two ends of life in Hindi Love Stories by Piya books and stories PDF | दो सिरे ज़िंदगी

The Author
Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

Categories
Share

दो सिरे ज़िंदगी

सर्दी का मौसम था इनदिनों मध्य पदेश मे ज्यादही ठंड थी , लोग अक्सर चाई पिने के मौके मे रहते है ठंढ के मौसम मे ,
ऐसे मे चाईवाले कम पड़ने वालो मे से तो नही है , उसमे से एक है हमारे फैज़ल मियाँ उनका भी एक छोटासा tea stall है मध्यप्रदेश की गलियों मे ,
वैसे तो मियाँ फैज़ल Bcom graduate है जैसे तैसे करके उन्होंने graduate किया और जब अच्छी नौकरी नहीं पा सके तो बस ये अपने अब्बूजान की दी हुयी विरासत की अपना tea stall हि चलाने मे लगे है,
हालांकि अब्बूजान अब नही रहे अम्मी तो पहले हि परलोग सिधार चुकी है , और फैज़ल मियाँ उनके एकलौते चिराग , तो भाई अब family मे तो अब अकेले हि थे ,
घर बार तो था उनका साधासा मकान हि था 3 रूम का , फैज़ल की ज़िंदगी मे और कुछ नही था पास के गाव के मामाजी थे जो अभी कबार आते थे फैज़ल से मिलने और उनकी मंडली थी अपने दोस्तों की, और दुकान मे काम करने वाला छोटू बस अब ये थी फैज़ल की family,
कभी अब्बूजान का एक सपना हुआ करता था की ये जो tea stall है उसे कैफ़े बनाने का सपना था , लेकिन अफ़सोस उनका ये सपना तो सपना हि रह गया , तो मियाँ फैज़ल अब उसे हि पुरा करने मे लगे हुए थे ,
घर मे एक सन्दुक रखी थी काले रंग की बचे कुचे पैसे सब उसमे रखते और हर रात खाना खाने के बाद उस सन्दुक को निहारते , सब दोस्त इस बात पे फैज़ल का मज़ाक़ उड़ाते , लेकिन मियाँ बहोत ज़िद्दी अपने उपर अड़े हुए किसी की बात कहा मानने वाले थे,
लेकिन आज रात ऐसा था की फैज़ल बहोत डरा हुआ था न जाने क्यों ऐसा क्या हो गया था उसे है अचनक से संदूक खोली और नोटों की गिनती शुरु की , जब देखा तो 4 लाख रुपये थे ,
ये इतने रुपये 4 साल मे मैने इतने एक्क्ठा किये, फैज़ल जितना अंदर से डरा हुआ था उतनाही खुश भी था...... वजह तो खुश होने जैसी हि थी , अब अब्बू का सपना पुरा होगा मे और मेहनत करूंगा , फैज़ल बहोत मेहनती लड़का था उस की खुशी का ठिकाना नही था उस दिन पुरी रात उस संदूक को निहारता रहा........,
अगले दिन सुबह जब फैज़ल मियाँ स्टॉल पहुंचे तो छोटू को बड़ा हैरान परेशान सा दिखने लगा और सब मंडली के दोस्त भी वही थे सब बहोत परेशान नजर आ रहे थे , फैज़ल ने पूछा क्या हुआ भई सब भूत बनके क्यू खड़े हो? कोई सदमा लगा है क्या ? तो दोस्त बोले हमे तो हलका सा लगा लेकिन अब तुझे जो लगने वाला है वो तो देख , फैज़ल ने पीछे मुड़के देखा तो किसी ने ठीक सामने नया कैफ़े ओपन किया था , देखकर मियाँ सदमे से नीचे बैठ गये कुछ सुझा हि नही , बोल भी नही सके 5 मिनट तक , अरे छोटू ऐसे रतोरात कोंन खोलता है कैफ़े,
मंडली का एक जिगरी दोस्त था जैद उसने कहा पूछ तो सही के किसने खोला है कैफ़े?
बताओ अब किसने खोला है मियाँ बड़े गुस्से मे बोले तो , "ज़ैद हल्के आवाज मे बोले नाज़ भाभी ने खोला है"
