judi rahu jadon se - 6 in Hindi Moral Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 6

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 6

अमन भी नहीं चाहता था कि कैरियर के लिए ऊँची उड़ान भरती बहन के पंखों को इतनी जल्दी शादी रूपी बंधन में बांधा जाए।बात देश में शादी की होती तो वो फिर भी सोचता पर यहां तो बहन को की शादी देश से बाहर करने की बात हो रही थी वो भी उस देश में जहाँ बहन की स्वतंत्रता में अवश्य बाधा आएगी। इसीलिए। अम्मी की बात सुनकर अमन भी कुछ कहने हुआ पर उससे पहले शबनम बोल पडी-‘‘ ओ हो अम्मी...
शबनम अम्मी को कुछ कहना चाह रही थी पर अब्बू ने उसे आँखों से चुप रहने का इशारा कर दिया। और खुद शबनम के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले- ‘‘ठीक है जैसा तुम कहो, आने दो बिलाल को बात करते है सबसे पहले पूछूँगा.. वो हिफाजत तो कर सकेगा ना मेरे जिगर के टुकड़े की? "
खान साहब की बात सुनकर जहाँ अम्मी खुश हुई वहीं बच्चे दोनों आश्चर्यचकित थे कि अब्बा ये क्या कह रहे है। तबस्सुम बहुत खुश थी कि -‘‘आखिर खान साहब शबनम की शादी उनके भतीजे से करवाने को राजी हो गए।’’

इस बात से बहुत खुश हुई और बोली- " कल हम फूफी के घर जाएंगे। आप दफ्तर से आते वक्त हमें वहीं से ले आइएगा। सात दिन बचे हैं शादी में अब हम भी फूफी की कुछ मदद करवा दें नहीं तो फूफी कहेंगी एक शहर में होते हुए भी तब्बू मदद के लिए नहीं आई।’’
तबस्सुम के चेहरे पर खुशी देखकर खान साहब बहुत खुश थे। उन्हें पता था कि अपने भतीजे बिलाल से बेटी शबनम की शादी को लेकर तबस्सुम कितनी उत्साहित है। वो सोचने लगे कि मैं उनसे से ये खुशी नहीं छीन सकता अगर वो इस बात में खुश है तो उन्हें खुश ही रहने दें।
पर दूसरी तरफ बेटी और बेटे के मायूस चेहरे उन्हें तबस्सुम से बात करने को मजबूर कर रहे थे।
दोनों भाई-बहन कभी अम्मी-अब्बू की बातों के बीच में नहीं बोलते थे और वो जानते थे अब्बा उनकी अम्मी को दुखी नहीं देख सकते और उन्हें इस बात का भी यकीन था कि अब्बू उनकी मर्जी के बिना उनकी जिंदगी का फैसला भी नहीं करेंगे। इसलिए वो चुपचाप उनकी बातें सुन और देख रहे थे। वो देख रहे थे जैसे उनकी अम्मी को पंख लग गए हों.. वो बोले जा रही हैं -
"पूरे दस सालों के बाद मिलूँगी आपा, भाभीजान और उनके बच्चों से। भाईजान खूब सारी खुबानी भेजेंगे मेरे लिए उन्हें पता है कि उनकी लाड़ली बहन को खुबानी कितनी पसंद है, भाभीजान लाएंगी जरदोजी वर्क वाला सूट... कैसे होंगे सब।
काश! मैं भी जा पाती अबकी बार पाकिस्तान। मेरे इस्लामाबाद, कितनी खेलती थी, भागती थी मैं । कोई रोकने.... टोकने वाला नहीं था।’’
तबस्सुम बिना रुके बोलती जा रही थी और बाकी तीनों चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे। ‘‘ हमारी शबनम बहुत खुश रहेगी वहाँ जाकर। हमारे भाईजान और भाभीजान बहुत प्यार से रखेंगे इसे।"
जैसे-जैसे अम्मी कुछ बोलती है, शबनम की सांसे तेज होने लगती है वो आश्चर्य से मुँह खोल कर अब्बू की तरफ देखकर कहने की कोशिश करती है कि ये क्या हो रहा है आप कुछ बोलते क्यों नहीं ? पर अब्बू चुपचाप तबस्सुम की बातें सुनते हुए हर बात का उत्तर हाँ में दे रहे है।

‘‘अहा! अब तो ज़ीनत भी यही रहेगी, कम से कम उसे देखकर आपा की कमी तो महसूस ना होगी।
कहती हुई अम्मी खुशी से झूम उठी........
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया