The Author Prabodh Kumar Govil Follow Current Read इरफ़ान ऋषि का अड्डा - 7 By Prabodh Kumar Govil Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 2 संघर्ष का आरम्भ कॉर्पोरेट जीवन की चुनौतियाँ अब गहराई तक जाने... तेरी मेरी यारी - 11 (11)इंस्पेक्टर आकाश ने फौरन सब इंस्पेक्टर राशिद को फ... मनस्वी - भाग 2 अनुच्छेद-दो मेरा ऊपर जाने का समय अभी कहाँ हुआ है? ... बैरी पिया.... - 57 अब तक : शिविका भी उसके पीछे बाहर आ गई । मोनिका नीचे हॉल में... साइकिल और हुनरमन्द 1. बाल कहानी - साइकिलतीन मित्र थे, राजू, सोनू और पप्पू। तीनो... 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इस तरह विश्वास करके हज़ारों रुपए की शॉपिंग करने का अवसर उन्हें जिंदगी में पहली ही बार मिला था। लेकिन बाद की हबड़- तबड़ ने सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया। उसने आवाज़ न देकर करण के दरवाज़े के पास पहुंच कर ज़ोर से सीटी बजाई। उसके होठों की सीटी किसी पुलिस वाले की व्हिसिल से भी ज़्यादा असरदार आवाज़ में बजती थी। भीतर से लंबे डग भरता हुआ करण तेज़ी से बाहर आया। बाहर कुछ अंधेरा सा था। तभी बाहर के सन्नाटे में एक ज़ोरदार चीख सुनाई पड़ी। ज़ोर से किसी पथरीली जमीन पर कुछ लुढ़कने का सा अहसास हुआ। आर्यन ने सोचा शायद करण अंधेरे में ठोकर लग जाने से गिर गया है। उसने तेज़ी से छलांग लगाकर उसके पास पहुंचने की कोशिश की। लेकिन तभी एक और धमाका हुआ। आर्यन हक्का- बक्का रह गया। आवाज़ के साथ ही हल्की चिंगारी से वह पहचान पाया कि किसी ने अंधेरे में करण की ओर गोली मारी है। करण की ये दूसरी चीख थी जो पहली से कहीं ज्यादा हृदय- विदारक थी। अंधेरे में रोशनी का चिल्का सा पड़ जाने से आर्यन साफ़ देख पाया कि कोई तेज़ी से कूद कर वहां से भागा है। एक पल के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ सा होकर आर्यन गिरे हुए करण के पास न आकर उस दिशा में दौड़ा जिधर से गोली चलाने वाला शख्स भागा था ताकि उसे पकड़ सके। हड़बड़ी में उसे ये भी नहीं सूझा कि उस व्यक्ति के पास हथियार है जबकि आर्यन बिल्कुल निहत्था है। वह उसके पीछे दौड़ता हुआ केवल उससे तीस- चालीस कदम की दूरी पर ही था कि एक तेज़ लाइट ने उसका रास्ता रोक लिया। तेज़ी से आई जीप बिल्कुल उसके समीप आ गई। इस बीच गोली चलाने वाले को भागने का मौका मिल गया। आर्यन जीप से उतरे आदमी को उलाहना देता हुआ कुछ कहने को ही था कि अचानक चार हाथों ने बढ़ कर उसे बुरी तरह खींचना शुरू कर दिया। उसे जबरन धकेल कर जीप में डाल लिया गया। जीप के भीतर जल रही हल्की लाइट एकाएक बंद हुई और जीप तेज़ी से चल पड़ी। आर्यन को काबू कर लेने वाले लोग शायद तीन थे। उसे चिल्ला पाने का अवसर भी नहीं मिला। त्वरित गति से एक फौलादी पंजे ने एक बदबूदार सख्त कपड़ा उसके मुंह में ठूंसा और उसका मुंह कस कर बांध दिया। आर्यन के घुटने में भी सीट से टकराकर जोरदार