muskarate chahare ki hakikat - 27 in Hindi Fiction Stories by Manisha Netwal books and stories PDF | मुस्कराते चहरे की हकीकत - 27

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मुस्कराते चहरे की हकीकत - 27

विवान अपने कमरे में आकर बेड पर लेट जाता है और अपने फोन में अवनी की फोटो निकाल कर उसे देखते हुए मुस्कुराकर- तब तक मुझसे दूर भागोगी मिश अवनी... मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला इतनी आसानी से, और रही बात तेरे दर्द और तकलीफ की तो वह मुझसे जुड़ चुके हैं तुम्हें अकेले सहन नहीं करने दूंगा....
विवान यही सोचते-सोचते अपनी आंखें बंद कर लेता है अचानक उसे कुछ याद आता है,,, वह उस दिन के बारे में सोचने लगता है जिस दिन उसे अवनी की बीमारी के बारे में पता चला था और वह अवनी की दवाइयां लेने काव्या के अपार्टमेंट गया था उस समय उसे अवनी की डायरी मिली थी और वह डायरी उसने अपनी अलमारी में रखी थी,,,,, विवान उठकर अलमारी के पास जाता है और उसका दरवाजा खोलकर अपने कपड़ों में वह डायरी ढूंढने लगता है कुछ देर में विवान को अवनी की डायरी मिल जाती है,, विवान सोफे पर आकर बैठ जाता है और उसे खोलता है,,,,,
डायरी के पहले पन्ने पर ड्राइंग बनाई हुई थी जिसमें बीच में एक छोटी बच्ची थी उसके एक तरफ एक आदमी और दूसरी तरफ एक औरत का चित्र बना हुआ था और वह बच्ची दोनों की अंगुलिया पकड़कर खड़ी थी नीचे लिखा था पापा अवनी और मम्मा..... और ऊपर लिखा हुआ था स्वीट फैमिली......
विवान की आंखें यह देख कर ही नम हो जाती है वह उस ड्राइंग पर हाथ फेरते हुए बोला - I know Avni... तुम अपने पेरेंट्स को कितना मिस करती होगी.......
विवान डायरी का अगला पेज पलटता है जिसमें मोटे मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था,,, मेरी लाइफ का एक ही उद्देश्य है पापा आपके बारे में जानना.....
फिर नीचे लिखा हुआ था......
पापा, मुझे नहीं पता सब लोग मुझसे क्यों छुपा रहे हैं कि आप कौन थे लेकिन अभी भी मुझे याद है उस रात हमारी कार का एक्सीडेंट नहीं हुआ था.... क्यों दादा दादी ने मुझे अपने से दूर भेज दिया और फिर नाना नानी ने भी मुझे खुद से अलग कर दिया.... आपको पता है ना मुझे अकेले रहने से डर लगता है फिर भी मुझे अकेला रखा गया ,मुझे बहुत डर लगता था बहुत रोती थी मैं पर कोई मेरी आवाज ही नहीं सुनता था... सब मेरे मुस्कुराते चेहरे की हकीकत से अनजान थे लेकिन आप तो सब कुछ जानते थे ना पापा.... अब बारी मेरी है,आपके बारे में जानने की... उसके लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े.. इसीलिए खुद को इतना मजबूत बना रही हूं.....
पूरी डायरी में केवल इतना लिखा था और पूरी खाली थी,,, विवान हैरानी से मन ही मन बोला- अवनी क्या जानना चाहती है अपने पापा के बारे में.... क्या अभी भी ऐसा कोई राज है जो अवनी भी नहीं जानती और उससे क्यों छुपाया जा रहा है......
विवान डायरी को वापस अलमारी में रखकर- अवनी तुम्हें पूरा हक है अपने पेरेंट्स के बारे में जानने का, और इसमें मैं तुम्हारा साथ दूंगा.....
