judi rahu jadon se - 9 - Last Part in Hindi Moral Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 9 - अंतिम भाग

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 9 - अंतिम भाग

अम्मी को समझाते और अपनी फिक्र करते अब्बू के भावुक हो जाने पर अम्मी को समझाते हुए शबनम बोली-
"अम्मी आप तो आप बिलाल के मिजाज के बारे में भी जानती हैं और और हमारे मिजाज को भी अच्छी तरह पहचानती हैं। आपको तो पता है हम आपके जैसे बिल्कुल नहीं हैं । चाहकर भी हम किसी की गलत बात को इग्नोर नहीं कर सकते इसी कारण वहाँ पाकिस्तान में अगर किसी ने भूल से भी हमारे सामने हमारे मुल्क के बारे में कुछ कह दिया तो....! नही रह सकेंगे चुप अपने मुल्क़ के खिलाफ़ एक भी लफ़्ज सुनकर।"
कहती हुई शबनम अम्मी से लिपट गई ।
शबनम को माँ से लिपटे देख अमन भी माँ से लिपट गया और बोला - ‘‘ अम्मी आप तो जानती हैं कि आपकी बेटी का नाम देश की जानी पहचानी और तेज तर्रार न्यूज एंकर्स में शुमार है। आप यह मानकर चलिए अगर इसकी शादी बिलाल से हो गई और ये पाकिस्तान चली गई तो इसका करियर तो पूरी तरह चौपट हो जाएगा आप ही सोचिए क्या इसीलिए इतनी ऊँची तालीम दिलाई थी इसे...? "
अमन की बात सुनकर अम्मी के हाव भाव से लग रहा है जैसे वो इस बात को मान तो रहीं हैं पर कुछ कह नहीं पा रही इसलिए अमन फिर बोला -
" अम्मी ना जाने आपके भाईजान कैसे इतने सालों से आपसे दूर रह रहे है। पर हम अपनी गुड़िया से इतना दूर कभी नहीं रह सकते। नहीं भेजना चाहते इसे इतनी दूर। जहाँ इसकी की खैर-खबर लेने जाने के लिए भी बरसों इंतजार करना पड़े।
हम चाहते हैं कि हमारी बहन हमसे बस इतनी दूर हो कि इसकी एक आवाज पर हम इसके पास पहुँच जाएँ।
एक बात और अम्मी...! हम भी किसी भी किसी पाकिस्तानी लड़की से उसकी मर्जी जाने बिना निकाह नहीं करेंगे। हमारे कारण किसी को अपने देश और अपनी भावनाओं की कुर्बानी देनी पड़े हम ऎसा कभी नहीं चाहेंगे । सच कहें तो अब्बा ने हर हाल में आपके और आपके मुल्क के साथ न्याय किया है। मगर हम चाहकर भी अब्बा जैसे नहीं बन सकते। ना चाहते हुए भी अगर हमसे कोई भूल हो जाए तो हम खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाएंगे।"
बच्चों की बातें सुनकर तबस्सुम की आँखों से आँसुओं का झरना बहने लगा। उधर खान साहब भी अपनी आँखें पोछते नजर आए।
अपनी अम्मी को कसकर बाहों में भरते हुए शबनम बोली. है- "अम्मी आपने हमें बोलना सिखाया, आप ही की दी हुई जबान से हमने अपनी अलग पहचान बनाई आप ही ने इन पंखों से उड़ना सिखाया। आज जब हमने उड़ान भरना सीख लिया तो क्या आप हमारे पंखों को बांधकर हमें उड़ने भेजेंगी।
अम्मी हम जितना प्यार आपसे करते है उतना ही अपने वतन से, आपके मुल्क़ में आपकी ये चिड़िया अपनी वतन परस्ती के तराने नहीं गुनगुना पाएगी। अम्मी आपकी बगिया का गुलाब मुरझा जाएगा अपनी बगिया से अलग होकर......! ’’
इसपर रोती हुई शबनम का माथा चूमते हुए कहा तबस्सुम बोली - ‘‘नहीं.... नहीं... हम अपनी चिड़िया को नहीं भेजेंगे खुद से दूर, अभी तो इस परिंदे को खूब ऊँची उड़ान भरनी है। नहीं मुरझाने देंगे अपनी बगिया का गुलाब। सच अभी इसकी महक पूरे गुलिस्तां में बिखरनी बाकी है.. नहीं करेंगे इसे इसकी जड़ों से अलग!’’
समाप्त

सुनीता बिश्नोलिया