पूरा हॉल जगमगा रहा था। उसे हर तरफ़ से सजाया गया था। अभी वहां ज़्यादा लोग नहीं थे लेकिन कहा जा रहा था कि कुछ घंटों के बाद ये हॉल खचाखच भरा हुआ रहने वाला था क्योंकि वहां एक बड़ा समारोह होने वाला था। उसी की तैयारियां जारी थीं।
उससे कुछ दूरी पर एक छोटे कमरे में भी कुछ चहल- पहल थी। समारोह में शिरकत करने के लिए जो बड़े- बड़े नेता राजधानी से आने वाले थे वही अपने कुछ भरोसे मंद कार्यकर्ताओं के साथ पहले एक गुप्त बैठक यहां करने वाले थे।
वहां का केयर - टेकर ज़ोर- ज़ोर से एक औरत पर चिल्ला रहा था। औरत की गलती इतनी ही थी कि अंदर मेजों की सफाई के लिए उसका पति जो उसके साथ आने वाला था वह नहीं आया था। बल्कि बिना बताए ड्यूटी से नदारद हो गया था।
अब औरत अकेली। उसे ही यहां झाड़ू लगाने का काम करना था फ़िर बड़े हॉल में जाना था। वो अगर मेजें पौंछने बैठ जाए तो उसका काम कौन करे? सारा झगड़ा इसी बात का था।
लेकिन तभी एक टूटी - फूटी खटारा सी साइकिल पर एक लड़का वहां आया और साइकिल चौक में खड़ी करके एक गंदे कपड़े से फटाफट मेजें साफ़ करने लगा।
चिल्लाने वाले आदमी ने चैन की सांस ली। उसने सोचा चलो, खुद न आया न सही, किसी को भेज तो दिया। वह अब बरामदे में इधर- उधर लोगों से बोलता- बतियाता बाहर निकल गया।
लेकिन कुछ ही देर में दो- तीन गाड़ियां आईं और लोगों का एक समूह न जाने कहां से निकल कर बैठक कक्ष में फैल गया। मेजें साफ़ करने वाला लड़का भी एक कोने में स्टूल पर बैठ गया। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं था कि बैठक में क्या हो रहा है, यहां कौन है, कौन बोल रहा है और कौन सुन रहा है। वह तो जंभाई लेता हुआ वहां जमा रहा।
बैठक ज़्यादा देर नहीं चली। कारों के एक- एक कर वहां से निकलते ही गलियारे के साथ - साथ पूरी गली में रौनक हो गई।
वो हॉस्पिटल भी इस जगह से कोई ज़्यादा दूरी पर नहीं था जिसमें करण भर्ती था। करण को दुर्घटना के अगले दिन दोपहर तक होश आ चुका था और अब उसकी तबीयत काफ़ी सुधर चुकी थी। उसे पैर पर घुटने के पास गोली लगी थी जहां अब घाव पर पट्टी बंधी हुई थी।
करण के पास रात के समय उसका भाई आ जाता था। इस वक्त तो घर से खाना लेकर आई हुई मां वहां मौजूद थीं।
मां से ही करण को पता चला कि उस रात लापता हुआ आर्यन भी घर आ गया है और शाम को करण से मिलने हॉस्पिटल में आने वाला है।
मां ने थोड़े में उसे बस इतना सा बताया कि आर्यन को कुछ लोग जीप में डाल कर ले गए थे जो अगली सुबह ही उसे सड़क के पास घायल अवस्था में पड़ा छोड़ गए थे।
वह आ तो गया पर आने के बाद से ही उसने किसी को कुछ नहीं बताया। बस खामोशी से और लोगों की बातें सुनता रहा जो अलग - अलग उसके गुम हो जाने के बाद कही गई थीं। पुलिस थाने में उसके आने - जाने के चक्कर शुरू में तो खूब रहे पर अब कम हो गए थे।
शाहरुख भी एक बार उसके घर आया था, पर अब वो किसी बहुत ही ज़रूरी काम से शहर से बाहर गया था। वो भी इतना तो जानता ही था कि इस समय न तो करण और न ही आर्यन, अड्डे पर जाने की स्थिति में नहीं हैं।
स्वामी जी ख़ुद भी दो बार आकर उन दोनों से मिल कर गए थे। वो उनका हाल - चाल भी पूछ गए थे और उन्हें सांत्वना भी दे गए थे कि वो किसी भी स्थिति में घबराएं नहीं।
लेकिन करण और आर्यन दोनों का ही मनोबल इस बात से वापस लौटा नहीं था। वे अभी तक ये समझ नहीं सके थे कि पिछले दिनों उन्होंने ऐसा क्या किया है जो उनकी जान के दुश्मन पैदा हो गए थे।
गोली चला कर जान लेने की कोशिश करना, या पशुओं की तरह घसीट कर अपहरण कर ले जाना कोई साधारण घटनाएं तो नहीं थीं। वो भी तब, जब इनके भुक्त- भोगियों को ख़ुद भी ये पता नहीं चल पा रहा हो कि उनकी गलती क्या है, और उन्हें इस तरह सजा देने वाले लोग कौन हैं?
