What does medical science say about love? in Hindi Science by Jitin Tyagi books and stories PDF | मेडिकल साइंस प्रेम के बारें में क्या कहता हैं।

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मेडिकल साइंस प्रेम के बारें में क्या कहता हैं।

एक कहावत बड़ी मशहूर हैं। "प्रेम में होना बड़ा खूबसूरत एहसास होता हैं।"

इसकी अगर विवेचना करें तो कह सकते हैं। कि जब हम (पुरुष या स्त्री) किसी से प्रेम में होते हैं। तो हमें सुख का अनुभव होता हैं। हमें सब कुछ अच्छा लगने लगता है। हमारा तनाव, कुंठा, अवसाद सब गायब हो जाता हैं। और हम दीवानगी के नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं। कवि और रोमांटिक साहित्य लिखने वाले कहते हैं। कि यह सब दिल से होता हैं। पर मेडिकल साइंस के लिए यह सब दिमाग से शुरू होता हैं।, वो कहते हैं। कि जब हमें कोई पसंद आता हैं। तो हमारे शरीर में रसायनों का एक कॉकटेल बन जाता हैं। जिसकी वजह से हमें खुशी, सुख, निकटता और आराम का एहसास होता हैं। और इस अच्छे एहसास के पीछे का राज़ छुपा है डोपामाइन हार्मोन में,

डोपामाइन (C8H11NO2) न्यूरोट्रांसमीटर है, जिसे एक feel good hormone भी कहा जाता है। जब भी आप उस व्यक्ति के बारे में सोचते हैं, जिसे आप प्रेम करते हैं। तो डोपामाइन हार्मोन रिलीज़ होता है।

जब हम शुरुआत में किसी रोमांटिक संबंध में होते हैं। और हर वक़्त उस ख़ास शख्स के ही बारें में सोचते रहते हैं। तो मन में घबराहट, उत्तेजना या रोमांच पैदा होता है। इस क्रिया में हमारा मस्तिष्क एड्रेनल ग्लैंड ( इसे हिंदी में अधिवृक्क ग्रंथि कहते हैं। जो किडनी के ऊपरी भाग में होती हैं

यह एक अन्तः स्त्रावी ग्रंथि हैं। जिसका मुख्य कार्य तनाव की स्तिथि में हार्मोन निकालना हैं। )

तक एक सिग्नल भेजता है। सिग्नल मिलने पर एड्रेनेलाइन, एपिनेफ्रीन, नॉरएपिनेफ्रिन हॉर्मोन्स इस उत्तेजना को और बढ़ाते हैं। डोपामाइन की ही तरह नॉरएपिनेफ्रिन( ये भी एक feel good harmone हैं। जो प्यार और एहसास को और भी बेहतर बनाता हैं। और साथ ही आपके पार्टनर के प्रति मोह, लगाव व जुनून को भी पैदा करता है।) इन हॉर्मोन्स के स्रावित(release) होने सीधा सा मतलब है कि आपका मस्तिष्क आपसे इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए कह रहा है।

जब मस्तिष्क में ये बात बैठ जाती हैं। कि आप प्रेम में हैं और हमेशा उसके ही बारें में सोच रहे हैं। या सरल भाषा में कहा जाए तो अपने चारों तरफ़ उस शख्स को ही महसूस कर रहे हैं जिसे आप प्रेम करते हैं। तो मस्तिष्क का लिम्बिक सिस्टम (लिम्बिक सिस्टम मस्तिष्क की संरचनाओं का एक समूह है जो बाई तरफ ब्रेनस्टेम के ऊपर स्थित होता है।) लगातार डोपामाइन हॉर्मोन रिलीज़ करता है। इसके लगातार रिलीज़ होने का मतलब हैं। कि यह आपके पार्टनर की तरफ़ आपके प्रेम को बढ़ाता जाता है। यदि आपका पार्टनर आपके पास नहीं है, तो यह हॉर्मोन उसे देखने या मिलने की इच्छा को और बढ़ाता है।

कहते हैं। प्रेम में इंसान अंधा हो जाता हैं। सरल भाषा में कहूँ तो जब किसी से प्रेम हो जाता है या कोई पसन्दगी की हद तक पसंद आ जाता है, तो उसमें ख़ामियाँ नज़र नहीं आती और न ही उसकी कही गई कोई बात बुरी लगती है। यदि कोई दूसरा शख्स उसकी खामियां बताता है, तो बताने वाले शख्स पर गुस्सा आता हैं। और गुस्से की स्तिथि में हम खामियां बताने वाले शख्स से अपना नाता तोड़ लेते हैं। या उन बातों को अनदेखा कर देते हैं। क्योंकि, हमें लगता हैं। जिससे हम प्रेम करते हैं। वो इस दुनिया में सबसे ज्यादा सही, अच्छा और प्यारा इंसान हैं। और बाकी दुनिया अपना मतलब साधने के लिए हमारे साथ हैं। लेकिन हमारे ऐसे व्यवहार के पीछे भी न्यूरॉन्स और रसायनों का कॉकटेल होता हैं।

