muskarate chahare ki hakikat - 21 in Hindi Fiction Stories by Manisha Netwal books and stories PDF | मुस्कराते चहरे की हकीकत - 21

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मुस्कराते चहरे की हकीकत - 21

सुबह.....
सब लोग पूजा कर रहे थे अवनी भी वही खड़ी थी, उसकी नजरें कब से किसी को ढूंढ रही थी,, वह बार-बार विवान के रूम की तरफ देखती है जो अभी भी बंद था,,, पूजा खत्म होने के बाद अवनी, सुधा जी के पास आकर- दादी, अब मुझे चलना चाहिए, मेरे ऑफिस का टाइम हो रहा है...
सुधा जी-तुझे अभी भी ऑफिस जाना है एक बार अपनी तबीयत के बारे में तो सोचो बेटा...,
काव्या, अवनी के पास आकर- अवि.. तुम क्यों अपनी लाइफ के साथ रिस्क ले रही हो.... this is the second stage of cancer avvi... रोज कितनी तकलीफ से गुजरना पड़ता होगा और ऑफिस में नया पोस्ट.. कैसे मैनेज करोगी...,
अवनी, काव्या के हाथों को अपने हाथों में लेकर- यही तो लाइफ है काव्या.. अब तकलीफ सहने की आदत हो गई है और वैसे भी अब कुछ दिनों की ही तो लाइफ बची है मेरे पास... उसे यू डरकर तो नहीं जी सकती ना...,
अवनी आगे कुछ बोलती उससे पहले ही काव्या उसके मुंह पर हाथ रखकर- बस अवि... आगे कुछ नहीं.....
काव्या की आंखों में आंसू आ जाते हैं, वह अवनी को गले लगाकर रोने लगती है,,,
अवनी, काव्या को खुद से दूर करके उसके आंसू पूछते हुए- चुप कर यार.. वरना तेरे ससुराल वाले मुझे अभी यहां से भगा देंगे..(मुस्कुराते हुए)
अवनी, नित्या की तरफ देखती है जो सबसे अलग मुंह करके खड़ी थी,,,
अवनी, उसके पास जाकर- तेरी आंखों में एक भी आंसू आए तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी नित्या... (उसके कंधे पर हाथ रखकर) तुम्हें पता है, मैंने नाना-नानी से वादा किया था कि जब तुम मुझे मिल जाओगी उसके बाद कभी भी तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगी... तुम इस तरह रोती रहोगी तो मैं उनका वादा कैसे पूरा करूंगी..,
नित्या, अपने आंसू पूछकर अवनी की तरफ मुड़कर- तुमने मेरे लिए जो किया वह शायद इस दुनिया में कोई किसी के लिए नहीं करता... तुम केवल मेरी दोस्त नहीं मेरी सब कुछ हो.... तुम्हें कुछ हो गया तो मैं.... तेरे लिए मैं इस पूरी दुनिया को छोड़ सकती हूं,, और आज से मैंने डिसाइड कर लिया है कि मैं हमेशा तेरे साथ रहूंगी, ओके...
अवनी- पर तुम...
नित्या, उसे चुप कराते हुए- चुप... कुछ नहीं सुनना मुझे,, मैं आज अभी तेरे साथ चल रही हूं....अब तेरी देखभाल की जिम्मेदारी मेरी... अनाथ यही नाम मिला है ना हमें इस दुनिया में, लेकिन हम दोनों फिर से पहले की तरह रहेंगे जैसे हम हॉस्टल में रहते थे एक परिवार की तरह.. जिसमें किसी की जरूरत ना हो...,
शालिनी- नित्या ठीक कह रही है बेटा... तुम ना तो यहां रहोगी हमारे साथ और ना ही अपनी जॉब छोड़ोगी.. इसलिए कोई तो होना चाहिए ना, तुम्हारा ख्याल रखने वाला.. तुम यहां अकेली रहती हो कल की तरह अगर कुछ हो गया तो.....
नित्या की जिद्द पर अवनी उसे अपने साथ रखने के लिए तैयार हो जाती है,,, नित्या अवनी को गले लगाकर रूम से अपना सामान लेने चली जाती है,,,,
अवनी अभी भी विवान के दरवाजे की तरफ देख रही थी जो बंद था,,,,
अवनी, काव्या और करण के पास आकर धीरे से- यार ये खडूस नीचे नहीं आएगा क्या... मुझे सॉरी बोलना था मैंने रात को कुछ ज्यादा ही सुना दिया था उसे... सच में खडूस है ये तो... मैने तो बस मजाक किया था यार...
अवनी की बात पर करण और काव्या दोनों हंसने लगते हैं,,,
करण, हंसते हुए: तुम्हें विवान को सॉरी बोलना है आई डोंट बिलीव अवनी..... वैसे मैं कब से नोटिस कर रहा हूं तुम उसके आने का ही वेट कर रही हो....इतना जरूरी है क्या सॉरी बोलना...?
