समीक्षा
सूखे पत्ते पर चलते हुए
शैलेन्द्र शरण का सशक्त सँग्रह
राज बोहरे
शैलेंद्र शरण एक विचारशील कवि हैं वे अपनी कविता में दर्शन विचार और सामाजिकता को शामिल करते हैं । यह शामिल करना सायास नहीं अनायास होता है यानी यह सब उनके चिंतन में शामिल है। तभी तो कविता लिखते वक्त वह सहज रूप से कविताओं में आ जाता है। शैलेंद्र शरण का कविता संग्रह 'सूखे पत्तों पर चलते हुए' शिवना प्रकाशन से पिछले दिनों प्रकाशित होकर आया है। इस संग्रह की सारी कविताएं कवि के वैचारिक पक्ष के साथ-साथ उनके सहज रूप से पर्यवेक्षण और समाज में शामिल मुद्दों पर अपने विचार प्रकट करती हैं। हर कविता यूं तो विचार से ही गहराई पाती है, वे कविताएं जिनमें विचार नहीं होता, उन्हें महज संगीत के साथ गा लेने भर की रचनाएं माना जाता है। लेकिन आज कविता वैचारिक समृद्धि और वैचारिक उपस्थिति के कारण ही महत्वपूर्ण या महत्वहीन होती है।
इस संग्रह में कुछ खास मुद्दों पर कवि की लिखी गई कविताएं शामिल है । इन कविताओं से गुजरने के बाद हम महसूस करते हैं कि कवि इस संग्रह में ज्यादा परिपक्व होकर पाठकों के सामने आए हैं । उनकी कविता 'संबोधन किसानों के लिए ' देखिए-
किसानों ...
करो
इतना करो
कि आज करने को
कुछ बाकी ना रहे
मौत आए और कहे
"चलो"
तुम हाथ बढ़ाकर कहो
चलो ...कहां चलना है
और मौत
रास्ता भटके सर्प की तरह
सर सराकर भाग जाए।।(पृष्ठ 18)
कविता 'नेम प्लेट' में पिता को शिद्दत से याद करते कवि लिखते हैं
पिता ने मुझे जूझना सिखाया इस संघर्ष में बहुत बार हारा
हाथों में शस्त्र लिए डरता रहा
गंभीर मसलों में शर्तों पर अड़ा रहा
जरूरी प्रमाण के बदले तर्क दिए
कुल मिलाकर मिथ्या और अनिश्चितता का वलय रचता रहा
सोचता हूं निश्चिंतता का वह नीला आसमान कहां से लाऊं
जो अब तक माथे पर भरोसा बना तन रहा ।(पृष्ठ 19)
इस कविता की अंतिम पंक्तियां यह व्यक्त करती हैं कि अब पिता नहीं हैं, जिन्हें नायक याद कर रहा है लेकिन फिर भी अंत तक आते-आते कभी कवि कम रह जाता है, मनुष्य और मार्मिक व्यक्ति रह जाता है ।तभी उसमें कविता भाषा कुछ कम हो जाती है।
इस संग्रह की सबसे लंबी कविता मॉव लिचिंग:कुछ कविताएं है। एक ही विषय पर अनेक कविताएं लिखने की परंपरा हिंदी में शुरू से रही है । आज के समाज और राजनीतिक परिदृश्य में मॉव लिचिंग ऐसी दहशत भरी खतरनाक घटना है, जो मनुष्य के विवेक को हर लेती है, मनुष्य के धैर्य को खत्म कर देती है । मॉव लिचिंग:कुछ कविताएं में कवि ने अनेक कविताएं लिखी हैं। इसमें पहली कविता है-
वे लोग जो
भीड़ बनकर मुझे पीट रहे थे
चुप नहीं थे
आक्रोश में उनकी मुट्ठियां और दांत
एक साथ भिंच जाते
मुंह खुलता तो गोली सी गालियां निकलती
बोल...जय बोल बोल...जय..
