जिन्होंने खजुराहो नही देखा-अद्भुत उपन्यास
खजुराहो का लपका :सुनील चतुर्वेदी
राज बोहरे
सुनील चतुर्वेदी का चौथा उपन्यास 'खजुराहो का लपका' भाषाई रूप से समृद्ध, शैलीगत रूप से एकदम नवीन और किस्सागोई के नजरिए से बड़ा बेहतरीन' कसावट भरा एक अद्वितीय उपन्यास है ।
खजुराहो की यात्रा कर चुके सब जानते हैं कि खजुराहो के मंदिरों के आसपास घूमने वाले आंचलिक ग्रामीण युवक वहां आने वाले पर्यटकों के लिए गाइड के रूप में काम करते हैं, आंचलिक भाषा में इन्हें लपका कहा जाता है । लपका का शाब्दिक अर्थ है -टूरिस्ट या पर्यटक को लपक लेने वाला! ऐसे लपका (गाइड) शुरू-शुरू में अंग्रेजी नहीं जानते, लेकिन बाद में पर्यटकों के साथ रहते-रहते और अपने प्रयास से वे अंग्रेजी ही नहीं बहुत ही अच्छी जापानी, स्पेनिश,जर्मनी ,इटालियन भाषा बोलने लगते हैं। खजुराहो के इन गाइडस् के साथ सबसे विलक्षण बात यह है कि यहां के दर्जनों गाइड महिला टूरिस्टों से शादी करके विदेश जा चुके हैं। यह क्यों हुआ? सही सही पता नहीं! यह वात्सायन रचित कामसूत्र के व्यवहारिक ज्ञान का चित्रण करती मूर्तियों का भौतिक गुरुकुल कहे जाने वाले खजुराहो के मंदिरों और मिथुन मूर्तियों का असर हो सकता है या वहां के गाइड्स द्वारा विशेष अन्दाज़ में शिल्प के सन्देशों को समझाने का मानसिक, आध्यात्मिक औऱ भावनात्मक असर कि अकेली-दुकेली आने वाली महिला टूरिस्ट प्रायः ऐसे गाइड के दैहिक व हार्दिक आकर्षण में आ ही जाती हैं।
सब जानते हैं कि खजुराहो अपनी उन मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध हैं, जो स्त्री-पुरुष के मिलाप के निजी क्षणों को साकार प्रदर्शित करती हैं। वात्सायन के बताए अनुसार इस कला के जितने भी आसन या शारीरिक अवस्थाएं हो सकती हैं, वे सब आसन, एक सीरीज से मूर्तियों में चित्रित करते हुए लगभग एक हजार वर्ष पहले के मूर्तिकारों ने यहां निर्मित किए हैं। मजे की बात यह है कि मंदिर के भीतर शिवजी या विष्णु जी के श्रीविग्रह हैं और बाहर की दीवारों पर इस तरह की काम क्रीड़ारत मूर्तियां बनाई गई हैँ।
सुनील चतुर्वेदी के अब तक 'महामाया' 'कालीचाट' और 'गाफिल' तीन उपन्यास आ चुके हैं। हर बार वे हमेशा एकदम नए कथा संसार में प्रवेश करते हैं और बड़ी मेहनत व परिश्रम के बाद अपनी कहानी रचते हैं। हर बार उनका गल्प नई जमीन तोड़ता है। यह उपन्यास भी एकदम नए तरीके से अपनी बात कहता है ।
कहने-सुनने में खजुराहो की मूर्तियां और उनके आंचलिक गाइड की बातें हम दो लफ्जों में खत्म कर सकते हैं, लेकिन लेखक का अद्वितीय कौशल है कि वे इस उपन्यास की मूल कथा को बड़े कलात्मक तरीके से विस्तारित करके सुनाते हुए, पाठक को अपने द्वारा रचित वृत्तांतीय इन्द्रजाल में बांध कर रखते हैं। इसको पढ़ते समय हमें गांव में प्रचलित वह किस्सागोई कला याद आ जाती है, जहाँ एक छोटी सी कथा पर आधारित एक-एक किस्सा कई-कई दिन तक चलता था औऱ सुनने वाले श्रोता टस से मस नहीं होते थे। तब अंधेरे में अलाव के इर्दगिर्द बैठे लोगों के बीच सिर्फ किस्सागो बोलता था और बाकी लोग दम साध कर उसके किस्से सुनते थे। किस्सागो की वाकपटुता ऐसी होती थी कि वह किस्सा सुनाते हुए रात के अन्त में एक विशेष मोड़ पर अधूरी कहानी छोड़ देता था, ठीक ऐसे ही इस उपन्यास में हर अध्याय के अन्त में लेखक हर बार कहानी को एक अलग मोड़ पर छोड़ देते हैं। लेखक हर नया अध्याय किसी दूसरे मोड़ या दूसरे पात्र से शुरू करते हैं ।
उपन्यास के मूल में एक पर्यटक और उसके विशिष्ट गाइड की रोमांचकारी कथा है। एक अमेरिकी सैलानी "ऐना " भारत आकर खजुराहो के हवाई अड्डे पर उतरती है , तो आंचलिक गाइड बीबीसी यानी बृज भूषण चन्देल उसको अपनी गाइड सेवाएं ऑफर करता है -
"मैम ,वेलकम इन खजुराहो। मैम, खजुराहो इज द वर्ल्ड हेरिटेज सिटी। सिटी ऑफ टेम्पल्स...इन ऑल वर्ल्ड, ओनली दीज टेम्पल्स आर सिम्बल ऑफ लव..."
