अपने देश और अपनों की याद में आज भी छुप-छुपकर आँसू बहाने वाली तबस्सुम देश से आने वाली चिट्ठी को पढ़कर ऐसे रोमांचित हो जाती है जैसे सोलह साल की लड़की पहली बार प्रेम- पत्र पढ़कर रोमांचित होती है।
जब अपने देश पाकिस्तान से किसी के आने की बात सुनती है तो जैसे पंखों में नई स्फूर्ति और नई जान ही आ जाती है और वो गौरया सी फुदकने लगती है इधर-उधर, गाने लगती है अपने देश के मीठे गीत।
पर जबसे इस शहर में आई है इतने बड़े बंगले की मालकिन होने पर भी खुद को अकेली सी महसूस करती है जबकि ससुराल के छोटे से घर में कभी खुद को देश से दूर नहीं समझा ना ही वहाँ पर उसने खुद को कभी अकेला ही महसूस किया।
बच्चे भी बड़े हो गए, बेटा अमन अब्बू की तरह बड़ा सी.ए. बन गया और बेटी शबनम देश के बडे़ न्यूज चैनल में समाचार वाचिका इसलिए अब वो जल्दी ही इन दोनों का घर बसाना चाहती है। दोनों बच्चों के साथ ही खान साहब भी उनकी इतनी जल्दी शादी करने को तैयार नहीं।
तबस्सुम शहर में आने के बाद बात-बात में खुद को बेचारा और अकेला दिखाती है। इस कारण बच्चे और खान साहब ना ही तो उनसे कभी जोर से बोलते हैं और ना ही उनकी किसी बात को मानने से इंकार करते हैं।
आज भी अम्मी इसीलिए गुस्सा है कि उनके मुल्क पाकिस्तान से उनकी भाभी जान , भतीजा-भतीजी, दोनों आपा-भांजा-भांजी भारत में आपा की बेटी की शादी करने आ रहे है और खान-साहब को ये बात याद भी नहीं। जबकि वो रोज खान साहब को याद दिलाती रहती है ।
दस साल पहले जब अब्बू भारत आए थे तो अपने पोते यानी तबस्सुम के भाईजान के साहबजादे बिलाल और शबनम के निक़ाह की बात पक्की करके गए थे पर आज खान साहब और दोनों बच्चे इस शादी के खिलाफ़ दिखते है।
जैसे आम लड़कियाँ अपने ससुराल और पति के प्रेम की डोर से से बँध कर कसम लेती हैं ताउम्र साथ निभाने की वैसे ही परिवार के प्रेम की डोर से बंधी तबस्सुम की खुद की देश वापसी संभव नहीं। पर उसके दिल में धड़कता है उसका देश उसकी हर साँस में महकता है उसका इस्लामाबाद स्थित घर-परिवार।
इसी कारण वो अपनी बेटी की अपने देश में शादी करना चाहती है और अमन की शादी भी तस्नीम आपा की बेटी हिना से करवाना चाहती है ताकि वो महसूस कर सके अपने वतन की मिट्टी से जुड़ाव ।
वैसे दोनों बच्चे अपनी अम्मी को इतना प्यार करते हैं कि वो उनकी किसी भी बात को नहीं टालते। इसी कारण अम्मी की खुशी के लिए शबनम - निकाह के लिए मना नहीं करती बल्कि निक़ाह की बात सुनकर रूठ जाती है।
तबस्सुम बात को फिर से खान साहब के सामने छेड़ देती है ताकि आज खानसाहब कोई निर्णय लेलें ।
अब आप ही शबनम को समझाइए निकाह की उम्र हो गई अब उसकी।’’
‘‘हूँ.. ! ’’
‘‘ हूँ क्या , कुछ कहेंगे या नहीं? ’’
"अरे अभी बहुत छोटी है दो तीन साल बाद कर देंगे। शब्बों का निकाह बेटी की तरफ देखते हुए अब्बा ने तबस्सुम को जवाब दिया।
तो क्या मेरे परिवार के लोग बार-बार में आएंगे यहाँ। फूफी बता रही थी कि तस्नीम आपा तो उनसे अमन और हिना के रिश्ते की बात भी पक्की करके जाना चाहती है । अम्मी की बात सुनकर दोनों बच्चों को आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता है अमन कुछ कहे उससे पहले ही शबनम बोल पडती है-‘‘ ओ हो अम्मी...
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया