Irfaan Rishi ka Addaa - 10 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | इरफ़ान ऋषि का अड्डा - 10

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इरफ़ान ऋषि का अड्डा - 10

आर्यन जब करण से मिलने हॉस्पिटल में आया तब एक डॉक्टर और नर्स उसके पास ही खड़े थे।
आर्यन एक पल के लिए ठिठका, उसने सोचा कि कहीं कोई गंभीर परेशानी तो नहीं है, लेकिन तुरंत ही उसे पता चला कि अब से कुछ ही देर बाद करण को यहां से डिस्चार्ज किया जाने वाला है क्योंकि वह अब पूरी तरह ठीक हो चुका था। उसके पैर की पट्टी भी हटा दी गई थी और अब मात्र एक छोटे से टेप से उसके ठीक होते घाव को ढका गया था।
क्योंकि ये मामला अपराध और पुलिस से जुड़ा हुआ था इसलिए अब डॉक्टर और नर्स कुछ अनौपचारिक बातें करण के साथ करने के लिए वहां रुक गए थे।
आर्यन के आने से करण के चेहरे पर जो खुशी की लहर आई उसे भांप कर डॉक्टर ने समझा कि पेशेंट का कोई आत्मीय परिजन आ गया है इसी से वह आगे बढ़ने लगे। पर जब करण ने उन्हें बताया कि ये उसका वही दोस्त है जो दुर्घटना की रात उससे मिलने आया था और इसी के लगभग सामने करण को गोली लगी थी तो डॉक्टर कुछ देर उससे भी बात करने की गरज से रुक गए। उन्हें ये भी पता चला कि इसी लड़के का अपहरण उन अपराधियों ने कर लिया था जिन्होंने करण पर हमला किया था।
लेकिन अब आर्यन बिल्कुल ठीक था और उस पर भय या निराशा का कोई चिन्ह बाकी नहीं रहा था।
कहा जाता है कि युवावस्था कमल के पत्ते की तरह चिकनी और गदराई हुई होती है। उस पर से सुख, दुख या संकट पानी की बूंद की भांति फिसल कर तुरंत ओझल हो जाते हैं।
एकांत पाते ही आर्यन करण से बातों में मशगूल हो गया।
आर्यन ने करण को याद करके विस्तार से बताया कि आख़िर उस दिन हुआ क्या था। जो कुछ अंधेरे में वो देख पाया था वही करण को बता सका।
- कौन लोग थे? करण ने उसे फिर उकसाया।
- मुझे क्या पता? पता होता तो पुलिस को बता नहीं देता!
- साले, तेरा हाथ पकड़ कर खींचा और तुझे जीप में डाल लिया फ़िर भी तू किसी का चेहरा नहीं देख पाया? याद करने की कोशिश कर, जरा सा भी सुराग मिले तो हरामखोरों को ढूंढ निकालेंगे। करण बोला।
आर्यन ने अपनी हेठी सुनकर तुरंत पलटवार किया। बोला - तू मुझे कह रहा है, तूने कौन सा गोली चलाने वाले को देख लिया? तेरे भी तो सामने आकर मारी होगी उसने!
- अंधेरा था, पीछे से मार जाता या आगे से, दिखा तो नहीं था न।
- फिर, वो ही तो मैं भी बोल रहा हूं, मेरा भी तो अंधेरे में ही पकड़ा था।
- क्या?
- हाथ! आर्यन हंसा।
दोनों की बातें रुक गईं क्योंकि सामने से करण का भाई आता हुआ दिखाई दिया। उसने हॉस्पिटल के काउंटर पर रुपए जमा करवा कर डिस्चार्ज की सब औपचारिकता पूरी कर ली थी। उसके एक हाथ में यहां से मिली दवाओं का पैकेट भी था।
आर्यन की ओर उसने कुछ ऐसे संकोच से देखा कि दोनों हाथ भरे हुए होने से वह आर्यन से हाथ नहीं मिला पा रहा। आर्यन ने उसकी भावना भांप ली और आगे बढ़ कर उसके पैरों की ओर हाथ बढ़ाने का उपक्रम किया। आखिर वह उसके दोस्त का बड़ा भाई था।
कुछ ही देर में वो तीनों निकल कर करण के घर की ओर जा रहे थे।
शाम को करण के घर पर शाहरुख भी आया। वह दो दिन से कहीं बाहर गया हुआ था और अभी दोपहर बाद ही वापस आया था।
उसने करण से पूछा - कुछ पता चला?
- किसका? उन हरामजादों का... पता चलता तो मैं यहां बैठा हुआ होता क्या? जाकर सालों की...
- चिल यार.. ठंड रख। उबाल मत खा। चोट तो पूरी तरह ठीक हो जाने दे तेरी। अभी पट्टी खुली नहीं पूरी तरह और उछलना शुरू। तू चिंता मत कर, अब ये मेरा काम है उनकी..
... तलाश करना। सामने से करण की मां को आते देख शाहरुख ने अपनी बात धीरे से पूरी की।
वो शाहरुख के लिए पानी लेकर आ रही थीं।
- चाय बनाऊं बेटा? उन्होंने शाहरुख और करण दोनों की ही ओर बारी- बारी से देखते हुए पूछा।
जवाब किसी ने नहीं दिया। इसका मतलब ये था कि चाय दोनों को ही पीनी थी।
मां अनुभवी तो थीं ही, रसोई घर की ओर चली गईं।
कुछ देर बाद चाय का प्याला हाथ में पकड़े हुए शाहरुख मां की बात ध्यान से सुन रहा था। वो कह रही थीं - बेटा, तुम लोग संभल कर रहा करो। क्या काम करते हो? बदल लो। बाल - बाल बच गए, हमारी तो ज़िंदगी ही उजड़ जाती ज़रा सी देर में।
शाहरुख और करण जाती हुई मां को देखते ही रह गए। करण बोला - कितनी सीधी है मां, इसे ये भी नहीं मालूम कि हम क्या करते हैं! लेकिन हमने ऐसा कुछ किया भी तो नहीं कि लोग हमारी जान के पीछे पड़ जाएं।
- तू फिक्र मत कर यार। देखता जा, अब हम पीछे पड़ेंगे उनके! शाहरुख बोला।
- किसके? करण को आश्चर्य हुआ।
शाहरुख अचकचा कर चुप हो गया।
लेकिन करण को चैन नहीं पड़ा। वह गहरी नज़र से शाहरुख को देखने लगा। उसे यकीन हो गया कि शाहरुख उससे कुछ छिपा रहा है। ये ज़रूर जानता है कि पंगा लेने वाले ये बदमाश कौन थे।
शाहरुख बोला - ऐसे क्या देख रहा है यार, घूर कर।
करण तनाव भरे चेहरे से उसे घूरते हुए बोला - सच बता यार, तुझे सब पता है न? क्या बात है। क्या हुआ था बोल। देख तुझे अपनी दोस्ती की कसम सच- सच बता...
- पता होता तो मैं यहां बैठा होता क्या? शाहरुख ने कुछ अटकते हुए धीरे से कहा।
करण को और भी क्रोध आ गया, बोला - झूठ मत बोल... बात को टाल मत। तू सब जानता है। बता..
- यार नहीं मालूम..
- हो ही नहीं सकता। तू सब जानता है। अच्छा, ये बता दो दिन से कहां गायब था। क्यों गया था, तुझे ऐसा क्या ज़रूरी काम आ गया जो तू चला गया। साली हमारी तो यहां फटी पड़ी थी और तू ..
शाहरुख ने आगे बढ़ कर करण के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए।
करण बहुत बुरी तरह उत्तेजित हो गया था और उसे ये विश्वास सा होता जा रहा था कि शाहरुख ज़रूर उससे कुछ छिपा रहा है।
शाहरुख कुछ रुका फिर धीरे से बोला - बेटा यकीन कर.. अम्मी की कसम, मैं जानता तो नहीं हूं पर जान लूंगा, सब जान लूंगा। वो पाताल में भी छिपे होंगे न, तो निकाल लाऊंगा... मां की सौगंध!
- ये कैसी पार्टी चल रही है? अकेले- अकेले सौगंध और कसमें खाई जा रही हैं, और हमें पता तक नहीं! कहते हुए आर्यन ने कमरे में प्रवेश किया।