Apang - 73 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 73

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अपंग - 73

73

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कोठी के हर कोने से जैसे महक उठ रही थी | रसोईघर से महक, कमरों में लाखीो के द्वारा घर के बगीचे तोड़कर लाए गए फूलों के बनाए गए, सजाए गए गुलदस्तों की महक ! तन की महक !मन की महक ! बातों में मुस्कान की महक ! तन में एक-दूसरे की महक !

"लो, तुम्हारी पसंद की सब चीज़ें आ गईं टेबल पर ----" भानु ने मुस्कुराते हुए रिचार्ड से कहा |

"ओ माई गॉड ! तुम सब मुझे 'गार्बेज बैग' बना दोगे ---" रिचार्ड ने टेबल को यहाँ से वहाँ तक भरा देखते हुए कहा |

पुनीत अपने बैग को अभी तक आधा भी अनपैक नहीं कर पाया था लेकिन उसे सब कुछ एक साथ करना था |उसका मन उस बैग में भी पड़ा था जो रिचार्ड उसके लिए लाया था, बीच में आवाज़ आ गई कि टेबल लग गई है तो उसे रिचार्ड के साथ खाना भी था, अपने दोस्तों के बारे में जानना भी था, रिचार्ड से बहुतसी गप्पें मारनी थीं | आज वह रिचार्ड को देखकर बहुत खुश हो गया था |मेज़ पर वह अपनी कुर्सी बिलकुल सटाकर उसके साथ बैठना चाहता था |

"बेटा ! ठीक से खा लो, फिर बातें करना ---" भानु ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन रिचार्ड ने उसे आँखों से कुछ भी कहने के लिए मना कर दिया |

पता नहीं बच्चे ने खाया तो कितना लेकिन रिचार्ड अंकल से बातें करने में उसका पेट भरा जा रहा था | स्मिथ, बैंग, रूमी, डेविड और उसकी भारतीय दोस्त पूजा ---उसे सबके बारे में बातें जाननी थीं , वह जानना था कि वे सब उसे याद करते हैं या नहीं ?

"अनपैक योर बैग डार्लिंग एंड यू विल गैट द आन्सर ---" खाना ख़त्म करते हुए रिचार्ड ने उसकी पीठ थपथपाई |

पुनीत की आँखों की चमक जैसे चौगुनी हो गई और एक झटके से वह उठकर बेसिन पर हाथ धोने के लिए भागा |

"बोथ ऑफ़ यू हैव टु कम अप इन माई रूम " उसने कहा और लाखी की ओर बोला;

"चलो, लाखी दीदी ---"

"खाना तो खाने दो उसे ---" भानु ने कहा | वह रसोईघर में खाना खा रही थी |

"ओके --जल्दी ---" उसने कहा और भागता हुआ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों पर लगभग भागकर चढ़ने लगा और फिसलते-फिसलते बचा | किचन के बाहर बरामदे में पड़ी डायनिंग टेबल पर से रिचार्ड और भानु दोनों चिल्लाए---

"बी---केयरफुल ---"

बच्चे ने एक बार पीछे मुड़कर देखा और सँभलकर हँसता हुआ ऊपर चला गया | अब वह आँखों से ओझल हो गया था | खाना ख़त्म करके भानु और रिचार्ड सीधे पुनीत के कमरे में ही चले गए | पुनीत कितना ख़ुश हो उठा था ! वह दोनों के बीच में बैठना बल्कि सोना चाहता था | यह दोनों के लिए संभव नहीं था | बेटे के प्रपोज़ल पर भानु के पसीने छूटने लगे | उनके बीच अचानक जो कुछ भी हुआ था वह कोई प्लानिंग का हिस्सा नहीं था लेकिन हाँ--मनों के भीतर एक ज़बरदस्त बदलाव तो था ही जिससे उनमें से कोई भी नकार नहीं सकता था |

पुनीत ने ज़िद की कि मम्मा भी अभी वहीं उनके साथ बैठेंगी | रात में वह उन दोनों के साथ बहुत सारी बातें करना चाहता था | वह उन दोनों को देखकर खुश जो गया था, उसने एक बार मुस्कुराकर उन दोनों की ओर देखा जैसे शुक्रिया कह रहा हो फिर लाखी के साथ अपने बैग का सामान देखने में मशगूल हो गया |

सामान अनपैक करते हुए काफ़ी देर हो गई थी | पुनीत ने सारा सामान खुलवा लिया और फिर अपनी अलमारियों में सैट करवाने के मूड में था लेकिन कहाँ किस चीज़ को रखना था, अभी तय नहीं कर पा रहा था | भानु ने लाखी से कहा कि कल सामान लगवा देगई अब जाकर सो जाए |

ठीक है, बच्चा मान गया लेकिन वह उन दोनों को अपने पास से हिलने ही नहीं दे रहा था |

"तुम्हारे पास ही तो रहने वाले हैं न अंकल, अभी आराम कर लो बेटा, काफी देर हो गई है | लेकिन पुनीत तो पुनीत था |

