मेरा नाम गरिमा है, मैं मुम्बई में अपनी दोस्त नेहा के साथ रहती हूं। हां मैं एक लेस्बियन हूं। मुझे यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि मैं एक समलैंगिक हूं। यह फैसला मेरा था, मेरी इच्छा थी तो लोग कौन होते है मुझे बेशर्म कहने और गालियां देने वाले। मैंने तो आपके भगवान से नहीं कहा था कि मुझे इंसान बनाओ। हां, मैं हमेशा से ऐसी नहीं थी। क्योंकि मुझे प्यार के अहसास का मतलब नेहा ने बताया। किसी को अपना मान कर सबकुछ लुटा देना क्या होता है, मैंने यह तब जाना जब मेरी मुलाकात नेहा से हुई।
हमारी कहानी सोशल मीडिया से शुरू हुई थी। यह बात तब की है, जब मैं अपने कॉलेज के सेकेंड ईयर में थी। मैंने स्कूल और कॉलेज दोनों ही मुम्बई से किये हैं। मैं एक बायोलॉजी की स्टूडेंट थी और डॉक्टर बन कर अपने मम्मी- पापा के लिए कुछ करना चाहती थी। इसी सपने के साथ मैंने एक अच्छे कॉलेज में एडमीशन लिया था। जब मैं सेकेंड ईयर में थी तो दूसरी लड़कियों की तरह मेरा भी दिल करता था कि मेरा कोई बॉयफ्रेंड हो जो मुझे प्यार करे और मेरे साथ कुछ प्यार भरे लम्हे बिताए। शायद इसी खोज में, मैंने फेसबुक पर अपना एकाउंट बनाया और बहुत सारे लड़कों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी। अगर किसी भी लड़के की रिक्वेस्ट आती तो मैं तुरंत उसे एक्सेप्ट कर लेती और उसके मैसेज का इंतजार करने लगती थी।
एक दिन रात के वक़्त जब मैं पढ़ाई कर रही थी तो मुझे सुमित नाम से एक रिक्वेस्ट आई। उसमें उसका फोटो तो नहीं लगा था, लेकिन फिर भी मैंने उसे एक्सेप्ट कर लिया और हमारी चैटिंग शुरू हो गयी। इतने दिनों में पहली बार मुझे किसी से बात करके इतना मजा आ रहा था। सुमित ने मुझे बताया कि वो भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है और मेरे पास के ही कॉलेज में पढ़ता है। यह जान कर मुझे सुमित में कुछ ज्यादा ही इंट्रेस्ट आने लगा था। घर के पास होने की वजह से मेरी उसकी मुलाकात भी हो सकती थी। और जिस तरह उसकी बातें थी, उससे मुझे इतना तो अंदाजा हो ही गया था कि यह लड़का मुझे बहुत प्यार करने वाला है। बस मुझे इंतजार था तो उसके इजहार करने और मेरे करीब आने का।
एक दिन सुमित ने मुझे चैट पर बोला कि बहुत दिन हो गए और आज तक न हमारी मुलाकात हुई न तुमने मुझे देखा, मैं तुमसे मिलना चाहता हूं। मैंने तुरंत उसे हां कहकर गार्डन में आने को बोला क्योंकि मैं भी अंदर से उसे मिलने के लिए बेताब थी। लेकिन साथ ही सुमित ने एक शर्त रखी कि हो सकता है यह हमारी आखिरी मुलाकात हो लेकिन तुम मुझसे कभी नफरत नहीं करोगी। मेरे दिमाग में अब सुमित की एक अजीब सी इमेज बनने लगी थी, लेकिन मैंने सोचा कि चाहे जो हो मैं एक बार सुमित से मिलना जरूर चाहूंगी। मैं शाम को अपने बताये समय पर गार्डन पहुंच गयी। मैं गार्डन के गेट पर सुमित का इंतजार करने लगी क्योंकि मैंने उसे आज तक कभी देखा नहीं था हमारी सिर्फ ऑनलाइन चैट पर ही बात हुई थी। सुमित ने भी मुझे सिर्फ फेसबुक पिक्चर और कुछ फोटोज में ही देखा था जो मैं अक्सर मूड में आ कर उसे भेज दिया करती थी। करीब 15- 20 मिनट इंतजार करने के बाद भी सुमित नहीं आया। इतने में ही वहां मेरी सीनियर आ गयी। मैं उन्हें देख कर थोड़ा छुपने लगी, लेकिन उन्होंने मुझे आवाज लगा कर रोक लिया। शायद वो मुझे पहचान गई थी। मैं रुक गई और बात घुमाते हुए उनसे पूछा, अरे दीदी आप यहां।
उन्होंने मुझसे कहा, अंदर चलकर बैठते हैं, वहीं बात करेंगे। मैं जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन उनके जिद करने पर मुझे उनके साथ अंदर जाना पड़ा। लेकिन मेरी नजरें अब भी गेट पर आ रहे हर एक लड़के पर थी। मैं उम्मीद कर रही थी कि शायद वह सुमित ही हो। दीदी ने मुझसे पूछा बाहर क्यों देख रही हो। कोई आने वाला है क्या? मैंने उन्हें कहा, नहीं दी बस एक दोस्त आने वाला है, मुझे कुछ नोट्स लेने थे उससे।
