Robert Gill ki Paro - 2 in Hindi Love Stories by Pramila Verma books and stories PDF | रॉबर्ट गिल की पारो - 2

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रॉबर्ट गिल की पारो - 2

भाग 2

अपने शौक को एक नया अंजाम देने के लिए रॉबर्ट ने एक लम्बी छुट्टी ले ली। उसने पेन्टिंग करने का सामान रखा और लंदन से बाहर कहीं प्रकृति की गोद में कुछ दिन बिताने का मन बनाया। कुछ किताबें भी साथ रख लीं और सिगार के लिए तंबाखू और पेपर भी साथ लिया। लेकिन इसी बीच रिकरबाय घराने से संदेश आया कि फ्लावरड्यू के पिता उससे मिलना चाहते हैं, क्या वह आ सकेंगा? उसे लगा कि यह प्रस्ताव उसके तय कार्यक्रम में एक व्यवधान पैदा कर रहा है। लेकिन फादर रॉडरिक ने भी यह सूचना उसे दी और वहाँ जाने का आग्रह किया। शायद यह पहली बार था कि उसने छुट्टियाँ भी ले ली थीं और फादर को बताया तक नहीं था। फादर रॉडरिक ने पूछा था- ‘‘रॉबर्ट, छुट्टियों के लिए आवेदन कर दो, क्या छुट्टियाँ मिल जाएंगी?’’ उसने स्वीकृति मात्र सिर हिलाया था। नहीं बता पाया था कि छुट्टियाँ ले ही चुका है। उसी रात वह सेन्ट ल्यूक चेलसिया के लिए रवाना हो गया था। बस पीठ पर लटका एक किट था, जिसमें कपड़े और पेन्टिंग का सामान था।

रिकरवाय भवन उस गली में अलग ही जगमगा रहा था। मानो वह गुलाबी भवन उसके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हों। भवन के बाहर पोर्च में दो फिटन खड़े थे, जिनमें जुते घोड़े कहीं अलग घास खा रहे होंगे। फिटन में लाल कत्थई नीली शनील की सीटें लगी थीं और कत्थई रंग का टप। दो पहरेदार गेट पर मौजूद थे। उन्होंने झुक कर रॉबर्ट को अभिवादन किया और अंदर तक उसे छोड़कर आए। भवन तक जाने में सैनिक चाल से भी उसे पांच मिनट लगे। पहरेदार ने उसका बैग हाथ में ले लिया था।

भवन का नक्काशीदार लकड़ी का विशाल दरवाजा खुला और वह भीतर दाखिल हुआ।

उस दिन की साज-सज्जा से अलग यह विशाल बैठक आज सजी हुई थी। संभवत: फादर रॉडरिक ने उसके आने की सूचना पहले ही भिजवा दी थी।

जिस व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने बैठक में दाखिल होते देखा वे फ्लावरड्यू के पिता थे, जिन्हें देखकर वह थोड़ा अचंभित तो हुआ लेकिन फिर अपने आप को सम्हाल लिया। वे किसी राजघराने के व्यक्ति लगते थे। उन्होंने लम्बा काला कोट पहना हुआ था। अंदर से एकदम सफेद कमीज झाँक रही थी। कमीज की प्लेट्स वाले कफ कोट की आस्तीन से बाहर निकले थे। कोट के पॉकेट में सफेद रुमाल तह किया हुआ रखा था। उसी पॉकेट से सोने में बनी चेन और लटकती घड़ी थी। शर्ट में हीरे के बटन लगे थे। पैरों में चमचमाते काले जूते थे और दाहिने हाथ की सभी उंगलियों में जगमगाते नगों की, हीरे की अंगूठियां।

‘‘आओ मिस्टर रॉबर्ट।’’ उन्होंने उसे नीचे से ऊपर तक देखा। फिर अपने आप का परिचय देते हुए पुन: उसकी ओर देखा। शायद अपनी जिद्दी बेटी के लिए यह वर उन्हें उपयुक्त लगा हो। उन्होंने रॉबर्ट को सोफे पर बैठाया।

रॉबर्ट ने ध्यान से देखा। उस भवन में कई नौकर थे। थोड़ी देर में फ्लावरड्यू के दादा-दादी भी आ गए। दादा-दादी बिल्कुल एक से ही कपड़े पहने थे। सफेद सुनहरे लिबास में वे किसी सामंती घराने के ही दिख रहे थे। बाद में पता चला कि फ्लावरड्यू की दादी फ्रांस के सामंती घराने से ही थीं। दादी के सफेद चेहरे को अनेक काले भूरे तिलों ने ढक रखा था। होठ के ऊपर का काला मस्सा जो कभी छोटा-सा रहा होगा और उनका ब्यूटीस्पॉट माना जाता रहा होगा, अब एक छोटे मटर के दाने के बराबर था, जो उनकी सुंदरता में कोई बाधा नहीं डालता था। उनकी झुर्रियों से भरी लंबी गर्दन में कईं लड़ियों की मोती की माला थी और सभी लड़ियों को जोड़ता एक नवरत्न जटित प्लेटिनम का लॉकेट। प्लेटिनम में हीरा जटित वे कान के टॉप्स पहनी थीं, जिसके वजन से उनके कान का माँस झूल रहा था।

दादाजी ने सफेद कोट और ट्राउजर पहन रखा था। कोट के भीतर सुनहरी पट्टेदार सफेद कमीज थी। उनका पूरा व्यक्तित्व मि. रिकरबाय ड्यूक जैसा था या मि. रिकरवाय ने अपने पिता के संपूर्ण व्यक्तित्व को अपनाया हुआ था। कुछ ऐसा ही उसे आभास हुआ था। फ्लावरड्यू की माँ अपने दो छोटे बेटों के साथ उस विशाल बैठक में अचानक दाखिल हुईं तो वह चौंक पड़ा। उस बैठक में कितने ही कमरों के दरवाजे थे। कोई कहीं से भी आ सकता था।