चोट लगी और वो बेदम सा होकर निढाल हो गया। जीप थोड़ी ही देर में जंगलों के बीच किसी कच्चे रास्ते से गुज़र रही थी। उधर घर के बाहर करण भी लगभग आधे घंटे तक बेहोश पड़ा रहा। रात का समय होने से किसी ने भी निकल कर नहीं देखा कि बाहर क्या हादसा हुआ है। दरवाज़े बंद होने के कारण बाहर की आवाज़ भीतर किसी को सुनाई नहीं दी। ऐसा अक्सर होता ही था कि करण अपने दोस्तों से बातचीत करते हुए घर के बाहर टहलता हुआ इधर- उधर चला जाए। इसकी परवाह कोई नहीं करता था। और आर्यन तो अक्सर ही उसके यहां आता रहता था। रात के लगभग पौने ग्यारह बजे करण के पिता बाहर गली में पेशाब करने के लिए निकल कर आए तो देहरी से निकलते ही ठोकर लगने से गिरते- गिरते बचे। वह लड़खड़ा कर संभल तो गए लेकिन घर के बाहर किसी लाश की तरह पड़े हुए करण को देख उनकी चीख निकल गई। तत्काल आसपास की बत्तियां जलीं और पल भर में भीड़ लग गई। दो - तीन लोगों की मदद से करण को उठा कर भीतर ले जाया गया किंतु भीतर ज़रा उजाले में जाते ही उसके खून से लथपथ कपड़ों ने मानो घर भर पर बिजली सी गिरा दी। करण के बड़े भाई को तत्काल पास के पुलिस स्टेशन के लिए दौड़ाया गया और इसी बीच उसे नज़दीक के एक हॉस्पिटल ले जाने के बंदोबस्त किए जाने लगे। करण की मां जो खुद रात को घर से बाहर निकलने के लिए उसकी बहन को मना करती थीं चिल्ला कर बेटी से ही बोलीं- जा आर्यन को बुला ला। बेटी ने समय की नजाकत को भांप कर कोई हील- हुज्जत नहीं की और एक हाथ में टॉर्च लेकर अपनी चप्पल पहनकर अकेली ही दौड़ पड़ी। आधे घंटे बाद ही एक और कोहराम सा मचा जब आर्यन के घर से भी सभी लोग वहां चले आए। उनका कहना तो यह था आर्यन खुद काफी देर से करण के घर जाने की बात कह कर घर से निकला हुआ है। करण को हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया गया था लेकिन उसे अभी तक पूरी तरह होश नहीं आया था। वह बीच- बीच में आंखें खोल कर देखता था और फिर अचेत हो जाता। घर के किसी भी आदमी को उससे मिलने नहीं दिया गया। थाने से एक आदमी की ड्यूटी उसके पास हॉस्पिटल में ही लग गई। आर्यन के पिता ने थाने पहुंच कर उसके लापता हो जाने की बात कहते हुए रिपोर्ट लिखवा दी थी। कोई नहीं जानता था कि करण और आर्यन के बीच ऐसा क्या हुआ जो इतना भयंकर घटनाक्रम बन गया। पुलिस की ये बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि आर्यन ने करण पर हमला किया और फ़िर वो फरार हो गया। लेकिन जब तक सच्चाई का कोई सिरा हाथ में न आ जाए हर संभावित कहानी को अपने पंख फैलाने की पूरी छूट थी। अगली सुबह सामी उर्फ़ स्वामीजी भी पहले आर्यन के घर चले आए और वहां से रात की सारी बात जानकर करण के पिता के साथ हॉस्पिटल भी पहुंचे। मुश्किल से पांच - सात मिनट गुज़रे होंगे कि शाहरुख भी हॉस्पिटल में हाज़िर था। न जाने कौन था इस घटना चक्र के पीछे। और पता तो चले... क्यों?? 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