" मैम, आई विल शो यू रियल खजुराहो।..." (पृष्ठ 11)
एना के रुचि न दिखाने की वजह से बीबीसी अपना विजिटिंग कार्ड उसे देकर अपनी दुपहिया गाड़ी लेकर वापस चला जाता है । उसके पास एक बुलेट मोटरसाइकिल है, जिससे वह एक-दो टूरिस्टस् तक को प्रायः मंदिरों व आसपास के इनर कन्ट्री पॉइन्ट, आसपास के वॉटरफॉल से लेकर पन्ना रिज़र्व फॉरेस्ट तक की यात्रा कराता है । पर्यटक एना सात-आठ दिन के प्रवास में यहां-वहां भटकती हुई अनेक गाइड्स की सेवाएं लेती है। लेकिन उसे वैसा सुयोग्य गाइड नहीं मिलता, जैसा वह चाहती थी। वास्तविकता यह है कि डाटा के रूप मे खोजना चाहें तो खजुराहो का इतिहास, मूर्तियों की संख्या, मूर्तिकला का इतिहास व विभिन्न मूर्तियों की तकनीक की जानकारी तो इंटरनेट पर बड़ी मात्रा में बिखरी पड़ी है। अमूमन हर गाइड भी एना को जब यही सब समझाता है तो एना मन ही मन कहती है यह डीटेल्स तो मैं नेट पर देख चुकी हूं , मुझे चाहिए यहां की मूर्तियों के बारे में कुछ अलग कहने वाला गाइड, यहां के मंदिरों , पॉइंट्स और खंडहरों के बारे में कही सुनी जाने वाली अलग सी दंत कथाएं कहने वाला कुशल गाइड ।
कथा में सामने आए खजुराहो के रामकुमार दीक्षित एक ऐसे चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया हैं, जिन्हें खजुराहो के तमाम मन्दिरों, मूर्तियों और गाइडस के बारे में रोचक किस्से ज्ञात हैं, चाहे ये गाइड उनके हमउम्र लोग हों या नए आ रहे युवा लोग। दीक्षित जी इन सबकी कमजोरी और ताकत भी जानते हैं । किशोरावस्था के ऐसे लोग जो गाइड बनने को उत्सुक हैं उन्हें दीक्षित जी के सघन व्याख्यान शिक्षित करते हैं-
' बस, तुम्हें भी अपनी बात ऐसे ही कहनी है। झूठ-सांच को विचार नहीं करने हैं। कोई ए ग्यान चाहिए तो वाहे लगनो चाहिए खजुराहो में तुम अकेले ग्यानी हो। कोई खाली घूमवो चाहे रहो तो वाहे लगे तुम से बड़ो घुमक्कड़ कोई ना है... हम तो यहां तक कहत हैं कि कोई नशो करनो चाह रहो तो ऐसो स्वांग करो कि वाहे लगे तुमसे बड़ो नशेड़ी आज तक दूसरों ना देखो...और कोई ए शरीर सुख चाहिए तो... समझ रहे हम का कह रहे। कहबे को मतलब जे है के जो भी करो वो परफेक्ट ...' ( पृष्ठ 23)
उधर एना अकेली ही ज्वारी मंदिर का शिखर देख रही थी कि उसने वह सुना, जो सात-आठ लोगों के समूह से एक गाइड कह रहा था ।
गाइड ने जेब से कांच का छोटा सा टुकड़ा निकालकर गर्दन ऊंची करते हुए मंदिर के कलश पर कांच की चिलक स्थिर करते हुए कहना शुरू किया 'आइए, मंदिर के सबसे ऊपर क्या है ? मंदिर के सबसे ऊपर नारियल है। नारियल के नीचे कलश। उसके बाद बड़ा कलश। कलश के बाद देखिए क्या है? खूबसूरत कार्विंग है। कार्विंग के बाद हजारों मूर्तियां हैं।'
कमेंट्री के साथ ही कांच का चिलका यहां से वहां सरकता जा रहा था।
'यह मकर तोरण हैं । इस तरफ मकर उस तरफ मकर और बीच में तोरण। मकर तोरण के नीचे से पवित्र मन वाला ही गुजर पाता है। यदि आपके मन में कोई पाप है तो समझो आप उस पार नहीं जा पाएंगे। यह भी एक कथा है। हम पीढ़ियों से सुनते सुनाते आए हैं। आपको इस कथा के पीछे की सार बात को समझना होगा। वह सार बात आपको खजुराहो में कोई गाइड नहीं बताएगा वो मैं आपको बताऊंगा। '
एना चमत्कृत सी सुन रही थी ।
(पृष्ठ 45)
उधर बीबीसी ने एक मूर्ति पर कांच की चिलक डालते हुए कहना शुरू किया 'यह जो स्त्री है वह पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए श्रृंगार कर रही है ।" चिलका मूर्तियों पर घूमने लगा।" यहां दर्पण में अपने को निहार रही है.. पैरों में रंग लगा रही है। , आंख में काजल आंज रही है... , बालों का जूड़ा बांध रही है... पैर में बिछिया बांध पहन रही है..., गले में मंगलसूत्र बांध रही है... मेहंदी लगाते समय पुरुष के सामने अपनी खुली पीठ दिखाती है। ये देखिए यहां जूड़ा बांधते समय अपने उभरे हुए वक्ष दिखाने लगती है। बिछिया पहनते समय झुकती है तो उसके सारे अंगों में भराव आ जाता है । आप समझ गए होंगे कि महिला श्रृंगार के बहाने इशारे-इशारे में अपने सारे अंगो का प्रदर्शन कर रही है। लेकिन पुरुष आकर्षित नहीं होता । उसकी तरफ ध्यान नहीं देता। अपने काम में लगा है । जैसे आजकल आप लोग अपनी प्रेमिका या पत्नी को भूलकर दिनभर लैपटॉप और मोबाइल में लगे रहते हो"( पृष्ठ 46)