मांss... दss ..रss
***
मैं उस समय वही कहता गया जो वे लोग चाहते थे
वे सब हत्या के जुनून में थे
जब मैं बेसुध होकर पलके मूंद रहा था
मैंने देखा
मोहम्मद और राम
दोनों भीड़ के पीछे खड़े हैं
(पृष्ठ 75)
पीछे यानी कवि कहना चाहता है कि वे दोनों असहाय से अपने बंदों की अविवेकी भीड़ को देख रहे हैं और कुछ कर नहीं पा रहे हैं ।
सदा का नियम है कि सारा साहित्य इसी समाज से रचा जाता है। यही मिलती हैं कविताओं की परिस्थितियां, अनुभूतियां और शब्दावली या यही मिलते हैं रचनाओं के विषय उपन्यास के विषय। कवि की एक कविता है-
विषय यहीं पैदा होते हैं (पृष्ठ 91) इसमें वे लिखते हैं -
आदमी की जीवन संहिता में ही विषय पैदा होते हैं
दर्ज करना चाहता हूं फिलहाल
नींद में सर उठाकर छटपटाती
दूर से आती है कराह... कविता में
वैसे ही कुछ उस पर कहानियां लिखने में व्यस्त हैं
और कुछ उपन्यास लिखने की तैयारी में
वैसे तो यह पूरा का पूरा उपन्यास है, संत्रास के इर्द-गिर्द भटकता हुआ, टुकड़ा टुकड़ा जोड़कर महानगर की लोकल में लटका हुआ। हम सब ने कोविड-19 के दौरान भयानक विस्थापन देखा- आजादी के बाद का सबसे बड़ा विस्थापन। अन्तर की बात यह थी कि आजादी के विस्थापन में हिंसा साथ में थी, सड़क पर चल रहा व्यक्ति हर कदम इस दहशत में था कि कोई काफिला उन पर हमला ना कर दे, लेकिन इस तुरंत गुजर चुके विस्थापन में ऐसे कोई भय नहीं थे, डर नहीं थे। कभी कभार पुलिस वालों की डांट फटकार, समझायस, के अलावा भूख और थकान के हमले ही ऐसे विस्थापन के खतरे थे। लेकिन थोड़ी राहत, थोड़े सुस्ताने और थोड़ी सी निश्चिंतता मिल जाने , सहयोग मिल जाने के बाद यह काफिले आराम से अपने घरों तक पहुंचे।
कवि ने अपने समकाल की इस घटना को कविता 'लॉकडाउन में विस्थापन' में लिखा है। कवि लिखता है-
बोझा लादे बच्चों का हाथ थामे
बोतल में भीगे चने लेकर चले होंगे
पता नहीं सत्तू बचा भी होगा उनके पास
या वैसे ही खत्म हो चुका होगा
जैसे मालिक पर विश्वास
कुएं के पास रुके होंगे
तब बिना रस्सी-बाल्टी, उनकी प्यास,
ऊपर की जेब में रखी रेजगारी की तरह
झाँकते ही कुएं में भीतर गिर गई होगी
पता नहीं वह मेरे शहर का नाम जानतेभी हैं या नहीँ
पते की डायरी छूटी होगी बदेहवासी में
नंबर तो अवश्य होगा उनके फोन में
या क्या पता बैटरी चली गई हो
मैंने नहीं देखा उन्हें ...
बूढ़ा होने को आए होंगे पिता की तरह
रिश्तो पर बरसों की जमी काई पर
फिसलने लगे होंगे यादों के पैर (पृष्ठ 107)
शैलेंद्र शरण जी की सबसे अधिक कविताएं दर्शन पर आधारित हैं । इस तरह की कविताएं न केवल कवि के विचार पक्ष को प्रकट करती हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन के अनेक मुद्दे प्रकट करती हैं। ऐसी कविताओं में मृत्यु की आशंका के बीच ( पृष्ठ 45) शमशान (पृष्ठ 46) मंत्रों का शल्यशोधन (पृष्ठ 51 )कोई रात (पृष्ठ 55) ढलकर पक जाने के बाद (पृष्ठ 61) हे देव (पृष्ठ63 ) सच को सच की तरह ( पृष्ठ 67 ) शिखंडी होने पर (पृष्ठ 72) मंथन (पृष्ठ 106) विपरीत कैसे जी लेते हो यार ( पृष्ठ 113) जो नियंत्रित नहीं होते ( पृष्ठ 114 ) ढलान पर (पृष्ठ 115) अंततः (पृष्ठ119) के शामिल है ।
सँग्रह की अनेक कविताएं मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों और उनके विश्लेषण के बाद लिखी गई हैं और वे मनुष्य के द्वंद , मनोवैज्ञानिक चिंतन और इस तरह मनोगत विश्लेषण के बाद निकलते हुए निष्कर्षों पर केंद्रित है । ऐसी कविताओं में सपनों की पांडुलिपि ( पृष्ठ 36) अकेलेपन की त्रासदी( पृष्ठ 50) विषय यहीं पैदा होते हैं ( पृष्ठ 91) क्या कहूं इस सुख को( पृष्ठ 103) राधेश्याम तिवारी ( पृष्ठ 122) का नाम लिया जा सकता है।
