Kimbhuna - 14 in Hindi Fiction Stories by अशोक असफल books and stories PDF | किंबहुना - 14

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किंबहुना - 14

14

मगर आलम से पिण्ड छुड़ाना इतना आसान कहाँ था। उसने तो मामू और बड़े अब्बू को महीने भर के भीतर ही ये खबर दे दी थी कि- आरती एक बड़ी कंपनी में काफी ऊँची पोस्ट पर पहुँच गई है। आप लोग चिंता न करें, अब हम लोग बहुत जल्द और आसानी से आपका पैसा लौटा देंगे! फलस्वरूप उनकी माँग बढ़ने लगी। चिट्टियाँ आरती के पते पर आने लगीं। तब यही लगा कि वक्त आ गया है, अब आलम से पिण्ड छुड़ा ही लिया जाय। अन्यथा लाखों का कर्ज पटाना पड़ा तो बच्चों का भविष्य गर्त में चला जाएगा! परिणाम स्वरूप कठोर निर्णय लेकर उसने दो-तीन काम किए। कि- एक तो जयपुर से अपना तबादला रवान करा लिया। यहाँ पास ही उसकी बहन रेखा थी। रिश्तेदार प्रशासन या पुलिस में हो तो व्यक्ति को बड़ा सहारा होता है। तिस पर उसकी सगी बहन और बहनोई दोनों पुलिस इंस्पैक्टर थे। दूसरा काम यह किया कि रेखा की ही मदद से रायपुर कोर्ट में तलाक का प्रकरण डलवा दिया। अब वह चैन से थी कि इतने से कम से कम आलम के ताजिए ठंडे पड़ जाएँगे! कर्ज पटाने वह दबाव न बना सकेगा और न माँगने अब्बू या मामू को भेज सकेगा। और तीसरा काम भरत से सगाई। इसमें यही फायदा कि दुर्रानी जैसे लोग मुँह न मार सकेंगे। बच्चों को अभिभावक मिल जाएगा। मगर उसमें यही प्रतिबंध कि पहले दोनों का तलाक हो! हालाँकि सगाई के पहले से ही दोनों के तलाक प्रकरण चल रहे थे। किंतु मजबूरी तो यही कि दोनों ही उसके पहले शादी नहीं कर सकते, नहीं तो नौकरी पर बन आएगी।

पर डेढ़ साल हो गया, भरत के साथ यूँ रहना अब उसे अच्छा नहीं लगता। बात यह कि दफ्तर न फील्ड सब ओर यह खबर आग की तरह फैल गई थी। हर कोई न जाने कैसी नजरों से देखता है कि वह सामना नहीं कर पाती। इस बीच उसने भिलाई क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों को वोकेशनल टेªनिंग दिलाने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार कर मैनेजमेन्ट को भेज दिया था। साल पहले मुम्बई से आए फाउन्डेशन के विजिटिंग मैनेजर से इस बारे में पहले ही बात हो गई थी। सो, उसने प्रोजेक्ट बना कर भेज दिया था कि- करीब 75 छात्रों और ग्रामीण शिक्षित महिलाओं को यह वोकेशनल ट्रेनिंग दिलाई जाएगी। इसके द्वारा उन्हें लैंडलाइन रिपेयरिंग, मोबाइल सर्विस से लेकर बिलिंग और नेट-आॅपरेटिंग तक का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए बीएसएनएल और मोबाइल कंपनियों के ट्रेनर ट्रेनिंग हेतु स्वयंसेवी आधार पर अनुबंधित किए जाएँगे। सप्ताह भर के इस प्रोग्राम में शामिल होने वाले ट्रेनीज से कोई फीस नहीं ली जाएगी, पर उनके भोजन और आवास की व्यवस्था की जाएगी। ट्रेनिंग के पश्चात् उन्हें सर्टीफिकेट प्रदान किए जाएँगे। टेलीकाॅम, इलेक्ट्रानिक मीडिया और विद्युत सम्बंधी पाटर्स बनाने की ट्रेनिंग के लिए पोस्ट वोकेशनल कोर्स बाद में कराया जाएगा, जिसका प्रोजेक्ट इस ट्रेनिंग के बाद तैयार कर प्रस्तुत किया जाएगा।

भाग्य से यह प्रोजेक्ट मंजूर हो गया था। पर इसका हेड नीलिमा को बनाया गया। आरती ने समझौता कर लिया कि चलो, ऐसे ही सही। मेरे नसीब में मेहनत है, उसका फल नहीं। पर यह करते नौकरी चल रही है, यही क्या कम है!

