Charitraheen in Hindi Women Focused by Devika Singh books and stories PDF | चरित्रहीन

Featured Books
Categories
Share

चरित्रहीन

"क्या हुआ ?",बॉस के चैम्बर से बाहर निकली अनुभूति के चेहरे पर उड़ती हवाइयाँ देखकर साथ ही काम करने वाली काया ने पूछा।

"पता नहीं यार ,लॉक डाउन के बाद बॉस बिना वजह ही नाराज़ होते रहते हैं। हर चीज़ पर कारण बताओ नोटिस देते हैं। मैंने क्लाइंट के लिए क्वोटेशन तैयार कर दी थी और भेजनी तो मिस्टर सिन्हा को थी ;लेकिन उन्होंने नहीं भेजी। ",अनुभूति ने उदास स्वर में कहा।

"पहले तो तू खुद ही क्वोटेशन भेज देती थी ?अब ये मिस्टर सिन्हा कब से भेजने लग गए। ",काया ने अपनी चेयर अनुभूति के पास ले जाते हुए पूछा।

"वही तो यार ,पहले मना कर दिया कि मिस्टर सिन्हा ही भेजेंगे और अब मुझे पूछ रहे थे कि क्यों नहीं भेजा ?समझ ही नहीं आ रहा क्या करूँ। ",अपने दोनों हाथों के बीच चेहरे को छिपाये हुए अनुभूति ने कहा।

"वही तो ;तुझे दुनिया -जहान की कोई ख़बर ही नहीं। बस अपने काम से काम ;लॉक डाउन के बाद कंपनी नुक्सान का बहाना करके छँटनी करने वाली है। बॉस को भी एक महीने के अंदर उन कार्मिकों की लिस्ट भेजनी है ;जिनकी नौकरी पर छँटनी की ग़ाज गिरेगी। "काया ने बताया।

"क्या मतलब ?", अनुभूति ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर पूछा।

"मतलब यह कि सभी लोग या तो किसी दूसरी नौकरी की तलाश में है या कुछ जैक या चेक लगाकर अपनी नौकरी सुरक्षित कर रहे हैं। ",काया ने समझाया।

काया के पापा की जान -पहचान से काया की इस ऑफिस में नौकरी लगी थी। काया के पापा के रसूख के कारण काया ऑफिस में अपनी मर्ज़ी की मालकिन थी। वह जितना मन करता ,उतना ही काम करती। मज़ाल बॉस उसको तू भी बोल दे। लेकिन काया दिल की अच्छी थी और अनुभूति को दुनियादारी की बातें बताती थी।

अनुभूति एक बहुत ही सामान्य परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी। एक दुर्घटना में अनुभूति के पापा ने अपना एक पैर खो दिया था और उसके साथ ही अपनी नौकरी भी। कंपनी ने तीन महीने का वेतन देकर उन्हें हमेशा -हमेशा के लिए घर भेज दिया। पैसे के सामने मानवीय संवेदनाएं घुटने टेक ही देती हैं। कल तक जो कंपनी के लिए कमाऊ पूत था ,एक ही पल में नाकारा और नालायक बेटा साबित हो गया।

पापा की नौकरी चले जाने के कारण परिवार की सारी जिम्मेदारी बड़ी बेटी अनुभूति पर आ गयी। अभी तक आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान के लिए नौकरी कर रही अनुभूति के लिए ,अब नौकरी जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन गयी थी। वह किसी भी कीमत पर अपनी नौकरी खो नहीं सकती थी। पापा की दवाइयाँ ,छोटे भाई की कॉलेज की फीस ,घर का ख़र्च सब कुछ ही तो उसकी नौकरी पर निर्भर था।

अपने घर के हालातों के कारण ही तो अनुभूति ने रिश्तेदारों द्वारा बताये गए कई अच्छे रिश्ते ठुकरा दिए थे। मम्मी -पापा ने भी तो उस पर शादी के लिए कितना जोर डाला था ,लेकिन जब तक छोटे भाई की नौकरी नहीं लग जाती ;तब तक उसने शादी न करने का फैसला ले लिया था। रिश्तेदारों ने पहले तो उसके लिए रिश्ते बताना बंद कर दिया और बाद में उसके चरित्र को लेकर झूठी -सच्ची कहानियाँ गढ़ना शुरू कर दिया। अनुभूति को लेकर कुछ दिन कानाफूसी हुई और फिर जब रिश्तेदारों को दूसरे रुचिकर टॉपिक बात करने को मिल गए तो यह कानाफूसी भी बंद हो गयी।

"अब मैं क्या करूँ ?मेरे लिए यह नौकरी कितनी जरूरी है ,तुम तो जानती ही हो ?",अनुभूति ने काया से कहा।

"जानती हूँ ,इसलिए तो तुम्हें सब बता रही हूँ। अब तुम या तो दूसरी नौकरी ढूंढो या बॉस को खुश कर दो। ",काया ने कहा।

"यार मेरे पास तो जैक या चेक दोनों ही नहीं हैं। दूसरी नौकरी के लिए कोशिश करती हूँ और नहीं मिली तो फिर बॉस से ही बात करूँगी। ",अनुभूति ने कहा।

"हां ,और कोई रास्ता भी नहीं है। ",ऐसा कहकर काया ने अपनी चेयर वापस अपनी सीट की तरफ खींच ली थी।

काया द्वारा वस्तुस्थिति से अवगत करवाये जाने के बाद अनुभूति अपना रिज्यूमे बहुत सी कम्पनीज को मेल करने लगी।दिन गुजरते जा रहे थे ,अनभूति को कुछ कंपनीज से इंटरव्यू कॉल भी आये ,लेकिन उसके बाद कहीं पर बात नहीं बनी।अनुभूति की रातों की नींद हराम हो चुकी थी। घर पर मम्मी -पापा ने भी उससे पूछा कि ,"बेटा ,क्या हुआ ?कोई परेशानी है ?"