तो भाई ऐसा है अब फैज़ल मियाँ के चेहरे पे हल्की सी मुस्कान थी और दिल मे गुदगुदीसी थी,
कोंन है ये नाज़ मे नही जानता किसी नाज़ वाज़ को मंडली जोर जोर से हसनी लगी और कहने लगी चलो नही जानते तो अभी कैफ़े गिरा देते है ' अरे नही यार गिराना मत '
तो बात 6 साल पहले की थी नाज़ फैज़ल की पहली मोहब्बत थी और शायद आखरी भी , school मे है साथ पढ़ते ठगे दोनो , प्यार तो इस हद तक था की फैज़ल मिया नाज़ से 2 साल बड़े थे उसकी कक्षा मे आने के लिए 2 बर fail भी हो चुके थे जान बुझके , उन 2 साल यु पीट चुके थे अब्बा से की पूछो मत , फिर भी हार नहीं मानी ,
जिस दिन फैज़ल ने ठान लिया आज तो प्यार का इजहर कर के हि रहेंगे 10 वी कक्षा का वो आखरी दिन था बड़े बन ठन के चले गये school मे और देखा तो क्या , नाज़ school मे थी हि नही , बस इस बात से परेशान अपनी मंडली के साथ चले गये उसके मोहल्ले देखा तो क्या नाज़ के आब्बाजान का इन्तेकाल हो चुका था ,
चाच्या मंसूर यानि की नाज़ के अब्बाजान बड़े दिलवाले इंसान थे बहोत रईस और खुशमिसाज इंसान थे, ऐसमे अब क्या प्यार का इज़हर करते ? वापस चले आये मूह लटका हुआ था और दुख भी था दिल मे नाज को दुखी देखकर,
नाज का कोई भाई नही ये 2 बेहने थी बडी बेहेन का निकाह हो चुका था वो अपने शोहर के साथ अमरिका रेहती थी जब अब्बा का इंतकाल हुआ तो नाज और अम्मी यहाँ अकेले पड जायेंगे ये सोचकर बडी बेहेन दोनो को अपने साथ अमरीका ले गयी, 5 साल तक नाज और अम्मी अमरीका मे ही थी , और अब 5 साल बाद यहाँ वापस आ गये थे,
फैजलं मियाँ आज अपने ही खायलो मे दुबे हुये थे आज 5 साल बाद नाज को देखना था तो दिल चल बिचलं रहा था , और सब दोस्त फैजलं का मजाक उदा रहे थे छेड रहे थे , फैजलं कभी शर्माता तो कभी चिड जाता इसी दौरान जैद बडी हलकी आवाज मे बोल उठा ' अगर नाज की शादी हो गयी होगी तो , दिल बैठ गया अब क्या करे , नही यार नही हुयी होगी वरण यहाँ वापस क्यू आती अपने ही दिल को दिलासा देते हुये फैजलं बोल रहा था,
बस इतने मे छोटू चिल्लाता हुआ अंदर आया बोला भाभी आ गयी फैजलं का चेहरा लाल हो उठा था और हाथ और पैर कपकपाने लगे अपने ही दुकान के पेहले table पे फैजलं बैठकर उस देख रहा था आज 5 साल बाद उसकी झलक के लिये बडे बेसब्री से देख रहा था , , सब थम गया वही का वही तो दिखाई दी रेशमी पिले रंग के दुपट्टे मे आँखो काजल लगाने का वो ही अंदाज था वही गुलाबी ओठ और घुंगराले लंबे बाल आते ही अपनी खुशबू से मेहकने की अदा आज भी नही बदली थी उसकी फैजलं की दुकान के सामने से गुजरते वक्त अपने हाथों से लट को पीछे की तरफ मोड डिया और अपने कॅफे मे चली गयी, फैजलं थम गया एकदम से उठा और घर चला गया ,
अब पता नही क्या चल रहा था दिमाग मे फैजल के ,
अपना स्कूल का बस्ता खोलकर बैठ गए उस बस्ते मे 2 पेन्सिल थी एक पे लिखा था नाज और एक पे फैजल , फिर नाज के छोटे दो काले रंग के क्लिप और वो गुलाब जिसे फैजल इजहार करते वक़्त देने वाला था वो जी हा गुलाब सुख गया था लेकिन खुशबु अभीतक वैसी हि थी ,