इस तरह अपने क्षेत्र की कुछ महिलाओं को वह भिलाई क्षेत्र के टूर पर ले गई। वहाँ भिलाई केपी सीमेंट लिमि. के सहयोग से उसने गनियारी में शिविर लगाया। यहाँ आसपास के क्षेत्र बरोदा, औंधी, औरी, बेंदरी और उठाई तक से प्रशिक्षु महिलाएँ और छात्र आ जुटे। शिविर का प्रचार-प्रसार पहले ही भली-भाँति कर दिया गया था। उस क्षेत्र की महिलाओं-छात्रों को जागरूक करने और स्वावलम्बन हेतु यह प्रशिक्षण केम्प एक महत्बाकांक्षी योजना थी जिसे फाउंडेशन ने भी अपने मेन टारगेट की तरह लेकर प्रोत्साहित किया। साधन-सुविधा और योजनानुसार मंजूर खर्च से कोई कटौती नहीं की गई। आरती बहुत उत्साहित और आत्मविश्वास से लबरेज थी उन दिनों। उसकी हेड नीलिमा और फाउंडेशन के तीन-चार कर्मचारी साथ आए। महिलाएँ एक अलग वैन से। गनियारी के प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल शिवमंदिर के हरे-भरे बगीचे में तम्बू तान कर रहने के वास्ते छोटे-छोटे कैंप बना दिए गए तथा ट्रेनिंग के लिए मंदिर का हाॅल ले लिया गया। वहाँ रहते उसे बहुत अनुभव हुए।

ट्रेनिंग प्राप्त कर रही बेसहारा महिलाओं के अलावा इस कैंप में कुछ ऐसे बच्चे भी थे जिन्होंने बचपन में ही बड़े-बड़े दुख देखे थे। इंटर पास एक छात्र हाकिम गोड ने छह साल की उम्र में ही गृह क्लेश के बाद अपनी माँ को रेलवे ट्रेक पर इंजन से कटते देखा था। कुम्हारी के रहने वाले इस बच्चे के मन में उस दिन इतनी कठोर पीड़ा हुई कि वह पलट कर अपने घर नहीं गया। दुर्ग, रायपुर और न जाने कहाँ-कहाँ भटकते और मजदूरी करते उसने किसी तरह अपनी पढ़ाई की।

आरती को बस एक ही कठिनाई थी कि भिलाई बहुत पास था और केपी सीमेंट के सहयोग से कैंप चल रहा था तो उसके डीजीएम के नाते भरत वहाँ जब देखो तब आ जाता। रोज अपने साथ चलने का इसरार करता। नीलिमा की उपस्थिति में उसे बहुत शर्म लगती। जहाँ पहले दुर्रानी को लेकर वह नीलिमा को जिन नजरों से देखा करती, उन्हीं नजरों से अब नीलिमा उसे देखती। आरती शर्म से गड़ जाती। भरत से रोज कहती कि- यहाँ न आओ, ऐसे तंग करोगे तो एक दिन हम सगाई तोड़ देंगे! तो वह कहता, ऐसे कैसे! हमने तो समाज के आगे सम्बंध जोड़ा है। वो दिन भी दूर नहीं जब हम सार्वजनिक विवाह कर भोज देंगे! देखना, तब तुम्हारे यही कुलीग्स तोहफे लेकर आएँगे!

नीलिमा की नजरें जब बहुत बेशर्म हो गईं तो एक दिन उसने भरत का यही वाक्य दोहरा दिया! और भरत शाम को आया तो उसके इसरार पर दुस्साहस कर भिलाई चली भी आई। जानती थी शिविर छोड़ने की रिपोर्ट तुरंत हेडक्वार्टर को पहुँच जाएगी, पर उसे यह हेंकड़ी एक दिन तो दिखाना ही थी। जिससे सभी का मुँह बंद हो जाना था।

भरत यहाँ कंपनी के शानदार गेस्टहाउस में रहता था। बाग-बगीचों से सुसज्जित गेस्टहाउस के एसी हाॅल में उसने कदम रखा तो लगा, साक्षात् स्वर्ग में आ गई या किसी राजा के महल में। भरत की इस पेशकश पर अनायास ही खूब प्यार उमड़ आया। दिन भर की थकान से चूर नहा-धोकर उसने सफेद रंग का हल्का गाउन पहन लिया। इस बीच खाना आ गया तो दोनों ने साथ बैठ कर मुस्कराते और भावी पल की कल्पना में उमंग से लबरेज खा भी लिया। आरती जो कि वाशरूम से ही कुछ न कुछ गुनगुना रही थी, उसे उत्साहित करते भरत ने कहा, आज खुल कर गाओ, ये तो अपना घर है, अपनी रात। तो उसने मुस्कराते हुए बताया कि गाने और कविता का शौक तो हमें बचपन से है। शिविर में भी रात देर तक छत्तीसगढ़ी लोकगीत चलते रहते हैं।

तुम भी गा लेती हो छत्तीगढ़ी में...

