MUJHE MERA BHARAT in Hindi Poems by SURENDRA ARORA books and stories PDF | मुझे मेरा भारत

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मुझे मेरा भारत

मुझे मेरा भारत

 

इस   विदेशी धरती पर

भले ही  मेरा देश इसका वर्षों तक गुलाम रहा

और जिसे याद करके मुझे

वे वीर बलिदानी हमेशा याद आते रहे

जिन्होंने अपनी मात्र भूमि की स्वतंत्रता के लिए

अपना यौवन और माँ - पिता के सपने सिरे से नकार दिए

और जिसके  प्रति मेरे जहन में

तिरस्कार के ही नहीं प्रतिकार के भाव भी अंगराईयां लेते रहे

पर कदम पाकर

मैं अचंभित हूँ। 

 

यहाँ तो आज भी सब कुछ खुला - खुला सा है,

लोगों का हुजूम कम है फिर भी तहजीब है , सब कुछ साफ़ - सुथरा है ,

यातायात के नियमों का पालन किसी नैसर्गिक  संविधान की तरह होता है ,

सड़कों पर कारें हैं , बसों के साथ - साथ साइकिलें और दो पैरों पर चलने वाले लोग भी है ,

पर सभी अपनी - अपनी अलिखित सीमाओं का आदर करते हुए

एक - दूसरे से टकराते नहीं हैं ,

तेज तो चलते हैं परन्तु , दूसरे को पछाड़ने की कोशिश नहीं करते।

 

बेटियां हैं और वे कहीं भी , किसी भी समय सुरक्षित हैं ,

बुजुर्ग अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं ,

बच्चे अपना हर काम स्वयं करते हैं ,

शोर कैसा भी हो , कहीं नहीं है ,

धार्मिक आडम्बर और कर्मकांड किसी की भी दिनचर्या से नदारत है।

 

नदियां , झीलें , तालाब और पार्क बिलकुल साफ़ और सुरक्षित हैं ,

धूल - मिटटी और धुएं  से हवा मुक्त है ,

कहीं भी घंटों अकेले बैठ कर खुद से रूबरू होना बहुत सहज और सुलभ है ,

गलियों में न आवारा पशु हैं और न ही रोते - बिलखते बेतरतीब बच्चे दिखाई देते हैं।

बड़े - बड़े पार्क खेलों की चहचाहट से खिले हैं ,

 

न कहीं बेहूदे नेताओं या अनावश्यक नारों - सूचनाओं के छोटे - बड़े पोस्टर हैं

और न ही कार्यालयों में अनावश्यक देरी के कारण सुविधा जैसे शुल्कों की कोई परम्परा है।

दुकान पर रखा  बिक्री का हर सामान अपनी कीमत स्वयं बता देता है ,

जिसे लोग अपनी सुविधानुसार स्वयं ही मूल्य चुका कर ले जाते हैं।

 

सारा शहर चमकते लोगों और चहकते चेहरों से भरा - भरा सा लगता है ,

मालिक हो या मजदूर , कोई किसी के साथ छल के बारे में सोचता ही नहीं है ,

एक - दूसरे की जरुरत और अहमियत सभी में कृतग्यता  का भाव जगाती रहती है

यकीन  ही नहीं होता कि जिंदगी की रचना इतनी  समदर्शी भी हो सकती है।

 

किसी भी तरह का तनाव जिंदगी के सौंदर्य से टकराता नहीं लगता ,

अपना कर्तव्यबोध  और उससे जुड़ी आजादी मीठी नींद का सबब बनती चली जाती है ,

जिंदगी है तो ऐसी कि माधुर्य से रात और दिन नहाते से लगते  हैं।

 

सात समुन्दर पार फिर भी मेरे देश

तू मुझे हर पल याद आता है।

 

वो सुबह की नमस्ते , कैसे हो जी , सब ठीक है न की पुकार

वो मंदिर की संगीतमय घंटियां और भजन के रूप में आत्मा को तृप्त करते हुए स्वर  ,

वो दूध लाने के लिए बर्तन ले जाते हुए धीरे - धीरे चलते हुए पड़ोसी ,

वो किसी मित्र - बंधु से मिलने की कसक और उसकी कुशल - क्षेम जानने की ललक ,

वो सारा - सारा दिन एक साथ बैठकर चाय - बिस्कुट का आनंद ,

वो बिना किसी वजह के हंसीं - ठठ्ठे ,

वो बीमार मित्र को देखकर आने की उत्कंठा  ,

वो बेतरतीब बनी हुई दुकाने और फुटपाथों को घेरे हुए ठेलीवालों की कनफोडू आवाजें ,

वो  टूटे - फूटे रास्ते पर भागते - दौड़ते बच्चे ,

कभी धूप  तो कभी बारिश , कभी धुल भरी आंधी  तो कभी ठंडी - ठंडी सी नम हवा ,

 

इन सबके बीच  घर के पास कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एयर बेस के आसमान से

मेरे देश की सेनाओं के निकलते फाइटर - जेटों की दहाड़

और उन्हें देख कर मेरे अंतस्तल में उपजा सुरक्षा का कवच ,

 

मुझे बहुत याद आता है।   

हर पल मुझे मेरा भारत बहुत याद आता है।  

 

सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

साहिबाबाद ( 9911127277 )