Sehra me mai aur tu - 4 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 4

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सेहरा में मैं और तू - 4

( 4 )

हल्की - हल्की धूप सिर पर चढ़ आई थी। मैस वाला लड़का बार बार पहाड़ी की तरफ़ देखता फिर सेब के रस के बर्तन को देखता। वह अब इंतजार करते करते ऊब सा गया था। उसने बचे हुए सेब के रस को एक जग में डाल कर ढक दिया था और वहां से समान समेटने की तैयारी में था।

सुबह के अभ्यास के बाद रसोई में काम करने वाले ये दोनों लड़के मैदान के इस कोने में चले आते थे। यहां रोज़ कोई न कोई जूस सभी शिविरार्थियों को दिया जाता था। मेहनत से थके हुए जवान लड़के गिलास भर भर कर जूस पीते। फिर अपने कमरों की ओर दौड़ जाते थे अपनी दैनिक दिनचर्या के लिए।

लेकिन कभी- कभी कोई लड़के इधर- उधर घूमने चले जाते और फिर आसपास से टहलते हुए धीरे- धीरे वापस लौट कर आते तो मैस वाले लड़कों को रुक कर उनका इंतजार करना पड़ता था। जब तक सभी लड़के न आ जाएं तब तक उनकी ड्यूटी पूरी नहीं होती थी। इससे वो कभी- कभी तो लड़कों को गिनते रहते थे और गिनती पूरी होने पर ही अपना सामान वापस समेट कर लौटते।

एक भी जवान अगर जूस पीने से चूक जाता तो उन्हें डांट पड़ती थी। इसलिए बेचारे गिनती करते हुए खड़े रहते। ज्यादा काम होने पर उन दोनों में से कोई एक लौट जाता और दूसरा वहीं रुकता। वहां रसोई में भी तो खाने- नाश्ते का ढेर काम फैला पड़ा हुआ होता था जो उन्हें संभालना पड़ता था।

आज तो हद ही हो गई। दो लोग बहुत देर से आए। एक तो वही लड़का था जिसे कुछ दिन पहले चमड़ी का रोग हुआ है कह कर उसका कमरा बदलवाया गया था और दूसरे उसके साथ ट्रेनर साहब थे।

लड़का छोटे साहब को देख कर चौंका और कुछ बोलते बोलते रुक गया। लड़कों को तो ये वर्कर लोग फिर भी हंसी मज़ाक में कुछ कह भी लेते थे मगर साहब के सामने कौन बोलता। ये साहब उम्र में छोटा था तो क्या, था तो लड़कों को सिखाने वाला प्रशिक्षक ही।

मैस वाला लड़का दूर से दोनों को आते देख कर वापस उनका जूस टेबल पर रखने लगा था।

लेकिन ये क्या? लड़का कुछ झेंप सा गया।

घुमावदार रास्ते से आते समय पेड़ के पीछे से मैस वाले लड़के ने साफ़ देखा कि साहब ने उनके साथ चल रहे लड़के का हाथ पकड़ रखा था।

उसे कुछ अजीब सा लगा। यहां तो हमेशा लड़कों से डांट फटकार ही चलती रहती थी। साहब लोग लड़कों को घोड़ों की तरह दौड़ाते थे पर आज पहली बार उसने देखा कि साहब ने लड़के की हथेली को अपने हाथों में लेकर थाम रखा है।

नज़दीक आते ही लड़के ने अपनी नज़र उस तरफ़ से हटा ली मानो अगर उसने ट्रेनर साहब को लड़के की हथेली सहलाते हुए देख लिया तो यह उसी का दोष होगा। दोनों चल भी तो कितना सट कर रहे थे, जैसे दोनों कॉलेज के फ्रेंड्स हों। उम्र का अंतर ज़्यादा नहीं भी हो तो क्या, कम से कम ये अंतर तो था ही न, कि एक सीखने वाला था तो दूसरा सिखाने वाला। जैसे टीचर और स्टूडेंट।

टीचर कोई स्टूडेंट का हाथ पकड़ कर बैठता है क्या?

जाने दो, उसे क्या करना। उसे तो अपनी ड्यूटी पूरी करनी थी। उसने झटपट दोनों का जूस गिलासों में डाल दिया। और बाकी सामान, बर्तन आदि समेटने लगा।

साहब चुपचाप जूस पीने लगा। वो इधर उधर देख भी रहा था कि सब लोग जा चुके हैं। शायद उन्हें कुछ ज़्यादा ही देर हो गई थी।

पर लड़का जूस पीते पीते अपने आप जैसे सफ़ाई देता हुआ बोला - आज हम सामने वाली पहाड़ी के मंदिर तक चले गए थे। इसी से देर हो गई।

मैस वाला लड़का कुछ न बोला।

दोनों के जाने के बाद वह भी चला गया। शायद उसके पेट में भी अपने साथी को सुनाने के लिए कोई खिचड़ी पकने लगी।