The Author SHASHANK SHUKLA Follow Current Read ममता की मूरत By SHASHANK SHUKLA Hindi Motivational Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books बकासुराचे नख - भाग १ बकासुराचे नख भाग१मी माझ्या वस्तुसहांग्रालयात शांतपणे बसलो हो... निवडणूक निकालाच्या निमित्याने आज निवडणूक निकालाच्या दिवशी *आज तेवीस तारीख. कोण न... आर्या... ( भाग ५ ) श्वेता पहाटे सहा ला उठते . आर्या आणि अनुराग छान गाढ झोप... तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2 रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा... नियती - भाग 34 भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share ममता की मूरत (1) 1.5k 4.1k ममता की मूरतदीनापुर नाम का खूबसूरत गांव एक छोटी सी नदी के किनारे था। वहां शोभित नाम का एक लड़का अपनी मां सरस्वती के साथ रहता था।जब वह छोटा था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।सरस्वती उसकी पसंद का नाश्ता बनाती फिर उसको बड़े प्यार से बुला कर अपने पास बिठाकर खिलाती थी --"आजा बेटा नाश्ता कर ले और फिर स्कूल जा .....देर हो रही है! मुझे भी कुछ करना है ।"शोभित देखता था कि सामने रूखी रोटी है तो वह जिद करने लगता था-" ऐसे नहीं मां ,,,,,,,,मैं ऐसे नहीं खाऊंगा मुझे यह रूखी रोटी अच्छी नहीं लगती । मैं तो दूध के साथ खाऊंगा।मुझे दूध भी चाहिए।"सरस्वती लाचार हो जाती थी और वह दुखी होकर आंसू बहाने लगती थी फिर वह अपने बेटे को समझाती-" बेटा वह हमारे यहां नहीं है ......अच्छा रुक! अभी पड़ोस में बंसी के यहां जा कर देखती हूं.... उसके यहां दूध होता है ।"वह दूध की तलाश में पड़ोस में कभी दीना तो कभी बंशीधर के यहां जाती और उनसे दूध मांगती।सरस्वती -"भैया बंसी ! मेरे शोभित को दूध के बिना खाना अच्छा नहीं लगता है..... मुझे एक गिलास दूध रोज दे दिया करो।"बंसीधर --"इसके बदले में तुम्हें हमारा काम भी करना होगा । मुन्ने की मां बीमार रहती है और हम बर्तन धोने के लिए एक बाई की तलाश कर रहे हैं ,,,,तो ऐसा करो ,,,तुम दोपहर को मेरे बर्तन धो दिया करना और उसके बदले में मैं तुम्हें दूध और कुछ रुपए भी दूंगा।"सरस्वती -"ठीक है भैया ......इसी तरह गांव में सबका एक दूसरे से कनेक्शन जुड़ा होता है। नगद रुपयों की बजाए सामान ,,से काम चलाया जा सकता है,,,,,और काम करके भी काम निकल सकता है।सरस्वती दिन भर मजदूरी करती और जब मजदूरी नहीं मिलती तो गांव में ही जिस किसी का काम मिलता तो कर लेती।शोभित को वह अच्छे अच्छे कपड़े पहनाती,,,,, अच्छा खाना खिलाती और स्कूल में पढ़ाती थी।"शोभित-" तुम कितनी कमजोर हो गई हो माँ ! जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं तुम्हें कुछ भी काम नहीं करने दूंगा !"सरस्वती उसके सिर पर हाथ फेरती हुई कहती-- "मेरा राजा बेटा नौकरी करके रुपए लाएगा और मैं रानी की तरह बैठकर राज करूंगी !"शोभित उसके गले लगकर कहता-"अच्छा माँ,,,, मुझे एक अच्छी सी कहानी सुनाओ।" फिर वह उसको अच्छी अच्छी कहानियां सुनाती थी। शोभित आराम से सो जाता था।किसी किसी दिन ऐसा होता कि खाने के लिए कुछ भी नहीं होता तो सरस्वती खाना नहीं खाती और बस शोभित को ही खिला देती ।