टेम्पोरल लोब (यह सेरेब्रल कॉर्टेक्स के चार प्रमुख lobes में से एक है। जो मस्तिष्क के अंदर कान के करीब होता है। यह लोब काफी हद तक सचेत और दीर्घकालिक स्मृति दोनों को बनाने और संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार है। यह दृश्य और ध्वनि प्रसंस्करण में एक भूमिका निभाता है और वस्तु पहचान और भाषा पहचान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।) में बहुत सारे न्यूरॉन्स का एक गुच्छा होता है, जिसे अमिग्डला कहते हैं। किस बात पर, किस तरह की और कैसी प्रतिक्रिया करनी है, यह तय करने में अमिग्डला महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आमतौर पर इसे लिम्बिक सिस्टम का ही हिस्सा माना जाता है और कोई भी जटिल(complex) निर्णय करने, डर की स्थितियों को पहचानने, किसी के झूठ को पकड़ने या समझने में, मुश्किल स्थिति से हमारा बचाव करने आदि क्रियाओं में यह हमारी मदद करता है। जब लोग प्रेम में होते हैं, तो यह अमिग्डला थोड़े समय के लिए सोने चला जाता हैं या कह सकते हैं कि वह हमारे दिमाग को एक ही तरह से सोचने के लिए छोड़ देता हैं। जिसके कारण हम अपने साथी के दोष, कमियां, खामियां जो भी ऐसा हैं। जिस वजह से हम उससे प्रेम नहीं कर सकते उन बातों को देखने ही नहीं देता हैं। बस इसी वजह से लोग प्रेम को अंधा कहते हैं।

जब हमें किसी से इतना लगाव या प्रेम हो जाता हैं। कि उसके साथ सारी ज़िंदगी बिताने का मन करे, उसके साथ सुबह उठने का मन करें, हर वक़्त मन के किसी हिस्से में उसे खुश देखने की जदौजहद चलती रहे तो ऐसी अवस्था में हमारा मस्तिष्क ऑक्सीटोसिन

नामक हॉर्मोन रिलीज़ करने लगता है, जो दो लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है। इस ऑक्सीटोसिन हार्मोन को लव हार्मोन भी कहा जाता है। इस हॉर्मोन का उत्पादन मस्तिष्क के एक भाग हाइपोथैलेमस (यह एक मोती के आकार की संरचना होती हैं। और यह कई महत्वपूर्ण कार्यों का निर्देशन करती है। जैसे कि यह हमें सुबह उठने का निर्देश देती है। मोटे तौर पर यह भी एक महत्वपूर्ण भावनात्मक केंद्र है। जो हमें उत्साह, गुस्सा या दुखी महसूस कराता हैं।)

में होता है। जब दो लोग भावनात्मक रूप से पूरी तरह संवेदनशील होकर क़रीब आते हैं या सेक्स करने के बाद चरम अवस्था में जब स्खलन होता हैं। तो यह हॉर्मोन रिलीज़ होता है। इस हार्मोन के कार्य को सरल भाषा में अगर कहा जाए तो यह दो लोगों(जो दोस्त या नातेदार भी हो सकते हैं। {और लव पार्टनर भी}, लेकिन उनमें भावनात्मक संबंध बहुत ज्यादा हैं। और अगर लव पार्टनर हैं। तो भावनात्मक संबंध के अलावा वे सेक्स भी करेंगे) के बीच विश्वास और प्रतिबद्धता(commitment) को बढ़ावा देता है।

जब प्रेम हमेशा के लिए प्रेमी और प्रेमिका( यहाँ पर प्रेमी और प्रेमिका उनके लिए इस्तेमाल किया गया हैं। जो लगातार साथ रहते हुए एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध भी बनाते हैं) को पास ले आए तो मस्तिष्क के वेन्ट्रल पलिडम में गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं। मस्तिष्क का यह हिस्सा ऑक्सीटोसिन व वैसोप्रेसिन से भरपूर होता है। ये दोनों ही हार्मोन प्रेम व गहरे लगाव का एहसास करवाते हैं।

हमारे शरीर में बहने वाले एड्रेनलिन और एम्फेटामिन हमें ख़ुशी और स्फूर्ति का एहसास कराते हैं। इसके अलावा एंडॉर्फ़िर्न्स भी होते हैं, जो हमारी प्रतिरोधक(immunity system) को बढ़ाते हैं और इसके बहने से हमारे शरीर की छोटी–मोटी स्वास्थ्य समस्याएँ ठीक होती रहती हैं।

जब प्रेमी और प्रेमिका दोनों एक–दूसरे को चूमते हैं, तो इनके मस्तिष्क एक–दूसरे की लार(मुँह से निकलने वाला एक तरल पदार्थ) का बहुत तेज़ी से विश्लेषण करते हैं। जिसमें महिला का दिमाग़ पुरुष के मुकाबले, उसकी प्रतिरोधक क्षमता(यहाँ पर प्रतिरोधक क्षमता से मतलब पुरुष का प्यार में धोखा देने से सम्बंधित भावना से हैं।) की स्थिति को लेकर जल्द ही रसायनिक निर्णय करता है। और यह समूची रासायनिक प्रक्रिया ही बताती हैं। कि क्यों प्रेम में डूबे लोग प्रेम में ना डूबे लोगों से ज्यादा खुश रहते हैं। और यह बात फीमेल जेंडर के बारें में तो मेल जेंडर के मुकाबले ज्यादा सटीक बैठती हैं।