रॉबर्ट को अचानक महसूस हुआ कि वह इन लोगों के सामने बहुत छोटा है। वह मात्र एक सैनिक, फोटोग्राफर और आर्टिस्ट है। फ्लावरड्यू इतने वैभवशाली जीवन की आदि क्या उसके साथ सम्पूर्ण जीवन बिता पाएगी? पिता के बुलाने पर जब फ्लावरड्यू आई तो वह उठकर खड़ा हो गया। लगा महकते फूलों का कोई गुच्छा उसकी सांसों में उतर रहा है। माँ ने हाथ पकड़कर फ्लावरड्यू को सोफे पर बिठाया और रॉबर्ट को भी बैठने का इशारा किया। लगातार वह फ्लावरड्यू को देखे जा रहा था। वह सचमुच बहुत सुंदर थी। फ्लावरड्यू की माँ भी कभी ऐसी ही सुंदर रही होंगी। रॉबर्ट की सांसों में फ्लावरड्यू को इसी समय पा लेने की उद्दाम लालसा उभरी। उसने पलक झपकाई। ‘‘क्या विवाह आज ही नहीं हो सकता।’’ उसने छोटे बच्चे के समान अपने आप से जिद की।

बहुत ही औपचारिक बातें पिता और दादा-दादी से उसकी होती रहीं। रात्रि भोज लगने तक फ्लावरड्यू के माता-पिता ने उन्हें टैरेस पर अकेले जाने की अनुमति दे दी।

छत पर खुला आसमान था। लाल पत्थरों से बनी छत पर चांदनी इधर से उधर बिखरी हुई थी। छत पर फूलों की लताएं बांसों के मंडपों पर छाई हुई थीं। और भी कई पौधे लगे हुए थे। फूलों की कतारें सफेद नन्हें फूलों से ढकी थीं और अपने होने का अहमसास अपनी सुगंध से दे रही थीं। टोकरियों में लटकी खूबसूरत पत्तियों वाली लताएं थीं, जिनके नीचे लकड़ी की कुर्सियां और नक्काशीदार टेबिल था। स्थाई लगे खंभों में दीपस्तंभ अपनी पीली आभा से जगमगा रहे थे। सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उसने फ्लावरड्यू का हाथ थाम लिया था जिसे उसने अभी तक नहीं छोड़ा था। दूसरे हाथ से फ्लावरड्यू ने अपनी लंबी फ्रॉक का घेर दबाया हुआ था। वे दोनों छत की दीवार से सटकर खड़े हो गए। रॉबर्ट ने हाथ नहीं छोड़ा बल्कि फ्लावरड्यू को अपनी ओर खींच लिया। ‘ड्यू’ उसके होठों से निकला। उसने महसूस किया कि उसके होठ कांप रहे हैं। अपने कांपते होठों को ड्यू के जलते होठों पर रख दिया।

कितनी ही देर दोनों के होठ प्रतिचुम्बित होते रहे। दोनों ने एक-दूसरे को जकड़ लिया। हवा तेज थी या दिल की धड़कन रॉबर्ट समझ नहीं पाया। अलग तब हुए जब सालसा ने जो फ्लावरड्यू की विशेष नौकर थी आकर ‘सॉरी’ कहा और दोनों को नीचे बुलाकर ले गई।

लैन्टर्न की जगमग रौशनी के नीचे रात्रि भोज लग चुका था। सब उन दोनों की प्रतीक्षा में थे। दोनों टेबिल की कुर्सियों पर आमने-सामने बैठ गए। फ्लावरड्यू ने बहुत शरमाकर रॉबर्ट की ओर देखा और उसका पूरा चेहरा आरक्त हो उठा। रॉबर्ट को लगा कि उस दिन की फ्लावरड्यू और आज की फ्लावरड्यू में कितना अंतर है।

टेबिल पर सभी अपने अपने तरह से खुशियां प्रकट कर रहे थे। मिस्टर रिकरबाय ने ढेरों बातें रॉबर्ट से कीं। अपनी विशाल जायदाद के बारे में बताया। एडिनबर्ग में उनका यह विशाल भवन है, जिसमें पीछे अस्तबल है और दूर-दूर तक फैले खेत हैं। उनके दोनों बेटे वहीं घुड़सवारी सीखते हैं। फ्लावरड्यू का अपना अलग घोड़ा है। दादाजी का घोड़ा बूढ़ा हो चुका है। किसी जमाने में फ्लावरड्यू की दादी अच्छी घुड़सवार थी। वे फ्रांस के सामंती घराने से हैं। वहाँ भी दादी जी के कोई भाई या बहन नहीं हैं। अत: सम्पूर्ण जायदाद की वह अकेली मालकिन हैं। अर्थात रॉबर्ट ने सोचा कि कुल मिलाकर वे लोग एक विशाल एम्पायर के मालिक हैं। बहुत बातें हुई थीं उस टेबिल के इर्द-गिर्द और शराब के पहले पैग के साथ दोनों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की गई थी।

फ्लावरड्यू के शौकों (हॉबीज) के बारे में उसकी माँ ने रॉबर्ट को बताया था। उसे फोटोग्राफी का शौक है। और अपनी ड्रेस की डिजाइनिंग वह स्वयं करती है। क्रोशे और शटल पर लेस बनाती है। और कड़ाई (एम्ब्रायडरी) में रेशमी धागा का अद्भुद तालमेल वह बिठाती है। लेकिन रॉबर्ट के बारे में कौन बताता। उसने स्वयं ही बताया कि मुख्यत: ड्राइंग, पेन्टिंग, स्कैच बनाता है और फोटोग्राफी का भी उसे शौक है। पियानो और माउथ आर्गन बजाता है। उसने यह भी बताया कि उसने लम्बी छुट्टी ली है और वह अपने मित्र के बंगले पर जाकर रहेगा जो कि खाली पड़ा है। वहाँ वह ड्राइंग करेगा।

लेकिन उसे हैरत हुई थी कि एक विशाल एम्पायर के मालिक अपनी बेटी के लिए उसे कैसे पसंद कर सकते हैं। उसने मन ही मन फादर रॉडरिक को ‘थैंक्स’ कहा था जो उसकी ज़िंदगी के मसीहा थे।

‘‘कल सुबह ही उसे निकलना है।’’ कहते हुए माफी माँगते हुए वह खाने की टेबिल से उठा था। और अपने उस कमरे की ओर चला गया था जहाँ उसे बताया गया था कि यह उसका कमरा है।

विशाल पलंग पर सफेद चादर बिछी थी। सफेद सिल्क की गुदगुदी रेशमी चादर ओढ़ने के लिए थी। और वैसी ही सफेद मसहरी लगी थी, जिसके चारों ओर सिल्क की बॉर्डर लगी थी। सब कुछ एक परी लोक जैसा उसे लगा था। क्या वह इतना वैभव फ्लावरड्यू को दे पाएगा। बहुत रात तक उसे नींद नहीं आई थी।

फ्लावरड्यू की ठंडी हथेलियां और सीने पर उसकी गरम साँसें उसे अभी भी महसूस हो रही थीं। होठों का कंपन याद करके वह समूचा सिहर उठा था। एक बलवती आकांक्षा उसके भीतर प्रविष्ट होती गई कि काश कमरे के किसी कोने से फ्लावरड्यू निकल पड़े और फूलों के इत्र की भीनी सुगंध में दोनों डूब जाएं।

जब नींद खुली तो खिड़कियों के नीले फूलदार पर्दों से धूप अंदर आने का प्रयत्न कर रही थी।

वह पतझड़ का मौसम था। हवेली के बाहर विशाल प्रांगण में पाईन के पीले पत्ते झर रहे थे। और नीचे बिछे पड़े थे। वह काफी देर खिड़की के पास खड़ा रहा। एक मोटे बांस की टोकरी में हवेली के नौकर पत्तों को समेट रहे थे।

फादर रॉडरिक ने कई वर्ष पूर्व उसे बताया था- ‘‘रॉबर्ट, ये जो खूबसूरत पत्ते तुम देख रहे हो न, यह पत्तों की खूबसूरती नहीं, बल्कि ये बीमारी है। इसलिए ये झर रहे हैं बेमौसम ही।’’

वह हैरत से फादर की तरफ देखता रहा था। कोई बीमारी इतनी सुंदर हो सकती है। ऐसी छोटी-छोटी कितनी ही बातें फादर उसे बताया करते थे। फिर बचपन में ही उसने झरे पत्तों और नंगी डालियों का रेखाचित्र बनाया था। और फिर कुछ वर्षों बाद दोबारा बनाकर उसमें रंग भरे थे। फादर रॉडरिक को अच्छा लगा था वह चित्र। वे खुश हुए थे और उसकी पीठ थपथपायी थी। उसी समय उसने कलम को स्याही में डुबाकर उस चित्र पर फादर के हस्ताक्षर ले लिए थे।

वह अनुशासन में पला-बढ़ा था। उसका सोना, जागना, प्रार्थना के लिए चर्च जाना, घुडसवारी करना, सुबह का भोजन, रात्रि का भोजन सब कुछ समयानुसार होता है। फादर रॉडरिक समय के पाबंद रहे। तो उसका जीवन भी अनुशासन में बंध चुका था। बाद में यह अनुशासन उसके सैनिक जीवन में बहुत काम आया था।

लेकिन लम्बी छुट्टियों में वह लंदन से दूर चला जाता था और तब अ्नुशासन कहाँ चला जाता था उसे मालूम नहीं चलता था।

उसे सुबह-सुबह निकलना था लेकिन अब तक काफी देर हो चुकी थी। मिस्टर रिकरवाय फिटन पर अपने आॅफिस निकल चुके थे। हवेली की सफाई चल रही थी। ऊंचे लटके झाड़फानूस तक लंबे बांस में लगे मुलायम पंखों से साफ किए जा रहे थे। छोटे बांस की लकड़ी में भी ऐसे ही मुलायम पंख लगाए गए थे, जिनसे बाकी फर्नीचर की सफाई हो रही थी। उसके लिए यह सब नया था। उसका तो सैनिकों के लिए बनाया गया मकान था, जो नौकरी के साथ मिला था। इससे पूर्व वह लाल ईंटों के एक मकान में रहता था, जिसमें पांच कमरे और एक लम्बी लॉबी थी। मकान के चारों ओर बगीचा था। कुछ काफी पुराने झाड़ थे और कुछ  उसने स्वयं लगाए थे। यहाँ वह अपने पिता के साथ रहता था। जब वह छोटा था तो एक लम्बी बीमारी में उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसी दौरान फादर रॉडरिक उसके घर आया करते थे। पिता की मृत्यु के बाद वही उसके संरक्षक बन गए थे। उसका बचपन चेरी की झाड़ियों और अखरोट के पेड़ के इर्द-गिर्द अकेले खेलते ही बीता था। उसके पिता ने एक बड़ी हौज में रंगबिरंगी मछलियां पाली थीं और कुछ रंगबिरंगे पक्षी भी जिनका  पिंजड़ा ही एक कमरे के बराबर था। पिंजड़े में भीतर की ओर पीतल की घंटियां लटक रही थीं। जब पिंजड़े के भीतर के पक्षी उड़ते और लटकती घंटियों पर बैठते तो उन पक्षियों की आवाज और घंटियों की आवाज से वह आत्मविभोर हो उठता था। एक नौकर था जो उसके बीमार पिता की देखभाल करता और रसोई भी संभालता था। उसी के साथ मिलकर वह पिंजड़े की सफाई करता था। बर्फ जब गिरती तो यह पिंजड़ा घर के पीछे के बड़े से कमरे में पहुंचा दिया जाता। जहाँ उन्हें आवश्यक गर्माई दी जाती। बरामदे में बारीक लकड़ी की सींकों की बनी चिक लटका दी जाती थी। जिससे बहुत अधिक ठंडक कमरों में प्रवेश न करे।

