Sehra me mai aur tu - 3 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 3

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सेहरा में मैं और तू - 3

पुरानी बातों का कोई भी अस्तित्व चिन्ह अब यहां नहीं था। अब न राजमाता जीवित थीं और न ही उनके उस छोटे सुपुत्र के बारे में कोई ये जानता था कि वो अपनी वृद्धावस्था कहां और किस अवस्था में रह कर गुजार रहा है।

अब तो एक से बढ़ कर एक इन उत्साही खिलाड़ी नौजवानों का दिन हर रोज़ सूरज के साथ ही यहां उगता था और दिन भर उमंगों से लबरेज़ रहता था। ये सभी युवक यहां निशाने बाज़ी का प्रशिक्षण ले रहे थे। इन्हें देश विदेश की छोटी बड़ी स्पर्धाओं के लिए तैयार किया जाता था। एक अलग ही दुनिया थी, अलमस्त!

छोटी उम्र के लड़के एक कमरे में तीन - तीन के समूह में एकसाथ रखे गए थे। कुछ बड़े युवक एक कमरे में दो थे और अठारह साल से बड़ी आयु के खिलाड़ियों को यहां अलग- अलग कमरा दिया गया था। तल मंज़िल के कक्षों में प्रशिक्षक थे जिनमें पिछवाड़े की ओर बने कुछ खुले- खुले पोर्शन में मुख्य प्रशिक्षक का आवास था।

उस दिन तीसरे पहर को पीछे की दीवार पर पैर लटकाकर लहसुन छील रहे मैस के दोनों लड़के आपस में हंसी मज़ाक करते हुए काम कर रहे थे कि उन्होंने एक कमरे में कोई आवाज़ सुनी।

- अरे, ये आवाज़ कैसी? कौन है वहां! ये तो सभी का ट्रेनिंग के लिए मैदान में होने का समय था। इस समय कमरे में कौन है, और क्या कर रहा है? एक लड़का कूद कर देखने के लिए बरामदे में आया।

वहां पता लगा कि शिविर में शामिल एक लड़का अपने बिस्तर को समेट कर पास के दूसरे कमरे में रख रहा है। पूछने पर उसने बताया कि उसके पार्टनर को चमड़ी का कोई रोग होने से अलग कमरे में रहने को कहा गया था।

याद आया, मैस वाले लड़के ने बताया कि सुबह जब शायद वही लड़का टेबल पर बैठा दूध पी रहा था तब उसके कान के पास गाल पर कुछ काले से निशान उसे भी दिखाई दिए थे।

लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अरे जब राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी बनने के लिए ये सभी युवक वहां दिन रात जी तोड़ मेहनत कर रहे थे तब ऐसी छोटी मोटी बातों पर ध्यान देता भी कौन? रोज़ गिरते पड़ते थे, रोज़ तरह तरह की चोट लगती थी, ठीक हो जाती थी। कौन ध्यान देता?

वहां तो सभी का ध्यान केवल इस बात पर जाता था कि अब अगली किस स्पर्धा में जाने का मौक़ा इनमें से किसे मिलता है और कौन कहां से सोना चांदी या कांसा जीत कर लाता है।

बिजली के करेंट की तरह दौड़ती थी उन सबकी जिंदगी।

बात आई गई हो गई।

गर्मी की रात को बारादरी के छज्जे पर सोए हुए मैस वाले एक लड़के की नींद खुल गई। नहीं नहीं, प्यास नहीं लगी थी उसे। वह तो जागा था उस आहट से जो उसने अभी अभी सुनी।

उसे दिखाई दिया कि पीछे बरामदे में से निकल कर एक साया गैलरी में चला गया।

होगा कोई! उसे क्या? यहां कौन सा खतरा था? यहां न तो महिलाएं रहती थीं और न ही बच्चे। न ही किसी का कोई कीमती सामान रहता था! यहां न चोरी- चकारी का डर था और न ही कोई और अनहोनी घटने की आशंका।

यहां तो एक से बढ़ कर एक कद्दावर मर्द पड़े थे हर कमरे में। कोई चोर उठाई गीरा तो उनका नाम ही सुनकर यहां घुसने की हिम्मत न करे।

लड़का करवट बदल कर वापस सो गया।

लेकिन सवेरे जब उसने मैस में गरम पानी करते हुए अपने साथ के दूसरे लड़के को हंसते हुए देखा तो वो मुंह पर सवालिया निशान लिए हुए उसके पास चला आया। लड़का अपने होठों में अपनी हंसी को दबाते हुए उसे बताने लगा कि छोटा साहब अभी कुल्ला करते हुए एक लड़के को डांट रहा था।

साहब बोलता था कि रात को जब साहब राउंड पर आया तब वो कमरे में नहीं था।

लड़का बार बार एक ही बात बोलता था कि वो वहीं था, साहब से देखने में कोई चूक हुई होगी।

"झूठ मत बोलो। मैंने लौटते समय खुद तुम्हें दूसरे कमरे से निकलते हुए देखा। क्या करने गए थे तुम?

साहब ने इतना कड़क होकर पूछा कि मैस वाले लड़के की हंसी छूट गई और वो भाग कर वहां आया।

"जाने दे रे, अपने को क्या करना"...कह कर लड़का दूध गरम करने लगा। वह बुदबुदाया - गया होगा कहीं पानी पेशाब को!

नहीं रे, साहब बोलता था कि उन्होंने वहां छिप कर देखा, लड़का दूसरे कमरे में से ही निकल कर आया था।

" किसका कमरा था?"

"दूसरे साहब का! कह कर लड़का फ़िर हंसा।

" फ़िर क्या हुआ, साहब ने बुलाया होगा किसी काम से!

،"रात को तीन बजे??? अंधेरे में!