Sehra me mai aur tu - 2 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सेहरा में मैं और तू - 2

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सेहरा में मैं और तू - 2


ये उन दिनों की बात थी जब राजमाता जीवित थीं। इतना ही नहीं, बल्कि तब तक महाराज साहब ने भी इस दुनिया से कूच नहीं किया था और राजमाता तब महारानी कहलाती थीं। क्या शान थी, क्या दिन थे।

उन्हीं दिनों कोलंबिया के एक क्लब ने एक इंटरनेशनल स्पर्धा का आयोजन किया। उसमें भाग लेने के लिए महारानी ने अपने छोटे बेटे को भेजने की व्यवस्था कर दी। खेल आयोजन निजी तौर पर था इसलिए कहीं से चयन आदि की कोई सरकारी औपचारिकता पूरी करने की ज़रूरत नहीं थी फ़िर भी महारानी ने केवल अपने पति की जानकारी में लाकर बेटे को विदेश भेजने के तमाम बंदोबस्त करवा लिए और बिना किसी शोर शराबे के गुपचुप तरीके से राजकुमार ने जाकर प्रतियोगिता में भाग भी ले लिया और अपने ही दम पर उसे जीत भी लिया।

महल में थोड़ी चहल पहल केवल तब हुई जब सोलह वर्षीय राजकुमार ने अपनी मां को चमचमाता हुआ वह कप अपने सामान में से निकाल कर दिखाया जिसे वह प्रतियोगिता में प्रथम आकर जीत के लाया था। दोस्तों में जश्न मना और राजमहल से प्रेस के लिए विज्ञप्ति जारी हो जाने के कारण शहर के कुछ उच्च हलकों में राजकुमार की उपलब्धि की चर्चा भी हुई। लेकिन तभी एक दिन अचानक वो वज्रपात हुआ।

ख़बर आई कि राजकुमार की जीत को रद्द कर दिया गया है और उन्हें मिला पुरस्कार वापस लेने का निर्णय आयोजन समिति ने किया है।

ख़बर को सबसे छिपा कर गुपचुप तरीके से रखने की कोशिश की गई और वह चमचमाता हुआ कप वापस भेजने की हृदय विदारक व्यवस्था की गई क्योंकि अब इसे दूसरे नंबर पर रहे खिलाड़ी को विजेता के रूप में दिया जाना था।

इस वज्रपात का कारण जब महारानी को पता चला तो मानो उनके पांवों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। उन पर घड़ों पानी पड़ गया। राजकुमार तो ये खबर सुनते ही अवसाद में चले गए और उन्होंने अपने आप को महल के अपने कक्ष में बंद ही कर लिया। वो न किसी से बोलते चालते थे और न ही ठीक से खाते पीते ही थे। न जाने उन्हें क्या हो गया था।

केवल महारानी जानती थीं कि क्या हुआ है? पूरी तरह गोपनीय रखे गए पत्र ने उन्हें जैसे सब कुछ बता दिया था। वो सोच भी नहीं सकती थीं कि उनकी दुनिया इस तरह भी उजड़ सकती है। बेटे की तो जैसे ज़िंदगी ही बर्बाद हो गई थी।

दरअसल बाहर से आए पत्र से ये खुलासा हुआ था कि कोलंबिया में प्रतियोगिता के दौरान उनके लाड़ले बेटे, राजकुमार के एक मैच रैफरी के साथ समलैंगिक संबंध बन गए थे, जिसकी शिकायत अन्य खिलाड़ियों द्वारा आयोजकों को दर्ज़ कराई गई थी। इस "अपराध" के कारण रैफरी और खिलाड़ी दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और परिणाम को रद्द कर दिया गया था। यह भी आरोप था कि रैफरी और खिलाड़ी के बीच इस तरह के रिश्ते के कारण खेल में उसके निर्णय भी प्रभावित हुए जिसकी पुष्टि जांच समिति ने की थी। उन दिनों इस प्रकार के गैर नैसर्गिक संबंधों को घोर अपराध की श्रेणी में रखा जाता था और कई देशों में तो इसमें कैद व अन्य कई दांडिक प्रावधान थे।

महारानी बेटे के सिर पर हाथ फेर कर उसे दिलासा देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकीं। अपने बेटे को लेकर उनकी दुनिया ही बदल गई। बेटा खेल के साथ साथ सार्वजनिक जीवन से ही हमेशा के लिए दूर हो गया। उसका व्यक्तित्व हमेशा के लिए दब कर रह गया। इस घटना ने लगभग आधी सदी की गर्द सहने के बाद भी सिसकना नहीं छोड़ा था। अब ये सब इतिहास था।