पिता की मृत्यु तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। बाद में जब वह फादर रॉडरिक के संरक्षण में आया तो ज़िंदगी ही बदल गई। स्कूल भी बदला और यहीं पर उसकी मित्रता टैरेन्स से हुई। एक दुबला-पतला डरपोक लड़का। न जाने कैसे वह रॉबर्ट से बहुत अधिक प्रभावित हुआ और फिर धीमे-धीमे उसका डर निकल गया और दोनों ने सेना में जाने की ठानी। तब चहुंओर से युद्ध के समाचार ही तो मिला करते थे।

जब रॉबर्ट सेना में भर्ती हुआ तो वह यहाँ सैनिक क्वार्टर में रहने आ गया। उसने कभी नहीं पूछा कि उसके मकान का क्या हुआ? न ही फादर रॉडरिक ने बताया। न ही उसने कोई जानने की उत्सुकता दिखाई।

यहाँ सैनिक क्वार्टर में टैरेन्स और वह साथ रहते थे। रात के खाने में दोनों सिर्फ चिकिन खाते। रेड वाईन पीते और कभी-कभी सब्जियों का सूप या केवल उबली सब्जियां। दिन का खाना वे लोग अधिकतर आर्मी कैन्टिन में ही खाते। या जब वे घर पर होते तो कैन्टिन से खाना ले आते। टैरेन्स अक्सर अपनी दादी के पास जाता। तब रॉबर्ट कंधे पर बैग लटकाकर अपना ड्राइंग का सामान उसमें  भरकर ड्राइंग बनाने कहीं दूर निकल जाता। कहीं जाने के लिए उसका कोई घर नहीं होता था। अत: वह अधिकतर अपना समय ड्राइंग-पेंटिंग को देता।

जानवरों को जंगलों में दौड़ाना भी उसके पेन्टिंग का विषय होता। एक बार एक हिरन उसे देखकर दौड़ा, रुका और भौंचक होकर उसे देखता रहा। इस हिरन का फोटो उसने अपने कैमरे से लिया था। इतना सजीव हो रहा था वह हिरन कि हिरन भी देखता तो चौंक पड़ता। हिरन की काली लंबी आँखें आंसुओं से भरी थीं। पीछे नंगे दरख़्त थे। और नीचे बिछी थीं पत्तियां जो उसके जूतों से चरमरा रही थीं। एक विशेष बात थी कि उसे सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों पसंद थे। कभी-कभी वह सोचा करता कि यदि वह कवि (पोएट) होता तो काफी अच्छी कविताएं लिख पाता। उसने कोशिश भी की थी। लेकिन एक दो पंक्ति से अधिक उसकी कविता आगे बढ़ नहीं पाई थी। बाद में उसने अपने आप को रेखाचित्रों, तैल रंगों से बनाए चित्रों और फोटोग्राफी में डुबो लिया था।

फ्लावरड्यू से विदा लेकर वह अपना बैग लटकाकर बढ़ गया था उस ओर जहाँ उसे अपनी लम्बी छुट्टियाँ बितानी थीं।

करीब सात-आठ घंटों की यात्रा के बाद वह उस पहाड़ी पर पहुंच गया था जहाँ टैरेन्स का बंगला था। पहाड़ी पर एक अकेला बंगला। एक घर के सदस्यों के सुख-दु:ख और प्रेम का अनोखा गवाह यह बंगला। चढ़ने के लिए कर्हीं सीढ़ियां और कहीं पगडंड़ी। सिर्फ एक रात के लिए वह इस बंगले पर टैरेन्स के साथ आया था। टैरेन्स को बंगले की अलमारी से कुछ किताबें निकालनी थीं। उस रात घुप्प अंधेरे में वह टैरेन्स के पीछे-पीछे चढ़ता रहा था। यदि टैरेन्स को रास्ता इतना न पता होता तो वह निश्चय ही पहाड़ी से नीचे गिर गया होता।

टैरेन्स की आँखों में मानो उल्लू की आँखे जड़ी थीं। वह सब कुछ देख पाता था। टैरेन्स ने उसे बताया था कि वह अपने पिता, माँ और दादी के साथ इस बंगले में रहा करता था। पिता का जूट का व्यापार था। तो वे अधिकतर बाहर ही रहते थे। तब वह अकेला रहता और दादी के पुकारते रहने के बावजूद वह ऊपर-नीचे भागता-दौड़ता रहता। इसीलिए वह अंधेरे में भी अपने बंगले में ऐसे चढ़ गया जैसा वह बचपन या किशोरावस्था में चढ़ पाता होगा।

