Robert Gill ki Paro - 7 in Hindi Love Stories by Pramila Verma books and stories PDF | रॉबर्ट गिल की पारो - 7

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रॉबर्ट गिल की पारो - 7

भाग 7

पर्दा गिरते ही पीछे की पंक्ति में बैठे अमीर साहबजादे जा चुके थे। लेकिन वह कभी उनके चेहरे पहचानेगा भी नहीं। कभी यदि वे किसी स्ट्रीट पर दिख जाएं तो भी नहीं।

वह ग्रीन रूम में पहुंच गया। उसने मि. ब्रोनी को नाटक की सफलता के लिए बधाई दी। अभी यहाँ चार दिन और नाटक खेला जाएगा। लंदन की जनसंख्या के हिसाब से यहाँ नाटक के पांच दिन रखे गए थे। बाकी शहरों में तीन दिन और भीड़ के हिसाब से उन्हें घटाया-बढ़ाया जा सकता था।

वह लीसा के सामने बैठा था। उसने लीसा को उसके श्रेष्ठ अभिनय के लिए पुन: बधाई दी। लीसा कुछ  मुर्झायी-सी दिख रही थी।

‘‘रॉबर्ट, मैं डरती हूँ, तुम्हारे लिए।’’

‘‘जानता हूँ, मैं सैनिक हूँ। और शायद तुम हैरीन की जगह मुझे पाती हो।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘हाँ! सचमुच।’’ उसने रॉबर्ट की हथेलियों को पकड़ लिया और कस-कर पकड़े रही।

‘‘ऐसा कुछ नहीं है लीसा। यह महज एक ड्रामा था।’’

‘‘रॉबर्ट, हमारी ज़िंदगी भी तो एक ड्रामा है। हम सारी ज़िंदगी नाटक के पात्रों की तरह अपनी भूमिकाएं अदा करते रहते हैं। न जाने किस राह कोई आता है। किस राह वापिस चला जाता है। रॉबर्ट मैं तुमसे बिछुड़ने से डरती हूँ।’’

रॉबर्ट ने आश्चर्य से लीसा की ओर देखा। सुहाने मौसम में भी रॉबर्ट के माथे पर हल्का-सा पसीना आ गया।

‘‘तुम मेरे घर आओगी?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘हाँ।’’ लीसा ने कहा।

‘‘मैंने तुम्हारे रेखाचित्रों में रंग भर दिया है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

वह मुस्कुरा दी।

‘‘मि. ब्रोनी भी आने को कह रहे थे।’’ लीसा ने कहा।

‘‘ठीक है। मेरा घर तीन कमरों का है। वे भी आएंगे तो मुझे खुशी होगी।’’

’’’

 

नाटक के चार दिन निकल चुके थे। रॉबर्ट हर दिन नाटक देखने जाता था। मकसद तो लीसा को मिलने का ही होता था। बातें होतीं। लेकिन लीसा कुछ गुमसुम रहने लगी थी।

जितना रॉबर्ट से मिलने का सुख था उतना ही वह उससे दूर जाने से घबराने लगी थी। नाटक की समाप्ति के पश्चात रॉबर्ट और लीसा लंदन की सड़कों पर इधर-उधर भटकते रहते थे। वैसे भी उजाला यहां देर तक रहता था और हवा में ठंडक एवं सुहानापन था। किसी पेड़ के नीचे कोई पत्थर बैठने लायक दिखता तो दोनों बैठ जाते।

दूर, जहाँ क्षितिज, पेड़, पहाड़ सब कुछ दिखता था, वहाँ धुंध तैर रही थी। सड़क के किनारे लगे दीपस्तंभ लपडुप कर रहे थे। धुंध को देखकर लीसा को कोई सपना याद आया। खुली और जागती आँखों का सपना... कि वह रॉबर्ट के साथ है। उसके घर में.... उसकी सांसे रॉबर्ट की गर्म सांसों से टकरा रही हैं। वह स्तंभित थी और व्याकुल भी। जानती थी यह सपना ज्Þयादा देर टिकेगा नहीं।  रॉबर्ट को लौटना था और उसे भी लौटना था। खट से कुछ टूटता है, शायद वृक्ष की कोई नन्हीं टहनी। जिसके साथ मुरझाए और सूखे पत्ते झरते हैं। स्वप्न अधिक देर तक रहने वाली वस्तु नहीं है। जानती थी लीसा... फिर स्वप्न को याद रखने की कोई मजबूरी? बता चुका था रॉबर्ट कि वह सेना में भर्ती हुआ है। और मर्जी से इंडिया जाना चुना है। क्या पता रॉबर्ट उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखे। तो क्या वह अपनी माँ जो उसके सहारे उसी के लिए जीवित हैं को छोड़कर जा सकेंगी ? संभवत: उदासी इसीलिए है। फिर वह रॉबर्ट को कहेगी कि वह असमर्थ है, उसके साथ चलने को, तो क्या रॉबर्ट अपने देश में रुकेगा? सवालों से घिरी थी लीसा और उसके चारों ओर तेज आंधी की तरह सवाल आ जा रहे थे।

पांच दिनों के नाटक शो के पश्चात लीसा और मि. ब्रोनी रॉबर्ट के घर आ गए। पूरा एक सप्ताह का अंतराल था दूसरे शहर में नाटक खेलने के लिए। इस एक सप्ताह में लीसा को अपनी माँ से मिलने भी जाना था। लेकिन अब लीसा ने तय किया था कि सात दिनों में उसे चार दिन रॉबर्ट को देने हैं। एक दिन यात्रा में निकलेगा। एक दिन माँ के पास और पुन: यात्रा।

मि. ब्रोनी और लीसा के आने के पूर्व रॉबर्ट ने मिलिट्री केंटीन से तीनों के लिए खाना बुलवा लिया था। किचिन में उसने सभी प्लेटों को धोकर पोछ लिया था। टमाटर, नीबू, प्याज, पत्ता गोभी, बड़ी मिर्चे यह सभी उसने केंटिन के रसोई (कुक) से कटवाकर बुलवा ली थीं।

भुने काजू, छोटी तली मछलियां, उबला चिकन, तली मूंगफलियां, लम्बे कटे तले आलू, विभिन्न प्रकार के मसाले डाले हुए, और स्वीट पोटैटो, उबले अंडे और वाइन की एक बोतल। नक्काशी वाले धातु (मैटल) के तीन लम्बे गिलास, जो धुले-पोछे और चमकदार थे। यह गिलास टैरेन्स अपनी दादी के पिता के घर से लाया था।

रॉबर्ट किचन में रखे पानी को इधर-उधर उंगलियों से छेड़ रहा था। घर खुला पड़ा था। तभी दीवार की ओट से लीसा ने किचिन में झाँका। और दौड़कर वह पीछे से रॉबर्ट से लिपट गई। रॉबर्ट ने कमर के इर्द-गिर्द उसके लिपटे हाथों को पकड़ लिया और बेतरह प्यार और सुख से आँखें मूंद लीं। कुछ देर वे इसी अवस्था में रहे। फिर लीसा ने उसे छोड़ दिया और रॉबर्ट ने सामने से आकर उसे लिपटा लिया। उसने अपने सीने पर लीसा की गर्म सांसों को महसूस किया और उसके होठों को चूम लिया। लीसा ने आँखें मूंद लीं और जब खोलीं तो उसने लीसा की आँखों में अथाह प्यार की गहराई को महसूस किया।

