Sehra me mai aur tu - 14 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 14

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सेहरा में मैं और तू - 14

एयरपोर्ट पर पहुंचते ही जब एक बड़े से कांच में कबीर ने अपना चेहरा देखा तो उसे कुछ अजीब सा लगा था। सुबह अकादमी परिसर से निकलते समय लड़कों ने जो शानदार विदाई दी थी उसके चिन्ह चेहरे पर अब भी दिखाई दे रहे थे। फूलों की माला तो रास्ते में ही गले से उतार कर उन तीनों ने ही रास्ते में एक ठेले पर फल बेचने वाले लड़के को दे दी थी पर माथे पर बड़ा सा तिलक कबीर के माथे पर अब भी लगा हुआ था। बल्कि हाथ लगने से कुछ और फैल कर पूरे माथे पर छिटक गया था।
शायद रोहन और छोटे साहब जब हवाई अड्डे में दाखिल होते ही वाशरूम गए थे तभी उसे पानी से अच्छी तरह धो आए थे। कबीर क्योंकि भीतर नहीं गया था इसलिए उसका तिलक अब तक माथे पर लग रहा था। उसने जेब से रुमाल निकाला और माथे को साफ़ करने लगा।
चैक इन कर देने के बाद अब समान विमान में चला गया था इसलिए तीनों ही कुछ हल्का हल्का सा महसूस कर रहे थे। अब उनका ध्यान साथ के उन लोगों पर भी गया जो इसी प्रतियोगिता के लिए उनके साथ जा रहे थे। उनमें एक खिलाड़ी और एक अधिकारी थे। खिलाड़ी से उनका परिचय पहले भी प्रशिक्षण शिविर में हो चुका था। ये उसी बड़े शहर का कॉलेज में पढ़ने वाला एक छात्र था जो एक अन्य स्थानीय क्लब का सदस्य था।
पांच सदस्यों का ये दल जब सिक्योरिटी चैक के लिए आगे बढ़ा तो कबीर और रोहन को ये देख कर भारी आश्चर्य हुआ कि यहां उन्हें घड़ी, फोन, बेल्ट, पर्स ही नहीं बल्कि हाथ में पहना हुआ स्टील का कड़ा तक उतारना पड़ा।
लेकिन जब उन्होंने देखा कि वहां खड़े हर शख्स की ही तलाशी ली जा रही है तब उन्हें भी ये अहसास हुआ कि यहां केवल उन्हें ही अपराधी नहीं समझा जा रहा बल्कि यह सभी की जांच की एक सामान्य प्रक्रिया है।
रोहन को अपने बैग में लगे ताले की चाबी हमेशा गले में पड़े काले धागे या फिर लोअर के नाड़े में बांध कर रखने की आदत थी लेकिन यहां उसे वो भी निकाल कर बाहर रखनी पड़ी। मानो इसमें भी कोई खतरनाक हथियार छिपा हुआ हो सकता हो।
आधुनिकता के साथ - साथ तकनीक के इस भारी भरकम बोझ ने सभी यात्रियों को बेवजह व्यस्त कर रखा था।
ये बात नहीं थी कि सुरक्षा चक्र की यह प्रक्रिया कोई अकारण तंग करने की कोशिश हो, किंतु कभी कभी मन में ये ख्याल सभी को आता था कि हज़ारों लोगों में चोरी अपराध या गैर कानूनी काम करने की लत किसी एक व्यक्ति को होती है किंतु उसके कारण औपचारिकताओं का यह बोझ सबको ढोना पड़ता है।
सुरक्षा जांच के बाद जब यह दल एयरपोर्ट के भीतरी हिस्से में जाकर बैठा तो वहां की साज सज्जा और चकाचौंध देख कर दंग रह गया। लड़के तो यही देख कर हैरान थे कि अगर हमारा देश ही यहां इतना खूबसूरत और संपन्न दिख रहा है तो विदेश की धरती कैसी होगी। सामने बड़े विशालकाय जहाजों की आवाजाही देख कर तो लड़कों ने दांतों तले अंगुली ही दबा ली।
कुछ समय बाद उनका जहाज भी लगा और किसी स्वर्ग यात्रा के अचंभित यात्रियों की भांति ये युवक दल विमान में दाखिल हुआ।
एक एयरहोस्टेस के अपने चेहरे को हल्की सी जुंबिश देकर अभिवादन करने के प्रत्युत्तर में रोहन तो आंखें फाड़े उसे देखता ही रह गया किंतु कबीर ने दोनों हाथ जोड़ कर उसे नमस्कार किया।
अपनी अपनी सीट तलाश कर के वो सभी यथास्थान बैठ गए। रोहन ये देख कर बेहद प्रफुल्लित था कि उसे खिड़की के पास वाली सीट मिली थी जिसमें से बाहर का तमाम नज़ारा साफ़ दिखाई दे रहा था।
छोटे साहब ने एक मुस्कुराती हुई निगाह कबीर पर फेंकी जो शांति से इधर- उधर देख कर वातावरण को समझने की चेष्टा कर रहा था।
रोहन और कबीर एक बार कुछ घबराए जब व्योम बाला ने प्लेन में सुरक्षा के उपायों के बारे में समझाना शुरू किया। किंतु जल्दी ही दोनों सहज हो गए जब उन्होंने देखा कि वास्तव में कोई खतरा नहीं है बल्कि भविष्य के किसी संभावित खतरे की बात हो रही है।प्लेन ने उड़ान भरी तो जैसे उन्हें देश छोड़ने का अहसास हुआ।