"बीबीसी फिर से कुछ पल को विराम लेता है। समाज के लोग आंखें फाड़े गर्दन ऊपर उठाए स्थिर से हैं। बीबीसी एक नजर समूह के लोगों पर ऐसे घुमाता है जैसे कोई कुशल जादूगर अपने रचे सम्मोहन जाल में दर्शकों को उलझा देख खुद ही खुद से सम्मोहित हो जाता है। बीबीसी की आवाज भारी और गहराई से आती जान पड़ती है।
"देखिए, साइड से देखिए...नारी का वक्ष पुरुष के सीने को छू रहा है। नारी शरीर के स्पर्श से अब धीरे-धीरे पुरुष भी उत्तेजित हो रहा है । उसके भीतर भी काम जग रहा है । अगली मूर्ति देखिए, स्त्री अब इस तरह खड़ी है कि उसके शरीर का 75% भजन एक पैर पर है। वह वक्त उसका पूरा उभार लिए है।स्त्री अब मदमस्त है। स्त्री जब मदमस्त होती है तो उसका गला रूंध जाता है, होंठ गोलाई में खुल जाते हैं, पलक झुक जाती हैं। इस मूर्ति में स्त्री की यही दशा है। स्त्री मदमस्त है। (पृष्ठ 47)
इस तरह मूर्तियों की व्याख्या अब तक किसी गाइड ने नहीं की थी। एना उस गाइड से प्रभावित होती है और सहसा उसे पहचान भी लेती है , यह वही बीबीसी है ,जो एयरपोर्ट के बाहर उसे मिला था और अपना विजिटिंग कार्ड दे गया था ।
अगर दिन से एना उसी गाइड की सेवा लेती है। एना को रोज नई नई कहानियां सुनने को मिलती है। खजुराहो के मंदिर बनवाने वाले राजा चंद्र वर्मन की मां और नाना की कहानी। चंद्र वर्मन के पिता को और चंद्र वर्मन की मां हेमवती के प्यार-अभिसार और गर्भावस्था की कहानी। पिता के घर से भाग निकली हेमवती के ऋषि बृहस्पति के आश्रम में रुकने की कहानी और चंद्र वर्मन के जन्म लेने की कहानी।शिक्षा और शास्त्र की कहानी। शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने की कहानी , फिर बृहस्पति द्वारा प्रेरित किए जाने पर उन काम संबंधों को जन सामान्य के सामने मूर्तियों के मार्फत प्रकट करने, सार्वजनिक कर देने को प्रेरित करने की कहानी।... साथ ही यह भी कि चंद्र वर्मन को अपनी सेना तैयार कर कालिंजर पर कब्जा करना होगा और फिर उसे जगह चुन कर इस तरह के मंदिर बनाना होगा। पिच्यासी मंदिरों में इस तरह की मिथुन मूर्तियां बनवाई जाती हैं, जिनमें मथुरा से कारीगर बुलवाए गए थे।वे कारीगर कहाँ गए, यह रहस्यमय है।उपन्यास में एक जगह यह कथन भी आता है कि इस शहर खजुराहो में अभी भी संगीत की परंपरा है, नृत्य की परंपरा है, पाण्डित्य की भी है, तो ज्योतिष की भी। लेकिन मूर्तिकारों की कोई परंपरा खजुराहो में नहीं बची है, जैसे कि ताजमहल बनाने वाले कारीगरों की परंपरा नहीं बची है। बीवीसी कहता है कि कला तो दुनिया में जिंदा रहती है लेकिन कलाकार के प्रति किसी दर्शक या सहृदय की कोई उत्सुकता नहीं होती है । शहर बस्ती से दूर पांडव फॉल, सजन प्रभा वाला पुल और मतंगेश्वर मंदिर पर बैठकर हर जगह की नई नई कहानियां बीबीसी सुनाता है। इसे चमत्कृत सी एना सुनती है। वह अपने 'काम टॉप' में दिन भर में सुनी हुई बातों को नोट्स के रूप में लिखती भी रहती है। जहां-जहां यह दोनों भ्रमण करने जाते हैं, अपने बालों को पोनीटेल की तरह बांधे एक कैमरे वाला पत्रकार और उसका साथी माइक वाला भी पराया आसपास दिखता है । अनेक बार यह सब घटने के बाद बीबीसी को उन दोनों के बारे में एक शंका होती है कि वे दोनों वहीं क्यों घूमते हैं, जहां एना और बीबीसी घूमने जाते हैं। बीबीसी ऐना को अपने घर लाता है, उसकी मां जो लगातार देख रही है कि आसपास के गांव के तमाम लड़कों ने विदेशी पर्यटक को खुश करके यानी सेट करके या निकट आकर उनके साथ विवाह कर विदेश चले गए हैं लेकिन उनके दोनों लड़के असफल रहे हैं। बड़े लड़के चंदू ने इटली की एक लड़की से शादी भी की तो वह लड़की चंदू को साथ ले जाने के बजाय इटली छोड़कर यहीं इसी गांव में रहने आ गई ।