विवान कुछ देर खिड़की के पास खड़ा कुछ सोचता है फिर आकर इन सब के बारे में सोचता हुआ सो जाता है,,,,,

अगले दिन सुबह
गांधीनगर अशोक विला, ब्लॉक बी, दिल्ली
एक सुंदर सा बड़ा घर जिसके बाहर नेम प्लेट पर लिखा था मिस्टर विनोद मिश्रा हाउस
सुबह के 7:00 बज रहे थे अवनी अभी भी सो रही थी,,, कमरे में अवनी की बहुत सारी तस्वीरें टकी हुई थी और सामने की दीवार पर उसके नाना नानी की बड़ी सी तस्वीर थी....
रेणुका अवनी को उठाने के लिए अन्दर आती है,, वह अवनी के पास बैठकर उसके कंबल को दूर करते हुए- अवनी बेटा उठ जा तेरे मामू कब से तेरा वेट कर रहे हैं... उन्होंने डॉक्टर से बात कर लि हैं उन्होने तुम्हें आज ही बुलाया है,,,,,
अवनी नींद में ही- क्या मामी आज तो रेस्ट करने देते.. कितना थक गए थे रात को ट्रेन में....
रेणुका अवनी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली - अवनी हम भी उसी ट्रेन से आए थे बेटा... अब कोई बहाना नहीं....
अवनी नहीं उठती तो रेणुका वहां से जाने लगती हैं, अवनी पीछे से उनका हाथ पकड़ कर उठते हुए- एक बात पूछूं आपसे....
रेणुका,अवनी के पास बैठकर- क्या....
अवनी कमरे में चारों तरफ देखते हुए बोली- आपने आज भी इस कमरे को उतना ही सजा रखा है जितना पहले था....
रेणुका, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- क्यों नहीं सजाकर रखते यह हमारी बेटी का सबसे प्यारा रूम जो है....
अवनी केवल उनकी तरफ देखती रहती है उसके मन में और भी सवाल थे जो वह पूछना चाहती थी,,,,,,,
रेणुका, अवनी के चेहरे पर मंडरा रहे सवालों को पढ़कर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली - मुझे मालूम है तू इस वक्त क्या सोच रही है... (रेणुका थोड़ा उदास होकर) हमारी भी मजबूरी है बेटा जिस कारण हमें बार-बार तुम्हें अपने आप से अलग करना पड़ता है.....
अवनी, हैरानी से- मजबूरी....
रेणुका कुछ नहीं बोलती वह उठकर वहां से जाने लगती है लेकिन अवनी फिर से उनका हाथ पकड़ लेती है और उठ कर उनके सामने खड़ी होकर- बोलिए मामी क्या मजबूरी थी आपकी, जिसके कारण मुझे बचपन से सबसे दूर रखा गया......
रेणुका आगे कुछ बोलती उससे पहले ही बाहर से विनोद की आवाज आती है,,, रेणुका जी अवनी उठी कि नहीं हमें जल्दी हॉस्पिटल के लिए निकलना होगा.....
रेणुका, अवनी से -देखो बेटा, तेरे मामा कब से आवाज लगा रहे हैं तू जल्दी से तैयार होकर बाहर आजा, मैं नाश्ता लगाती हूं.....
रेणुका कमरे से बाहर आ जाती है,,, अवनी अपने सवालों को लिए वापस बेड पर जाकर बैठ जाती है उसकी नजर अपने हाथों पर जाती है जिन पर अभी भी विवान की रुमाल बंधी हुई थी उन्हें देखकर अवनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती है वह हाथों पर से उन्हें हटाती है उसके घाव तो भर गए थे पर चोट के निशान बाकी थे,,,,, अवनी, उस रुमाल को सीने से लगाकर- तुम्हें क्या लगता है मुझे तुमसे प्यार नहीं.... प्यार केवल तुम्हीं करना जानते हो... फ़र्क सिर्फ़ इतना हैं की तुम्हारे दिल की बात लबों पर आ गई और मेरी दिल में ही छिपी रह गई....(अवनी की आंखों में आंसू टपकने लगते हैं वह अपनी आंखें बंद करके) शायद किस्मत में हमारा साथ लिखा ही नहीं... फिर भी अच्छा ही है तुम मुझसे जितना दूर रहोगे उतना ही ठीक है वरना तुम्हें कुछ भी हुआ तो मेरी भी सांसे थम जाएगी.... बहुत कुछ खोया है अब ओर नहीं.....
