छी छी छी...इतना तंदुरुस्त पौने छः फिट का जवान मर्द और इस तरह रोना?? वो भी प्रशिक्षक होकर।
रात को किसी तरह छिप- छिपा कर चमड़ी के रोग के कारण अकेला अपने कमरे में रह रहा वह ट्रेनी लड़का जब छोटे साहब के कमरे में पहुंचा तो उसे साहब को इस तरह रोते देख कर भारी हैरानी हुई।
आज उसमें गज़ब की हिम्मत आ गई। आज उसे इस बात का डर भी नहीं लगा कि अगर अभी दूसरे ट्रेनर साहब राउंड पर आ गए तो इतनी रात को उसे यहां देख कर क्या सोचेंगे? हो सकता है कि उसे ट्रेनिंग से ही निकाल दें। उसे फिर से पहले की तरह जंगल - जंगल भटकना पड़े। वह पहले भी तो उस पर संदेह कर चुके हैं।
उसने सोचा कि आज चाहे जो भी हो जाए वह अपने छोटे साहब से उनके इस तरह रोने का कारण ज़रूर पूछेगा।
वह साहब से कई बार इसी तरह छिप- छिप कर मिलने आता था। वह नहीं जानता था कि उसे साहब से इतना लगाव क्यों है? उसने आज से पहले भी कई बार छोटे साहब को उदास और अपने आप में खोए हुए देखा था, मगर इस बुरी तरह फूट- फूट कर रोते हुए तो वह उन्हें पहली बार ही देख रहा था।
वह जानता था कि उसके कुछ दोस्तों को उसके साहब से इस तरह छिप छिप कर मिलने की बात मालूम थी। वो कई बार दबी जुबान से घुमा फिरा कर पूछ भी चुके थे। लेकिन वह हमेशा ही इस बात को टाल जाता था। कह देता था कि साहब मुझे अच्छे लगते हैं बस।
लड़के चुप हो जाते थे। कभी- कभी कोई दोस्त अकेले में जिस तरह मुस्करा कर उससे पूछता था, उसे बताने में भी बड़ा संकोच होता था, मगर वह न जाने किस मिट्टी का बना था कि साहब से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। उसने कैसे- कैसे जोखिम उठाए थे साहब के लिए। साहब भी जैसे उससे मिलने के लिए छटपटाते थे। वह जैसे ही आता सब भूल कर उससे लिपट जाते। न जाने कैसा रिश्ता था।
वह अच्छी तरह जानता था कि उसके साथी लोग उसे उसके असली नाम कबीर से न पुकार कर "ब्लैक होल" कहते हैं। लड़कों को शक था कि उसके गाल पर अक्सर दिखाई देने वाले काले दाग़ कोई रोग नहीं हैं बल्कि छोटे साहब के ही बनाए हुए हैं। कई बार तो निशानों के बीच साहब के दांतों के निशान तक साफ़ दिख जाते थे। पर दूर से किसी को कुछ पता नहीं चलता था। जो लड़के जानते थे वही समझ पाते थे कि कबीर आज फिर छोटे साहब से अकेले में मिला है। उन्होंने तो थक कर कबीर का नाम ही ब्लैक होल रख छोड़ा था। साहब से तो कोई कुछ कह नहीं पाता था। उसी को छेड़ते थे।
छोटे साहब ने उठ कर कमरा भीतर से बंद कर लिया था। रात के पौने तीन बजने जा रहे थे।
आज साहब ने कबीर को अपनी सारी कहानी सुना ही डाली। वास्तव में तो साहब इस बात से परेशान थे कि उनकी पत्नी इतने साल बाद अपने मां बाप सहित उनसे मिलने चली आई थी। हकीकत यह थी कि छोटे साहब शुरू से ही अपने को अपनी पत्नी के काबिल समझते ही नहीं थे, बाल विवाह का नाटक तो एक बहाना था। उन्होंने इसलिए उसे छोड़ भी रखा था।
आज छोटे साहब अपनी निर्दोष पत्नी का सामना नहीं कर पाए और उल्टे उसी पर दोषारोपण करके अपना बचाव करते रहे। यही बात उन्हें अब बुरी तरह कचोट रही थी। और अपने प्रेमी की सहानुभूति मिलते ही उनकी रुलाई फूट पड़ी। साहब ने अकारण अपने श्वसुर को भी न जाने क्या क्या कह डाला था जबकि उनका कोई दोष नहीं था।
उन्होंने भरे गले से कबीर को सारी दास्तान सुनाई और ये भी कहा कि वो स्वयं कोई अच्छा सा लड़का देख कर अपनी पत्नी का घर बसा देना चाहते हैं। उन्हें अपनी निर्दोष पत्नी पर बहुत दया आती है और पश्चाताप भी होता है।
कबीर उनके सीने पर हाथ रख कर उनकी कहानी में न जाने कब तक खोया रहा।
- "यहीं सो जा आज"...जैसे ही उन्होंने कहा कबीर को अहसास हुआ कि बहुत देर हो चुकी है, अब कभी भी सुबह की जाग होने वाली है। वह झटपट उठ कर भागा।