जीवन की डोर ( स्त्री का प्यार सबके नसीब में नहीं होता )
स्त्री का प्यार सबके नसीब में नही होता,
वो जीवन में सिर्फ़ एक ही मर्द से ,
दिल से प्यार कर पाती हैं ,
वो मर्द उसका प्रेमी हो या फिर पति ,
वो टूट क़र जीवन में एक बार ही ,
स्त्री उस मर्द के कंधे पर अपना सर ,
रख सुकून से सो पाती हैं ,
उससे प्यार की दो बाते कर पाती हैं ,
उससे वो अपने सारे राज बता सकती हैं ,
उसे बेपनाह प्रेम कर सकती हैं ।
और जब स्त्री उस मर्द से ,
तो फिर किसी दूसरे मर्द को ,
उस जैसा प्रेम नही कर पाती ,
उनका जिस्म भले जिसके भी ,
उसी मर्द को ताउम्र ढूँढता हैं ,
सर रख सुकून से सोया करती थी ।
स्त्री का प्रेम जब छूट जाता है ,
स्त्री वोही सकून चाहती है ,
जो उसे उसका पति या प्रेमी ,
स्त्री तन का सुख मगति है ,
जब उसका पति उसे नहीं देता ,
फिर वो मजबूर अपने प्रेमी से चाहती है ,
स्त्री का बदन तन्हाई मे बहुत मचलता है ,
उन चार दिनों से गुजरती है,
जीवन दोनों के साथ चलता है,
स्त्री का प्रेम जिसे मिला हो,
उसे पूछना प्रेम क़्या होती हैं..!!
जीवन की डोर ( स्त्री का प्यार सबके नसीब में नहीं होता )
स्त्री का प्यार सबके नसीब में नही होता,
वो जीवन में सिर्फ़ एक ही मर्द से ,
दिल से प्यार कर पाती हैं ,
वो मर्द उसका प्रेमी हो या फिर पति ,
वो टूट क़र जीवन में एक बार ही ,
स्त्री उस मर्द के कंधे पर अपना सर ,
रख सुकून से सो पाती हैं ,
उससे प्यार की दो बाते कर पाती हैं ,
उससे वो अपने सारे राज बता सकती हैं ,
उसे बेपनाह प्रेम कर सकती हैं ।
और जब स्त्री उस मर्द से ,
तो फिर किसी दूसरे मर्द को ,
उस जैसा प्रेम नही कर पाती ,
उनका जिस्म भले जिसके भी ,
उसी मर्द को ताउम्र ढूँढता हैं ,
सर रख सुकून से सोया करती थी ।
स्त्री का प्रेम जब छूट जाता है ,
स्त्री वोही सकून चाहती है ,
जो उसे उसका पति या प्रेमी ,
स्त्री तन का सुख मगति है ,
जब उसका पति उसे नहीं देता ,
फिर वो मजबूर अपने प्रेमी से चाहती है ,
स्त्री का बदन तन्हाई मे बहुत मचलता है ,
उन चार दिनों से गुजरती है,
जीवन दोनों के साथ चलता है,
स्त्री का प्रेम जिसे मिला हो,
उसे पूछना प्रेम क़्या होती हैं..!!
जीवन की डोर ( स्त्री का प्यार सबके नसीब में नहीं होता )
स्त्री का प्यार सबके नसीब में नही होता,
वो जीवन में सिर्फ़ एक ही मर्द से ,
दिल से प्यार कर पाती हैं ,
वो मर्द उसका प्रेमी हो या फिर पति ,
वो टूट क़र जीवन में एक बार ही ,
स्त्री उस मर्द के कंधे पर अपना सर ,
रख सुकून से सो पाती हैं ,
उससे प्यार की दो बाते कर पाती हैं ,
उससे वो अपने सारे राज बता सकती हैं ,
उसे बेपनाह प्रेम कर सकती हैं ।
और जब स्त्री उस मर्द से ,
तो फिर किसी दूसरे मर्द को ,
उस जैसा प्रेम नही कर पाती ,
उनका जिस्म भले जिसके भी ,
उसी मर्द को ताउम्र ढूँढता हैं ,
सर रख सुकून से सोया करती थी ।
स्त्री का प्रेम जब छूट जाता है ,
स्त्री वोही सकून चाहती है ,
जो उसे उसका पति या प्रेमी ,
स्त्री तन का सुख मगति है ,
जब उसका पति उसे नहीं देता ,
फिर वो मजबूर अपने प्रेमी से चाहती है ,
स्त्री का बदन तन्हाई मे बहुत मचलता है ,
उन चार दिनों से गुजरती है,
जीवन दोनों के साथ चलता है,
स्त्री का प्रेम जिसे मिला हो,
उसे पूछना प्रेम क़्या होती हैं..!!