अवनी अब कितना टाइम लगेगा बेटा,,,,,,,, विनोद की आवाज अवनी के कानों तक पहुंचती है तो अवनी उनकी आवाज सुनकर अपने आंसुओं को पोछते हुए बोली- बस दस मिनट मामू....
विनोद, बाहर से ही बोला - जल्दी करो बेटा... प्रवीण हॉस्पिटल में वेट कर रहा है,,,,
अवनी उठकर तैयार होने चली जाती है,,,,,,,,,,
बाहर रेणुका और विनोद डाइनिंग टेबल पर बैठे थे रेणुका बिना विनोद की तरफ देखे कुछ सोच रही थी उसे परेशान देखकर विनोद बोला- क्या हुआ रेणुका जी, कब से देख रहा हूं आप कुछ परेशान लग रही है सब ठीक है ना....
रेणुका विनोद की तरफ देखकर- हम अवनी को अपने साथ तो ले आए लेकिन कहीं उसे पता लग गया तो... क्या कहेंगे हम अवनी से, क्या बताएंगे उसे...?
विनोद भी रेणुका की बात सुनकर परेशान हो जाते है वह कुछ सोच कर बोले - तो क्या करें, हम फिर से उसे किसी सुनसान जगह भेज दे, जहां वह अकेले घुट- घुट कर मरती रहे... अब मुझसे यह सब नहीं होगा रेणुका जी, उसे हमारे साथ की जरूरत है इतनी बड़ी बीमारी से लड़ने के लिए हमारे प्यार की जरूरत है.... कहीं नहीं भेज सकता अब मैं उसे....
विनोद कहते कहते रुक जाता है रेणुका उनकी हालत समझ रही थी व उनके हाथों पर अपने हाथ रख कर बोली- मैं भी यही चाहती हूं कि अब उस बच्ची की जिंदगी में कोई दुख ना आए.. बचपन से आज तक उसे दर्द के अलावा कुछ नहीं मिला मैंने विवान की आंखों में अवनी के लिए प्यार देखा था और फिक्र भी.....लेकिन पता नहीं अवनी को क्यों उसका प्यार दिखाई नहीं दे रहा शायद यह भी ऊपर वाले का कोई इंतिहान होगा....
विनोद, भारी गले से- भगवान भी किसी एक इंसान के पीछे पड़ जाते हैं तो उसे पूरा हराकर ही दम लेते हैं बस अब हमारे बच्ची को बख्श दे.....
अवनी तैयार होकर बाहर आती है और विनोद रेणुका के पास बैठकर- गुड मॉर्निंग मामू....
विनोद - गुड मॉर्निंग बेटा... बहुत देर लगा दी तुमने तैयार होने में....
रेणुका, अवनी की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए- देर क्यों नहीं होगी....चार बार उठाने के बाद उठी है आपकी लाडली..