उसने हिंदी सीखी , बुंदेली सीखी और ग्रामीण ढंग से खाना बनाना, खिलाना, परंपराएं और रहना सीख लिया है। जिस पर उनकी मां को बड़ा ऐतराज है और स्थाई गुस्सा भी । मां की इच्छा है कि बीबीसी अब जल्दी ही किसी विदेशी को पटाकर विदेश चला जाए । एक दिन एना को लेकर बीवीसी अपने घर जाता है तो बीबीसी की मां ऐना का बड़े उत्साह से स्वागत करती है, उसकी आरती उतारती है, तिलक लगाती है, पांव में महावर लगाती है, माथे पर चुनरी डालती है । ऐना पूछती है कि-ऐसा क्यों ? तो चारु यानी बीबीसी की इटली वाली भाभी उसे बताती है कि भारतीयों में स्पेशल गेस्ट का स्वागत ऐसे ही किया जाता है। ऐना वापस होटल चली जाती है , दिन बीतते रहते हैं कि वापसी हो जाती है ।एना रोज हर दिन अपने देखे हुए स्थानों और अपने प्रेमी को रात दस बजे भेजती रहती रही है और कुछ चित्रों को इंस्टाग्राम पर डालती रही है । उसकी यह सीरीज उसके देश में पांच लाख डॉलर का पुरस्कार जीतती है ऐना उछल पड़ती है। विदाई के दिन भी ऐना बीबीसी के घर जाती है।
चंदू और पंडित बाहर खटिया पर बातें कर रहे थे, उनके पास बैठा बीबीसी मन ही मन पंडित पर खीज रहा था -हो गए जंतर-मंतर! चंदू भैया को चाहिए कि इसको ग्यारह रुपया पकड़ा दे और चलता करें! उसे मन ही मन अम्मा पर भी गुस्सा आ रहा था।' विदेशन को देखते ही अम्मा की लार टपकने लगती है ।' अंदर मां का बोलना जारी था- "आज का मोहरत भोत अच्छो है । जे ही मुहरत में राम-सीता की शादी भई थी । कल ही पंडित जी ने मोये बतायो है । आज पंडित जी भी इते ही हैं ।"
एना मुंह बाये अम्मा को देख रही थी । उसने चारु की तरफ देखते हुए पूछा -"व्हाट इज शी टेलिंग! राम सीता शादी । आई कांट अंडरस्टैंड।"
" नथिंग सीरियस । शी इज टेलिंग अबाउट मैरिज ऑफ लॉर्ड राम सीता।"
फिर अम्मा को किसी बहाने से उठाकर अंदर ले गई । अंदर रसोई में पहुंचते ही अम्मा ने उसे टोका "का गिटर पिटर हे रही थी अंग्रेजी में ।" इस बीच चारु सोच चुकी थी उसने मां को समझाया कि एना महीना भर में भैया को अमेरिका बुला लेगी। शादी वहीं चर्च में करेगी।
" जां में खुस है मैं तो बा मैं खुस हूं। तू ऐसी कर चाय पिलाकर पंडित ए रवाना कर दे। मैं जाकर बैठ रही वा के पास। " कहते हुए अम्मा कमरे की ओर बढ़ गई ।चारु ने महसूस राहत महसूस की ।(पृष्ठ 162)
जिस दिन एना को जाना है शाम को साढ़े तीन बजे उसे लेने उसे स्टेशन छोड़ने भी बीबीसी आने वाला है । लेकिन वह नहीं आता । चार बज जाते हैं । एना होटल की गाड़ी से एयरपोर्ट चली जाती है ।
इस मूल कथा का अंत पाठक को चमत्कृत कर देता है । पाठक अब तक चल रही इस कहानी में डूबा डूबा सा बैठा है कि एयरपोर्ट पर कुछ नए राज उसे मालूम होते हैं। अंतिम अध्याय में दीक्षित जी प्रकट होते हैं और वे अपने शिष्य को नए तरीके से कुछ टिप्स देते हैं । इस मूल कथा के साथ-साथ खुद कथाएं बहुत चली हैं , जिनमें क्लारा नाम की युवती का बबलू नाम के लपका से स्नेह, बबलू द्वारा सेकंड हैंड ऑटो खरीदना और एकांत वाली नशे वाली जगह पर क्लारा को ले जाना उसके साथ नृत्य, गाना, उछल कूद और देह समागम भी करना जगह-जगह आते हैं। क्लारा बीमार हो जाती है। नशे में वह होटल वापस आ रही होती है कि कुत्ते उस पर हमला कर देते हैं जिन्हें होटल मैनेजर नावेद संभालकर डॉक्टर से उसकी चिकित्सा करवाता है। रात भर उसके पास रुकने के लिए , ऐना से ही निवेदन करता है । नावेद होटल मैनेजमेंट की डिग्री करके आया हुआ ऐसा व्यक्ति है, जो पूरी तरह से समर्पण भाव से ,होटल को संभाल रहा होता है ।