soi takdeer ki malikayen - 24 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 24

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 24

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

24

 

भोला सिंह मंजे पर लेटा सितारे देख रहा था । इन सितारों में से कोई तारा उसकी बेबे होगी । काश उसकी आवाज ऊपर आसमान तक पहुँच पाती तो वह एक बार पूछ ही लेता – बता बेबे , इतनी जमीन जायदाद का क्या करूं । पर बेबे तो सुरगों में चली गयी और भोला सिंह को अभी धरती पर रहना है । तो वह करे तो क्या करे । हाँ करे या न करे । उसकी सारी रात इसी सोच विचार में बीत गयी पर भोला सिंह अपनी सोच से बाहर न आ सका , न ही उससे कोई फैसला हुआ ।
दिन चढते रहे , छिपते रहे । रातें आती रही , जाती रही । नहीं बदला तो भोला सिंह का संताप । बसंत कौर उसे यूं खोया खोया देखती तो उसे बातों में लगाने की कोशिश करती । कोई पुराना किस्सा छेङ बैठती , उसे हंसाने की कोशिश करती । भोला सिंह बात का जवाब तो दे देता पर अगले ही पल उदासी की और ज्यादा गहरी खाई में उतर जाता । पहले से भी अधिक उदास और परेशान हो जाता । बसंत कौर यह देखती और परेशान हो हो जाती पर उसे समस्या का कोई समाधान दिखाई न देता ।
कभी कभी कोई बात ऐसा दिमाग पर छा जाती है कि लाख कोशिशों के बाद भी दिमाग से निकल नहीं पाती । यही हाल इस समय भोला सिंह का हुआ पङा था । वह जितना चरण सिंह की बात को भुलाना चाहता , उतना ही शरण सिंह की बात उसे याद आ जाती । शरण सिंह को भूलने की कोशिश करता तो जयकौर का चेहरा उसके सामने आ जाता । उसका गदराया जिस्म , उसकी बङी बङी आँखें उसे निमंत्रण देती लगती और वह पहले से भी ज्यादा बेचैन हो उठता । उठ कर तीन चार गिलास पानी पी जाता , फिर भी गला सूखा रहता ।
शरण सिंह को ट्रैक्टर लेकर गये हुए आठ दस दिन हो गये थे पर अभी तक वे उसे लौटाने नहीं आए थे तो एक दिन उसने फैसला किया कि वह खुद जाकर ट्रैक्टर लौटा लाएगा । इस बहाने उन्हें परख भी लेगा कि कहीं वे सजाक तो नहीं कर रहे थे । और यह विचार आते ही वह तुरंत नहा धोकर चौके में आया – सुन भागवान ऐसा कर , फटाफट दो दो परांठे उतार दे । मैं और गेजा जाकर अपना ट्रैक्टर लौटा लाएं । वे भले मानुष तो एक बार ले गये , दोबारा भूल ही गये कि इसे वापिस भी करना है ।
बसंत कौर ने बिलौना वहीं छोङा और चूल्हा जलाकर तवा चढा दिया । उसने बेसन और प्याज डाल कर मिस्से परांठे बनाए और मक्खन का बङा सा पेङा रख कर मिस्से परांठे और दही का कटोरा पति की ओर बढा दिया । दही के साथ मिस्से परांठे खाकर भोला सिंह और गेजा चल दिये । चरण सिंह और शरण सिंह घर पर ही मिले । दोनों कहीं जाने को तैयार थे ।
आप लोग कहीं जाने को तैयार लग रहे हो ?
नहीं भाई साहब , आप आओ । हम फिर चले जाएंगे ।
भाई कोई जरूरी काम है तो कर लो , मैं तो ट्रैक्टर ... उसने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोङ दिया ।