मि. ब्रोनी बाहर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गए थे। उनके सिगार की धुंएं की गंध यहाँ तक आ रही थी।

लीसा रॉबर्ट के आलिंगन से मुक्त हुई और गिलास में पानी भरकर मि. ब्रोनी के पास आ गई। तब तक रॉबर्ट ने भीतर के कमरे में जहाँ एक बड़ी टेबिल बीचोंबीच लगी थी और उसके चारों ओर सोफेनुमा कुर्सियां जो चमकदार लकड़ी की थीं लगा दीं। उसने टेबिल पर व्हिस्की की बोतल रख दी, गिलास और खाने-पीने की प्लेटें रख दीं।

भीतर बैठकर मि. ब्रोनी चुप ही थे। उन्होंने कोट उतारकर कुर्सी पर टांग दिया। और ‘बो’ खोलकर कोट के पाकिट में रख दी।

‘‘शुरू करें मि. ब्रोनी?’’ रॉबर्ट ने पूछा।

‘‘ठीक है मेरे बच्चों...’ उन्होंने कहा।

तीनों गिलास में शराब डालकर रॉबर्ट ने लीसा की ओर देखा कि पानी लाना तो वह भूल ही गया। लीसा उठकर पानी लाने चली गई। तभी रॉबर्ट ने कहा-‘‘मि. ब्रोनी क्या अगाथा की आगे की कहानी आप बताएंगे।’’

उन्होंने इशारे से मना किया।‘‘आज नहीं, आज मैं सोना चाहता हूँ। हमारे सामने तीन दिन और हैं। शायद मैं बाकी बची ज़िंदगी को तुम्हारे समक्ष उंडेल सकूं।’’

‘‘लेकिन शायद टैरेन्स तब तक लौट आएगा।’’

‘‘ठीक है। मैं भी उससे मिलना चाहता हूँ। और शायद न भी लौटे इन तीन दिनों में। लीसा ने तो तुमको अपना चार दिनों का कार्यक्रम बता ही दिया होगा।’’ मि. ब्रोनी ने कहा।

पास खड़ी लीसा मुस्कुरा दी। पानी टेबिल पर रखकर वह बैठ गईं। रॉबर्ट ने गिलास पानी से भर दिए। अधिक देर नहीं लगभग डेढ़ घंटे में पीना और डिनर भी समाप्त हो गया।

एक लम्बे दीवान पर मि. ब्रोनी बेसुध लेट गए। और क्षणों में ही उनके खरार्टों की आवाज आने लगी। लीसा ने मि. ब्रोनी को कम्बल चादर ओढ़ाया और उनके सिर के नीचे तकिया लगा दिया।

जूठे बर्तन को वहीं टेबिल पर छोड़कर रॉबर्ट लैम्प उठाकर और दूसरे हाथ से लीसा का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले आया।

लीसा सकुचाती हुई रॉबर्ट के कमरे में दाखिल हुई। बहुत बड़े कमरे में दो पलंग जुड़े हुए लगे थे। एक ओर रिवॉलविंग रैक (फी५ङ्म’५्रल्लॅ फीू‘) लगा था, जो काली शीशम की लकड़ी का बना था। उसमें किताबें रखी थीं। एक ओर बड़ा वैसा ही काला टेबिल जिस पर परत-दर-परत पेन्टिंग, रेखाचित्र आदि रखे थे। खुरदुरा जूट का सफेद कपड़ा उस पर ढका था। एक लकड़ी का डिब्बा जिसमें पेन्टिंग के रंग थे और वहीं छोटी बड़ी कूचियां (ब्रश)।

लैम्प के मध्यम प्रकाश में लीसा जिसे रॉबर्ट ने मेज के सामने रखी कुर्सी पर बिठा दिया था, का चेहरा चमक रहा था।

व्हिस्की की मदहोशी में उसकी आँखों में लाल डोरे चमक रहे थे। हालांकि उसने एक लार्ज पैग ही पिया था। लेकिन वह स्ट्रांग थी और उसे लड़खड़ा भी रही थी।

सामने थी पांच पेन्टिंग लीसा की। चेहरे के पीछे झाड़ियाँ थीं। दूर दिखते दरख्त, चर्च की धुंधली आकृति और कहीं पत्थर पर बैठी लीसा, जहाँ उसके ब्राउन बाल उड़ते नजर आ रहे थे। वह मंत्रमुग्ध-सी बैठी रह गई। सभी पेन्टिंग की यादें जब रॉबर्ट इन्हें स्कैच कर रहा था स्मृतिपटल पर ताजा हो उठीं। अपना ही चेहरा सामने कैनवस पर देखकर वह शरमा गई।

‘‘क्या, यह मैं हूँ?’’ उसने रॉबर्ट की ओर पलक झपकाते हुए पूछा।

‘‘हाँ! तुम और तुम्हें मालूम भी नहीं होगा कि तुम इतनी सुंदर हो।’’ रॉबर्ट ने उसके चेहरे की मासूमियत पर फिदा होते हुए कहा।

‘‘मैं यह पेन्टिंग रख लूं?’’ लीसा ने कहा।

फिर मन ने सोचा‘‘तुम्हारी यादगार स्वरूप।’’

‘‘हाँ! रख लो, लेकिन एक पेन्टिंग मेरे लिए है। उसने हाथ में वह पेन्टिंग निकाल ली। इसमें लीसा के चेहरे पर बाल उड़ रहे थे। जिसके पीछे सफेद फूलों की कंटीली झाड़ियाँ थीं। जिस पर लीसा बैठी थी यह पत्थर उन दोनों ने ही खोजा था। उसने वह पेन्टिंग उठाकर पीछे की ओर रख दी।

‘‘बाकी तुम ले जा सकती हो।’’

लेकिन लीसा ने सिर्फ एक ही पेन्टिंग लेने की इच्छा प्रकट की।

कुर्सी पर बैठी लीसा के बालों में लगी क्लिप खोलते हुए रॉबर्ट ने उसके बाल बिखरा दिए। लीसा ने सुख से आँखें मूंद लीं। कब दोनों पलंग पर आ गए पता ही नहीं चला। लीसा ने रॉबर्ट को आलिंगनबद्ध कर लिया और रॉबर्ट ने उस पर चुंबनों की बौछार कर दी। रॉबर्ट और लीसा असीम प्रेम में एक दूसरे पर समर्पित होते गए।

सुबह बहुत देर से नींद खुली थी। सूरज की किरणें खिड़की से होती हुई आईं और दोनों की नग्न देह को गुदगुदाने लगीं।

लीसा ने रॉबर्ट को जागते पाया और फिर अपने आपको देखकर वह लज्जा से लाल हो उठी। रॉबर्ट करवट लेकर लीसा को पुन: अपने आलिंगन में लिया। प्रेम हिलोरे मार रहा था। उन दोनों की साँसें फिर तेज चलने लगी थीं।

बाहर बरामदे में मि. ब्रोनी अब तक दो बार चाय पी चुके थे। और तेजी से टहल रहे थे। उन्हें सब कुछ समझ में आ गया था।

सुबह नाश्ता भी केंटीन से आया। और एक लम्बे मैटल के फ्लास्क में कॉफी भी आई। उबले अंडों पर काली मिर्च, नमक, दालचीनी छिड़ककर मि. ब्रोनी जल्दी-जल्दी खाने लगे। शायद उन्हें तेज भूख लगी थी। रात्रि का खुमार अभी भी उनकी आँखों में स्पष्ट देखा जा सकता था। वे लीसा से रूठे दिख रहे थे। अभी तक थियेटर के दौरान वे पिता रूप में लीसा के समक्ष थे। अब ऐसा लग रहा था मानो सारा कुछ हाथ से फिसलता जा रहा है और उनकी हथेलियां रीती की रीती रह गई हैं। मन में बहुत संशय की स्थिति थी। क्या यह क्षणिक प्रेम का आवेग तो नहीं है। उनकी अनुभवी और बूढ़ी आँखें सच को तलाश रही थीं।

वे उदास भी थे। शायद लीसा के भविष्य को लेकर चिंतित भी।

शाम को अपने लंबे मोजों के साथ वही जूते पहनकर वे घूमने निकल गए। जो कि गंदे दिखते थे और अपने प्रति लापरवाही को व्यक्त करते थे।

वरांडे की दीवार पर चढ़कर और नीचे लगी फूलों की क्यारियों में पैर लटकाकर रॉबर्ट और लीसा बैठ गए। दोनों ने ढेर सारी बातचीत की। लीसा ने अपने घर के बारे में बताया। उसके यहाँ एक नील गाय भी थीं सिलेटी (ग्रे) कलर की। और बहुत हृष्टपुष्ट भी। वह अच्छा दूध देती थी। उसे गर्भधारण कराने उस जगह ले जाना पड़ता था जहाँ उसके ही जैसे बैल होते थे।

रॉबर्ट ने मुस्कुराकर लीसा की ओर देखा। दोनों इस बात को लेकर और महसूस करके खूब खिलखिलाकर हँसते रहे। स्वस्थ, सफेद, व्यवस्थित दंतपंक्ति थी लीसा की इसलिए उसकी हँसी भी बहुत सुंदर थी। रॉबर्ट उसके ओवलशेप चेहरे, पतली नाक, सुंदर ठुड्डी (चिक बोन) को मुग्ध होकर देखता रहा।

फिर लीसा ने बताया-‘‘नील गाय के बच्चे भी उसी जैसे होते थे। जब बच्चा बड़ा हो जाता तो माँ उसे बेच देती। हाँ! उसके पिता ने यह काम अच्छा किया था कि उनका एक छोटा-सा मकान था। सामने जगह थी बल्कि मकान के चारों ओर जगह थी। जहाँ माँ मौसम के अनुसार सब्जियां उगाती थीं। गाय के दूध से बाकी खर्च चलते थे। थियेटर की आय तो थी ही जब हम किसी फेस्टिवल पर नए कपड़े बनवाते थे। माँ का और भी काम था जैसे क्रोशिए, शटल पर लेस बनाना, स्वेटर बुनना वगैरह। यहाँ तक की अमीर घरों की औरतें माँ से यह सब खरीदने और पुलोवर आदि बनवाने आती थीं। रॉबर्ट! मेरा इन कामों में कभी मन नहीं लगा। बस मुझे फूल-सब्जी के बगीचे में माँ के साथ काम करना अच्छा लगता है।’’

तुम्हारे बिना उनको घर सूना लगता होगा।’’ रॉबर्ट ने निरर्थक सवाल किया।

‘‘हाँ! लगता ही होगा। लेकिन माँ ने झबरे बालों काला कुत्ता पाला है। बिल्लियां भी माँ के पास आ जाती हैं। दूध होता है न इसलिए। माँ ने सभी बिल्लियों के नाम रखे हैं।’’

यह शायद उस निरर्थक सवाल का उत्तर था।

‘‘माँ कुत्ते-बिल्लियों के बारे में, उनकी बीमारियों के बारे में और दी जाने वाली दवाइयों के बारे में इतना जानती हैं कि आसपास के लोग उनसे सलाह व दवा पूछने आते हैं। हमारे घर के बाजू में हमारी नेबर (पड़ोसन) मिसिज सेमुअल तो माँ की अच्छी फ्रेंड हैं। अपनी बिल्ली की बीमारी आदि में वह माँ से ऐसी सलाह लेती हैं मानो वे चिकित्सक हैं।’’ घर की यादों में खोई लीसा छोटी-छोटी बातें भी रॉबर्ट को बताती रही।

तभी मि. ब्रोनी सामने से आते दिखे। दोनों दीवार से कूद कर नीचे उतरे और खड़े हो गए।

‘‘कैसे हो मेरे बच्चों?’’ मि. ब्रोनी ने बहुत आत्मीयता से पूछा।

दोनों ने सिर हिलाया।

रॉबर्ट ने पूछा - ‘‘मि. ब्रोनी, आप कैसे है?’’

‘‘मैं ठीक हूँ। सारी थकावट उतर चुकी है। अच्छा है तुम यहाँ हो वरना हमें रहने की जगह तलाशनी होती या फिर हम घर लौट चुके हाते।’’

वे पुन: बोले-‘‘रॉबर्ट! यहाँ दूर तक मैं घूमने गया था और लगातार अगाथा के बारे में सोचता रहा। आज सिलसिलेवार जितना मुझे मालूम है बताऊंगा। शायद टैरेन्स भी इतना नहीं जानता हो। अच्छा है तुम्हारा बचपन का दोस्त है। और दोस्त के बारे में जानकारी रखना अच्छा है। शायद तुम उसे सब बताओ। क्यों लीसा? दोस्त के बारे में सब कुछ जानना ही चाहिए। तुम रॉबर्ट की ज़िंदगी को तो अब अच्छी तरह से समझ चुकी होगी।’’ उनका इशारा रात की ओर था। और यह भी कि वे उन लोगों के बारे में सब कुछ जान समझ चुके हैं।

क्या ऐसा होने से पहले लीसा को रॉबर्ट के बारे में सब जानना समझना जरूरी नहीं था। उनकी बूढ़ी आँखें इन बातों का उत्तर तलाश रही थी। रॉबर्ट इंडिया चला जाएगा। लेकिन क्या वह जाने से पूर्व लीसा से विवाह करेगा। बुजुर्ग लोगों का वैसे भी शक करना लाजिमी होता है। क्योंकि उनके पास ज़िंदगी का अनुभव होता है।  यदि रॉबर्ट यूं चला गया तो क्या लीसा की माँ मि. ब्रोनी से प्रश्न नहीं करेगी? आखिर सारे इंग्लैंड में घूमते रहने के लिए स्वीकृति ही उनके कारण मिली है। यहाँ का समाज भी औरतों के लिए इतना हिमायती नहीं है कि उन्हें क्षमा मिलती जाए। मध्यम और निचले वर्ग की महिलाएं ही रुपया कमाने के लिए कुछ घरेलू कार्य (व्यवसाय) करती हैं। अमीर घर की महिलाएं तो कुछ भी नहीं करतीं। पुरुष इस बात को पसंद भी नहीं करते हैं।

लीसा चुपचाप किचिन में चली गई। उसने तीन गिलासों में चाय बनाई। नीबू निचोड़ा और बाहर ले आई। तब तक रॉबर्ट और मि. ब्रोनी में कोई बातचीत भी नहीं हुई थी। रॉबर्ट का चेहरा कुछ उतरा हुआ था मि. ब्रोनी की इस बात से कि ‘लीसा, अब तक तुम रॉबर्ट की ज़िंदगी को अच्छी तरह समझ चुकी होगी।’

और जब वह लीसा को बताएगा कि उसकी सगाई हो चुकी है तो क्या यह लीसा के प्रति अन्याय नहीं होगा? क्या वह भी फ्लावरड्यू की ज़िंदगी से दूर जा सकेगा? बीच में फादर रॉडरिक हैं और एक अमीर व इज्जतदार घराना रिकरबाय का। अगर सगाई टूटेगी तो क्या वह फादर का शर्म से झुका हुआ चेहरा सहन कर पाएगा? क्या रिकरबाय खानदान यूं बेइज्जती सहकर खामोश बैठा रहेगा? प्रश्नों के झंझावात में रॉबर्ट घिर चुका है। लीसा उससे प्रेम करने लगी है। वह भई उससे प्रेम करने लगा है। और हो सकता है वह मानने लगी हो कि रॉबर्ट अपने आप को कितने बंधन में महसूस कर रहा है।

और जब लीसा की माँ सुनेगी कि रॉबर्ट उसे छोड़कर इंडिया चला गया तब?

चाय ठंडी हो रही थी। मि. ब्रोनी चाय पीकर उठ खड़े हुए। अब सामने लीसा बैठी थी। उसने रॉबर्ट को छेड़ा- ‘‘क्या सोच रहे हो रॉबर्ट? क्या मेरे डरपोक प्रेमी का भय सता रहा है?’’

बहुत मुश्किल से जैसे किसी ने जबरदस्ती की हो रॉबर्ट हँस दिया।

उसे निश्चय ही इस बारे में फादर रॉडरिक से पूछना होगा। वे सही राय बताएंगे। इस समय तो वह दोराहे पर खड़ा है। जैसे छोटा बच्चा गलती करके भी माँ की गोदी में सिर रखकर निश्चिन्त हो जाता है। उसने चाय का गिलास उठाया। चाय ठंडी ही थी। उसने मिलिट्री केंटीन की तरफ चलने का इशारा लीसा को किया।

फिर तीन डिनर पैक करने को उसने केंटीन के खानसामा (कुक) को कहा। साथ ही ड्रिंक के साथ के लिए सलाद, भुने-सिके नाश्ते और फ्राईड फिश भी ले ली।

‘‘आज के बाद बस दो दिन और रॉबर्ट।’’ लीसा ने दु:खी मन से कहा। यदि रॉबर्ट कहता कि लीसा रुक जाओ। बस अब यहीं रहो, तो शायद वह इन्कार नहीं कर पाती।

रॉबर्ट ने उसके बालों को आगे करते हुए कहा-‘‘कोई बात नहीं लीसा, ज़िंदगी में कभी-कभी तीन-चार दिन ही इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि उन दिनों की यादों के सहारे पूरी ज़िंदगी काटी जा सकती है।’’

लीसा चौंक पड़ी। इससे पहले कि वह इन शब्दों को आत्मसात कर पाती... पीछे की टेबिल से हँसी का जोरदार ठहाका सुनाई पड़ा। रॉबर्ट ने देखा वे अपने में ही मस्त थे। किसी का ध्यान लीसा या रॉबर्ट की ओर नहीं था।

लीसा गुमसुम थी।

’’’

दोनों घर लौटे तो देखा सामने वाले कमरे में मि. ब्रोनी कोई पुस्तक पढ़ने में तल्लीन हैं। दोनों किचिन में आ गए। रॉबर्ट ने गिलास साफ किए। तब तक लीसा ने साथ खाए जाने वाले नाश्ते प्लेटों में निकाल दिए। उसने करीने से सलाद भी प्लेट में सजा दी।

सभी सामान मि. ब्रोनी के सामने रखी टेबिल पर रख दिया गया। रॉबर्ट ने व्हिस्की की बोतल टेबिल पर रखी। मि. ब्रोनी उठकर बैठ गए। इधर-उधर की बातें होती रहीं। फिर मि. ब्रोनी स्वयं बोले- ‘‘रॉबर्ट, जो कहानी अधूरी थी अगाथा की आज वह पूरी कर लेते हैं। आज पूरी नहीं हो पाई तो दो-तीन दिन  और हैं सामने। ऐसा लगता है रॉबर्ट, मानो अगाथा मुझे स्वयं आकर प्रेरित कर रही हो कि आपको सुनाना ही है। टैरेन्स को भी पता चलना चाहिए कि उसकी ‘मॉम’ ने क्या-क्या भुगता है। और उसकी ‘मॉम’ की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई। माध्यम तुम बन गए कि टैरेन्स को बताओ। और मैं सचमुच चाहता हूँ कि रॉबर्ट तुम टैरेन्स को बताओ।’’

‘‘हाँ! मि. ब्रोनी मैं जरूर कोशिश करूंगा उसे बताने की। लेकिन वह अपनी माँ को लेकर बेहद संजीदा है (भावुक है) सुनना चाहेगा या नहीं कहा नहीं जा सकता।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘मैं नाटक लिखता हूँ। पर इस कथानक पर कभी नहीं लिख पाऊंगा। यह नाटक नहीं, बल्कि शोकगीत है। जो गाया नहीं जाता, गला भर आता है।’’

गिलासों में शराब उंडेल दी गई। ‘‘आज अगाथा के नाम, क्योंकि इस घर में कहीं न कहीं अगाथा मौजूद है क्योंकि टैरेन्स यहाँ रहता है।’’ मि. ब्रोनी ने कहा और तीनों के गिलास आपस में टकराए। भुनी मूंगफली के चार-पांच दाने उठाकर मुंह में डालते हुए वे बोले- ‘‘मैरी जॉन घर में तो थीं लेकिन उनका ध्यान हमेशा अगाथा को तकलीफ देने में ही लगा रहता था। टैरेन्स शायद तब दस ग्यारह वर्ष का होगा।

किम कुरियन वापिस जा चुका था। टैरेन्स भी स्कूल जाता था। अगाथा अकेली हो चुकी थी। जबसे किम उसकी ज़िंदगी में आया था वह अंतमुर्खी हो गई थी। दिन भर किताबें पढ़ते रहना और कुछ न कुछ लिखते रहना। किताबों का शौक किम ने ही उसके भीतर जगाया था। यह भी सच था कि किताबें नहीं होतीं तो अगाथा अपना दिन कैसे बिताती। दिन भर किताबें पढ़ते रहना और कुछ न कुछ लिखते रहना। अगाथा की डायरी उसकी छोटी-छोटी खुशियों एवं त्रासदियों की एक लंबी दास्तान थी। अक्षरश: कदम-दर-कदम उसने अपनी डायरी के साथ न्याय किया था। यह एक ऐसी औपन्यासिक आत्मकथा थी जिसे शायद अच्छे से अच्छे लेखक भी नहीं लिख पाते। आत्मकथा में कितनी बातें लेखक छुपा जाता है लेकिन अगाथा... किसका डर था उसे... डायरी उसकी थी। उसने जॉन एफ पीटर और माँ मैरी से तिरस्कार ही पाया था। अत: वह इन लोगों से विमुख हो गई थी। पहले तो वह माँ मैरी जॉन की देखभाल भी करती थी। लेकिन बाद में उसने सब कुछ छोड़ दिया। जहाँ से प्रेम का एक अंश भी नहीं मिलेगा वहाँ बलिदान देने का क्या तात्पर्य?