रूबी जो होटल रिसेप्शनिस्ट है , वह कहती है कि आप तो इस तरह चीजों को व्यक्तिगत रूप से, समर्पण से संभालते हैं ,जैसे आप मैनेजर ना होकर होटल के मालिक हों, तो नावेद कहता है कि- हम जहां करें अपना सर्वश्रेष्ठ दें ! क्या फर्क पड़ता है कि हम मालिक हैं या मैनेजर। रूबी यह भी कहती है कि आपको छोटे बच्चों से बड़ा प्यार है आप गेस्ट लोगों के बच्चों को चॉकलेट देते हैं, उन्हें प्यार करते हैं ,उनमें अपने बेटे की झलक देखते हैं। अकेला बैठा हुआ नावेद अपनी लाइफ को याद करता है कि जब वह अपनी पत्नी जाहिदा को लेकर खजुराहो आया, उसे भी इन मंदिरों की तरफ घुमाने ले गया था । जाहिदा मंदिर में तो नहीं जाती क्योंकि उसका धर्म उसे बुत के दर्शन, बुत परस्ती की इजाज़तनहीं देता , लेकिन मंदिर के बाहर बनी मिथुन मूर्तियों को देख कर ही वह सकते में आ जाती है ।वह होटल लौटकर गुस्से में नावेद से कहती है कि हमारी मजहबी किताबों में इस तरह के स्त्री पुरुष के मिलाप के राज खुलेआम नहीं बताए गए। बेपर्दा औरतें नहीं बताई गई । औरत का बेपर्दा रहना गलत बताया गया। पाप बताए गए। जाहिदा किसी तरह चार साल खजुराहो रही और फिर अपने बेटे के साथ भोपाल शिफ्ट हो गई है। नावेद केवल अकेला खजुराहो में रहता है,बीबी बच्चे को छोड़कर।
यूं एक कहानी मंजू रजकऔर एलिस की भी है। मंजू रैकवार दरअसल गांव के एक गरीब परिवार की लड़की है, जिस पर माइंड एंड सोल नामक किताब में डूबा रहने वाला पर्यटक एलएस फिदा है, वह न तो घूमने जाता, न किसी गाइड की तलाश करता। लगातार एक ही किताब पढ़ता रहता है। शायद वह आत्मा की शांति के लिए आया है वह । जाने कैसे मंजू रैकवार उसको भा गई है। मंजू रैकवार को साथ ले जाना चाहता है, मंजू रैकवार के घर में कलह मच जाती है ।पिता उसे मार देना चाहते हैं,सो अपनी तलवार खोज रहे हैं। मां भी उसे कुल कलंकिनी बता रही है । लेकिन दादी बहुत समझदार है , वह मां और बाप के गुस्से से बचाकर धीरे से मंजू से पूछती है तो मंजू अपने तरीके से समझाती है कि मैं वहां जा रही हूं , वहां लाखों रुपए कमा लूंगी, वैसे मुझे क्या करना है उस पैसे का? सारा पैसा यही भेजूंगी... इस मकान की कोठी बना लेना, होटल बना देना ,एक बड़ी सी दुकान हो जाएगी घर में, कहां रह जाएगी। मेरा खर्च तो वहां एलिस उठाएगा ही यह सुनकर दादी के मन में सुख के सपने जगते हैं मां भी उनसे सहमत है और अंत में पिता भी सहमत हो जाता है।
उपन्यास का प्रमुख पात्र बीबीसी यानी ब्रज भूषण चंदेल पेशा गाइड उर्फ लपका है । वह एक विशिष्ट गाइड है । उसे खजुराहो के इतिहास तथा वहां के कोने आतरे में बने हुए मंदिरों ,उनके खंडहरों और सजन प्रभा, पांडव फॉल जैसे स्थानों की कहानियां भी याद है। उन कहानियों को बहुत रोचक ढंग से बताता है वह। मूर्तियों को अलग अलग भाव से पकड़ते हुए एक-एक अंग की पुलक महसूसते हुए वह जिस दिलचस्प तरीके से पर्यटक को कहानियां सुनाता है, उससे टूरिस्ट एकदम मोहित व वशीभूत हो जाता है और खजुराहो व उसकी मूर्तियों को बीबीसी के नजरिए से, नए तरीके से देखता है। बीबीसी के मन में विदेश जाने की कोई तमन्ना नहीं है। सहज संपर्क में आई लड़कियों को भी वह न गलत नजरिए से छूता, न उनके साथ कुछ करने की इच्छा करता है। एना इस उपन्यास की नायिका है । लेकिन नायक की प्रेमिका नायिका की तरह नहीं। बल्कि दूसरा महत्वपूर्ण स्त्री चरित्र उसे कहा जा सकता है, जो लगभग मूल कथा में हर समय विद्यमान रहता है। उसका अपने प्रेमी जी को बार-बार संदेश करना ,टॉम नोट पर दिनभर के नोट लिखना, उसे एक शोधार्थी छात्रा अथवा उत्सुक ट्रैवल एजेंट या पेशेवर ट्रैवलर राइटर के रूप में सामने आता है । हालांकि उसके मन की भावनाएं मरी नहीं है, जब भी भावुक होती है, वह अपनी भावनाएं कभी भी बीबीसी के गले