दोनों भाई बहन अपने में बातचीत करने लगी और फिर रोज की तरह माया अपने स्कूल के लिए तैयार हो कर सारा नाशता टेबल पर रख दिया और फिर बोली भाई का लेना हा।खाली पेट बाहर निकल जाता है तू हमेशा। ये कह कर निकल गई। निलेश ने कहा हां दीदी तुम चिंता मत करो मैं खा लुंगा। फिर निलेश की नजर खिड़की के बाहर पड़ी तो देखा सामने वाले बालकनी में वह खड़ी अपने बालों को संवार रही थी।
फिर मैं बेसुध हो कर अपने बालकनी में गया जैसे कोई अनचाहा साथी उसे बुला रहा हो बस उसके कदम रुक गए और उसको देखने लगा पहली बार ऐसा एहसास हुआ कि कोई मेरे लिए ही बना है।
मैं उसके आंखों में देखें जा रहा था। वो भी मुझे देख रही थी और मुस्कुरा रही थी। उसके बाल उसके चेहरे को ढक रहे थे।
शायद कुछ कहना चाहती थी पर वो कुछ उदास सी थी। मैं उसको देख ही रहा था कि वह एकदम से ओझल हो गई।
फिर निलेश रूम में आ कर लेट गया और उसके बारे में सोचने लगा कि क्या हो रहा है मुझे आज तक ऐसा नहीं लगा , जैसा आज लग रहा है। क्या मुझे उससे मिलना चाहिए ? पता नहीं कौन है क्या करती है। मुझे एक कसक सी हो रही है शायद कुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं सकी। मैं क्या करूं कैसे उसे मिलूं। फिर कुछ देर बाद निलेश डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठ गया और फिर नाश्ता करने लगे।
फिर जैसे ना चाहते हुए भी तैयार हो कर बाहर जाने को निकाला पर फिर वापस अपने रूम में गया और फिर अपनी तस्वीरों में खो गया।
और फिर कब आंख लग गई पता नहीं चल पाया।
माया ने उठाते हुए कहा भाई उठ जा चाय बन गई।
निलेश ने कहा क्या टाईम हुआ ? माया सात बजे है।निलेश उठ बैठा और बोला मैं फैश होकर आता हूं।
फिर टीवी देखने लगे तभी बेल बजा।
माया ने दरवाजा खोला तो देखा एक लड़की खड़ी थी माया ने कहा जी ।
लड़की बोली- मैम मैं सामने वाले घर से आई हूं।ये मिठाई देना था। माया ने पूछा पर मिठाई किस लिए? लड़की ने कहा - गृह प्रवेश की पुजा थी। माया अच्छा ठीक है बोलकर मिठाई ले लिया।
निलेश बोला - कौन है ये? माया ने कहा सामने वाले हैं।
फिर क्या था दरवाजा बंद होते ही निलेश ने एक बच्चे की तरह मिठाई का डिब्बा माया के हाथ से छिन लिया और खोलने लगा।
निलेश खुशी के मारे मिठाई खाने लगा।
माया हैरान हो गई और बोली भाई तू कभी मिठाई नहीं खाता था आज क्या हुआ।
निलेश बोला - दी भूख लगी है।
कुछ देर में बिमल आ गया। फिर हंसी मजाक होने लगा। फिर सब मिल समोसे और चाय पीने लगे।
फिर दोनों दोस्त कमरे में जाकर बात करने लगे। कुछ देर बाद माया बोली - आ जाओ दोनों खाना टेबल पर लगा दिया है।
फिर बिमल,निलेश साथ बैठकर खाना खाने लगे। बिमल ने कहा हां अच्छा ,कल तो जाना होगा। अस्पताल में १२ बजे छुट्टी मिलेगी अतुल को।
निलेश बोला- टाइम से आना । बिमल ने कहा हां ठीक है फिर मैं भी चलता हूं। निलेश ने कहा हां ठीक गुड नाईट।
माया बोली अरे भाई तू सो जा मैं सब काम करने जा रही हुं। निलेश ने कहा क्या दीदी मैं भी करता हूं ना।कल काकी नहीं आएगी क्या? माया बोली अरे नहीं आएगी पर कुछ काम है मैं करती हूं। निलेश ने कहा क्या दीदी चली अब मिल कर करते हैं। फिर सब काम करने के बाद माया बोली अरे मेरे भाई अब जाकर सो जाओ कल जल्दी उठकर जाना होगा। निलेश ने कहा हां ठीक है गुड नाईट दी।
फिर निलेश अपने कमरे में चला गया। और फिर वही अधुरी सी तस्वीर को देखने लगा। क्या पता वो क्या चाहती है।
अब मुझे रात दिन तुम्हारा ही ख्याल है क्या कहुं प्यार में दिवानो जैसा हाल है। ये गाना गुनगुनाने लगा और फिर निलेश सो गए।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद माया और निलेश चाय की चुस्कियों के साथ बालकनी में पहुंच गए।
और निलेश की नजरे उसे खोजने लगे पर वह आई नहीं।मायूस होकर नाश्ता भी नहीं किया निलेश ।। और फिर बिमल के साथ निकल गया।
बिमल ने कहा -ओ ऐ ,ये मजनु जैसा कहा जा रहा है?
