Saugandh-Part(11) in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सौगन्ध--भाग(११)

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सौगन्ध--भाग(११)

बसन्तवीर के तलवार निकालते ही वहाँ शीघ्र ही भूकालेश्वर जी उपस्थित हुए और उन्होंने बसन्तवीर से पूछा...
राजकुमार!ये क्या हो रहा है?आपको अपनी तलवार निकालने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
ये आप मुझसे ना पूछकर अपनी पुत्री मनोज्ञा से पूछिए,राजकुमार बसन्तवीर बोले।।
क्या हुआ पुत्री?भूकालेश्वर जी ने मनोज्ञा से पूछा।।
तब मनोज्ञा बोली....
पिताश्री!राजकुमार चाहते थे कि मैं उनके राजदरबार में नृत्य करूँ,किन्तु मैनें मना किया तो ये मुझसे अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने लगें,तभी लाभशंकर यहाँ पहुँचा और उसने कारण पूछा कि राजकुमार क्यों क्रोधित हो रहे हैं तो राजकुमार लाभशंकर से भी अनावश्यक वार्तालाप करने लगे एवं उसके लिए अनुचित शब्दों का प्रयोग किया...
ओह...तो ये बात है राजकुमार,भूकालेश्वर जी बोलें....
मैनें कोई अभद्रता नहीं की पुजारी जी!ये राज्य मेरा है एवं यहाँ के वासियों को मेरा आदेश मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए,राजकुमार बोला।।
आप चाहते हैं कि आपकी अनुचित बात को भी यहाँ के राज्यवासी मानें,भूकालेश्वर जी बोलें...
किन्तु मैनें कोई अनुचित बात नहीं कही,मनोज्ञा एक नृत्यांगना है एवं उसे राजदरबार में नृत्य करने से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए,मैनें तो उसे मुँहमाँगी भेंट देने को भी कहा,परन्तु वह नहीं मानी,अनुचित व्यवहार तो उसने मेरे साथ किया,चूँकि मैं इस राज्य का राजकुमार हूँ एवं उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था,बसन्तवीर बोला।।
राजकुमार!अब आप मेरे क्रोध को बढ़ावा दे रहें हैं,भूकालेश्वर जी बोले...
पुजारी जी!आप मुझसे आयु में बड़े है इसलिए मैं थोड़ा धैर्य धर रहा हूँ ,नहीं तो ये शब्द किसी और ने कहे होते तो वो अभी तक जीवित ना रहता,बसन्तवीर बोला....
अब देवव्रत का धैर्य भी टूट चुका था और वो बोला....
राजकुमार बसन्तवीर!आपने पुजारी जी का अपमान करके अपनी सीमाएं लाँघ दीं हैं,क्या आपको राजमाता ने यही संस्कार दिए हैं...
आप कौन हैं महाशय?आप क्यों हमारे मध्य आ पड़े,बसन्तवीर ने देवव्रत से पूछा...
जी!मैं कोई भी हूँ,मध्य में इसलिए आ पड़ा क्योंकि आपके भीतर मर्यादा और विनय नाम की वस्तुएं ही नहीं हैं या आपके भीतर अहंकार ने ऐसा डेरा डाल रखा है कि आप अपने समक्ष किसी को समझते ही नहीं,देवव्रत बोले....
तुम कौन हो मूर्ख ?जो मुझसे ऐसा व्यवहार कर रहे हो,बसन्तवीर बोला।।
तुम स्वयं को इस राज्य का उत्तराधिकारी कहते हो,तुम्हें किसने उत्तराधिकारी बना दिया,तुम तो इस योग्य ही नहीं हो,अपने आदरणीयों से इस प्रकार का वार्तालाप तुम्हें कदापि शोभा नहीं देता,देवव्रत बोला....
तुम्हारा इतना साहस अधर्मी कहीं के.....और इतना कहकर बसन्तवीर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वें शीघ्रता से ही देवव्रत को बंदी बना लें एवं सैनिकों ने बसन्तवीर के आदेश का पालन किया,देवव्रत को बंदी बनाकर सैनिक अपने संग ले गए एवं लाभशंकर,मनोज्ञा और भूकालेश्वर जी यूँ ही देखते रह गए,तब भूकालेश्वर जी लाभशंकर से बोले....
लाभशंकर!तुम निश्चिन्त रहो,मैं अभी राजमहल जाकर रानी वसुन्धरा से मिलता हूँ एवं रानी से कहूँगा कि देवव्रत ने कुछ नहीं किया,सारा दोष राजकुमार बसन्तवीर का है....