"ठीक है --बस, वन मोर आवर ---आई नो अंकल डैड बहुत टायर्ड हैं --बट, जस्ट थोड़ी देर |" उन दोनों में से किसी का मन नहीं था कि बच्चे का दिल दुखाया जाए | दोनों सोफ़े पर बैठ गए | थकान तो सबको बहुत हो रही थी | समय भी ख़ासा हो गया था लेकिन पुनीत जी इतने फ्रैश थे जैसे कोई अभी बूस्टर-डोज़ पीकर आए हों | उसने ज़िद की कि वह बीच में बैठेगा और वे दोनों उसके दोनों ओर | आख़िर उसने अपनी बात मनवा ही ली | अब वह दोनों का एक-एक हाथ पकड़े पलँग पर एक राजकुमार की तरह लम्बा हो गया था |

"मॉम ---एक बात बताओ ----" बच्चे ने कहा |

"हम्म ----"

"उस दिन वो गंदे वाले अंकल ऐसा क्यों कह रहे थे कि आपका नाम अच्छा नहीं है ?" कमाल था, बच्चे के मन पर छोटी सी बात का कितना गहरा प्रभाव पड़ा था !

"क्योंकि --उन्हें मेरे नाम के बारे में कुछ पता नहीं है न ? हर नाम का कोई मीनिंग होता है, उन्हें मालूम नहीं था इसीलिए उन्होंने कहा होगा |"

"मेरा नाम आपने रखा था न ?" उसने एकदम रिचार्ड की ओर देखकर पूछा |

"यस, माइ चाइल्ड ---" रिचार्ड ने उसको प्यार करते हुए उसका सिर अपने सीने से लगा लिया|

"इसका मीनिंग पायस है न ?" उसने फिर पूछा |

"तो मैं पायस हूँ क्या ?" उसके इस मासूम प्रश्न पर भानु और रिचार्ड हँस पड़े |

"ऑफ़ कोर्स---हंड्रैड परसेंट ---" रिचार्ड ने कहा और उसे अपने सीने से भींच लिया |

" ओके मॉम --अब आप बताओ अपने नाम का मीनिंग ---"

" आई विल टैल ---" रिचार्ड ने कहा |

पुनीत और भानु दोनों ने आश्चर्य से रिचार्ड की ओर देखा |

"आपको मालूम है ?" पुनीत ने कहा

"हाऊ ?" पुनीत जानने के लिए बेचैन हो उठा |

" बताता हूँ --सुनो ---" रिचार्ड पलँग पर उन दोनों के सामने बैठ  गया |

"भानुमति काम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी जो बहुत सुंदर और आकर्षक थी | उसकी सुन्दरता और शक्ति से सब लोग इम्प्रैस थे | "

"व्हाट इज़ दिस काम्बोज ?" पुनीत ने उत्सुकता से पूछा | बैचेनी उसके मन, ही | शरीर, व्यवहार --सबसे निकली पड़ रही थी |

" इंडिया में एक जगह का नाम है कम्बोज ---समझे?"

"समझ गया, अब मॉम के नाम की कहानी सुनाइए ---"

"हम्म--राजा चन्द्रवर्मा की बेटी का नाम भानुमति था | बहुत से राजा, राजकुमार उससे शादी करना चाहते थे | उसके स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध --दुर्योधन जैसे राजकुमार भी आए थे |"

"हाऊ कम यू नो ?" भानु ने आश्चर्य से पुछा |

"देयर आर सेवरल हिस्ट्री-बुक्स ----" रिचार्ड ने पुनीत की बात का उत्तर दिया और भानु को देखकर एक मुस्कान अपने होठों पर ओढ़ ली |

" उसने महाभारत के एक कैरेक्टर दुर्योधन से मैरेज की थी | एम आई राइट भानु ?"

भानु को हँसी आए गई, कितना 'होम-वर्क' करके आया है बंदा | उसने 'हाँ'में सिर हिला दिया |

"आई टैल यू --वन मोर थिंग ---" रिचार्ड ने कहा तो दोनों माँ-बेटे उसका चेहरा ताकने लगे |

"देयर इज़ ए सेइंग ---भानुमति का पिटारा --इज़ंट इट भानु ?" उसने भानु से पूछा | बेचारा बच्चा कभी अपनी माँ के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता तो कभी रिचार्ड के चेहरे पर अपनी गोल-गोल ऑंखें घुमा देता |

"मीन्स---?" पुनीत से रहा नहीं गया |

"मीन्स --एक ऐसा बड़ा बॉक्स या टोकरी या ऐसा ही कुछ जिसमें सब तरह की चीज़ें --मतलब ज़रूरत की अच्छी चीज़ें मिल जाती हैं | तुम्हारी मॉम के पास सभी अच्छी चीज़ें हैं इसलिए वो भानुमति का बॉक्स हुई न ?" रिचार्ड ने देखा बच्चा सुनता-सुनता सो गया था |

भानु ने उसे पलँग पर ठीक से लिटाकर, चादर ओढ़ा दी |

"मैं चलती हूँ रिचार्ड ---देखो, ये आजकल लातें बहुत मारने लगा है | ज़रा ध्यान रखना | प्लीज़ बी केयरफुल --"

वह आगे की ओर बढ़ी ही थी रिचार्ड ने उसके पीछे से जाकर धीरे से उसकी गर्दन पर अपने ठंडे होठ रख दिए | भानु सिहर उठी और एकदम वहाँ से चली गई |