माँ की मृत्यु के पश्चात दादी अपने माता-पिता के घर रहने चली गईं थीं। पिता ने उसके रहने का प्रबंध लंदन में कर दिया था, जहाँ से स्कूली शिक्षा पूरी हुई थी। पिता ने इस बंगले के पीछे का हिस्सा नाटक मंडली को किराए पर दे दिया था। जहाँ अक्सर नाटक मंडली आकर अपनी रिहर्सल किया करते थे।

टैरेन्स के साथ जब वह इस बंगले में दाखिल हुआ तो उसे लगा यह एक भूत बंगला ही है। अभी ऐसी कोई चीज उससे आकर लिपट जाएगी जो अलग करने पर भी अलग नहीं हो पाएगी।

टैरेन्स ने लैम्प जलाया तो एक पीला उजाला कमरे में चिपक गया। उसने घूम-घूम कर रॉबर्ट को बंगले के सभी कमरों को दिखाया। फिर वापिस लौटकर लैन्टर्न टेबिल पर रखकर लकड़ी के बने पलंग पर से चादर हटाया। दूसरा चादर बिछाकर उसने गरम कंबलों को करीने से लगा दिया। अब यह पलंग सोने के लिए तैयार था। रॉबर्ट कंबल में घुस गया और साथ लाई हुई शराब घूंट-घूंट पीने लगा।

टैरेन्स ने भी गिलास भरा और किताबों की अलमारी के पास रखी मेज पर गिलास रख दिया।

उसने जब किताबों से भरी अलमारी खोली तो पूरा कमरा एक सीली गंध से भर गया। वह अलमारी के सीलन भरे शैल्फ में किताबें ढूंढ़ने लगा। मानो उसे वहाँ कोई छिपा खजाना मिलना हो। कुछ किताबें उसने टेबिल पर रख दीं। निश्चय ही काफी ठंड थी। वह गरम कंबलों में भी कांप रहा था।

टैरेन्स ने ठंड को महसूसा और फायर प्लेस में पहले से डाली हुई लकड़ियों को जला दिया। जब लकड़ियों ने आग पकड़ी तो रॉबर्ट ने देखा टैरेन्स का चेहरा तमतमाया हुआ सा है। वह चुप किताबें तलाशता रहा।

‘‘कुछ खाओगे, रॉबर्ट?’’

‘‘नहीं, मैं सोऊंगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

प्रश्न व्यर्थ था क्योंकि वे लोग नीचे से खाने को कुछ लाए ही नहीं थे। लेकिन रात का खाना वे लोग खाकर ही ऊपर चढ़े थे। हाँ, यह टैरेन्स को याद रखना था कि इतनी चढ़ाई के बाद उन्हें भूख लग सकती है।

स्कूल के दिनों में हुई दोनों की गहरी दोस्ती आज और भी गहरी हो चुकी थी। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे। दोनों ने एक दूसरे के अकेलेपन और  उदासियों को बांटा था। टैरेन्स को किताबें पढ़ने का शौक था। रॉबर्ट आर्टिस्ट था। लेकिन पढ़ते रहने की इच्छा टैरेन्स ने रॉबर्ट के अंदर जगा दी थी।

अगर वे दो दिन भी एक दूसरे से दूर रहते तो उन्हें लगता उनके बीच एक सूखा लम्बा रेगिस्तान आ गया है, और गर्म हवाएं चल रही हैं। ये रेगिस्तान लांघना कठिन हो जाता। इसलिए वे कोशिश करते कि यह रेगिस्तान आए ही नहीं.... जिसे लांघना कठिन हो।

‘‘मिल गया...।’’ टैरेन्स चिल्लाया। रॉबर्ट अर्ध- नींद में था, जाग पड़ा। उसके हाथ में खाकी (ब्राउन) कलर की कवर चढ़ी एक किताब थी।

‘‘ सुनोगे?’’ टैरेन्स ने कहा।

‘‘नहीं मैं सोऊंगा।’’रॉबर्ट ने कहा। और वापिस नीचे खिसक कर कंबलों को ओढ़ लिया।

टेबिल से लैन्टर्न उठाकर टैरेन्स पलंग के पास रखी तिपाई तक आया और तिपाई पर लैन्टर्न रखकर उसने किताब खोल ली। उसके बाल फायर प्लेस में लगी आग की लपटों से लाल दिखाई दे रहे थे। उसने अपने पैर पलंग पर रखे और झुककर पढ़ने लगा।

क्या तुम जानते हो प्यार क्या है...

रॉबर्ट की आँखों में भरपूर नींद थी। टैरेन्स उस किताब के पन्नों में लिखी कविता को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने लगा। उसके मन में निश्चय ही डोरा स्मिथ थी। टैरेन्स ने नहीं देखा कि रॉबर्ट की आँखों में नींद है। ‘‘मालूम है रॉबर्ट? माँ कहा करती थीं कि डायरी लिखा करो। तब वह जीवित थीं। और अब वे नहीं हैं और मैं हूँ। शायद तब मैं बहुत छोटा था जब वे बीमार पड़ी थीं। यह भी दादी से जाना था कि जब वे बीमार थीं तब मेरा छोटा भाई या बहन आने वाला था। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो गई थी और वे उसके साथ दूसरी दुनिया में चली गईं थीं। हाँ, तब मैं दस वर्ष का रहा होऊंगा। जब उन्होंने पीले से पड़े पन्नों की डायरी मेरे हाथ में पकड़ा कर कहा था- ‘‘टैरेन्स, लिखते रहना।’’