डॉ. हेलन फ़िशर जो न्यू जर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफेसर हैं। वो मस्तिष्क की स्कैनिंग करके उसमें प्रेम की स्थिति जानने के लिए शोध कर रही हैं। वे मस्तिष्क में तीन तरह की भावनाओं का पता लगा चुकी हैं : लालसा, आसक्ति और लगाव। हर भाव का अपना निश्चित रसायन होता है, जो तब प्रतिक्रिया करता है जब उसका मालिक( इसका मतलब वह इंसान जो प्यार में पड़ने की सोच रहा हैं।) किसी की ओर आकर्षित होता है। जीव वैज्ञानिक प्रेम के इन तीन हिस्सों को प्रजनन सुनिश्चित करने के महत्त्वपूर्ण कार्य के रूप में मानते हैं। जब एक बार गर्भ धारण हो जाता हैं। तो यह प्रणाली स्वयं निष्क्रिय हो जाती है और प्रेम की प्रक्रिया रुक जाती है।

पहला चरण लालसा का है, जो कि शारीरिक व शब्दोत्तर आकर्षण होता है। सरल भाषा में किसी की attractive body और बोलने में मासूमियत के प्रति आकर्षण

दूसरे चरण के बारें में प्रोफेसर फ़िशर कहती हैं, ‘आसक्ति एक ऐसा चरण होता है, जिसमें कोई शख़्स बार–बार हमारे ख़यालों में आता है और हम उसे अपने दिल–दिमाग़ से नहीं निकाल पाते। हमारा दिमाग़ केवल प्रेमी/प्रेमिका की ख़ासियतों पर ध्यान देता है और उसकी बुरी आदतों को नज़रअंदाज़ कर देता है। आसक्ति संभावित साथी के साथ मेल करने की कोशिश है और यह भावना इतनी सशक्त होती है कि इससे मस्तिष्क से बहुत ज़बरदस्त रसायनों का मिश्रण निकलता हैं, जिनके कारण उल्लास, सुख, आनंद की भावना पैदा हो जाती है। डोपामाइन सुख का एहसास देता है, फ़िनाइलथायलामाइन उत्तेजना का स्तर बढ़ाता है। सेरोटोनिन भावनात्मक स्थिरता का एहसास क़ायम करता है और नॉरइपिनेफ़्रिन यह एहसास जगाता है कि हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। आसक्ति की स्थिति अस्थायी होती है और यह चरण(phrase) आमतौर पर 3 से 12 महीने तक रहता है, जब कि इसी बीच अधिकतर लोग इसे ही यानी रसायनों के मिश्रण को जिसके कारण अलग अलग तरह की भावनाएं पैदा हो रही हैं। इन भावनाओं को ही प्रेम मानने की ग़लती कर बैठते हैं। वास्तव में यह प्रकृति की जैव वैज्ञानिक कारीगरी है, जो इस बात की सुनिश्चितता करती है कि पुरुष व महिला पर्याप्त समय के लिए एक साथ आए, ताकि वे यौन सम्बन्ध स्थापित करकर प्रजनन कर सकें।

अब इसके बाद तीसरे चरण आने से पहले एक महत्वपूर्ण घटना घटती हैं। यानि जब आसक्ति का चरण पूरा हो जाता हैं। और बात आसक्ति के वक़्त पर बहने वाले रसायनों में लिपटी हुई भावनाओं से निकलकर हकीकत में आ जाती है।, सरल भाषा में कहे तो एक-दूसरे की खामियां दिखने लगती हैं। तो फिर दोनों साथियों में से एक या फिर दोनों ही एक–दूसरे को अस्वीकृत करने लगते हैं। और अंत में आकर रिश्ता खत्म होने की नौबत आ जाती हैं। या फिर सामाजिक और आर्थिक कारणों से दोनों बस बेमतलब साथ रहने लगते हैं। और अगर ऐसा नहीं होता हैं। तो तीसरा चरण लगाव शुरू हो जाएगा, जिसमें दोनों का ध्यान आपसी सहयोग करने पर केंद्रित होगा, और सहयोग कुछ इस तरह का होगा कि एक परिवार का निर्माण हो सके और बच्चों की परवरिश अच्छे से की जा सके।


तो इस पूरी कहानी का सार यह हैं। कि हम सभी इंसान एक जैविक जीव हैं। जिसका एक सिस्टम हैं। और सभी कुछ इस सिस्टम पर निर्भर करता हैं। कि हम कहाँ, कब कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। और हमें लगने लगता हैं। कि सब कुछ हम कर रहे हैं। ये इंसानी मूर्खता नहीं तो और क्या हैं।