ट्रैक्टर तो हमने आना था देने पर इधर हमारी जमीन के साथ लगता एक जमीन का टुकङा बिक रहा है । उसके चक्कर में पङ गये तो निकलना नहीं हो पाया ।
अच्छा , यह तो अच्छी बात है वरना खेत के साथ लगती जमीन कहाँ मिलती है । कितनी जमीन है ।
ढाई किल्ले है । मालिक बङी मुश्किल से चार लाख रुपए एक किल्ले पर आया है । दस लाख का खर्च है ।
बङी सस्ती है ।
आप तो पैसे वाले हुए , आपको तो सस्ती लगेगी ही । हमने तो बङी मुश्किल से इधर उधर करके दो लाख रुपए इकट्ठे किए हैं । बाकी पैसे बाद में देने का वादा किया था पर वह मान ही नहीं रहा । उसे सारे पैसे हाल की घङी चाहिएं । अब गाँव के साहूकार के पास जा रहे थे । वह ब्याज तो मोटा लगाता है पर पैसा तुरंत दे देता है इसलिए कोई चारा नहीं है । उससे पैसे तो लेने ही पङेंगे ।
आठ लाख ही चाहिए न । मैं चैक दे देता हूं । तुम लोग बैंक से निकलवा लेना ।
आप भाई जी ।
हाँ भाई मैं ... । क्यों , मैं तुम लोगों की मदद नहीं कर सकता क्या ?
भाई , ब्याज क्या लगाओगे - चरण अपनी पूरी तसल्ली कर लेना चाहता था ।
एक तरफ भाई कहते हो । दूसरी ओर इस तरह की बातें करते हो । ब्याज किस बात का । अपनों से कोई ब्याज लेता है ?
चरण ने हाथ जोङ लिए – माफ करना भाई जी । गलती हो गई ।
तब तक शरण सिंह चाय और पिन्नियां ले आया था । चाय पीते हुए भोला सिंह ने आठ लाख का चैक काट कर चरण सिंह के हाथ में पकङा दिया ।
भाई साहब आपने हमारे मन से बङा भारी बोझ हटा दिया । कई रातों से सो नहीं पा रहे थे । अब नगद रकम देकर जमीन अपने नाम चढवा लेंगे ।
क्यों नहीं ,क्यों नहीं । चार लड्डू हमारी हवेली में भी भेज देना । भोला सिंह ने हँसते हुए कहा ।
जी भाई साहब ।
पक्का भाई साहब ।
भाई साहब , आपने हमारी एक चिंता तो दूर कर दी । अब दूसरी चिंता भी दूर कर दो ।
भोला सिंह ने सवालिया नजर शरण पर डाली ।
ओये अंग्रेज कौरे , जरा जयकौर को यहाँ तो लेकर आ ।
थोङी देर में ही अंग्रेज कौर जयकौर को ले आई । हल्के हरे रंग के सूट में जयकौर भोला सिंह को सब्जपरी ही दिखाई दी ।
यह मेरी बहन जयकौर है । घर के सारे काम काज में निपुण है । खेती और गाय भैंसे भी सब यही देखती है । बच्चे तो इससे ऐसे हिले हैं कि एक मिनट के लिए भी इसे नहीं छोङते । बेबे जी और बापू जी जब जिंदा थे ,तो एक दो जगह इसके रिश्ते की बात चल रही थी फिर वे दोनों आगे पीछे चलाना कर गये तो बात पीछे रह गयी । आप इसका हाथ थाम लोगे तो हम गंगा नहा लेंगे ।
ठीक है भाई , जैसे तुम्हे ठीक लगे । पर इनसे तो पूछ लो ।
अजी इससे क्या पूछना । आप मान गये , सब ठीक हो गया ।
देखो भाई फिर भी एक बार पूछ तो लो ।
पूछ लेते है ।
दोनों भाइयों और उनकी पत्नियों ने भीतर जाकर सलाह की – आज तो यह सरदार मान गया है । कल घर जाकर पलट न जाय । इसलिए आज ही आनंदकारज पढवाकर काम निपटाया जाय । जयकौर इस अचानक प्रस्ताव से भौचक रह गयी । उसे समझ ही नही आ रहा था कि वह क्या प्रतिक्रिया दे ।

बाकी फिर ...।