निलेश ने कहा नहीं तो ,चल यार हमें जल्दी जाना होगा।
फिर दोनों अस्पताल पहुंचे जहां डॉ ने अतुल को छुट्टी दे दी थी।
निलेश ने कहा अतुल जब तक तुम ठीक नहीं हो जाते हमारे साथ रहोगे ये दी का आदेश है।
अतुल बोला - हां यह तो मुझे पता था तुमलोगो के सिवा कौन है मेरा।
फिर तीनों दोस्त घर आ गए।
माया ने कहा आओ मेरे भाई । आज मैं छुट्टी ले रखी थी। चलो सब साथ में खाना खाते हैं।
अतुल ने कहा दीदी आप कितना करती है। माया बोली बचपन से देखती आई रही हुं तुम लोगों को।बिमल ने कहा मुझे तो रोना नहीं आता है सब हंसने लगे। निलेश ने कहा अतुल तू फे्स हो कर आ। अतुल ने कहा हां ठीक है
सब मिलकर बात करने लगे।
माया बोली आ जाओ सब खाना तैयार है। अरे वाह क्या खुशबू है ये बिमल ने कहा। माया ने कहा हां तुम तीनों का फेवरेट डिश। कढ़ी वडी, राजमां,दम आलू, पालक की कचौड़ी, चावल भाजी, अतुल ने कहा वाह दी कितना कुछ बनाया है। निलेश ने कहा हां सब टूट पड़ो। माया बोली अरे सब का एक जैसा इसलिए ताकि लड़ाई नहीं हो।
माया ने सबको परोस दिया और फिर खुद भी परोस कर खाने लगीं।
फिर सब मिलकर खाना खाएं और फिर थोडी देर टहलने के बाद बातचीत करके सोने चले गए।
शाम होते ही निलेश अतुल को अपनी बालकनी में बैठाया और कुछ फल लेकर आया , और बोला - अतुल ये खा ।
अतुल - भाई थैंक्स।
तभी चुड़ियों की छनछनाहट से निलेश को फिर मौका मिला उसे देखने का। वो आई और सुखे हुए कपड़ों को समेटने लगी। चहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। और आंखे उसकी शरारत भरी थी।
न जाने कितने सवाल थे उसके मन में और फिर
रोज की तरह आज भी ओझल हो गई। अतुल बोला - कौन है ये? निलेश हंस कर बोला - नये पड़ोसी ।
माया ने आवाज लगाई चाय पीने आ जाओ।
फिर सब मिलकर चाय व फरवी चना खाने लगे।
बिमल ने कहा अच्छा अब मैं चलता हूं कल मिलते हैं। माया एक डिब्बा आगे करते हुए कहा ये ले जाओ रात को खा लेना।बिमल ने कहा थैंक यू दीदी। फिर बिमल निकल गए।
फिर इसी तरह दो हफ्ते बीत गए और इन दो हफ्ते में कुछ भी नया नहीं हो सकता। अतुल ने कहा अरे भाई ये तस्वीर किसकी है वो भी अधुरी? निलेश ने कहा हां भाई मेरी कल्पना। अतुल ने कहा हां सचमुच।पर मुझे लगता है कि ये हकीकत में है कहीं ना कहीं। निलेश ने कहा हां भाई हो सकता है। फिर निलेश को गिटार बजाने का बड़ा शौक था तो वो गिटार बजाने लगा।ना जाने क्यूं मैं बेकरार,दिल में लिए दर्द दे इन्तजार बैठा हु इस राह में जो मेरी मंजिल नहीं।। अतुल ने कहा वाह क्या धुन है मेरे दोस्त। और उधर कोई एक निलेश की धुन सुन कर एक मोरनी की तरह नाचने लगीं क्या है ये प्यार की ताकत जो कहीं ना कहीं एक दूसरे को करते हैं।