मैरी जॉन से उसकी कोई बहस हो चुकी थी किताबों में मन नहीं लग रहा था। वह बाहर जाकर पौधों में उलझ गई। कहीं घास उखाड़नी थी, कहीं जंगली पौधों को उखाड़कर फेंकना था। बाउंड्री वाल कांटेदार झाड़ियों से बनाई गई थी। जबरदस्ती उसमें हाथ लगाने से हाथों में खून की लकीरें आ गईं थीं।

यह सब विस्तृत बातें या तो वह डायरी में लिखा करती थी या अपनी माँ को बताती थी। यह सब उसकी माँ ने ही उन्हें बताया था और अगाथा की डायरी उन्हें सौंपी थी। अपने आपको तकलीफ देने में अगाथा को कौन-सा सुख मिलता था यह शायद उसे ही नहीं मालूम था। दोनों कलाइयों में और हथेलियों में खून की बारीक लम्बी लाइन हो गई थीं। अगाथा बुदबुदा रही थी-‘पता नहीं बुड्ढी को क्या हो गया है, जीने ही नहीं देती। देख तो रही है कि जॉन एफ अपनी नई ज़िंदगी में मस्त हो रहा है।’

हाँ! रॉबर्ट, वह जीनिया के साथ पास के ही शहर में रह रहा था। नानाजी से काफी रुपया मिला तो उसने मलाया से रबर मंगवा कर यहाँ बेचने का कारोबार शुरू किया। जूट का व्यापार तो वह कर ही रहा था। अच्छा खासा अमीर हो गया था। मैरी जॉन कहती थी-‘‘देखा, उसकी किस्मत जीनिया के साथ रहते हुए फल-फूल रही है। इस मनहूस के साथ तो उसे कुछ नहीं मिला।’’

तब अगाथा ने जवाब दिया था-‘‘माँ! अपने नानाजी के रुपयों से ज़िंदगी को जीना, क्या इसे किस्मत कहोगी? मैं ही मनहूस हूँ, बल्कि वह ही मनहूस है जो दूसरों के रुपयों पर फल-फूल रहा है।’’

‘‘क्या? तुमने मेरे बेटे को मनहूस कहा?’’ माँ चिल्ला पड़ीं।

‘‘हाँ! कहा। आपने भी तो मुझे मनहूस कहा। क्या कुछ भी कहते रहने का अधिकार सिर्फ आपको है।’’

‘‘अच्छा! इतना कहने की हिम्मत कैसे आ गई? भिखारिन, अब देखना जब जॉन आएगा तो तेरी क्या हालत करवाऊंगी।’’ माँ ने कहा।

धीमे से अगाथा ने कहा-‘‘यही तो हमेशा आपने किया है। अपने बेटे के दुष्कर्मों पर परदा डाला है। यदि उसे अनुशासन सिखातीं तो बिगड़ैल सांड नहीं बनता।’’

कहते हुए और बहस को निरर्थक जानकर अगाथा बाहर बगीचे में ही काम करती रही। कितने जंगली पौधे उग आए थे। हमेशा ही किम ने उसे कहा है कि वह आंट के साथ न भिड़ा करें। वे बदमिजाज हैं। लेकिन अगाथा जानती है कि उनके साथ रहो तो जानो। दिन भर की बड़बड़ाहट कौन सुन सकता है? बार-बार अगाथा ने गुस्से में कंटीली झाड़ियों में बगैर सावधानी बरते हाथ डाला है और घनी झाड़ियों को काटा है। उसके दोनों हाथों में खून जगह-जगह छलक आया था।

ऐसी ज़िंदगी कितनी व्यर्थ है। सिर्फ टैरेन्स के लिए वह यहाँ रह रही है। उधर माँ बीमार है। लेकिन जी़निया तो स्वार्थी है। उसे माँ का सहारा बनना था तो उसने अलग गृहस्थी बसा ली है। वह जॉन एफ के साथ दूसरे शहर में अलग मकान लेकर रह रही है। यदि जॉन के नानाजी यहाँ मकान नहीं बनवाते तो शायद उसे जी़निया की दबंगता एक ही घर में सहन करनी पड़ती। जॉन एफ आता तो अपनी मर्दानगी दिखाता। माँ की शिकायतों का अंबार लग जाता। रात को बिस्तरे पर वह अगाथा को तंग करता। अगाथा घृणा से मुंह फेर लेती। कितनी ही बार जॉन एफ ने उसकी इस हरकत पर उसकी खूब पिटाई की है। तब टैरेन्स उठ जाता और रोने लगता। जॉन एफ उसे दादी के कमरे में पहुंचा देता।

किम  जब भी आता तो उसे रुपए, टैरेन्स और उसके लिए खाने-पीने की चीजें और ड्रेसेस एवं किताबें दे जाता। बेशरमाई की सभी हदें पार कर ली थी जॉन एफ ने। वह किम की लाई वस्तुओं को मन से स्वीकार कर लेता और कुछ नहीं कहता। इस तरह वह इस घर की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया था। अनाज, मूंगफली की मिठाई, कोको के डिब्बे, पाइनएपिल, माँस का अचार (बेकन), दालचीनी पाउडर, काली मिर्च पाउडर और बहुत सारी छोटी-बड़ी चीजें किम के द्वारा लाई जातीं जो मैरी जॉन के डैड भिजवाते थे। अब वे समझने लगे थे कि जॉन एफ कुछ भी घर में आर्थिक मदद नहीं करता है। किम आकर अपनी आंट और अगाथा को खर्च के रुपए भी देता है। टैरेन्स की जरूरतें अब अगाथा स्वयं पूरी कर देती। जॉन एफ की माँ बड़बड़ाती रहतीं कि पिताजी मुझे कम रुपए भेजते हैं, अगाथा को ज्Þयादा। पता नहीं ऐसी जा़हिल, अनपढ़ लड़की को वे पसंद कैसे करते हैं। अगाथा कोई भी उत्तर नहीं देती। क्योंकि, मदद तो उन्हीं के घर से हो रही है।

किम के साथ उसके शारीरिक संबंध भी हो गए। मेरी जॉन जानती थी और यह भी जानती थी कि यदि उसने बवाल मचाया तो बात वहाँ तक जाएगी और किम की पत्नी उसे ही दोषी ठहराएगी। किम का आना बंद हो जाएगा और आर्थिक मदद कौन करेगा? शायद वह अपने बेटे की स्थिति को देखते हुए ही चुप थी। और जॉन एफ भी जान चुका था कि अगाथा और किम किस हद तक जुड़ चुके हैं।

उस रात अचानक जी़निया और जॉन एफ घर आ गए। अगाथा टैरेन्स को सुला चुकी थी। वह लैम्प की पीली रोशनी में डायरी लिख रही थी। डायरी में उसने आज घटित सारी घटनाएं लिख दी थीं। किम को स्वीकारने की बात उसने कभी भी डायरी में नहीं लिखी। लेकिन अपनी माँ के समक्ष वह संबंधों को स्वीकार कर चुकी थी।

जी़निया आकर बाहर ड्राइंग रूम में बैठी थी। टैरेन्स की दादी खुश थीं कि जी़निया आई है। उसने तिरछी नजर से यह भी देखा था कि जी़निया का पेट हल्का-सा उभरा दिख रहा है। जॉन एफ शीघ्रता से भीतर आया। उसने डायरी अलमारी में रख दी और उठकर खड़ी हो गई।

