Sehra me mai aur tu - 16 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 16

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सेहरा में मैं और तू - 16

दुनिया भर से आए लोगों का ये जमावड़ा देख कर अगली सुबह सबकी तबीयत खिल गई।अलग अलग परिधान, अलग अलग भाषाएं...फिर भी एक राह के राही होने का अहसास!लेकिन यहां आकर कबीर छोटे साहब को और भी मिस कर रहा था। वह वहीं थे, चाहे जब दिखाई भी दे जाते थे पर फिर भी न जाने क्यों कबीर को मन ही मन ऐसा लगता था कि एक बार उसे छोटे साहब से कहीं अकेले में मिलने का मौक़ा मिल जाए। उसके शरीर का पोर पोर जैसे उससे कहता था कि एक बार उनके शरीर को छूना ज़रूरी है।
कबीर का मन किसी बात में नहीं लगता था। रोहन और दूसरे लड़के थे कि चहकते हुए नए नए लोगों की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाते, उनसे नई नई जानकारी हासिल करते और संपर्क बढ़ाने के लिए पतों का आदान प्रदान करते। लेकिन कबीर अपने में ही खोया हुआ था।उसे शिद्दत से ऐसा लगता था कि एक बार कुछ तो ऐसा हो कि छोटे साहब उससे अकेले में मिलें।लेकिन कहां? कैसे? क्यों?
अंतरराष्ट्रीय स्तर की उस स्पर्धा में दिलों को मिलाने का तो कोई एजेंडा नहीं था। पर कहते हैं कि जहां चाह वहां राह!कबीर की ख्वाहिश का बर्फीला पहाड़ भी आख़िर पिघला।
रात को उदघाटन समारोह खत्म होने के बाद शानदार डिनर में शिरकत करके खिलाड़ी अपने अपने कमरों में लौट आए। कबीर कुछ अनमना सा कपड़े बदलने लगा।लेकिन कबीर ने नोटिस किया कि रोहन अपने कपड़े नहीं बदल रहा है बल्कि उसने तो अपने स्पोर्ट्स शूज़ के लेस को एक बार खोल कर करीने से दोबारा बांधा और आइने के सामने खड़ा होकर अपने बालों को ब्रश से संवारने लगा।कबीर आश्चर्य से उसे देखता रहा।कबीर को लगा कि जैसे रोहन उससे कुछ कहना चाह रहा है पर या तो किसी उलझन में है या फिर तौल रहा है कि बात कैसे शुरू की जाए।
कबीर की हैरानी बदस्तूर जारी रही। वह कपड़े उतार चुका था और अब केवल एक छोटा सा ब्रीफ पहने सोने की तैयारी कर रहा था। उसने पास ही मेज़ पर रखे जग से पानी लेकर पिया और वाशरूम जाने के लिए पैर में स्लीपर डालने लगा।
तभी सहसा रोहन पलट कर उसके क़रीब आया और अपना मुंह उसके कान के पास लाकर धीरे से बोला - "क्या बॉस, सोने में वक्त गंवाने की तैयारी है क्या?"
कबीर को अचंभा हुआ। कुछ अचकचा कर बोला - "तो अब रात के बारह बजे कौन सा पहाड़ खोदने चलना है?"
रोहन हंसा। फिर बोला - "बॉस, तुम चाहे जो कहो, पर मैं तो इस रात को बेकार गंवाने वाला नहीं!
कबीर ने समझा कि ज़रूर रोहन ने आसपास किसी से कोई सेटिंग कर ली है और वो किसी जोखिम भरे इरादे में है। शरारती!दिन भर यहां की चहल- पहल में ढेरों लोग मिले। लड़के भी, लड़कियां भी, बूढ़े भी, युवा भी...न जाने किसकी गिरफ्त में आ गया रोहन!
कबीर कुछ न बोला।
रोहन ने कुछ पल कबीर के वाशरूम से लौट कर आने का इंतज़ार किया और बिस्तर के समीप रखी कुर्सी पर बैठा अपने हाथ के रूमाल को घुमाता रहा।
कबीर ने बाहर आते ही कुछ तल्ख आवाज़ में कहा - "कहां जा रहा है? किसी लफड़े में मत पड़!'
रोहन एकाएक सीरियस हो गया और संजीदगी से कबीर के पास आकर उसके गले में बांहे डाल कर बोला - "यार, मुझे एक रिपोर्टर मिली थी।"
"कहां? कैसे? तेरी उससे बात कैसे हुई?"
" फंक्शन में ही। सच विश्वास कर हम दोनों खाने के बाद आइसक्रीम का कप फेंकने के लिए कौने में डस्टबिन ढूंढते हुए घूम रहे थे तभी उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।"
कबीर हंसा। धीरे से बोला - "बस हाथ ही पकड़ा?"
रोहन कुछ उतावला होकर बोला - "मज़ाक मत कर। मैं सच कह रहा हूं। मेरी उससे थोड़ी सी देर बात भी हुई। वह एक नई बात कह रही थी। मुझे ये तो पता नहीं चला कि वो कौन से देश की है मगर वो भी अपनी तरह टूटी- फूटी अंग्रेज़ी ही बोल रही थी। मुझे तो लगता है कि इंडिया के आसपास के ही किसी देश की होगी। थोड़ी थोड़ी हिंदी भी समझ पा रही थी।"
कबीर कुछ उकता कर बोला - "आगे तो बता, क्या उसने तुझे बारात लेकर आने का न्यौता दे दिया?"
रोहन हत्थे से ही उखड़ गया। कुछ नाराज़गी जताते हुए बोला -" तू तो समझता ही नहीं है यार, अपनी धुन में ही रहता है, जा सो जा..."
रोहन को इस तरह नाराज़ होते देख कबीर ने पैंतरा बदला। एकदम से उसे अपने से चिपटाते हुआ बोला - "गुस्सा मत हो, बता क्या कह रही थी?"