Apang - 72 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 72

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अपंग - 72

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कुछ ही दिनों बाद एक दिन उसने अचानक ही फिर से रिचार्ड को अपने सामने पाया | वह जानती थी कि रिचार्ड का काम इतना फैला हुआ था कि बार-बार उसका वहाँ आना उसके लिए इतना आसान भी नहीं था |

"अरे ! अचानक ही ---" भानु की आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे |

"कोई इंफॉर्मेशन नहीं, फ़ोन कर देते तो गाड़ी लेकर आ जाती ---" उसने शिकायती लहज़े में रिचार्ड से कहा |

"अरे ! क्या ज़रुरत थी, टैक्सी से आ गया हूँ न ----" रिचार्ड ने उत्तर दिया |

पुनीत बरामदे में बैठा अपने नए लाए कॉमिक्स में से तस्वीरें देखकर आनंदित हो रहा था | रिचार्ड को देखते ही सब कुछ छोड़कर वह टैक्सी के पास दौड़कर आ गया|

"माय फ़ेवरेट अंकल डैड ----" वह उछलकर रिचार्ड की गोदी में जा चढ़ा |

" माय डीयरेस्ट सन ----"रिचार्ड ने उसे अपने सीने से चिपटा लिया |

"हो---हो---प्लीज़ कैरी मी इन योर लैप ---" पुनीत की रिचार्ड की गोदी से उतरने की इच्छा ही नहीं थी जैसे |

"ही मस्ट बी टायर्ड --लैट हिम बी फ्रैश बेटू----" भानु ने बच्चे को मनाने की चेष्टा की |

"देखो, वो जो रैड बैग है न, उसमें सारा समान तुम्हारा है ---देखो। तुम्हें पसंद है ? " रिचार्ड ने बच्चे को गोदी से उतारा |

"एलौंग विद द बैग ---?" बच्चा भागता हुआ अपने लाल बैग को घसीटने लगा था |

"यस--बेबी, बैग भी तुम्हारा ही है --सब कुछ तुम्हारा ---" रिचार्ड ने उसे प्यार करते हुए कहा |

"चलो, लाखी दीदी, चलो न ---मेरे कमरे में --और हाँ, रिचार्ड अंकल डैड का सामान भी मेरे कमरे में लगा देना ---हैं न मॉम ---?" उसने माँ की ओर देखा | वह जानता था कि जब भी रिचार्ड आता था 'गैस्ट-रूम' में रहता था | वह चाहता था कि रिचार्ड उसके कमरे में रहे इसलिए वह माँ से पूछ रहा था |

लाखी पुनीत के और रिचार्ड के बैग्स पुनीत के कमरे की ओर ले जा रही थी | रिचार्ड और भानु के दिल की धड़कनें सप्तम पर पहुँच रही थीं | उन्हें कुछ दिन पुराना अपना मिलन याद आ गया और भानु की आँखें नीची हो गईं | समाज की दृष्टि में उनका कोई  रिश्ता नहीं था लेकिन मन में पनपने वाली धड़कन का क्या करते ? वह ही संवेदना से बंधी थी, उसके भीतर एक छुअन, एक अहसास था, एक प्यास थी और थी हलचल !

दोनों की आँखों की चमक न जाने क्या कह रही थी | पूरी कोठी में ख़ुशी की लहर पसर गई जैसे | रिचार्ड जब भी यहाँ आता, उसका ऐसा ही स्वागत किया जाता | वह बहुत अजीब महसूस करता | उसे लगता जैसे वह कहीं का वी.वी.आई.पी हो | लेकिन बाद में वह समझने लगा था कि

भारत में बेटी के पति की क्या ख़ातिरदारी होती है लेकिन वह भानु का पति तो नहीं था !

"भई, ये सब क्यों करते हैं ? आई फ़ील वैरी अनइज़ी ----इनको यह तो नहीं लगता कि मैं तुम्हारा हज़्बेंड हूँ " रिचार्ड ने अपने मन में उठते हुए सवाल आख़िर भानु के सामने रख ही दिए |

"क्यों ? अरे !फील करो न कि सब तुम्हें कितना प्यार करते हैं |" भानु ने कहा

यह भारत की मिट्टी थी जिसकी सुगंध में ही प्यार था, एक छुअन थी, एक आस थी, एक विश्वास की किरण झाँकती थी जिसमें से दिलों में उजाले पसर जाते | फिर भी एक झेंप सी रिचार्ड को रहती | क्या प्रेम का एक रूप यह भी था ? दूर रहकर भी पास रहने की, महसूस करने की कसक थी जो जैसे किसी आवरण में छिपी रहती और वहीं से ही छिप-छिपकर एक बंधन में बँध गई थी | वहाँ के सब लोग ही तो इतना प्यार व सम्मान करते कि रिचार्ड भी पूरी तरह  प्यार के बंधन में भीग गया था |

"रिच! प्लीज़ गैट फ्रैश ----मैं कुछ गरम बनवाती हूँ ---"भानु वहाँ से जाने को हुई कि रिचार्ड ने उसे अपनी बाहों के घेरे में ले लिया |