‘‘तो पीटर विला की क्वीन क्या हो रहा है?’’ उसने अगाथा को लिखते देखा तो चिढ़ गया था। व्यवधान तो उत्पन्न हो ही गया था लिखने में। उसने न कोई उत्तर दिया, न ही मुस्कुरा सकी।

‘‘हम दोनों को खाना दो।’’ जॉन एफ ने कहा।

‘‘दोनों कौन?’’ अगाथा ने आश्चर्य से पूछा। क्योंकि जी़निया इस घर में आती ही नहीं थी।

‘‘मेरी खूबसूरत कमसिन प्रेमिका और मुझे।’’ कहता हुआ वह बाहर ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया।

लेकिन अगाथा अपनी जगह से हिली भी नहीं। कई बार पुकारने पर भी वह नहीं आई तो माँ ने दोनों को खाना दिया। खाने के बाद गरम-गरम दूध में चॉकलेट ड्रिंक बना कर दिया। खा-पीकर जी़निया वहीं पड़े काऊच पर फैल कर लेट गई।

उसने इतना ही सुना- ‘‘कौन-सा महीना है?’’ माँ ने पूछा था।

‘‘तीसरा।’’ बेशरम औरत ने उत्तर दिया था।

अगाथा बिस्तर पर टैरेन्स के बाजू में लेट गई। लगा उसके सिर की नस फट जाएगी। उसे सिर में तीव्र पीड़ा होने लगी। उधर माँ जीनिया को हिदायतें दे रही थी। यह खाना, वह नहीं खाना। बच्चे की सेहत अच्छी रहेगी। और अलमारी से निकालकर उसे सूखे मेवे दे रही थीं- ‘‘रख लो, वहाँ ले जाना। अभी रख लो, वरना तुम्हारी वह बहन देख लेगी तो चुड़ैल सारे मेवे निकाल लेगी, ताकि तुम खा न सको।’’ वे अपने लाड़-प्यार से जी़निया को सराबोर कर रही थीं।

जॉन एफ आकर अगाथा के बाजू में लेट गया। इस बीच माँ ने आज दिन भर की शिकायतें जॉन एफ से कर दीं। जॉन एफ वैसे ही खुरार्या हुआ था कि हम दोनों को खाना देने वह क्यों नहीं उठी थी।

उसने अगाथा का हाथ जो वह सिर पर रखे थी। पूरी जबरदस्ती से हटाया और मरोड़ दिया। वह इस तरह के आक्रमण के लिए तैयार नहीं थी।

‘‘किस हक से तुम यहाँ मेरे पलंग पर, मेरे बाजू में आकर लेटते हो?’’ क्रोध से लगभग चिल्लाते हुए अगाथा ने कहा।

उसके दुगने वेग से जॉन एफ चिल्लाया और उसे ताबड़तोड़ लात-घूंसे मारने लगा।

उसने भी पहली बार बचने के लिए प्रयत्न किया। वह जी़निया को इस घर में बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

यहाँ तक की इस हाथापाई में टैरेन्स जाग गया और वह पलंग से नीचे गिर गई। पलंग की लकड़ी लगने से उसके माथे पर घाव लगा और खून बहने लगा। टैरेन्स यह सब देखकर जोर-जोर से रोने लगा। तभी माँ आकर खड़ी हो गई। उसके माथे से रिसते खून को देखकर वह खामोश ही खड़ी रह गई। उसने अगाथा का हाथ पकड़ा और पलंग पर लिटाया। जॉन एफ गुस्से में कांपता वहीं खड़ा था। जी़निया गहरी नींद में सो रही थी। उस समय तो घाव पर पट्टी घर में ही बाँध दी गई। लेकिन दूसरे दिन माँ के कहने से जॉन एफ उसे एक नजदीक के चिकित्सक के पास ले गया। अगाथा ने उसे यह भी बताया कि रात उसे नींद नहीं आती है। चिकित्सक ने कोई दवा दी और माथे पर पट्टी-दवा आदि कर दी।

’’’

बोतल की शराब खतम हो चुकी थी। आज लीसा ने सिर्फ बीयर पी थी। तो भी उसकी आँखों में लाल डोरे झाँकने लगे थे।

‘‘अब मैं खाना खाऊंगा। वैसे पेट तो काफी भर चुका है, तुम्हारे इन छुटपुट नाश्तों से। सच तो यह है रॉबर्ट कि अगाथा की कहानी सुनाते-सुनाते मैं भी उसमें इतनी गहराई से डूब जाता हूँ, मानो वह मेरी ही बच्ची हो। उसकी डायरी ने मुझे काफी झिंझोड़ा है। उसके बाद कुछ बहुत दु:खदायी हुआ। माँ और बेटा उसे मारना चाहते थे। अंत समय तक किम कूरियन उसके साथ ही रहा। सब कुछ बेहद दु:खद... बहुत दु:खद। चलो लीसा खाना लगा लो। अब मुझमें हिम्मत ही बाकी नहीं रही। अभी कल का दिन और है। शायद कल की ऐसी ही बैठक में यह कहानी समाप्त हो। और हाँ! रॉबर्ट माई सन, मैं जानता हूँ... तुम्हारे साथ लीसा सुखी रहेगी।’’ उनकी आँखों में तरल-सा तैर गया। अर्थात् लीसा के सुख से वे भी सुखी होंगे। और यह खुश खबर मैं ही लीसा की माँ को दूंगा। तुम एक नेक-दिल इंसान हो रॉबर्ट।’’

रॉबर्ट आपादमस्तक सिहर गया। लीसा कुछ शरमा सी गई और उठकर किचिन में चली गई। रॉबर्ट एकदम चुप-सा हो गया। क्या मि. ब्रोनी और लीसा उसकी सगाई को स्वीकार कर पाएंगे।

’’’

कल रात मि. ब्रोनी ने कॉकटेल पी ली थी। कुछ अधिक ही पी ली थी। वे दिन भर सोते रहे। लंच लेकर फिर सो गए। दुपहर बाद रॉबर्ट और लीसा बाहर निकल गए। निरर्थक सड़कों पर घूमते रहें। दुनियाभर की बातें की। लीसा ने सच्चाई से अपनी अब तक की ज़िंदगी रॉबर्ट के सामने रख दी। रॉबर्ट भी बहुत कुछ बताता रहा। यों बताने को उसके पास था ही क्या? वर्तमान तो वह लीसा के समक्ष रख ही नहीं सकता। और रखेगा भी तो कैसे?

रात को वे लोग लौटे थे। ढेर-सा नाश्ता, डिनर का पैक और शराब की बोतल। मि. ब्रोनी आराम कुर्सी पर सिगार पीते हुए बैठे थे।

‘‘बहुत देर कर दी मेरे बच्चों?’’ उन्होंने कहा।

‘‘बस ऐसे ही घूमते रहे।’’ कहते हुए लीसा ने कल की तरह टेबिल सजाना शुरू कर दिया।

भुना चिकन का टुकड़ा मि. ब्रोनी ने मुंह में रखते हुए कहा-‘‘रॉबर्ट आगे सुनना चाहोगे?’’