ना, थोड़ा बहुत!

थोड़ा ही सही, कुछ सुना दो ना उसने मनुहार की।

अब तक वे लोग बेड पर पहुँच गए थे। आरती दिमाग पर जोर डाल कोई लोकगीत याद करने लगी, जिसकी धुन बार-बार उसके होंठों पर आकर मचल रही थी। मगर वह एक दो लाइन से अधिक याद नहीं कर पा रही थी। तो उसने भरत के ऊपर झुकते हुए अपना वही पसंदीदा गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया जिसे आलम को सुनाने के लिए याद किया था, मगर जिसने परिस्थितियाँ ही उलट कर रख दीं। और जिसे वह भूल चुकी थी। किंतु कहावत है कि दमित इच्छाएँ तो स्वप्न में भी साकार हो उठती हैं। पहले धीमे-धीमे मुस्कराते और फिर मायूसी के साथ करुण स्वर में गा उठी:

इश्क में हम तुम्हें क्या बताएँ, किस कदर चोट खाए हुए हैं

भरत ने महसूस किया कि- सचमुच वह हालात की सताई हुई है। उसने शादी का जोड़ा जरूर पहन लिया पर वह उसके तईं कफन सरीखा ही रहा। लेकिन तब भी लोग तो उसे दुल्हन ही समझते रहे...। गाते-गाते आँसू भरने से उसकी आँखों का काजल बह चला था, जो ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों अपनी सुर्ख आँखों में उसने काजल नहीं कजा आँज ली हो! मगर जब उसने आगे गायाः ऐ लहद अपनी मिट्टी से कह दे, दाग लगने ना पाए कफन को, आज ही हमने बदले हैं कपड़े, आज ही हम नहाए हुए हैं... तो गाना खत्म होते-होते वह सुबकने जरूर लगी थी पर भरत को शरारत सूझ उठी। उसने कहा कि- तुमने आज ही कपड़े बदले हैं तो फिर तुम्हारी खैर नहीं...।

क्यूँ? उसने आँखें पोंछ उसकी ओर देखा।

हर्ष के छोटे भाई को आने से रोक न पाओगी!

अरे-नहीं! विनोद भाँप कर वह ऐसे लजा गई जैसे सुहागरात की घड़ी आ खड़ी हुई हो।

शरमाने की ऐसी अनोखी अदा देख भरत के दिल में बारिश के बगूले फूट उठे थे। उसके सजने-सँवरने और पेश आने का तरीका इतना नायाब था कि सदैव अभिनव लगती। वह अपना दम साधे उसकी बगल में लेट रहा, लेटा रहा मानों आधा घण्टा हो गया, फिर पौना मगर वह तो अपनी करवट गहरी नींद सो रही! भरत मेश्राम के दिल में तीखी चुभन उठ खड़ी हुई थी। पत्नी से विछोह हुए चार-पाँच साल हो गए थे। औरत की भूख कुछ-कुछ मिट चली थी, मगर आरती के आगमन से फिर सर चढ कर बोल उठी थी। वह उसे झकझोर कर बनावटी गुस्से से बोला, सोने का मतलब भी जानती हो? शायद नहीं! तुम्हें शादी का कोई अनुभव नहीं, न पति के संग सोने का।

कैसे? कच्ची नींद से जागते उसने अचकचा कर पूछा। जैसे, कोई चूक हो गई हो।

भरत अपनी जीत पर हँसता-सा बोला, पत्नी खाली-पीली नहीं सोती अपने पति के साथ, उसको प्यार भी करती है। उसी को पति के साथ सोना कहते हैं!

ओ! ओठ गोल किए उसने, जैसे- थकी-माँदी होने से रस्म निभाना भूल गई हो, मुस्करा कर सीधी हो गई और गर्दन तिरछी कर स्नेह पूर्वक उसे निहारने लगी।

भरत उसकी आँखों की निराली चमक देख हतप्रभ था। उसने महसूस किया कि वह बहुत बुद्धिमान और अनुभवी है। तारीफ के पुल बाँधने लगा, सच में तुम्हारे परफाॅरमेंस का तो जवाब नहीं- कविता, एंकरिंग, फील्डवर्क, ऑफिस वर्क, घर-गृहस्थी या...

या! तारीफ की कायल वह चहकी।

हमबिस्तरी...

अच्छा, सुनते ही चेहरे पर मदहोशी छा गई और उसने फुर्ती से हाथ बढ़ा, उसकी नाक की टोन अपनी चुटकी में भर जोर से दबा दी, बदमाश! तो भरत को जैसे, शिकार का लायसेंस मिल गया। जो वह बादल सा उमड़ता-घुमड़ता उसके ऊपर छा गया।

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