क्या मैं भी आपके साथ चल सकता हूँ?लाभशंकर ने पूछा।
हाँ!अवश्य क्यों नहीं?भूकालेश्वर जी बोलें...
और भूकालेश्वर के संग लाभशंकर भी राजमहल की ओर चल पड़ा,दोनों राजमहल पहुँचे और द्वारपालों से राजमाता से मिलने के लिए कहा,द्वारपाल बोला...
मैं राजमाता से अनुमति लेकर आता हूँ...
द्वारपाल ने राजमाता के कक्ष में जाकर उन्हें भूकालेश्वर जी का संदेश दिया तो राजमाता बोलीं....
उनसे कहो कि अतिथि गृह में पहुँचकर मेरी प्रतीक्षा करें,मैं शीघ्र ही वहाँ पहुँचती हूँ...
द्वारपाल ने राजमाता का संदेश दोनों को सुनाया एवं उन दोनों को अतिथि गृह जाने को कहा,दोनों अतिथि गृह पहुँचें एवं राजमाता के आने की प्रतीक्षा करने लगें,कुछ समय पश्चात राजमाता वसुन्धरा अतिथिगृह में पधारीं एवं भूकालेश्वर जी से राजमहल आने का कारण पूछा तो भूकालेश्वर जी बोलें....
रानी वसुन्धरा!आज आपके पुत्र ने मेरा और मनोज्ञा का अपमान किया और जब लाभशंकर के मामाश्री देवव्रत ने उनकी बात का खण्डन किया तो उन्हें ये दुस्साहस लगा और वें देवव्रत को बंदी बनाकर अपने साथ राजमहल के बंदीगृह में ले गए हैं ....
ओह....ये तो राजकुमार ने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है,मैं अभी राजकुमार से कहतीं हूँ कि वें देवव्रत को बंदीगृह से मुक्त कर दें,आप दोनों भी मेरे संग चलें,वसुन्धरा इतना कहकर दोनों के संग राजकुमार बसन्तवीर के कक्ष में पहुँची और राजकुमार से जाकर बोलीं....
बसन्तवीर!आपने आज भूकालेश्वर जी का अपमान किया...
माताश्री!मैनें तो केवल मनोज्ञा से राजदरबार में नृत्य के लिए कहा था किन्तु उसने मना कर दिया,उस पर पुजारी जी भी मुझे कटुवचन बोलने लगें तो मैं क्या करता?बसन्तवीर बोला।।
तो आप किसी भी निर्दोष को बंदी बनाकर ले आऐगें,वसुन्धरा बोली....
उसने मेरा अपमान किया था,बसन्तवीर बोला।।
और जो आपने अनुचित बात कहकर मनोज्ञा और पुजारी जी का अपमान किया उसका क्या?वसुन्धरा बोली।।
मैनें किसी का कोई अपमान नहीं किया,वो एक नर्तकी है तो राजदरबार में नृत्य करने में कैसा संकोच,इसका तात्पर्य है कि उसे अपनी कला पर अत्यधिक गर्व है,बसन्तवीर बोला....
वो एक देवदासी है,उसका यूँ राजदरबार में नृत्य करना उचित नहीं है,राजमाता वसुन्धरा बोली...
किन्तु मैं इस राज्य का राजा हूँ और उसे मेरा आदेश मानना ही होगा,बसन्तवीर बोला...
बसन्तवीर!ये आप क्या कह रहे हैं?राजा होने का यह तात्पर्य नहीं कि आप किसी से भी उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी काम करवा सकें,राजा होने का तात्पर्य होता है कि राज्य के वासियों की सेवा करना,उनका सेवक बन जाना,उनके सुख दुख का ध्यान रखना,ना कि निरंकुश शासक बन जाना,वसुन्धरा बोली....
आपको ज्ञात है ना राजमाता कि आपके इन शब्दों से रुष्ट होकर मैं आपको भी बंदीगृह में डाल सकता हूँ,बसन्तवीर बोला....
बसन्तवीर के वाक्य सुनकर राजमाता क्रोधित होकर बोलीं....
तुम्हें लज्जा नहीं आती बसन्तवीर!तुम अपनी माता से ऐसे शब्द कह रहे हों,
मैं तो शासक हूँ और जो भी मेरे समक्ष अभद्रतापूर्ण व्यवहार करेगा तो मैं उसके संग भी वैसा ही व्यवहार करूँगा,बसन्तवीर बोला....
लगता है राज्य का उत्तराधिकारी बनते ही तुम में घमंड का प्रवाह होने लगा है,वसुन्धरा बोली....