‘‘हाँ! हाँ! बिलकुल, मैं सबकुछ जानना चाहता हूँ।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘अगाथा को चोट लगी थी। वह सुबह सोकर उठी तो उसे हल्का चक्कर महसूस हुआ। माथे की चोट को टैरेन्स सहला रहा था। वह स्कूल जाने के लिए स्वयं ही तैयार हुआ था। शर्ट का एक बटन ऊपर नीचे लगा हुआ था। जूते की लेस खुली हुई थीं। फिर भी वह तैयार था। अगाथा उसे अपने पास देखकर प्यार से भर उठी। उसने टैरेन्स को लिपटा लिया। उसकी शर्ट का बटन ठीक किया। और उसके ऊपर मरून रंग का हाफ स्वेटर पहना दिया। जूते की लेस बाँधी और अलमारी से निकालकर खाने की चीजे देकर उसका बैग उठाकर उसे गेट तक छोड़ने गई। घर के सामने बच्चों को स्कूल ले जाने वाली गाड़ी आती थी। उस गाड़ी में दस-बारह बच्चे अच्छे से बैठ जाते थे। गाड़ी के चारों ओर लोहे की जाली लगाई गई थी और गाड़ी के दरवाजे पर भी जाली लगी हुई थी। कभी-कभी अगाथा हँसती थी और माँ से कहती थी मानो कोई मुर्गे ले जाने वाली गाड़ी हो। पहले वह टैरेन्स को छोड़ने स्कूल की दीवार तक जाती थी। लेकिन फिर टैरेन्स की दादी के पिताजी ने स्कूल के लिए गाड़ी लगवा दी थी।

लौटी तो देखा जी़निया लम्बे गुदगुदे काऊच पर अकेली बैठी है। उसने देखकर भी अनदेखा किया।

जी़निया बोली, ‘‘गुड मार्निंग अगाथा।’’

लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया और वहाँ से हट गई। तभी माँ कमरे में आई। उनके हाथ में दो टेरेकोसा मिट्टी के बने गिलास थे। जिसमें से चॉकलेट की सुगंध उठ रही थी। एक गिलास उन्होंने जीनिया की तरफ बढ़ाया और दूसरा स्वयं लेकर लकड़ी की चौड़ी कुर्सी जो बांस के रेशों से बुनी हुई थी और वह कुर्सी उनकी खास थी, उस पर बैठ गईं। पीछे सेमल रुई की गुदगुदी गद्दी थी। और हाथों की कुहनियां नरम कुशन पर टेक लीं। ‘‘बदमिजाज औरत।’’ उन्होंने अगाथा को जाते हुए देख कर कहा।

अगाथा पलटी। कुछ कहने की इच्छा हुई लेकिन फिर खामोश ही वहाँ से चली गई।

मक्कार औरत... मन ही मन अगाथा बुदबुदायी।

अगर यह माँ नाम की औरत साथ नहीं देती तो क्या कभी जी़निया जॉन एफ की इतनी हिम्मत हो पाती। पलंग पर धूप से जला मोटी नाक का सांड पसरा पड़ा था। नींद से उनकी नाक के नथुने फूल रहे थे। और वापिस घुड़घुड़ाहट के साथ सिकुड़ रहे थे। अगाथा उसे धूप से जला सांड कहती थी। डायरी में भी यही लिखती रही और अपनी माँ के सामने भी सांड ही संबोधित करती थी।

उसने अपने लिए गिलास भर दूध लिया और बेकरी से लाए थोड़े से टोस्ट खाकर दिन भर के कामों में जुट गई। इसी बीच जॉन एफ सोकर उठ गया। अपने बेटे और जी़निया के स्वागत-सत्कार में माँ लग गई। माँ जानती थी कि जी़निया आई है अत: अगाथा कुछ उन लोगों के लिए करेगी सोचना व्यर्थ है। हाँ! जब जॉन एफ अकेला आता है तो अगाथा उसे खाना वगैरह तो देती ही है।

दुपहर को जीनिया को लेकर दोनों घूमने निकल गए। जाते हुए अगाथा ने देखा था जॉन के पर्स में बहुत रुपए हैं। अब दोनों तरह-तरह की चीजें खरीदेंगे। उसे तो याद भी नहीं कि वह कभी जॉन एफ के साथ बाजार भी गई हो। तब तो रुपए भी नहीं होते थे और जब रुपए आना शुरू हुए तो जीनिया आ गई। सुख की ओर उसके बढ़ते कदम वहीं रुक गए। लेकिन जबसे उसकी ज़िंदगी में किम आया था वह अपने आपको सम्पूर्ण मानती थी। पैसे भी होते थे और वे तीनों घूमने भी जाते थे। और वह टैरेन्स को वह सब कुछ दिलवाती थी जो वह कहता था।

अब उसके पास गोल्ड, सिल्वर और प्लेटेनियम के गहने (जूलरी) थे। किन्हीं में फिरोजा लगा था तो कई महंगे लाल हरे नग के थे, जो रूबी और अन्य रत्नों से जटित होते थे। चांदी की बारीक नक्काशीदार हाथों के कंगन लॉकेट और चेन। बालों की पोनी में भी चांदी की क्लिप वह लगाती, जिसकी चेन उसके कंधे तक लटकती रहती, जिसमें बारीक घुंघरू भी लटकते। जो उसके कानों में सुमधुर आवाज से बजते और उसे किम की याद दिलाते। टैरेन्स उसकी कानों की लटकन को हिलाता और बालों से पिन खोलकर बार-बार लगाता। वह बेटे के स्पर्श के सुख से आँखें बंद कर लेती।

बेटा कभी अपने पिता के बारे में नहीं पूछता। पिता आता तो उसका चेहरा निर्विकार रहता। न उसके आने की खुशी, न जाने का गम। जॉन एफ ऐसा समझता था कि अगाथा बेटे को उसके खिलाफ भड़काती रहती है। शायद उसकी माँ ही ऐसा समझकर अपने बेटे को कहती होगी।

टैरेन्स देखता कि माँ एक नोटबुक में कुछ न कुछ लिखती रहती है। पढ़ती भी रहती है। तब उसने पूछा था-‘‘माँ इसमें क्या है। क्या लिखती हो तुम?’’ एक भोली जिज्ञासा थी उसके हृदय में।

‘‘यह मेरी डायरी है टैरेन्स। जब मैं नहीं होऊंगी तो इसमें लिखा सब कुछ तुम्हें मेरे बारे में बताएगा।’’

‘‘तुम कहीं जाने वाली हो मॉम?’’ टैरेन्स ने पूछा।

‘‘अभी तो नहीं, लेकिन जब जाऊंगी तुम्हें बताकर ही जाऊंगी।’’

‘‘रॉबर्ट! शायद मृत्यु की पदचाप अगाथा ने सुन ली थी।’’ मि. ब्रोनी ने उदासी से कहा।

‘‘मुझे भी डायरी चाहिए, मैं भी लिखूंगा।’’ टैरेन्स ने माँ के सामने जिद में कहा।

अगाथा ने एक सफेद पन्नों की काली कवर की डायरी उसके हाथों में पकड़ा दी। वह खुश होकर भागा था। दूसरे दिन अगाथा ने उसकी डायरी खोली थी, तो पहले पृष्ठ पर लिखा था, ‘‘माँ के घुंघरू वाले क्लिप बालों से खोलने में अच्छा लगता है। मैं रोज ऐसा करूंगा। कितनी सुंदर है मेरी माँ। अगाथा ने उस पन्ने को चूम लिया था और भरी-भरी आँखों से पन्ने को बार-बार देखती रही थी। फिर टैरेन्स को बताया था-‘‘टैरेन्स इसमें तारीख भी डाला करो।’’

