अपनी फूटती रुलाई रोक जल्दी से झुक कर जाने लगी। तब उसने उसे रोकते हुए पूछा, क्या ये भरत मेश्राम आपके घर आए दबाव डालने?

जी! और...

हाँ, कहिए, कहिए!

प्रेशर में लेने समाज की मीटिंग भी बुला रहे हैं... कहते इस बार वह फफक पड़ी।

लीजिए, उसने एप्लीकेशन देते हुए कहा, ये एक लाइन और एड कर दीजिए इसमें...

आरती ने बैग से पेन निकाल, एप्लीकेशन उसकी डाइस पर ही रख लाइन एड कर दी। फिर नमस्कार कर चली आई।

बाहर आकर संयत हो, तुरंत दोस्त को फोन लगाया, एप्लीकेशन दे दी और भेज भी दी दोनों जगह।

एसपी साहब से अपनी बात ठीक से कह पाईं?

बहुत अच्छे से...उम्मीद से अधिक! अब उसका उत्साह देखते ही बनता था।

गुड! शाम को बात करता हूँ। उसने कहा। फिर शाम को तो नहीं, पर रात को उसने बताया कि अब आप निश्ंिचत होकर चल सकती हैं!

कहाँ?

जहाँ जा रही थीं।

अजमेर।

जी।

कैसे? उसे खुशी हुई पर यकीन नहीं। तब शीतल ने बताया कि दरअसल, वकील ने थोड़ा एडवान्स काम कर लिया। वे बहुत कुशल अधिवक्ता हैं। हमारी कंपनी के एक से एक उलझे केस चुटकियों में सुलझा दिए उन्होंने। इस केस में उन्होंने यह किया कि जो ड्राफ्ट तुम्हें भेजा, वही भरत और केशव को भी भेज दिया। तो उन दोनों के ही हाथ-पाँव फूल गए। वे शाम को ही एसपी के पास जाकर गिरे और सरेण्डर कर अण्डर टेकिंग दे आए कि आरती और उसके बच्चों को कोई खतरा होता है तो उसकी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी।

अरे! वो खुशी से उछल पड़ी, आपको कैसे पता?

हमें अभी-अभी एडवोकेट राठौर जी ने यह वाक्या सुनाया। और यह बात भरत ने ही खुद वकील साहब को बताई। उसने उन्हें आश्वस्त भी कर दिया कि समाज की भी अब कोई मीटिंग नहीं बुलाएगा, आरती की ओर कभी देखेगा भी नहीं!

वाह, हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा...।

तस्दीक के लिए तुम एक काम करो, उसने कहा।

क्या?

हर्ष को अपने भाई के यहाँ जबलपुर छोड़ती हुई अजमेर पहुँचो। वैसे भी तुम्हारी गाड़ी पंद्रह को जबलपुर से है, वहाँ तो जाना ही है। बेटे को वहाँ छोड़ दो, जिससे तुम भी निश्ंिचत हो जाओ और इस बाबत् कन्फर्म भी कि वे लोग मीटिंग में जा रहे या नहीं!

बात उसे जँच गई। अगले दिन वह रुकू के पास रायपुर गई और उसे समझा आई कि हम ऐसे-ऐसे जा रहे हैं, तुम्हें कोई डर हो तो साथ चलो, मामा के यहाँ रह लेना! उसने कहा, नहीं ममा, आप जाओ शौक से, हमारी पढ़ाई खराब होगी ना...।

वहाँ से लौट कर रात में आरती ने हर्ष का अलग और अपना अलग बैग लगा लिया। दोस्त के कहे उसने तत्काल कोटे से आॅनलाइन बेटे का टिकिट भी करा लिया था। संयोग से उसी कोच में सीट मिल गई थी। हर्षित मन वह दोस्त को अपनी तैयारी की सूचना दे सो गई...।

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