लग कर, कभी उसके कंधे पर सिर रखकर और कभी आंखों में आंसू भर कर प्रकट कर देती है उपन्यास के अन्य चरित्रों में नावेद महत्वपूर्ण चरित्र है, जो एक समर्पित पेशेवर होटल कर्मी है। वह मजहब, धर्म और धन कमाने की इच्छा से मुक्त होकर अपनी ड्यूटी पूरी निष्पक्षता और समर्पण से निष्पादित करता है। अन्य चरित्र चारु इटली की रहने वाली लड़की थी, जिसके ग्रैंडफादर की इटली में कई फैक्ट्रियां थी, इंडिया के एक विलेजर से शादी करने के निर्णय पर उसके ग्रैंडफादर सहित सारा परिवार जब मना करने लगता है तो वह सब को छोड़कर भारत आ जाती है और भारत के गांवों व यहां के रहन सहन को पूरी तरह अपना लेती है। इस उपन्यास का बड़ा जानकार चरित्र रामकुमार दीक्षित है, जो उपन्यास में आए सभी गाइड्स का गुरु है और उन्हें अच्छे गाइड बनने का ज्ञान देता रहता है । दूसरे सहायक चरित्र बीबीसी की मां उसके भाई चंदू, क्लारा, बबलू भी खूब विश्वसनीय चरित्र है । विश्वसनीय चर्चित तो पुलिस का दारोगा भी है जो बहाना मिलते ही होटल में आ धमकता है और खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट रूबी को छूने या उसके निकट जाने के बहाने खोजने लगता है। उपन्यास के सभी चरित्र विश्वसनीय चरित्र हैं जो केवल खजुराहो ही नहीं किसी भी पर्यटन स्थल और यहां तक कि किसी भी गांव या कस्बे में जीते जागते आसपास घूमते मिल जाएंगे।
इस उपन्यास के संवाद बड़े शानदार है जो कम शब्दोँ में कथा के सफर, उद्देश्य,परिवेश व भाषा के रचाव बनाव को प्रकट करते हैं।इस उपन्यास के संवाद अनूठे हैं, उनमें हास्य का पुट है, वे हिंदी के उदास -बोझल- गहरे- गंभीर संवाद नहीं है ,जो केवल औपचारिकता के लिए लिखे जाते हैं। इसके संवाद जीवन्त संवाद हैं , जिनमें हिंदी का, व्यंग का गहरा ठाट अपने सही रूप में प्रकट हुआ है। एना जो विदेश से आई तो है, लेकिन जिसने काम चलाने लायक हिंदी सीख रखी है, उसका चाय बनाने वाले और झोपड़ी में दुकान रखें एक बूढ़े व्यक्ति का संवाद देखिए-" आप ब्रह्मा जी को मानते हो ?"
"काहे नहीं मानत हैं ! उनने ही तो जे सरिश्टी बनाई हेगी। "
" फिर ब्रह्मा जी के बनाए दूसरे मंदिरों में क्यों नहीं जाते ?"
बूढ़ा चुप्पी लगा गया । एना के बहुत जोर देने पर बड़ी मुश्किल से बोला "अब का कहें !आप बुरो ना मानियो, सही बात तो जे है के अंग्रेजन ने भ्रष्ट कर दये सबरे मंदिर... जगे-जगे से ब्रह्मा जी की बनाई मूर्तियां निकाल के नंगी पुंगी पुतरिया गढ़ के लगा दई। हम आप ही से पूछे थे मैडम जी, इन मंदिरन में कोई अपनी बहू बेटियन ए लेके जा सके। जे इसाईयन की चल रही मैडम जी। सबरे मंदिर भ्रष्ट कर दये।" बूढ़े की आवाज में रोष था।
एना बूढ़े के जवाब से स्तब्ध थी। वह एकटक बूढ़े के चेहरे के पार शून्य में देखते हुए सोच रही थी । आज से हजार साल पहले यही मंदिर उस समय रिलीजियस थे आज अनिता रिलीजियसथे। आज अगेंस्ट दा रिलिजन हैं। बट व्हाय?
एना को चुप देख बूढ़ा उठ खड़ा हुआ और दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला "कछु ज्यादा बोल गए हों तो बुरा मत मानियो मैडम जी।" ( पृष्ठ 44)
अपने लड़के बबलू के विदेश जाने की खबर से खुश झल्लो काकी रास्ते में जा रहे बीबीसी को रोकती है । बीबीसी ने मन मार कर भी नीचे रुक जाता है ।
" हओ जे कह रही पेले नेक मुंह मीठो कर ले फिर बताओ बात का है ।"
काकी अंदर से तामचीनी की प्लेट में दो बूंदी के लड्डू लेकर बाहर आई और प्लेट बीबीसी के हाथ में पकड़ा कर सामने की तरफ देखते हुए बोली"मोड़ा मेरो विदेश जा रओ एयर मरोड़ लोगन के पेट में उठ रही है।"
" अरे वाह! यह तो अच्छी खबर है।" कहते हुए बीबीसी ने पूरा लड्डू मुंह में रखा और सामने की तरफ देखा।
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" दूसरन की छोड़ो काकी, तुम जे बताओ नाम का है मोड़ी को?"