अतुल अब ठीक हो गया है तो वह अपने घर वापस लौट रहा है।
निलेश -ने कहा अपना ख्याल रखना दोस्त कुछ ज़रूरत हो तो फोन करना। अतुल गले मिलते हुए बोला हां दोस्त बोलुंगा जरूर हमारा पिछले जन्म का कोई रिश्ता है शायद।।चल अब चलता हूं। माया बोली हां अपना ख्याल रखना हां और आते रहना।।
फिर निलेश किताब पढ़ने लगा और उसके बारे में सोचने लगा कि क्या वह भी पसंद करती हैं मुझे। मुस्कराहट से ऐसा लगता है पर पता नहीं।
शाम होते ही निलेश अपनी केनबस और सारे रंगों के साथ बालकनी में कुर्सी लगा कर बैठ गया।
फिर अपनी हाथ से उस अधुरे तस्वीर को पुरा करने की कोशिश में हजारों सपने बुनने लगे कि शायद वो आएं तो मैं दीदारे यार करूं।
अगले पल वह फिर आ गई और कुछ गुनगुनाने हुए कपड़े समेटने लगी। मैं तो उसे बस देखता रह गया।
आज वो कुछ ज्यादा ही सुन्दर लग रही थी। एक गुलाबी रंग का कुर्ता पहन रखा था और कोई गीत गा रही थी। फिर मैंने उसको हाथ दिखाया पर उसने कुछ भी जबाव नहीं दिया।
मुस्कुरा कर चली गई। क्या पता उसको बुरा लगा हो ये निलेश सोचने लगा कि माया ने आवाज लगाई भाई तेरा फोन कब से बज रहा है।निलेश ने सोचा ओह ! शायद अतुल का होगा।
निलेश ने मोबाइल चेक किया, देखा तो अतुल का था। उसने काॅल वैक किया।
अतुल ने कहा हेलो दोस्त मैं घर पहुंच गया ।निलेश - अच्छा ,खाना खा लेना । अतुल हां । अच्छा चलो बाॅय।
निलेश को अब हर शाम का इंतजार रहता था। और उसका स्केच बनाने के बाद और भी दिवाना हो गया था। धीरे धीरे वो तस्वीर पुरी हो गई थी। तस्वीर को देखकर लगता है कि जान डाल दिया हो ये निलेश के हाथों का कमाल है बस।
धीरे धीरे निलेश को अब खाने पीने , सोने, पढ़ने का भी ध्यान नहीं रहा।
रात के डिनर में माया ने नोटिस किया - भाई क्या हुआ है तुझे कभी ऐसा नहीं देखा?
निलेश बोल पड़ा नहीं कोई बात नहीं है दी।
माया ने कहा सोचता क्या रहता है अपने में , कोई बात है तो बोल देना।निलेश ने कहा हां दी , आप को ही तो बताऊंगा।
फिर सब सोने चले गए।
दूसरे दिन सुबह बालकनी में कुर्सी लगा कर एक प्याली चाय के साथ अपने केनवस पर वह तस्वीर जो पुरी हो गई थी पर शायद फिनिशिंग टच देना चाहता था पर और आज वह नहीं आई।
एक लड़की आकर कपड़े सुखाने लगी।निलेश थोड़ा सा निराश हो गया फिर वो रुम में आ गया।
माया ने कहा भाई मैं निकलती हु।खाना खा लेना।निलेश ने सर हिलाया।
फिर निलेश को उलझन सी होने लगी। क्या हो रहा है मुझे इतना कभी खुद को कमजोर नहीं पाया। और फिर सो गया निलेश। और एक का एक उठ गया तो देखा सूरज ढल चुका था।
माया भी टूयशन ले रही है।
क्रमशः।