ये सारी यादें इतने साल तक आपमें पास समेटकर रखी थी फैजल ने पूरी रात बस ये देखने मे हि गुजर गई ना होश रहा कुछ खाने पीने का नहीं टी स्टाल का , अगले सबह बडे बन ठनकर निकले फैजल मिया आखिर आज भी दीदार करना था अपनी मोहब्बत का ,
जब दुकान पहुंचे छोटू दुकान कि सफाई कर रहा था आते हि बोला आज बड़े जच रहे हो भैया , इसबात पे मिया शर्मा गए और फिर उस स्टूल पे डेरा जमाये बैठे रहे बस यू हि रस्ते पे नजरें गडाए देखते रहते , कब नजर आएगी .....
आखिर कर आ गई नाज आज गुलाबी रेशमी दुप्पटा ओढ़ रखा था , लेकिन आज नाज अकेली नहीं थी साथ मे बच्ची भी बहुत हि प्यारी ऊँगली पकड़े चल रही थी , ये बात फैजल को खाए जा रही थी कौन है ये बच्ची कहीं नाज कि तो नहीं और शादी कब हुई उसकी ये बात बहुत सत्ता रही थी। फिर अपने दोस्त जैद को बुलाया और पूछा 'ये पता कर ज़रा ये बच्ची कौन है और नाज कि शादी हुई है या नहीं' क्यूँ क्या हुआ ऐसे परेशान और हैरान क्यूँ हो जैद हसते हुए बोला , जितना बोला है उतना कर अच्छा अच्छा पता करता हूँ ,
शाम जब मंडली एक साथ बैठी तो ये हि बात चल रही थी कि फैजल आ गया फिर जिद्द ने अपनी बात शुरू कि वो बच्ची नाज कि नहीं है उसकी बहन कि है बहन और शोहर कि accident मे मौत हो गई तो नाज बच्ची और माँ को अपने साथ लेकर यहाँ आ गई , और ये अब्बा कि जगह पे restorunt चालू किया अब शादी नहीं कि उसने, बात सुन कर फैजल थोड़ा सुन रह गया तो जिद्द बड़ी हलकि आवाज मे बोला अब तो बोल दे अपने दिल कि बात अब शायद किस्मत ये चाहती है कि तुम दोनों मिल जाओ , "नहीं यार नहीं अब खा ये सब , अरे क्यू नहीं अच्छे खासे दिखते हो अबतक अच्छा कमा भी लेते हो कमी क्या है तुझमे बोल , वो शायद मुझे पसंद नहीं करती , करती है इसलिए तो अभीतक शादी नहीं कि , तू बोल दे वरना हम बोल देंगे , सब दोस्त एकसाथ बोल पड़े ........नहीं मे बोलूंगा ,
तो तय रहा अब बात करनी है , अगले दिन फैजल अपना पिला खर्या पेहेन कर दुकान पहुंचा देखा तो नाज पहले से हि अपने दुकान मे बैठी थी , नाज एक्द्फ फैजल कि तरफ देखा भी था , फैजल हिम्मत जुटाकर दुकान के अंदर चला गया समझ नहीं आया कि क्या बोलूँ तो , नाज हि उसे देख मुस्कुराने लगी , कुछ देर ऐसेही फिर नाज ने पूछा कैसे हो फैजल अच्छा हूँ तुम कैसी हो मे भी ठिक्क हूँ , मुझे कुछ बात कहनी थी ,
हा कहो क्या बात है ?
वो क्या ....... ये अपना tea stall और ये restorunt मिलकर एक हो सकती है ...... मत लब अगर तुम चाहो तो मतलब , वैसे जैसे हम एक हो सकते है क्या ????
नाज हस पड़ी और बोली ये बात सुनने के लिए 5 सल तक इंतजार किया मैंने और तुम अब बोल रहे हो सुनकर फैजल मिया शर्मा गए ।
बड़े बुजुर्ग और नाज़ कि अम्मी और फैजल कि दोस्त मंडली मिलकर निकाह तय कर लिया और अपना tea stall कि जगह अब अपना restorent बन गया ........।

हा मोहब्ब्त तो बहुत होती लेकिन ज़िंदगी खा इतनी बड़ी थी ,
ना सोच थी ना जान थी फिर एक हिस्से मे हमारे भी
दो सिरे कि ज़िंदगी थी........!!!!!