शोभित --"मां ! आओ मेरे साथ खाना खाओ ! "सरस्वती -"बेटा मेरे पेट में दर्द हो रहा है ...मैं खाऊंगी तो बीमार हो जाऊंगी,,,,, शायद बदहजमी हो गई है। खाने से और भी तकलीफ बढ़ जाएगी ।वह पानी लेने के लिए चली गई ।शोभित ने अपने लिए दाल परोसने के लिए भगौने का ढक्कन खोला तो चौंक पड़ा।शोभित--" अरे !! यह तो बिल्कुल खाली है,,,,, फिर उसने चावल का भगौना देखा और बड़बड़ाया-"अरे यह भी खाली है...अब समझा ,,,,मां के लिए कुछ रह ही नहीं गया है।जो कुछ था उसने मुझे खिला दिया और अपने लिए बहाना बना रही है ,,,,ताकि मुझे पता ना चले और मैं आराम से खा लूं ।"उसकी आंखों में आंसू भर आए।इन मुसीबतों के साथ शोभित बड़ा होता गया। उसकी शहर में नौकरी लग गई। वह एक अधिकारी बन गया।उसके बाद उसकीशादी हो गई।सरस्वती भी शहर में आकर कुछ दिन रही। बहू सीमा ने उसका जीना हराम कर दिया । उस पर बहुत उल्टा सीधा आरोप लगा कर शोभित के कान भरती रहती थी।सीमा--" मैं मां जी को कितना समझाती रहती हूं कि अच्छे कपड़े पहना करो ,,,थोड़ा अच्छा रखरखाव करा करो,,,,,, आखिर आप एक अधिकारी हैं ।आपसे मिलने वाले लोग आते हैं तो इन्हें देख कर कहते हैं कि उन्होंने एक नौकरानी रखी हुई है। यह हमारी जानबूझकर बदनामी कराती हैं।" शोभित -"तुम ठीक कह रही हो। हमारा भी स्टैंडर्ड है और ये उसको गिराने में लगी हुई हैं।"सीमा तुनक कर बोली-" इससे तो अच्छा है कि ये गांव में जाकर रहे।शोभित को उसकी बात सही लगी और वह अपनी मां के पास आकर बोला--"मां आप गांव में रहो मैं आपका खर्चा भेज दिया करूंगा।"सरस्वती को उसकी बात बहुत खराब लगी ।उसके मन को एक झटका लगा,,,,,, कि उसका बेटा क्या उससे ऐसी बात भी कह सकता है?यह तो उसने कभी सोचा भी नहीं था। न ही उसे ऐसी उम्मीद थी।वह बड़े दुखी स्वर में बोली -"बेटा अगर मेरे रहने से तुम्हारी बदनामी होती है तो मैं गांव में रह लूंगी ,,मैं तुम्हारा खर्चा लेकर क्या करूंगी ,,,,,जब तक मेरे हाथ पैर चलते हैं,,,, मैं कमा लिया करूंगी।"शोभित ने मन में सोचा कि लगता है मां को बुरा लग गया ,,,,लेकिन अगर वह मां को रोकता ,,,तो उसकी पत्नी नाराज हो जाती ,,,,,और वह अपनी पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था ,,,इसीलिए वह खामोश रहा ।सरस्वती अपने गांव चली गई।अचानक एक दिन शोभित बीमार पड़ गया।वह हॉस्पिटल दवा लेने के लिए गया । वहां डॉक्टर ने उसे चेकअप करवाने के लिए कहा। उसने चेकअप करवाया ।जब रिपोर्ट के बारे में डॉक्टर ने उसे बताया उसे सुनकर उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।उसके दोनों गुर्दे खराब थे।बड़े दुखी मन से वह अपने घर आया । इस समय उसके पैर ऐसे लग रहे थे जैसे मन -मन भर के हो गए हों।उसने सीमा को बताया-"सीमा मेरे दोनों गुर्दे खराब हैं .... अब मेरी जिंदगी का अंत समय आ गया है। डॉक्टर ने कहा है अगर तुरंत गुर्दा नहीं बदला गया तो मेरी मौत भी हो सकती है।"फॉलो करें आगे पढ़ें Read Next part on---storioland.blogspot.com https://storioland.blogspot.com/2022/10/short-stories-in-hindi-best-moral-short.html?m=1 Download Our App