अवनी की नजर सामने पड़े पालक के पराठो पर जाती है वह उन्हें देखकर, मुस्कराते हुए बोली - क्या मामी... पहले बता देती कि आज आपने मेरे फेवरेट परांठे बनाए है तो आपको मुझे चार बार उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती......।
अवनी की बात पर तीनों हंसने लगते हैं कुछ देर में नाश्ता खत्म करके विनोद, अवनी से बोला- बेटा तुम अपनी सारी रिपोर्ट्स लेकर बाहर आ जाना, मैं वहीं कार में तेरा वेट कर रहा हूं,,,, अवनी हा मे सिर हिलाती हैं और अंदर आकर एक बड़े से बैग में रखी अपनी पुरानी रिपोर्ट्स निकाल कर उन्हें साइड में रखती हैं और बैग को वापस बंद करके अंदर अलमारी में रखने लगती है अचानक अवनी को कुछ याद आता है वह वापस उस बैग को बाहर निकालकर उसमें कुछ ढूंढने लगती है, अवनी को बैग में कुछ नहीं मिलता, वह परेशान हो जाती है और बैग को साइड में रख कर अलमारी में अपने कपड़ों में ढूंढने लगती है लेकिन उसे वहा भी कुछ नहीं मिलता,,, वह परेशान होकर बेड पर बैठ जाती है अवनी, मन ही मन कुछ सोचते हुए - मेरी डायरी कहां गई, मैंने मुंबई से आने के बाद उसे इसी बैग में रखा था लेकिन यहां तो नहीं है कहीं काव्या के घर में तो नहीं.. नहीं.. वहां से तो मैंने अपना पूरा सामान रखा था.....
अवनी उठकर कमरे में चक्कर काटने लगती है और सामने की दीवार पर लगी अपने नाना नानी की तस्वीर के सामने आकर- नानू नानी पता है आपको, उस डायरी में मम्मा पापा की फोटो थी जिसे देखकर जीने की ओर इच्छा करती थी कुछ सवाल थे उसमें....
बाहर से रेणुका जी की आवाज आती है,,,, अवनी बाहर तेरे मामू बुला रहे हैं जल्दी करो बेटा....
अवनी अपनी रिपोर्ट लेकर बाहर आते हुए बोली - आई मामी....
अवनी के मन में अभी भी वही सवाल चल रहा था,,,, मुझे अभी निकलना होगा शाम को पता लगाती हूं कि वह डायरी कहां है...,,, यहीं सोचते सोचते अवनी नीचे विनोद की कार में आकर बैठ जाती हैं और दोनों वहां से हॉस्पिटल के लिए निकल जाते हैं,,,,,,,

इधर अग्रवाल मेंशन में सब बैठे नाश्ता कर रहे थे विवान और नित्या भी सबके साथ बैठे थे,,, नित्या खाना नहीं खा रही थी वह उदास बैठे कुछ सोच रही थी करण की नजर नित्या पर पड़ती है वह उसे इस तरह उदास देखकर बोला- क्या हुआ नित्या, तुम इतनी उदास क्यों हो...?
करण की बात सुनकर सबकी नजर नित्या पर जाती है नित्या सबसे नजरें चुराते हुए ना में गर्दन हिलाती हैं,,,, शालिनी, नित्या की हालत समझ रही थी उन्होंने कहा- अवनी की याद आ रही है....
नित्या की आंखों में अचानक आंसू आ जाते हैं वह सिर झुकाकर बैठ जाती है,,,,,,,,,
विवान और बाकी सब भी नित्या की हालत देख कर उदास हो जाते हैं विवान उठकर नित्या के पास आता है और उसके पास रखी चेयर पर बैठ कर बोला- क्यों, हम तुम्हारे कुछ भी नहीं... क्या केवल अवनी ही तुम्हारे लिए सब कुछ है वह तेरे साथ केवल तीन साल थी और हम सब बचपन से अच्छे दोस्त हैं इस घर में तुम्हें हमेशा एक बेटी का दर्जा दिया है (विवान नित्या के झुके सिर को ऊपर करके) मैंने तुम्हें धोखा दिया है बचपन से जो ख्वाब तुम्हें दिखाया वह पूरा नहीं कर सका लेकिन यकीन मानो मेरा मैं तुम्हें आज भी अपनी लाइफ एक इंपॉर्टेंट हिस्सा समझता हूं....
नित्या, विवान की तरफ देखकर- मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है विवान... तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं...(नित्या सबकी तरफ नजरें घुमा कर हल्का सा मुस्कुराते हुए) और रही बात इस परिवार की तो यह एक अनाथ बच्चे के लिए किसी वरदान से कम नहीं... ड्रीम हाउस होता है ऐसा परिवार....