‘‘क्या?’’ उसने पूछा था।

लेकिन उन्होंने अपनी पीली-पीली थकी आँखें बंद कर ली थीं। शायद वे थक गईं थीं। अब मैं लिखता भी हूँ, पढ़ता भी हूँ। लेकिन तब सोचा करता था कि यह सब माँ के पास पहुंच जाता है क्या? तब मैं सारी बातें लिखकर उन तक पहुंचाता था। जब कुछ लिखता था तो उसे टेबिल पर खुला छोड़ देता था कि जब माँ पढ़ लेंगी तो मैं पन्ना पलट दूंगा। उसमें दादी का प्यार, पिता का प्यार और डांट-फटकार दोनों होते थे। माँ की प्रिय बिल्ली किनी का जिक्र होता था। जो उम्र ज्Þयादा होने के कारण सोती रहती थी।

रॉबर्ट इन बातों को सुनकर सोचा करता था कि उसके पास तो यह कुछ है ही नहीं, जो वह किसी को बता सकें। बस फादर रॉडरिक हैं, पेड़, पौधे, तोते, चिड़िया, घोड़ा, कुत्ता ही हैं। घोड़ा भी उसका अपना नहीं है। फादर रॉडरिक कभी कभी मिस्टर फिलिप से अनुरोध करके घोड़ा दिलवा देते थे। मिस्टर फिलिप के घोड़े से उसने घुड़सवारी सीखी थी। मिस्टर फिलिप का सख्त निर्देश था कि घोड़े को मारना-पीटना नहीं है। उन्हें जानवर को मारना पसंद नहीं है।

एक दिन टैरेन्स ने अपनी उस पीले पन्नों की डायरी में डोरा स्मिथ का नाम लिखा था और डायरी को टेबिल की ड्रॉर में छुपा दिया था। अब वो माँ को डायरी नहीं पढ़ा सकता था। माँ निश्चय ही नाराज होगी। उसके दिल में चुपके से डोरा आकर बैठ गई थी। जिसे वह सबसे छुपाकर रखना चाहता था। अब डायरी में डोरा स्मिथ की बातें होती थीं। वह जो देखता, महसूस करता वही लिखता था। जैसे वह किसी लंबी यात्रा पर हो। एक ऐसी खतरनाक चढ़ाई पर चढ़ रहा हो जो बहुत मुश्किल थी। जब खतरनाक रास्ते अंधे मोड़ और गहरी घाटियां हों। टैरेन्स और रॉबर्ट दोनों साथ-साथ बड़े हो रहे थे। बावजूद दोनों गहरे दोस्त थे। लेकिन दोनों की दुनिया अलग थी। टैरेन्स के पास स्मृतियों की सांस थी जो ठहरे पानी पर बैठी रहती थी। जब कोई कंकर फेंका तो सांस कंपकंपाने लगती थी।

वह दिन टैरेन्स को अब भी याद है जब वह रॉबर्ट को लेकर डोरा स्मिथ के बंगले के सामने गया था। बाहर लॉन में डोरा के माता-पिता बैठे थे। लगा था डोरा उसे देखकर गेट से बाहर आ जाएगी। लेकिन उसने अनदेखा कर दिया था। बहुत मायूसी से दोनों लौट गए थे।

पेड़ों की उन लम्बी कतारों के बीच से दोनों लौटने लगे थे। जहाँ छोटे-छोटे मकान ढलान पर बने थे। यह मकान निश्चय ही बंगलों के मालिकों के बैटमेन के लिए होंगे।

टैरेन्स अपनी हार को सीटी बजाते हुए जीत में बदलना चाहता था।

रॉबर्ट ऊब चुका था। उसका ध्यान कभी इस ओर गया ही नहीं था। इसलिए वह टैरेन्स की हार को महसूस नहीं करता कि ‘‘चलो, रॉबर्ट तुम्हें डोरा से मिलवाते हैं।’’

रात रॉबर्ट की नींद खुली तो उसने देखा कि टैरेन्स कुर्सी पर ही सो गया है। उसके पैर पलंग पर हैं जिन पर कंबल ओढ़ा हुआ है। फायरप्लेस की आंच में अब गर्माई नहीं थी। वह उठकर और लकड़ियां डालकर उन्हें जला सकता था। लेकिन वह उठा ही नहीं। एक आलस्य उसके शरीर पर तारी था। या ठंड की चुभन। खाकी कवर की पुस्तक टैरेन्स की गोद में रखी थी। उसने नहीं पूछा था कि वह क्या ढूंढने आया है। वे दोनों तभी फौज में नए-नए भर्ती हुए थे।

रॉबर्ट देर तक सोता रहा था। जब नींद खुली तो देखा टैरेन्स लगातार अलमारी से किताबें छांट ही रहा है। रात को अंधेरा था इसलिए रॉबर्ट कमरे को देख नहीं पाया था। लेकिन दिन के उजाले में उसने देखा, वह एक बहुत बड़ा कमरा था। खिड़कियाँ गोलाकार थीं, जिसकी काँच से बाहर एक ठंडी निश्चल अलसायी सी धूप पसरी पड़ी थी। उस अलसायी धूप की रोशनी में कमरा उजला दिख रहा था। लकड़ी की अलमारियाँ दीवार से चिपकी हुई थीं। जिनमें सीलन की गंध थी। अलमारियों के ऊपर सामान भरा था। जिन अलमारियों को टैरेन्स खोलता था, उन्हें ही वह देख पाता था। एक अलमारी में माँ का ओवर कोट, मफलर और लम्बी स्कर्ट टंगी थी। स्कर्ट के ऊपर पहनने वाले ब्लाउज में धागे से बनी लंबी लेस लगी थी। लेस का ही कॉलर था। टैरेन्स ने बताया कि ऐसा ही पहनावा दादी का था। माँ और दादी बहनें लगती थीं। शायद माँ की बीमारी ने उनके चेहरे की रौनक छीन ली थी। रॉबर्ट उठ गया था। ऊपर टंकी से आता पानी इतना ठंडा था कि चेहरा धोते हुए वह कंपकंपा गया था।