संग्रह में प्रेम और दांपत्य पर भी खूब बात की गई है। मनुष्य का केंद्रीय भाव प्रेम है। यह प्रेम अपने परिजनों के प्रति भी होता है ,अपनी पत्नी के प्रति भी और प्रेमिका के प्रति भी । संग्रह में कवि अपने प्रेम की बात स्त्रियों को संबोधित करते हुए कविता लिखते हैं किसी में वह प्रेमिका को संबोधित करते हैं तो किसी में पत्नी को संग्रह की कविता ओ विदुषी ( पृष्ठ 20) रंगमंच ( पृष्ठ 26) बूढ़ा जो हो चुका था ( पृष्ठ 56) ब्रेक अप ( पृष्ठ 86) आप से नहीं डरती ( पृष्ठ 90) पहली बार (पृष्ठ 116) सहयात्री (पृष्ठ 117 )पतझड़ के ठीक बाद ( पृष्ठ 128) कविताएं चिन्हित की जा सकती हैं जिनमें प्रेम की गहराई और दांपत्य का माधुर्य भी अलग-अलग कविताओं में आया है।
कवि स्त्री (या कहें लड़की) के प्रति सहानुभूति नहीं बल्कि समानुभूति अनुभूति के स्तर पर चिंतन करते हैं उनकी कुछ कविताएं लड़कियों यात्रियों के मानसिक दोनों पर केंद्रित है ऐसी कविताओं में इंतजार: एक दृश्य (पृष्ठ 28) एक अनचाही यात्रा (पृष्ठ 38) एक और सच (पृष्ठ88) समझौता (पृष्ठ 92) जो नियंत्रित नहीं होते (प्रष्ठ 114) के नाम लिए जा सकते हैं।
कोई भी रचनाकार कवि हो या कहानीकार और चाहे व्यंग्यकार या निबंधकार हो वह अपने आसपास के वातावरण यानी प्रकृति, कुदरत, जलवायु और पृथ्वी को अनदेखा नहीं कर सकता अगर वह रचनाकार है, तो उसका पहला प्रेम कुदरत है, प्रकृति है, जलवायु है, अपना वातावरण है । एक युग था जब हर कवि बहुतायत में प्रकृति पर ही कविताएं लिखता था। उन दिनों पेड़, चिड़िया, नदी, तारे, जानवर आदि कविता के विषय हुआ करते थे । लेकिन इस संग्रह में शैलेंद्र शरण केवल प्राकृतिक वर्णन नहीं करते, बल्कि प्रकृति के उपादानों का मानवीकरण भी करते हैं और उन्हें एक नए अर्थ में आयोजित भी करते हैं। प्रकृति से जुड़ी कविताओं में नदी (पृष्ठ 101) विपरीत कैसे जी लेते हो यार (पृष्ठ 113) पृथ्वी (पृष्ठ123) जल (पृष्ठ 124) अग्नि (पृष्ठ 125) आकाश (पृष्ठ 126) और वायु (पृष्ठ 127 ) के नाम लिए जा सकते हैं। आखिरी पांच कविताएं पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु तो मनुष्य देह के पंच तत्व पर केंद्रित हैं। जिन पर एक नए और प्रभावशाली तरीके से शैलेंद्र शरण ने कविता लिखी है।
यथार्थ और बदलते समय की परिस्थितियां भी कवि की नजर से छूटी नहीं है । वे विकास (पृष्ठ 47) बदलते समय में मेरा शहर (पृष्ठ 48) इन दिनों सपना (पृष्ठ 68) माव लीचिंगली कुछ कविताएं
(पृष्ठ 75) बसंत आने के संकेत
(पृष्ठ 95) लॉकडाउन में विस्थापन
(पृष्ठ 107) के माध्यम से बदलते समय की स्थितियों को चित्रित ही नहीं करते बल्कि उन पर एक वैचारिक टिप्पणी भी देते हैं ।
कवि पिता पर 'नेम प्लेट ' और 'खपरैल की छत' कविता में पिता के प्रेम बारे में लेकिन तार्किक भाव से कविता लिखता है तो प्रेम और वात्सल्य का गठजोड़ कविता में मां को बहुत शिद्दत से याद करता है।
किसानों- मजदूरों को संबंधित उनकी कविताएं 'संबोधन किसानों के लिए ' और 'इच्छाओं की गाथा' है तो महानगरीय बोध यानी आधुनिकता पर उनकी कविता तथागत हम कहां जाएं (पृष्ठ 8) प अन्याय भूलते हुए (पृष्ठ 109) याद करते करने लायक कविताएं हैं। जलवायु कहें ,बदलता समय कहें या अपनी जन्मभूमि से लगाव की कविता डूब के बाद एक दृश्य हरसूद (पृष्ठ 121) इस संग्रह की सबसे मार्मिक कविता कही जा सकती है। कवि ने अपने तरीके से नए प्रतीक बनाए हैं, तो राजनीतिक वातावरण पर भी अपनी बेबाक टिप्पणी दी है। ऐसे नए प्रतीक और राजनीतिक वातावरण पर लिखी गई उनकी कविता सॉर्बिट्रेट (पृष्ठ 23 )मेरी भेड़ें (पृष्ठ 69) के नाम लिए जा सकते हैं ।
