Sehra me mai aur tu - 6 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 6

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सेहरा में मैं और तू - 6

ऐसा लगता था जैसे वहां परिसर में रहने वाले सभी लोग इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। रसोई में काम करते हुए लड़के भी सलाद के लिए खीरा और टमाटर काटते हुए चाकू से ऐसा निशाना साधने की कोशिश करते थे मानो उन्हें भी बेहतर चाकू चलाने के पॉइंट्स मिलने वाले हैं।

उधर सुबह मैदान में हर लड़का जैसे धनुर्धर अर्जुन ही बन जाता था। दिखाई देती थी तो केवल मछली की आंख। और कुछ नहीं। सबका ध्यान केवल निशाना साधने में सिमट गया था।

लेकिन आज दोपहर को एक मज़ेदार घटना घटी। मैस वाला लड़का बड़े साहब को उनके कमरे पर चाय देकर लौट रहा था कि ठिठक गया। उसने देखा कि कौने वाले बाथरूम में कुछ हलचल सी है। इस समय कौन होगा, यह सोचता हुआ वह उधर से गुज़रा तो दंग रह गया। लौट कर उसने अपने साथी को बताया कि कौने वाले बाथरूम में कोई दो लोग एक साथ नहा रहे हैं। दरवाज़ा बंद है। दूसरा लड़का भौंचक्का होकर उसकी शक्ल देखने लगा। मानो पूछ रहा हो कि ये कोई नहाने का टाइम है?

"क्या पता, पर मैंने ख़ुद देखा है, भीतर दो लोग एक साथ बंद हैं।"

"कौन है?"

"वो नहीं मालूम, पर जब मैं उधर से निकला तो मैंने एक लड़के को उसमें घुसते हुए देखा। लड़के के सिर पर टॉवल पड़ा था मैं देख नहीं पाया।"

"फिर क्या, कोई गया होगा नहाने। सुबह नहा नहीं सका होगा।" लड़के ने लापरवाही से कहा।

"नहीं यार, जब वो घुसा तो वहां पहले से कोई भीतर भी था। मैंने उसका हाथ देखा था।" लड़का अपनी बात पर अडिग रहा।

लड़का ज़ोर से हंसा। फिर बोला - तू तेरी ये जासूसी करना छोड़ दे। यहां कोई औरत या लड़की कभी घुस भी नहीं सकती है। पता है बड़ा साहब तो धोबन को भी आने नहीं देता, एक दिन उसके बाउजी से कड़क होकर बोला था कि इधर कपड़े लेने- देने केवल तुम आओगे, और कोई नहीं।

लड़का कुछ सकपकाया फिर बोला -" मैं ये नहीं बोलता कि भीतर कोई लड़की आई होगी पर कोई तो था वहां। बस!"

" ये भी तो हो सकता है कि कोई लड़का किसी को कुछ दवा लगाने या मसाज देने गया हो? सारा दिन उछल कूद मचाते हैं, लगा होगा कुछ! लड़का कुछ सोच कर फिर से बोला - याद है तुझे, उस दिन नाश्ते में मिर्चीबड़ा बना था तब एक लड़का क्या बोला था?"

"क्या बोला था?"

" बोला, यार तुम डबल स्वाद का नाश्ता क्यों बनाते हो? इसका स्वाद दो बार आता है, एक अभी आयेगा दूसरा कल सुबह दोबारा आयेगा।" कह कर लड़का ज़ोर से हंसने लगा।

फिर बोला -" ये भी तो हो सकता है कि कोई लड़का अपने पिछवाड़े पर दवा लगवाता हो?"

बात अधूरी रह गई क्योंकि मैस में लड़कों ने खाने के लिए आना शुरू कर दिया था। दोनों मुस्तैदी से काम में जुट गए। जैसे जैसे प्रतियोगिता के लिए चयन का समय नज़दीक आता जा रहा था लड़कों का जोश बढ़ता जा रहा था। अब तक लड़के बहुत सारी नई नई बातें भी सीख गए थे। सलीके से कपड़े पहनना, बात बात में थैंक्स और सॉरी कहना उनकी आदत में आ गया था। टेबल पर खाना खाते समय भी संजीदा से हो गए थे। देखते देखते उन देहाती और वनवासी लड़कों का काया पलट होने लगा था।

खाली समय में जब घूमते तो बदन पर नए रंग- बिरंगे कपड़े भी रहते। या तो क्लीन शेव या फिर करीने से संवारी गई दाढ़ियां। कई लड़कों के तो अभी दाढ़ी मूंछ आई भी नहीं थी, वो बालों की साज संभाल में ही व्यस्त रहते।

लेकिन जब अभ्यास के समय मैदान पर आते तो किसी दुर्घर्ष योद्धा की भांति पूरी ताकत से अपना शरीर झौंक देते। एक से बढ़ कर एक।