उसने देखा बाहर गेट के पास घनी झाड़ियाँ थीं। लम्बे-लम्बे पेड़ थे, जो जाते तो ऊंचाई तक थे लेकिन उनकी डालियाँ जमीन में बिछ जाती थीं। पीछे की ओर अखरोट और खुबानी लगे थे। गेट से बंगले को चारों ओर से घेरी दीवार सफेद फूलों की झाड़ियों से ढंकी थी। कहीं कहीं गुलाबी और बेंगनी फूल झाँक रहे थे। दीवार और बड़े लंबे पेड़ों से धूप छन कर आ रही थी। पेड़ों के कारण वह घाटी को नहीं देख पाया। लेकिन दूर पहाड़ में सफेद बादल तैर रहे थे। पेड़ों के नीचे गिरे पत्ते गीले और सड़े थे।

वह लौटकर आया तो देखा टैरेन्स ने एक कपड़े के लंबे काले किट में किताबें भर ली थीं। वे लोग जाने को तैयार थे। उसने घूम-घूम कर दिन के उजाले में पूरा बंगला देखा। छह कमरों वाला वह बंगला धूल और जालों से भरा था। टैरेन्स ने बताया था कि पीछे के दो कमरे वे लोग अक्सर किराए पर दे देते थे। जहाँ नाट्य मंडली ठहरा करती थी। बड़े हॉल में वे लोग नाटक का रिहर्सल किया करते थे। किटनुमा काला लम्बा बैग टैरेन्स ने पीठ पर लटका लिया। वे नीचे उतरने लगे।

‘‘टैरेन्स! बंगले में किसी केयरटेकर को क्यों नहीं रखते? ऐसे में तो बगैर देखरेख के यह बंगला सारा खराब हो जाएगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

टैरेन्स तेजी से नीचे उतर रहा था। रॉबर्ट को उसके पीछे लगभग दौड़ना पड़ रहा था।

‘‘कोई नहीं रहता। डैड ने कई बार किसी न किसी को रखा था। लेकिन अकेले और सूनेपन से कोई यहाँ रह नहीं पाया।’’

नीचे घोड़ा गाड़ी उनका इंतजार कर रही थी। उन्हें शीघ्र ही लंदन पहुंचना था।

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अपने घर पहुंचकर रॉबर्ट को अच्छा लगा। वह थका था। कुछ खाकर पलंग पर लेट गया। खिड़की के बाहर कहीं-कहीं बादल तैर रहे थे। वैसे आसमान साफ था। खूब ऊंचाई पर चीलें मंडरा रही थीं। रॉबर्ट को टैरेन्स का बंगला याद आया। रात को चढ़ते समय पैर फिसल जाता तो सीधे नीचे गहरी खाई में। लेकिन टैरेन्स ने कहा था- ‘‘एक सोल्जर को अंधेरे और डर से घबराना नहीं चाहिए।’’ उसने टैरेन्स के बंगले पर जीवन और मृत्यु को देखा था। मृत्यु जो अलमारियों में एक स्मृति के रूप में सहेजी रखी हुई थी। और जीवन वह था जो कल रात उन्होंने कमरे में जिया था। पूरे बंगले में सीलन की गंध और बासी हवा थी। यदि वह थका नहीं होता तो निश्चय ही रात भर जागता। अकेलापन एक अलहदा बात है, लेकिन मृत्यु का अहसास निश्चय ही हमारी जीवंत सोच को डगमगाता है। हमें अपने सुखों का पता नहीं होता इसीलिए हम दूसरों की तकलीफ के बारे में ज्यादा सोचते हैं।

कुछ याद आया और रॉबर्ट मुस्कुराने लगा। टैरेन्स और डोरा के संबंध। यानी ठहरे पानी में एक नन्हा-सा पत्थर ही काफी है, जो कुछ तो हलचल पैदा करे। एक दिन वह फोटोग्राफी और कुछ स्कैच बनाने टैरेन्स के बंगले पर अकेला ही जाएगा। उसने सोचा बंगले के पीछे धुंध में डूबी पहाड़ी ने उसे मंत्रमुग्ध किया था।

कभी-कभी उसे लगता था टैरेन्स डोरा स्मिथ से ऐसा कुछ नहीं कह पाता कि वह भरपूर उसकी ओर आकृष्ठ हो। टैरेन्स किताब खोलकर ऐसा कुछ उसे सुनाता कि डोरा न ही मना कर पाती, न ही उसके चेहरे से लगता कि वह कुछ रुचि दिखा रही है। तब डोरा के हाथ में कोई ऐसा काम होता जैसे वह क्रोशिए पर लेस बुना रही हो या सुई धागे से बारीक पारदर्शी कपड़े की झालर।

टैरेन्स ने अपनी माँ को मरते हुए देखा था। हालांकि डैडी ने काफी मना किया था कि वह वहाँ न रुके, कमरे से बाहर हो जाए। दादी भी वैसा ही चाहती थीं। लेकिन वह माँ के इतने नजदीक खड़ा रहा कि उनकी रुकती एक-एक सांस का वह गवाह बन गया। वे उसकी ओर ही देख रही थीं। वह माँ के चेहरे की हर एक हरकत को बारीकी से देखता रहा। उसने माँ को जब मरते देखा वह उसी दिन बड़ा हो गया था। उसका माथा पसीने से भर उठा था। दादी की हिचकियां गले में ही अटक गईं थीं। उसने माँ को झकझोरा था- ‘‘तुम्हें उठना ही होगा माँ।’’ वह चीख रहा था। डैडी ने माँ की खुली आँखों को हाथों से बंद कर दिया था।