अवनी, करण की बात पर चिड़ते हुए: क्या जीजु आप भी... और मैं उसका क्यों वेट करूंगी....,
काव्या, अवनी को और चिढ़ाने के लिए मुस्कुराते हुए- अवि... पता है तुमने, होश में आते ही सबसे पहले किसे पुकारा था,,,,,
अवनी, हैरानी से- किसे...?
काव्या, मुस्कुराते हुए- विवान को.... यार मेरे समझ नहीं आता तुम दोनों एक दूसरे से इतना लड़ते झगड़ते हो और.…..
अवनी, बीच में ही- और क्या....
काव्या, उसके कंधे पर हाथ रखकर- और कल तुझसे ज्यादा विवान की हालत खराब थी तेरे लिए..... तुम भी उसके सामने कितना रोए जा रही थी और हमारे सामने तेरी आंख से एक भी आंसू नहीं निकलता.....
अवनी चुप थी उसे वह सारी बातें फिर याद आ रही थी जब वह दुखी होती थी तब विवान कैसे उसे हिम्मत देता था, वह कैसे विवान के सामने अपना सारा दर्द बिना किसी संकोच के रख देती है,,,, विवान के साथ बिताया हर वक्त अवनी की आंखों के सामने था,,,,
कुछ देर में विवान तैयार होकर नीचे आता है नीचे सब बैठे नाश्ता कर रहे थे,, विवान सीढ़ियों से नीचे आते हुए अवनी की तरफ देखता है जो नित्या के साथ बैठी थी अवनी की नजर भी विवान पर पड़ती है लेकिन वह फिर अपनी नजर झुका लेती हैं,,,,
विवान भी सबके साथ में बैठकर नाश्ता करने लगता है,,
कुणाल, विवान की तरफ देखकर- क्या बात है भाई,, कितने दिनों बाद आप हमारे साथ बैठकर नाश्ता कर रहे हो.…..
विवान, गुस्से से- क्यों तुम्हें कोई प्रॉब्लम है क्या...?
कुणाल मुस्कुराते हुए बिना कुछ बोले खाना खाने लगता है बाकी सब भी विवान को हैरानी से देख रहे थे पर सब चुप थे,,,,
अवनी, विवान की तरफ देखते हुए मन ही मन- मुझे तो लगता था कि सबसे ज्यादा गुस्सा मुझे ही आता है लेकिन यह तो मुझसे भी दो क़दम आगे निकला,,,,,,,,
सब बैठे खाना खा रहे थे दरवाजे से किसी की आवाज आती है,,,, अवनी......,,,,,,
आवाज सुनकर सभी हैरानी से दरवाजे की तरफ देखते हैं जहां प्रवीण खड़ा था और उसके साथ एक आदमी और औरत भी थे, अवनी उन्हें देखकर दौड़ते हुए उनके पास आती है,,,
अवनी उन्हें देखकर खुशी से चिल्लाते हुए- मामू.. मामी... आप यहां..., विनोद और रेणुका आगे आकर अवनी को गले लगाते हैं,, अवनी चाहकर भी उनके सामने अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी,,,, सब उन्हें देखकर खुश थे,,,
विनोद- तुम दोनों इतने बड़े हो गए हो क्या..... माना तुम समझदार हो अवनी... लेकिन बेटा अभी तुम बच्ची हो.... इतनी बड़ी बात क्यो छुपाई तुमने हमसे....
रेणुका, अवनी के सिर पर हाथ फेरते हुए- इतना पराया कर दिया अपने मामा मामी को.... तुझे कुछ हो गया तो हम खुद को कभी माफ नहीं कर पाएंगे बेटा... (आंखों में नमी लिए)
अवनी उनके आंसू पूछते हुए- क्या आप भी... आते आते ही शुरू हो गए.. मैं ठीक हूं, इतनी जल्दी में किसी का पीछा नहीं छोड़ने वाली... (प्रवीण की तरफ देखकर) और भाई आप.... कहा था ना मैंने, दो-तीन दिन में मैं दिल्ली आ रही हूं फिर आप यहां क्यों आए ....
प्रवीण- क्यों आए मतलब... तुझे इस हालत में कैसे अकेला छोड़ सकता हूं मैं.... अब कोई बहाना नहीं तू हमेशा के लिए हमारे साथ चल रही है... ओके,,
अवनी- भाई, मैं तैयार हूं, आप गुस्सा क्यों हो रहे हो... मुझे अभी ऑफिस जाकर बहुत से काम करने है फिर दो-तीन दिन में यहां से निकल जाएंगे तब तक आप भी मेरे साथ ही रहोगे यहां....

सुधा जी- बेटा, हमें नहीं मिलवाओगी अपने परिवार से......
अवनी,उनकी तरफ देखकर- सॉरी दादी, वो हम ख़ुद इतने दिनों बाद मिले हैं तो याद ही नहीं आया.....
विनोद, रेणुका, प्रवीण और अवनी बाकी सब के पास आते हैं,,, अवनी सबको विनोद और रेणुका से मिलाती है,,,
रेणुका, नित्या के पास आकर- कैसी हो बेटा... हम तो हार मान चुके थे कि आप वापस नहीं मिलोगे लेकिन अवनी और प्रवीण को पूरा विश्वास था कि एक दिन आप उनके सामने होगी और हमारे बच्चे जीत भी गए.....