आप को जो भी समझना हैं आप समझतीं रहें,किन्तु ध्यान रखिएगा,मुझे मनोज्ञा भा गई है और मैं उसे पाकर ही रहूँगा,इसके लिए मुझे चाहें छल,बल या बुद्धि किसी भी वस्तु का सहारा लेना पड़े,वो स्वेच्छा से नहीं मानेगी तो मैं उसे बलपूर्वक प्राप्त करके रहूँगा,किन्तु प्राप्त तो अवश्य ही करके रहूँगा,बसन्तवीर बोला...
ये नहीं हो सकता,ये अनर्थ मैं कभी नहीं होने दूँगा,भूकालेश्वर जी कुछ सोंचकर बोलें...
और मैं भी ये घिनौना कुकृत्य कभी नहीं होने दूँगी,वसुन्धरा बोली...
बस,बहुत हो चुका आप लोगों का वार्तालाप,अब आप लोंग मेरे कक्ष से जा सकते हैं,बसन्तवीर बोला....
राजकुमार बसन्तवीर!ये आप ठीक नहीं कर रहे हैं,लाभशंकर बोला....
अरे....जा...जा....तुम्हारे जैसे कई सेवक मेरी सेवा करते हैं,बसन्तवीर बोला....
यदि मनोज्ञा को कुछ हुआ तो ये आपके लिए अच्छा नहीं होगा राजकुमार!लाभशंकर बोला....
लाभशंकर की बात सुनकर बसन्तवीर बोला....
कहीं तुम भी तो मनोज्ञा पर अपना हृदय नहीं हार बैठों हो,बसन्तवीर ने पूछा....
तब वसुन्धरा बोली....
अपने जैसा सभी को समझ रखा है क्या?
माताश्री!आप क्यों इस तुच्छ से प्राणी का इतना पक्ष ले रहीं हैं,बसन्तवीर बोला....
क्योंकि वो तुम सा अभद्र नहीं है इसलिए,वसुन्धरा बोलीं....
मैनें कहा ना!मुझे अब विश्राम करना है,इसलिए आप लोंग मेरे कक्ष से चले जाएं तो अच्छा होगा एवं पुजारी जी मेरी प्यारी मनोज्ञा से कहिएगा कि उसे मेरी अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी,मैं शीघ्र ही उसे अपनी रानी बनाकर इस महल में ले आऊँगा,बसन्तवीर बोला....
अरे....राजकुमार!उस ईश्वर से कुछ तो भयभीत हो,वो सब देखता है....भूकालेश्वर जी बोलें...
मुझे अब किसी का भय नहीं,ना ही नीचे वाले का और ना ही ऊपरवाले का,बसन्तवीर बोला।।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि,तुम्हारे साथ भी यही हो रहा है और इतना कहकर भूकालेश्वर जी बसन्तवीर के कक्ष से बाहर चले आएं,साथ में लाभशंकर और वसुन्धरा भी थे....
जब सब बसन्तवीर के कक्ष से बाहर आएं तो वसुन्धरा लाभशंकर और भूकालेश्वर जी से बोली....
पुजारी जी!अब मनोज्ञा के ऊपर संकट आन पड़ा है,आप ऐसा कीजिए उसे राज्य से किसी सुरक्षित स्थान की ओर भेज दीजिए...
किन्तु वो सुरक्षित स्थान कौन सा हो सकता है?भूकालेश्वर जी ने पूछा....
ये तो मुझे भी ज्ञात नहीं क्योंकि मैं मनोज्ञा को अपने ससुराल वाले राज्य में भी नहीं रख सकती,वहाँ के विषय में बसन्तवीर को सबकुछ ज्ञात है,वसुन्धरा बोली....
तो आप लोंग मेरे यहाँ क्यों नहीं चलते?लाभशंकर बोला....
परन्तु तुम्हारे परिवार वालों को तो कोई आपत्ति ना होगी,भूकालेश्वर जी ने पूछा....
आपत्ति तो होगी यदि मैं मामाश्री को लेकर वहाँ ना पहुँचा तो,लाभशंकर बोला....
तो अब तो देवव्रत को बंदीगृह से मुक्त करने का कोई ना कोई उपाय तो सोचना ही होगा,भूकालेश्वर जी बोलें....
किन्तु!पहले हम सब मनोज्ञा के पास चलते हैं इसके उपरांत ही कुछ सोचेगें,लाभशंकर बोला....
ये उचित सलाह है ,वसुन्धरा बोली....
और सब ने राजमहल से मंदिर की ओर प्रस्थान किया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....