Dastan-e-Dard in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दास्तान-ए -दर्द

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दास्तान-ए -दर्द

डॉ. प्रणव भारती

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दास्तान-ए-दर्द शीर्षक में छिपी चार उपन्यासिकाएँ अपने भीतर एक पूरा का पूरा समुद्र उठाए घूमती हैं | इस दर्द के सैलाब में विभिन्न विषय हैं जो वैसे तो अलग हैं किन्तु किसी न किसी प्रकार से एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि लगता है एक डोर से बंधे हुए हैं |आदमी के शरीर के सभी अंग उसके शरीर से जुड़े रहते हैं लेकिन उनका काम अलग अलग होता है | ऐसे ही मस्तिष्क की शिराओं में कौनसी संवेदना कब भीतर के भाव कुरेदने लगे,लेखक नहीं जानता | वह उसके लिए कोई 'प्री-प्लानिंग' नहीं करता है जो योजना के अनुसार जाकर चरित्र में उतरता जाता है | उसके मस्तिष्क के कोटर में तस्वीरें बनती रहती हैं और एक कॉम्प्यूटर की भाँति जमा होती जाती हैं | अपने किसी ख़ास लम्हे में वे तस्वीरें कैनवास पर उतरने लगती हैं | मज़े की बात तो यह है कि कई बार लेखक को यह विश्वास तक नहीं होता कि यह उसके मस्तिष्क का शगल है ! चरित्र लगातार मस्तिष्क की भीतरी नसों में उतरते जाते हैं और शनै:शनैः कागज़ पर !

लेखक के पास जो चरित्र आते हैं वे आकर डट ही तो जाते हैं जो उसे बाध्य करते हैं कि उन पर कुछ चिंतन करे,कुछ लिखे,उन प्रश्नों के समाधान तलाशने के लिए स्वयं अपने और पाठक के सामने उन्हें परोसे | इस पुस्तक में चार एक साथ चार नवलिकाएँ जुड़ी हुई हैं जिन्होंने लेखक को बाध्य किया है कि वह विभिन्न विषयों पर कुछ कहने के लिए कलम उठाए | दरसल, डॉ.प्रणव भारती के शब्दों में, लेखक को चरित्र तलाशने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता वरन चरित्र उसके पास आकर स्वयं खड़े हो जाते हैं और उसे झिंझोड़ते हैं कि कलम उठाओ और मुझ पर लिखो |

एक गंभीर लेखक पहले एक आध्यात्मिक व्यक्ति होता है, संवेदनशील होता है तभी वह एक लेखक के कर्तव्य को ईमानदारी से निभा सकता है |

इस पुस्तक में चार छोटी नवलकथाओं का समावेश किया गया है| ये न तो कहानी के जितनी छोटी हैं,न ही बड़े उपन्यास के जितनी बड़ी |ये क्रमश: इस तारतम्य में हैं |

1- दास्तान -ए -दर्द (जो पुस्तक का शीर्षक है )

2-न,किसी से काम नहीं ट्रेंडी

3 -बेगम पुल की बेगम

4-सलाखों से झाँकते चेहरे

 

चारों कथाओं के विषय भिन्न हैं और इनके चरित्र अपने पाठक से संवाद करना चाहते हैं,वे अपनी पीड़ा,अपनी कथा पाठक के सामने खोलना चाहते हैं | बड़ी ही स्वाभाविक सी बात है यदि अंतर को खाली न कर दिया जाए तो दम घुटने लगता है | इस दम घुटने से रोकने के लिए सुखद पवन में खुलकर साँस लेने के लिए पहले से भीतर एकत्रित किया हुआ कचरा साफ़ करना ही पड़ता है | लेखक अपनी समझ व सामर्थ्य के अनुसार उन चरित्रों को प्रस्तुत करता है |

1 -दास्तान -ए-दर्द -----एक ऎसी महिला की पीड़ा को व्यक्त करती है जिसकी छोटी बच्ची को उससे छीनकर उसे पैसा कमाने के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया गया था |कहानी एक एशियन की मज़बूरी के वर्णन के साथ विदेशों में जाकर पांडित्य का रौब झाड़ने वाले पंडितों का पर्दाफ़ाश भी करती है |

2-न,किसी से कम नहीं ट्रेंडी -----की कथा में आज की ऎसी बनावटी ज़िंदगी का सिनारियो देखने को मिलेगा जो बेशक किसी छोटी सी जगह से आकर किसी न किसी प्रकार बड़े शहरों के महत्वपूर्ण संस्थान में कार्यरत तो हो जाती हैं लेकिन उल्टे-सीधे हथकंडों से अपने चरित्र पर ऐसे दाग लगा लेती हैं कि उन्हें कोई साबुन नहीं छुड़ा पाता |

3- बेगम पुल की बेगम उर्फ़ ----इस कहानी में पाठक को नई जानकारियाँ प्राप्त होंगी | एक ऎसी तवायफ़ की कहानी जो इश्क़ में डूबकर दुश्मनों से युद्ध करने मर्दाना लिबास में युद्ध -भूमि पर उतर आती है और दुश्मनों के छक्के छुड़ा देती है |इतना ही नहीं वह अपने प्रेमी-पति के बाद उसकी स्मृति में एक ऎसी इमारत का निर्माण करती है जिसमें आज भी लोग श्रद्धा से अपनी इच्छाएँ लेकर सिर झुकाने आते हैं |

4-सलाखों से झाँकते चेहरे ---इस पुस्तक की अंतिम कहानी है जो गुजरात व मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित झाबुआ प्रदेश के आदिवासी इलाके में बसने वाले ऐसे निवासियों की कहानी है जो अपराध करते हैं, उनका दंड भी भोगते हैं लेकिन पश्चाताप शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं है | उनके इस पके हुए स्वभाव के पीछे कई घटनाएँ जुड़ी रहती हैं और सोचने के लिए विवश करती हैं कि आज की दुनिया में भी यह स्थिति आख़िर क्यों ? इस कथा की एक और विशेषता है कि लेखिका ने इस पर 'इसरो' के 'डेकू' के लिए एक सीरियल तैयार किया है जिसके 68/70 एपीसोड्स हैं। जिनका प्रसारण भोपाल केंद्र से लगभग 20/22 वर्ष पहले किया जा चुका है |

पुस्तक में सहज. सरल शैली में विभिन्न वातावरणों में यात्रा करना निश्चय ही पाठक के लिए सुखद व रोमांचकारी रहेगा | यह पुस्तक 'वनिका प्रकाशन' के द्वारा प्रकाशित की गई है तथा एमेज़ोन पर उपलब्ध है |

कुल मिलाकर इस नवलिकाओं के चौगड्डे को एक नई संवेदना के साथ पढ़ना पाठक को रुचिकर लगेगा |

तथास्तु !

 

प्रमिला कौशिक

दिल्ली