" अब जे अंग्रेजी नाम मेरे समझ में ना आत हैं। कुछ कलारा सी बता रओ थो बबलू । सादी हे जाय फिर मैं तो कमला नाम धर दूंगी । जे एक लड्डू तो और खा ले।"
बीबीसी ने दूसरा लड्डू भी मुंह में रखते हुए पूछा " कब जा रओ बबलू विदेश ?"
"छतरपुर ना जा रओ के अब्भी मन करो और झोला उठाके चल दये। तोये तो मालूम है विदेश जानो सहज ना है। कित्ते ही कागज बनवाने पड़त हैं। कह रओ थो कल दिल्ली ले जाएगी कागज बनवाबे। जे भी कह रहो थो के एक नयो पेटीपैक ऑटो रिक्शा भी दिला रही है ।"
"कौन देश जा रहो कछु बताओ बबलू ने?"
" मैंने जे ना पूछी...कोऊ देस हो का फर्क पड़त है । बिदेस तो बिदेस है।( पृष्ठ 67)
एक अन्य प्रसङ्ग देखिये।
बोलते-बोलते बीबीसी कुछ पल को रूका और फिर चेहरा घुमा कर एना की ओर देखते हुए गहरी आवाज में कहने लगा " इन मूर्तियों के पीछे कितने ही शिल्प कारों की अपनी ही कथाएं हैं। अब इस सीरीज को एक साथ जोड़ कर देखो तो कह सकोगी कि इन मूर्तियों को बढ़ने वाला कलाकार निश्चित रूप से किसी के प्रेम में होगा और उसकी प्रेमिका पूरे समय उसे रिझाती उसकी पलकों के सामने रही होगी! और एक दिन अपनी प्रेमिका से दूर उस कलाकार को यहां ले आया गया होगा । विरह से तड़पते इस शिल्पकार ने अपना ही अक्स गढ़ दिया होग...! हे ना!"
एना पुरुष की मूर्ति पर नजर गड़ाए सोच में थी। बीबीसी की बात सुनकर चौकते हुए अपने आप से बाहर आई । "डेफिनेटली! बिना किसी इंस्पिरेशन के इस लेवल की कला पॉसिबल ही नहीं है! रियली, खजुराहो के इन सभी शिल्पियों को हैट्स ऑफ।" फिर कुछ रुककर अचानक पूछ बैठी " जिन राजाओं ने यह बनवाए, उनके नाम हर जगह लिखे हैं, लेकिन जिन कलाकारों में ये मूर्तियां बनवाई उनके भी नाम कहीं मिलेंगे क्या?"
" नहीं कहीं एक नाम भी नहीं मिलेगा। कोई नहीं जानता इन मंदिरों को बनाने वाले कौन थे। कहते हैं उस समय हजारों की संख्या में शिल्पकार, कारीगर बाहर से लाए गए थे। हर काम के लिए अलग कलाकार। देवी-देवताओं की मूर्ति बनाने वाले अलग, बड़ी मूर्तियां बनाने वाले अलग, तंत्र और सेक्स की मूर्तियां करने वाले अलग, शास्त्रों-पुराणों की कथाओं को उकेरने वाले अलग। लगभग डेढ़ सौ-दो सौ साल तक उन कलाकारों की छह-सात पीढ़ियां खजुराहो के मंदिरों को बनाती रही।फिर सब कलाकार न जाने कहां गायब हो गए... आज खजुराहो में आपको सब तरह के काम करने वाले मिल जाएंगे, लेकिन शिल्पकार नहीं मिलेंगे। पता नहीं क्या हुआ होगा उनके साथ।"
एना मूर्तियों को देखते हुए सोच रही थी दुनिया में कला को तो स्पेस मिला, लेकिन अनफॉर्चूनेटली कलाकार के लिए स्पेस ना के बराबर है। पेरिस की "स्टेच्यु ऑफ़ लिबर्टी" के बारे में दुनिया भर के लोग जानते हैं लेकिन उसे किसने बनाया यह कौन जानता है। इंडिया में ही ताजमहल शाहजहां ने बनवाया, यह सबको पता है लेकिन किस ने उसे डिजाइन किया इन लोगों ने उसे बनाया यह कोई नहीं जानता। कितनी ही पेंटिंग लंबे समय तक हमारी आंखों में बसी रहती हैं लेकिन कलाकार का नाम हमें देर तक कितनी देर तक याद रहता है। कोई भी कला हो जाए सर कलाकार गुमनामी में ही जीते हैं और गुमनामी में ही मर जाते हैं। (पृष्ठ 110)