क्या ये किसी गलतफहमी का नमूना था? या फिर ये किसी की सनक या पागलपन का नतीजा था?
लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? पागलपन या सनक किसी एक आदमी पर सवार हो सकते हैं। लोगों का एक पूरा दल इसका शिकार क्यों होगा?
सबसे बड़ी बात तो ये थी कि शाहरुख ने इस पूरे प्रकरण पर अब तक एक शब्द भी नहीं कहा था। वह कई बार आया ज़रूर। उसने अपने इन दोस्तों की दुर्घटना या दुर्दशा पर चिंता भी जताई पर इसका कारण क्या हो सकता है इस पर वह कोई भी अनुमान लगाने से अब तक बचता ही रहा था।
हॉस्पिटल के बिस्तर पर दोपहरी के बोझल सन्नाटे में पड़े- पड़े करण को किसी देखी हुई फिल्म के दृश्यों की तरह वो तमाम बातें याद आने लगीं जिन्होंने बचपन में उसे पहली बार कभी शाहरुख से मिलवाया था।
लगभग तेरह- चौदह साल पुरानी बात थी। करण तब सात साल का था। घर के पास बने एक सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा का साधारण सा विद्यार्थी।
आसपास के सभी बच्चे एक साथ इकट्ठे होकर सुबह- सुबह कंधे पर छोटा सा बैग लिए स्कूल जाया करते थे। सर्दी- गर्मी- बरसात थोड़े- बहुत समय के परिवर्तन के साथ यही उनका रूटीन रहता था।
उन्हीं की क्लास में तब एक छोटा सा लड़का शाहरुख भी था जो बहुत दूर की किसी बस्ती से स्कूल आया करता था। शाहरुख क्लास में सबसे अलग- थलग बैठा रहता। ज्यादातर पीछे।
वैसे तो कक्षा में और भी बहुत से बच्चे थे, अधिकतर करण की बातचीत या दोस्ती उन्हीं लड़कों से होती थी जो उसके घर के आसपास रहते थे या साथ में स्कूल जाया करते थे लेकिन कुछ ही दिनों में शाहरुख पर भी उन बच्चों का ध्यान कई कारणों से जाने लगा।
एक कारण तो ये था कि शाहरुख रोज़ देर से आता था। शुरू में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया पर बाद में एक- दो बार टीचर ने जब सबके सामने उसे मारा तो सभी का ध्यान इस ओर गया कि ये लड़का देर से आने के लिए अध्यापक से मार खाता है।
शाहरुख के चांटा पड़ते ही पहली बार आगे बैठे कुछ बच्चे ज़ोर से हंसे भी थे जिसके लिए उन्हें बाद में डांट भी पड़ी।
लड़कों के हंसने का कारण ये था कि जब टीचर ने उसे मारा तो वो खुद भी हंसा था।
साथ में सब लड़के भी हंस पड़े!