लेकिन अनुभूति उन्हें क्या बताती ?उसने सिर्फ इतना ही कहा ," नहीं मम्मी ,सब ठीक है। ऑफिस में थोड़ा काम का दबाव है। "

लिस्ट फाइनल होने में अब दो ही दिन बचे थे। लिस्ट सोमवार को फाइनल होनी थी और आज शुक्रवार था। अनुभूति अपने लाख प्रयासों के बाद भी दूसरी नौकरी ढूंढ नहीं पायी थी। उसने आज बॉस से बात करने का निश्चय किया।

"मे आई कम इन सर ?",अनुभूति ने कहा।

"आ जाओ। ",बॉस ने कहा।

अनुभूति बॉस की टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गयी ?बॉस ने एक नज़र उस पर डाली और दोबारा अपनी फाइल्स देखने लग गए और कहा ,"यहाँ सिर पर आकर क्यों खड़ी हो गयी हो ?कुछ काम है तो बोलो और जाओ। "

"सर ,वो कार्मिकों की छँटनी होने वाली है न। ",अनुभूति ने एक -एक शब्द चबाते हुए कहा।

"हाँ तो ,वह मेरा काम है ;",बॉस ने झुंझलाते हुए कहा।

"सर ,मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है। मेरा काम भी सही है। ",अनुभूति की बात ख़त्म होने से पहले ही बॉस ने कहा ,"अनुभूति ,इस हाथ दो और उस हाथ से लो का ज़माना है। मैं लिस्ट लगभग फाइनल कर चुका हूँ। अभी एक -दो नाम और जोड़ने हैं। यहाँ ऑफिस में बात नहीं कर सकते। कल छुट्टी है ; कुछ ही देर में ऑफिस से निकलते हैं और पास में ही एक होटल है वहाँ चलकर खुलकर बातें हो सकती हैं। "बॉस ने अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ कहा।

"सर ,मैं थोड़ी देर में आपको कन्फर्म करती हूँ। ",बॉस का मतलब समझकर अनुभूति ने कहा और कमरे से निकल गयी।

"ओके ,ओके ,टेक योर टाइम। ",बॉस ने पीछे से कहा।

अनुभूति बाहर आयी ,तब तक काया जा चुकी थी। काया को फ़ोन मिलाने कोशिश भी की ,हमेशा की तरह स्विच ऑफ आया। काया का फ़ोन शुक्रवार शाम को अक्सर स्विच ऑफ ही आता है। अनुभूति को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे ? अगर बॉस के ऑफर को नहीं स्वीकारा तो उसकी नौकरी चली जायेगी। नौकरी के जाते ही वे सब लोग सड़क पर होंगे।

उसके सामने अपनी माँ का निराश चेहरा घूम गया। पापा की दवाइयों के अभाव में बिगड़ती तबियत के ख़्याल मात्र ने उसमें सिरहन पैदा कर दी। शुल्क के अभाव में कॉलेज से निकाले जाने के बाद भाई द्वारा दर -दर की ठोकरें खाने के विचार ने उसके रौंगटे खड़े कर दिए थे।

जब सब सोचने में उसे इतना डर लग रहा है ,अगर वह हक़ीक़त में बदल गया तो क्या होगा ?उसने अपनी राह चुन ली थी। उसने बॉस के ऑफर को स्वीकारने का फैसला कर लिया था।

"चयन की स्वतंत्रता हम जैसे निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के पास होती ही कहाँ हैं ?हमारे पास और विकल्प ही क्या होते हैं ?",ऐसा सोचते हुए अनुभूति का मुँह कसैला हो गया था।

ऑफिस में उपस्थित कार्मिकों ने अनुभूति को बॉस गाड़ी में बैठते हुए देखा। उनमें से कुछ ने कहा ,"अब तो इसकी नौकरी बच जायेगी। "

कुछ ने कहा ,"कितनी चरित्रहीन लड़की है ?"

तब एक ने कहा ,"चरित्रहीन तो हम सब भी हुए न। हमने जैक या चेक लगाकर अपनी नौकरी बचाई है। उसके पास दोनों ही चीज़ें नहीं थी। हमने उसके लिए कोई रास्ता ही कहाँ छोड़ा था। शुरुआत तो हमने की थी ,यह तो अंत है। हमारी चरित्रहीनता का शिकार हुई है ,वो लड़की । "

वहाँ पर ऐसा सन्नाटा छा गया था कि एक -दूसरे की साँसों की आवाज़ भी सुनी जा सकती थी।