दीदी ने मुझसे कहा कि सुमित नोट्स नहीं लाएगा, क्योंकि सुमित तुम्हारे सामने बैठा है। मैं सुमित का नाम सुन कर चौंक गयी, क्योंकि दीदी के मुंह से सुमित का नाम सुनने की उम्मीद मुझे बिल्कुल नहीं थी। मैंने दीदी से अजीब सी आवाज में पूछा आप सुमित को कैसे जानती हो। दीदी ने कहा, शांत हो जाओ मुझे तुमसे कुछ कहना है।
उन्होंने जो कहा वो सुन कर मेरे पैरों तले जैसे जमीन ही छिन गई हो। मैं समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या हो रहा है। दीदी ने मुझे कहा मैं तुमसे प्यार करती हूं। इतने दिन तुमसे सुमित बन कर बात कर रही थी, क्योंकि इसके बिना मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था। मैं सीधे ही तुमसे यह सब कहती तो शायद तुम मुझसे बात भी नहीं करती। उन दीदी का नाम नेहा था। उस दिन मैंने पहली बार नेहा से तू करके बात की । मैंने उन्हें बहुत बुरा भला सुनाया और उनको दुत्कारते हुए वहां से उठ कर चली आई। वो रो रही थी, लेकिन उस वक़्त मुझे उनसे घिन आ रही थी और गुस्सा भी। उन्होंने मेरी फीलिंग्स के साथ खेला और मेरा मजाक बनाया। मैं उस पूरी रात सो नहीं पाई। एक तरफ दिमाग में गुस्सा भरा था और दूसरी तरफ हमारे बीच हुई वो बातें। मुझे डर भी लग रहा था कि कहीं वो हमारे बीच हुई उन बातों को सबके सामने जाहिर ना कर दें…
मैं अगले दिन उनसे मिलने उनके फ्लैट गई, उन्हें समझाने या यूं कहो कि धमकाने। ये बातें किसी और को पता चलीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं बिना नॉक किये सीधा उनके रूम में घुस गयी। लेकिन वहां का नजारा देख कर मेरे होश उड़ गए। उनका सारा कमरा बिखरा पड़ा था। जगह जगह फिश टैंक के कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे। लग रहा जैसे सारा घर किसी ने बेहरहमी से तोड़- फोड़ दिया हो। मैंने नेहा को उठाया, उनकी आंखें रो- रो कर लाल हो चुकी थी और पूरे चेहरे पर काजल बिखरा हुआ था। वो मुझे देख कर रोते – सिसकते हुए मुझसे हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी। कहने लगी तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा करूंगी, मगर मुझे छोड़ कर मत जाओ। मैंने उन्हें उठा कर बेड पर बिठाया और चुप कराने लगी। मेरा गुस्सा अब चिंता और एक अजीब सी दया में बदल गया था। मुझे उसकी हालात देख कर तरस आ रहा था कि मेरी वजह आज उनकी यह हालत हो गयी है। मैंने उनसे वादा किया कि मैं उसे छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी और हमेशा एक दोस्त बन कर उनके साथ रहूंगी।
अब अक्सर मैं उनके घर आती- जाती रहती थी। वो मेरी हर बात मानती थी। मैं जानती थी वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं और यह प्यार सिर्फ दोस्त वाला प्यार नहीं था। एक दिन जब उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो मैं उनके साथ उनके घर पर उनकी देखभाल के लिए रुक गई। उस दिन हम दोनों करीब आए और फिर उसके बाद एक- दूजे के बिना रहना भी मुश्किल हो गया।
थोड़े दिन बाद मेरे घर वालों को हमारी बढ़ती दोस्ती के बारे में पता चल गया और पापा ने यह कह कर कि नेहा मेरी लाइफ बर्बाद करना चहती है, मेरा उससे मिलना बंद करवा दिया। भैया और पापा अब मिल कर मेरी शादी करवाना चाहते थे। मैंने कॉलेज में नेहा को यह सब बात बताई। नेहा रोने लगी और मुझे अपनी नस काटने की धमकी देने लगी। मैं डर गई क्योंकि अब मैं भी नेहा को खोना नहीं चाहती थी। हम दोनों ने घर से दूर जाने का फैसला किया और भाग कर दिल्ली आ गये, क्योंकि अब यही एक ऐसी जगह थी जहां शायद लोग हमें इतनी गिरी नजरों से न देखें।
फिलहाल हमने शादी तो नहीं की लेकिन हमें साथ रहते पूरे 3 साल हो गए हैं। हम दोनों यहां एक कॉल सेंटर में जॉब करते हैं और रूम लेकर रहते हैं। दुनिया हमारे प्यार को जिस नजर से भी देखे, लेकिन हम अपनी नजरों में सही हैं।