श्रेया रिया कुणाल करण और काव्या उसके चारों तरफ आकर खड़े हो जाते हैं और सब एक साथ उससे लिपट जाते हैं विवान भी खड़ा होकर पीछे से उन्हें बाहों में भर लेता है,,,,,,,,
उन्हें इस तरह देखकर सुधा जी, कृष्णमूर्ति, राजेश, शालिनी और कविता की भी आंखें भर आती है,,,, सब अलग होते हैं और नित्या को घेरकर खड़े हो जाते हैं। काव्या ने नित्या के आंसू पोछते हुए कहा - यह तुम्हारा ड्रीम हाउस है ना.. फिर इतनी दुखी क्यों हो.. तुम्हें पता है जब तुम वापस इस घर में लौटी थी तब अव्वी ने मुझसे कहा था कि मैं हमेशा तेरा ख्याल रखू, जब मैं तेरे साथ रहूंगी तो उसे लगेगा कि मैं उसके साथ हूं... और तू अगर इस तरह उदास रहेगी तो मेरी अव्वि मुझसे नाराज हो जाएगी.....।
नित्या, काव्या के गले लगकर रोते हुए- वह पागल है खुद को छोड़कर सब की खुशियों का ध्यान रखती है, मुझे जैसा दर्द इन दो सालों में मिला था वह बचपन से उस दर्द को महसूस कर रही है कभी अपनों से लड़ती है कभी दुश्मनों से लड़ती है तो कभी खुद से... हमारे जैसा प्यार उसे क्यों नहीं मिला.. कैसे एक इंसान इतनी तकलीफों के बाद भी मुस्कुरा सकता है जब मुझे उसकी जरूरत थी तब वह मेरे साथ खड़ी थी, आश्रम के हजारों बच्चों के लिए अपनी बीमारी को छुपाकर लड़ती रही लेकिन आज जब उसे किसी की जरूरत है तो मैं कुछ नहीं कर सकती.. कुछ भी नहीं...
कहते कहते नित्या का गला भर आता है काव्या की आंखों से भी आंसू बहने लगते हैं करण काव्या को संभालता है और शालिनी नित्या को,,,,,
विवान उन दोनों के पास आकर- तुम्हें दोस्ती करने के लिए क्या केवल वही लड़की मिली थी इतना बड़ा वर्ल्ड है हमारा... कोई और नहीं मिला....
सबको विवान की बात कुछ अजीब लगी वह हैरानी से उसे देख रहे थे,,,,
विवान सब की तरफ देख कर - ऐसे क्यों देख रहे हो आप सब...
कुणाल- आप अवनी के लिए ऐसा क्यों बोल रहे हो भाई अब तो आप उससे....
विवान, कुणाल के आगे बोलने से पहले ही बोला- प्यार करता हूं... इसीलिए बोल रहा हूं वह नित्या की दोस्त नहीं होती तो यहां नहीं आती और काव्या भाभी की दोस्त नहीं होती तो हमारे घर में और नहीं मेरी जिंदगी में, कम से कम इतनी तकलीफ तो नहीं होती उसके लिए...
विवान के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी वह दूसरी तरफ सबसे अलग जाकर खड़ा हो जाता है
शालिनी, विवान के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली - क्या यही तुम्हारा प्यार था अवनी के लिए... कल तो कितनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे एक दिन में ही प्यार खत्म हो गया... सही कहा था किसी ने पैसों से इंसान इज्जत और रुतबा तो खरीद सकता है लेकिन किसी इंसान के दर्द को नहीं बाट सकता, उसकी तकलीफ को कभी कम नहीं कर सकता... क्या तुम्हारे लिए भी प्यार एक खिलौना है जो मिला तो बढ़िया ना मिला तो दूसरा ढूंढ लेंगे....
विवान, शालिनी जी की तरफ मुड़कर हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला - मुझे पता है आप यही कहोगी, इसलिए मैं आप सब से कुछ कहना चाहता हूं... मुझे थोड़ा वक्त दीजिए मैं सब कुछ ठिक कर दूंगा...।

Continue....