विनोद, नित्या से- जब तुम्हारे मिलने की बात हमें पता चली तो बहुत खुशी हुई थी हमें क्योंकि उस दिन मेरी मां बाबा की आत्मा को भी शांति मिली थी,,,,,,,
नित्या की आंखों में आंसू थे वो विनोद और रेणुका के पास आकर- आई एम रियली सॉरी अंकल... मेरी वजह से आप लोगों को इतनी सारी प्रॉब्लम्स को फेस करना पड़ा.... सबकी मौत मेरी वजह से हुई थी,,,
प्रवीण, नित्या के पास आकर- नित्या.. भूल जाओ उन सब बातों को... और याद रखो कि तुम्हारी वजह से आज हजारों बच्चे आजाद है.... तुम्हारी वजह से एक बुराई का अंत हुआ है... हम सब पिछली बातों को भुलाकर आगे बढ़ चुके हैं तुम भी उन सब बातों को भूल जाओ.....
विनोद- हां बेटा... प्रवीण सही कह रहा है, बीती हुई बातों को याद करने से घाव और गहरे होने लगते हैं इससे अच्छा उन्हें भुला देना ही ठीक है,,
नित्या, प्रवीण की तरफ देखकर हल्के से मुस्कुराते हुए- प्रवीण तुम आज भी बिल्कुल वैसे ही हो जैसे दो साल पहले थे... अवनी की उतनी ही फ़िक्र और अपनी बात रखने का वहीं तरीका....
प्रवीण भी नित्या की तरफ देखकर मुस्कुराता है,,,,,
अवनी, विवान के पास आकर खड़ी हो जाती है जो सबसे अलग खड़ा था कुछ देर दोनों यूंही चुपचाप खड़े रहते हैं विवान वहां से जाने लगता है,,,,
अवनी, विवान को रोकते हुए मासूमियत से बोलती है: सॉरी.......
विवान अवनी की आवाज सुनकर रुक जाता है फिर अवनी की तरफ देखता है जो मासूम सा चेहरा बनाकर खड़ी थी, अवनी को इस तरह देखकर विवान के चेहरे पर उदासी छा जाती है फिर उसे अवनी के कैंसर वाली बात याद आती है, उसकी कल रात की हालत,,, सब विवान की आंखों के सामने घूम रहा था। विवान की आंखों में आंसू थे और अवनी के लिए फिक्र भी... जिसे अवनी भी महसूस कर पा रही थी, दोनों के बीच अभी भी खामोशी थी पर नजरें मिल रही थी जो बहुत कुछ बयां कर रही थी,,,,कोई और भी था जो उन दोनों को देख रहा था,,, अवनी, विवान से अपनी नजरें हटा लेती है फिर बिना कुछ बोले प्रवीण के पास आकर- भाई... अभी हमें चलना चाहिए, मुझे ऑफिस में काम है और आप भी थके हुए होंगे अभी आपको आराम करना चाहिए,,,
विनोद- हां बेटा, हमें भी जल्दी यहां से निकलना होगा... घर पर कोई नहीं है इसलिए तुम्हें जल्दी यहां का काम खत्म करके हमारे साथ चलना होगा.....
नित्या, अवनी के पास आकर- मैं भी चल रही हूं अभी तेरे साथ... मैंने तेरी रिपोर्ट और दवाई ले ली है..,
अवनी- हां, लेकिन जब तक मैं यहां हूं तब तक, तु दिल्ली नहीं जाएगी मेरे साथ क्योंकि तेरी कॉलेज चल रही है कुछ दिनों में एग्जाम्स भी है और फिर तेरी शादी भी......
इतना कहकर अवनी चुप हो जाती और वहां से निकल जाती है,,, नित्या और प्रवीण भी उसके पीछे-पीछे जाते हैं, फिर विनोद और रेणुका भी सब से मिलकर चले जाते हैं,,,,,
काव्या, अवनी को इस तरह जाते देखकर करण से- क्या तुम भी वही सोच रहे हो जो मैं......
करण, काव्या की बात पूरी होने से पहले- एक्जेक्टली काव्या......
श्रेया रिया और कुणाल भी करण और काव्या की बातें सुन रहे थे,,,,
कुणाल- मैं तो बहुत पहले से यही सोचता था, पर आज लग रहा है यही सच है....
रिया और श्रेया दोनों साथ में- अगर यह सच हुआ तो....
पांचो एक दूसरे की तरफ देख रहे थे विवान उनके पास आता है जो उन सब से दूर खड़ा था,,
विवान, उन सब को इस तरह देखकर- तुम लोगों को क्या हुआ.. ऐसे मूर्ति बनकर क्यों खड़े हो....?
पांचो ना में सिर हिलाते हैं और सब वहां से निकल जाते हैं
विवान भी उन सब को वहां से जाते देखकर ऑफिस के लिए निकल जाता है,,,,,

Continue...