इस उपन्यास की भाषा बड़ी अद्भुत है । कथा भूमि खजुराहो है जो छतरपुर के पास है ( यानी दूर बुंदेलखंड का ग्रामीण इलाका, आस-पास के गांव तथा खजुराहो में भटकने वाले गाइड, दुकानदार और नौकर चाकर ) सब बुंदेली बोलते हैं। बुंदेली के चार पांच प्रकार हैं झांसी की बुंदेली, छतरपुर की बुंदेली, सागर की बुंदेली,उरई की बुंदेली,दतिया सेवड़ा की बुंदेली। सब की सब अलग प्रकार की बुंदेली हैं। लेखक के परिवेश में भाषाई तौर पर बड़ा फर्क है। उन्होंने छतरपुर की खास बुंदेली छटा को गहरे से पकड़ा है । उपन्यास में खड़ी बोली हिंदी में व्यक्त की जाने वाली क्रियाओं, संज्ञा और विशेषण के लिए प्रॉपर बुंदेली शब्द प्रयोग किए गए हैं। मालवा में जन्मे और आजीवन मालवा में रहने वाले एक लेखक का बुंदेली भाषा को इतनी गहराई से पकड़ना , अभिव्यक्त करना बड़ा श्रम साध्य काम था जिसमें लेखक न केवल सफल हुए बल्कि पाठक को चमत्कृत भी करते हैं। बुंदेली त्योहारों, रीति-रिवाजों , पूजा पद्धतियों का लेखक ने स्थान स्थान पर सही प्रयोग किया है । बुंदेली लोकगीत जिसमें नायिका की कोमलता का वर्णन किया है, इसमें क्लारा के नशे में होने के समय नृत्य करते समय ग्रामीण अर्जुन सिंह द्वारा गाया गया है
पिया कैसे झुलाऊं रस के बिजना
साड़ी को बोझ मोरी कमर दुखत है
माहुर के भार उठे पग ना।
पिया कैसे...
इस उपन्यास में कई जगह और अनेक स्थानों पर बुंदेली की कहावतें , मुहावरों का प्रामाणिक आधिकारिक भाव से प्रयोग किया गया है । पूरी कहानी एक सत्य कथा सी महसूस होती है।
इस उपन्यास की शैली ही नहीं, इसके प्रस्तुतीकरण की योजना पाठक को गहरे से प्रभावित करती है। वे लोग जो दर्जनों बार खजुराहो गए, वहां के मंदिरों में भटके , अनेक गाइड यानी लपका की सेवाएं लेते रहे, बे भी इतने किस्सों और स्थानों से परिचित नहीं हुए होंगे, जितना इस एक उपन्यास के पढ़ लेने पर पाठक परिचित हो जाता है। मूर्तियों की कला , यक्षिणी और अप्सराओं के हाव भाव, समागम के लिए तैयारी करती, श्रृंगार करती नायिका की एक-एक अदा का विवरण मूर्तियों में दर्शाना आंखों की बंकिम मुद्रा , कटि व वक्ष का उठाव और पुरुष के भाव, स्त्री के क्षण क्षण बदलते भाव मूर्तियों में जिस तरह खोज कर लेखक ने प्रकट किए हैं वह उनकी अत्यंत कड़ी मेहनत की बदौलत ही संभव हुए होंगे । अगर कोई व्यक्ति खजुराहो जाए बिना खजुराहो की मूर्तियों, वहाँ की दंत कथाओं से परिचित होना चाहता है तो उसे यह उपन्यास पढ़ लेना ही पर्याप्त होगा। इन कहानियों किस्सों, मूर्ति के विवरणों का सही आनंद पुस्तक पढ़कर ही प्राप्त होगा, उसके बारे में कहने में न तो वह सुख हो सकता है, न वह कौतुक, न संतुष्टि और न प्रॉपर जानकारी , जो उपन्यास के पृष्ठों पर पंक्ति दर पंक्ति शब्द शब्द बिखरी पड़ी है। खजुराहो की मूर्ति कला और खजुराहो के मंदिरों के बनने, मूर्तियों की नायिका के रूप में मॉडल वन जाने वाली स्त्रियों, अप्सराओं की कहानियां, कविताएं तो हिंदी साहित्य में प्रचुरता से पाई जाती हैं, लेकिन इन सब के बीच यह उपन्यास एक विशिष्ट रूप में पाठकों के समक्ष आया है। जिसका शीर्षक भले ही 'खजुराहो के लपका' हो लेकिन वास्तविकता में यह उपन्यास खजुराहो पर लिखा एक विलक्षण उपन्यास है, जो बहुत सूक्ष्म विवरण, विस्तृत चित्रांकन और अनेक किस्से-कहानियों को साथ लेकर चलता है।
उपन्यास में स्थान-स्थान पर वह स्केच भी दिए गए हैं , जो प्रसिद्ध लेखक चित्रकार श्याम पुंडलिक कुमावत ने खजुराहो यात्रा के दौरान अपनी स्केच बुक में बनाए थे ।
सारांशतः सुनील चतुर्वेदी द्वारा लिखा गया यह उपन्यास हिंदी साहित्य में न केवल खजुराहो के लिए बल्कि समस्त बुंदेलखंड और हजार साल पहले के इतिहास, कथा, किस्सों , संस्कृतियों और मूर्तिकला के लिए लेखक द्वारा अनजाने में दी गई एक विशिष्ट श्रद्धांजलि है, जिससे हर हिंदी प्रेमी पाठक को पढ़ना अनिवार्य है।
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