दूसरे दिन उस पन्ने पर तारीख थी- 5 अगस्त, 1815... टैरेन्स दस वर्ष का हो चुका था।

उस रात दोनों की फिर बहस हुई। केन्द्र में थी जी़निया। नहीं चाहती थी अगाथा कि जॉन एफ जी़निया को साथ लेकर यहाँ आया करे। जो कुछ हो रहा था वह बर्दाश्त तो कर ही रही थी। यह क्या कम था। इसी बात पर बहस इतनी बढ़ी कि जॉन एफ चीजें तोड़ने-फोड़ने लगा। पूरा कमरा बिखर गया। अच्छा हुआ कि उसकी दोनों लकड़ियों की अलमारी में ताला लगा हुआ था। वरना आज वह उन किताबों को भी फाड़ देता। उसकी असली दुश्मन तो किताबें ही थीं। किम जब तक पैसा लाता, तभी तक अच्छा था। वरना तो वह उससे चिढ़ता तो था ही। क्योंकि अगाथा अब जॉन एफ पर निर्भर नहीं थी। यही बात उसके अहं को ठेस पहुंचाती थी। वह अगाथा को मारने दौड़ा तो उसने भरपूर ताकत से जॉन एफ को ढकेला। चोट पर दुबारा चोट लगी और उसे चक्कर आ गया।

दरवाजे पर आकर माँ और जी़निया खड़े हो गए. टैरेन्स दादी के पलंग पर सो रहा था। अत: उसकी नींद नहीं खुली। दुबारा उसी जगह चोट लगने से अगाथा के समक्ष मानो कोई लप-डुप आकाश के सितारे फूटने लगे। मुंह में अंदर से खून आया।

वह बाहर भागी और खून थूकने लगी। उसे उल्टी भी हुई। जॉन एफ घबरा गया। माँ ने अगाथा को शक्कर खिलाई। उन्होंने अपने बेटे को झिड़का-‘‘कुछ भी हो, तुम्हारी पत्नी है यह। ऐसे संस्कार शोभा नहीं देते। पहली बार अगाथा को अपने पक्ष में इस घर में अपने लिए कुछ सुनने को मिला। वह शांत हो निढाल पलंग पर लेट गई। बाजू में आकर जी़निया खड़ी हो गई। अगाथा की आँखें लाल थीं और आंसुओं से भरी हुई। उसने जी़निया की तरफ देखा। कहा- ‘‘सपोली (सांप का बच्चा) पैदा होने के बाद तू मर गई होती तो आज न मेरी यह हालत होती, न माँ शर्मिंदगी से जी रही होती। तू जब पैदा हुई थी तो उस वर्ष जी़निया के फूल इतने खिले थे कि पूरा इलाका उन फूलों से भर गया था। मुझे लगता है जी़निया नहीं उस वर्ष कांटे पैदा हुए जिनकी चुभन मुझे भुगतनी है।’’ कहते हुए अगाथा हाँफने लगी थी।

जॉन एफ खड़ा गुरार्ता रहा। क्रोध में वह ऐसा ही करता था। माँ पलंग के किनारे बैठ गईं। निश्चय ही आज की घटना का जिक्र अगाथा किम से करेगी और किम शायद डैडी को बताए। माँ को हमेशा रुपयों की चिंता सताती रहती थी।

‘‘मैं हॉट मिल्क लाती हूँ, तुम्हारे लिए अगाथा।’’कहकर माँ जाने लगीं।

‘‘नहीं रहने दो। इस सपोली को दो। हराम की औलाद इसे पैदा करनी है, मुझे नहीं।’’ अगाथा ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती थी। लेकिन आज वह कर रही थी। क्योंकि इसका एकमात्र अकेला कारण सिर्फ जी़निया थी। पता नहीं क्या दिखा इस सुंदर-सी लड़की को इस जले हुए सांड में। उसने अपने भीतर के इन शब्दों को बाहर नहीं आने दिया। जी़निया उसके पास से जा चुकी थी। खून बंद होने का नाम नहीं ले रहा था। माथे से खून रिसा और लेटी हुई अगाथा की कनपटियों से बहता हुआ गरदन के पास पहुंचकर तकिए को भी गीला कर रहा था। माँ ने गीला तौलिया उसके माथे पर रखा। अगाथा ने पीड़ा से आँखें मूंद लीं। रात अधिक हो गई थी अत: माँ ने चिकित्सक के पास जाने की सलाह नहीं दी। पहले दिन वाली दवा देकर उसे दूध में नींद लाने वाला पाऊडर घोल कर पिलाया।

वह गहरी नींद में सो गई।

सुबह उठी तो देखा ड्राइंग रूम में जी़निया नहीं है। टैरेन्स स्कूल जा चुका है। माँ ने बताया कि ‘‘जॉन जी़निया को छोड़ने गया है। आज उसका माल भी विभिन्न शहरों से आने वाला है। रात तक वह आ जाएगा। मैं तुम्हें चिकित्सक के पास ले चलूंगी।’’

वह अनसुना करके बाहर बगीचे में निकल गई। वरांडे को बंद करती लकड़ी की जाफरी पर सफेद फूलों की बेल चढ़ी थी। जिन छोटी-छोटी क्यारियों में टैरेन्स ने पैंजी के पौधे लगाए थे, उनमें बैंगनी फूल आने वाले थे। बीच के दिनों में वह किम के साथ अपनी माँ से मिलने गई थी। आज उसे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी। वह उसकी गोद में सिर रखकर रोना चाहती थी। माँ मेरी जॉन जाफरी पर सिर टिकाए उसको देखे जा रही थीं। उसके वहाँ देखते ही वे बेल की पत्तियों की ओट हो गईं।

जब वह माँ के पास गई थी तो उनके लिए ढेर सारी खाने-पीने की चीजें, अचार, मेवे आदि ले गई थी। संभवत: सूखे मेवे उन्होंने पहली बार चखे होंगे। चलते समय उनकी मुट्ठी में ढेर सारे रुपए रखते हुए वह सुख से भर उठी थी। माँ रोने लगी थीं। दोनों लिपट गई थीं। आज क्यारी में बेंगनी फूल देखकर उसने सोचा कि माँ का वह स्वैटर अब तक पूरा हो चुका होगा, उसे लेने जाना है। माँ उसके लिए बेंगनी कलर का स्वैटर बुन रही थीं।

रात को वह माँ मैरी के साथ चिकित्सक के पास गई थी। उन्होंने घाव के गहरे होने की शिकायत की थी। और माँ से यह भी कहा था कि जॉन एफ पीटर को ऐसी हाथापाई शोभा देती है? मैं आपके पति को भी हमेशा से जानता था। उन्होंने तो कभी यह सब नहीं किया।

उनके बाहर निकलने के बाद तभी पीटर वहाँ आ गया था। वह चिकित्सक के पास अंदर गया था और बाहर आकर कहा था-‘‘नॉनसैन्स है यह, हम लोग चिकित्सक बदलेंगे।’’

टैरेन्स घर में अकेला था। वे तीनों साथ लौटे। रात फिर उसने वह दवा खाई और गहरी नींद में सो गई।