समाज में बदलती, व्याप्त होती मान्यता पर उनकी कविता ओ महानुभाव (पृष्ठ 32) मेरी टोपी छीन ली (पृष्ठ 84) आदमी ने कहा जी मालक( पृष्ठ 85) के नाम उल्लेखनीय है ।
आज मनुष्य के सामने देह महत्वपूर्ण है ,यश नहीं है ,नाम नहीं है । ऐसी कविताओं में निशानदेही (पृष्ठ 9) कहीं भी जा सकता हूं (पृष्ठ 60) के नाम लिए जा सकते हैं। कवि अपने बचपन को भूलता नहीं है, वह अपने रूप को याद करता हुआ (पृष्ठ 40 ) पर स्कूल में के दिन कुछ चित्र नामक कविताएं इसमें शामिल करता है।
इस संग्रह से गुजरने के बाद हम अगर ठंडे दिमाग से विचार करें तो महसूस होता है कि कवि पहले सँग्रह की तुलना में ज्यादा तीखे हुए हैं , या यूं कहें कि पहले संग्रह के बाद इस दूसरे संग्रह में उन्होंने अपनी ज्यादा तर्कशील कविताएं रखी है। इन कविताओं से कवि का वैचारिक पक्ष प्रकट होता है। हालांकि एक अंतिम निर्णय, विचारधारा के निर्धारित करने वाले रूप का अंतिम अक्स इन कविताओं से प्रकट नहीं होता। यह नहीं कह सकते कि कवि किसके साथ खड़ा है , किस विचारधारा को मानता है , फिर भी हर रचनाकार की विचारधारा मानवतावादी होती है । मानव के लिए संघर्ष करता, वंचितों की बात को उजागर करता हर रचनाकार ही जनमानस को स्वीकार योग्य होता है। नेताओं की, सत्ताधीशों की प्रशस्ति गाता कोई भी कवि जनता स्वीकार नहीं करती।
इस संग्रह की कविताओं में आम आदमी की पीड़ा , हताशा और द्वंद को कवि ने प्रकट किया है । इस संग्रह कुछ कविताएं कमजोर भी हैं ऐसी कविता मैं कवि पहली कुछ पंक्तियों में एक मुद्दे को सही ठहराते है तो दूसरे और तीसरे पद में विकसित अलग मुद्दे को सही ठहराने लगते है। कविता केंद्रीकृत नहीं रह पाती। बिखरी हुई सी लगती है। कविता का मूल भाव कविता को पढ़ते-पढ़ते तक समझ में नहीं आता ।
काव्य भाषा को लेकर भी कुछ कविताओं पर पुनर्विचार किया जा सकता था। पहले संग्रह में कवि जिस काव्य भाषा के साथ प्रस्तुत हुए थे , इस संग्रह की कुछ कविताओं में वह काव्य भाषा ज्यों की त्यों नहीं रही है।
तर्क शीलता या वैचारिक दबाव दोनो में कारण जो भी रहा हो, कवि इस संग्रह की कविताओं में वैसे कभी प्रकट नहीं हो पा रहै है ।
संभव है संपादित करते समय, कविताओं का आकार घटाते समय यह अनजाने में हो गई जल्दबाजी हो या विचार कविताओं के प्रति आग्रह के कारण जानबूझकर कला और काव्य वैभव की अनदेखी करते हुए कवि सायास योजना हो। अलबत्ता कविता में एक खास भाषा, खास अंदाज, हौसले की तलाश करता पाठक कुछ कविताओं में ऐसे जुमले अंदाज़ को नहीं पाता है तो निराश होता है।
कवि शैलेंद्र शरण जनता के कवि हैं, समाज की कवि है । हालांकि हम उन्हें मजदूर के कवि, किसानों के कवि या समाज के अंतिम जन के कवि नहीं कह सकते, फिर भी मध्यवर्ग के, कस्बाई समाज के कवि हैं।
बड़ी संख्या में आए इस संग्रह की कविताओं को देखें तो भारतीय दर्शन के मुद्दों को उठाते कवि के रूप में शरण इस संग्रह में सामने आए हैं।
हम आशा करते हैं कि उनकी काव्य यात्रा में आगे कई सोपान आएंगे, जिनमें वे मोहक काव्य भाषा, प्रभावशाली शब्द संसार और अपनी पहले संग्रह जैसी काव्य शिल्प की कविताओं के साथ 'सूखे पत्तों पर चलते हुए ' नामक इस संग्रह के विचारशील तेवर साथ लेकर प्रकट होंगे ।
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काव्य संग्रह -सूखे पत्तों पर चलते हुए
प्रकाशक- शिवना प्रकाशन सीहोर प्रष्ठ 128
मूल्य ₹150
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