‘‘टैरेन्स! शी इज नो मोर।’’ वे जा चुकी थीं। आँखें माँ की पथरायी थीं या उसकी वह समझ नहीं पाया था। डैडी कमरे से बाहर चले गए थे। शायद उनकी भी हिचकियां गले में अटक रही हों। लेकिन वह बैठा रहा था। सुबह तक। लोगों की बहुत भीड़ लग चुकी थी। टैरेन्स के चाचा-चाची भी आ गए थे। किम अंकल और नानी थीं। नानी मानो पत्थर की बुत बन गई थीं। वह नानी से लिपटकर रोना चाहता था। लेकिन वह नहीं रोया।

वह माँ के साथ-साथ चल रहा था। काफिला एक छोटे जुलूस की शक्ल में तब्दील हो रहा था। माँ जा रही थीं वहाँ जहाँ से वह कभी वापिस नहीं आएंगी।

उसे याद आ रहा है डैडी का चीखना। बर्तनों की तोड़फोड़ और माँ का सिहर जाना। शायद डैडी को लगता था कि माँ कहीं और किसी से प्रेम करती हैं। जब वे व्यापार के सिलसिले में बाहर रहते हैं। वे माँ को हिकारत की नजर से देखते थे। एक बार वे चीखे थे और माँ के गाल पर भरपूर जोर से थप्पड़ मारते हुए कहा था-‘‘यू बिच।’’

टैरेन्स माँ और डैडी की हर बात का गवाह था। शायद दादी भी यही मानती थी। तभी तो वह माँ से नफरत करती थी।

लेकिन ग्यारह वर्ष का टैरेन्स तब उतना नहीं समझता था जितना वह बड़ा होकर समझने लगा था। और फिर वह गहरी उदासी में डूब जाता था। यदि माँ किसी से प्रेम करती थीं तो उसने कभी क्यों उस व्यक्ति को नहीं देखा। लेकिन अब युवा होने पर वह किम अंकल के बारे में सोचता है क्या वह? हाँ, माँ की मृत्यु के पश्चात वे साथ थे। माँ के काफिन को लगभग पकड़े हुए।

कभी-कभी दादी दो-तीन पैग शराब पी लेती थीं तो खूब हँसा करती थीं। वे एक जमींदार की बेटी थीं, तो उनके पास अपनी हवेली के किस्से बहुत थे। लेकिन वे टैरेन्स से कहती या अपने आप से-‘‘मैंने कभी मिस्टर पीटर के साथ बेवफाई नहीं की।’’ ये घटनाएं कभी-कभी ऐसे बोले जाने वाले कड़वे वाक्यों से उसे घुटन होती थी। वह महसूसता था जो उसके मस्तिष्क को झकझोरता था। बाद में एक लम्बी रील की तरह ये घटनाएं उसके मस्तिष्क में खुलती जाती थीं। रॉबर्ट ध्यान से सुना करता था और फिर दोनों ही चुप हो जाते थे। एक गहरी उदासी टैरेन्स को घेर लेती थी।

‘‘दु:ख को महसूस कर सकते हैं या देख सकते हैं।’’ एक दिन टैरेन्स ने रॉबर्ट से पूछा था।

‘‘दोनों। जो दु:ख तुमने देखा वह देखना था और अब तुम उस दु:ख को महसूस करते हो। तुम मानते हो माँ निर्दोष थीं?’’

‘‘हाँ! वे निर्दोष थीं।’’ टैरेन्स अपनी बात पर अड़ा था।

‘‘टैरेन्स! कोई भी घटना यूं ही निरर्थक हवा में तैरती सी तो हमारे बीच घटित नहीं हो जाती। उसके पीछे कोई छोर तो होता ही होगा।

‘‘पता नहीं, लेकिन माँ निर्दोष थीं। मैंने तब ग्यारह वर्ष की उम्र में माँ को उस गहराई में जाते देखा था। तब मेरी इच्छा हुई थी कि मैं भी माँ के साथ जाऊं उस गहराई में जहाँ निश्चय ही दु:ख नहीं होगा। मैं माँ की सांसों को महसूसना चाहता था, जो थम चुकी थीं। ‘‘आमीन’’ फादर ने कहा।

डैडी ने माँ के कॉफिन पर मिट्टी डाली थी और मुझे भी डालने को कहा था। लेकिन वह दूर हट गया था। वह इस तरह माँ को सदा के लिए खोना नहीं चाहता था। वह चीख उठा था- ‘‘नहीं, मुझे मेरी माँ चाहिए।’’ किम अंकल ने उसे अपने पास घसीट लिया था और उसके सिर पर हाथ रखकर खड़े हो गए थे। बाद में कई बार वह डैडी के साथ उस सिमिट्री में जाता था। जहाँ माँ अपने दु:खों के साथ मिट्टी में गहराई से दफन थीं। डैडी उनकी कब्र पर फूल रखते कुछ कहते और उसके हाथ में भी फूल रख देते। लेकिन उसने कभी माँ की कब्र पर फूल नहीं रखे। वह फूलों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता। जब माँ नहीं है तो... और तब थीं तब डैडी कहाँ थे? अगर माँ के जीवित रहते वे उन्हें फूल देते तो? शायद आज माँ होतीं। डैडी जब भी घर आते तो क्रोध की एक पोटली साथ लाते। जिसके खुलते ही माँ का चेहरा गहरी उदासी में डूबता जाता। उसको डैडी का आना पसंद नहीं था। क्योंकि वह माँ की उदासी देखना नहीं चाहता था।

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