Teri Chahat Main - 35 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | तेरी चाहत मैं - 35

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तेरी चाहत मैं - 35

मुकेश रॉय लॉन में बैठे थे। "आओ बरखुरदार, अपना ही घर समझो इसे।"
"शुक्रिया सर, आप का बड़प्पन है जो मुझे काबिल समझा इसके लिए।" अजय ने बैठेते हुए कहा।
“अरे भाई, इंसान अपनी सोच से बड़ा छोटा होता है। और तुम्हारी सोच तो अलग है।” मुकेश रॉय ने अजय को समझाया। अजय उनकी बात पर सिर्फ मुस्कान दी।
"हां तो भाई क्या लोगे चाय या कॉफी?" मुकेश रॉय ने अजय से पुछा।

"कॉफी सही रहेगी।" अजय ने कहा।
"हम्म, ठीक है और क्या लोग साथ में।" मुकेश रॉय ने पुछा।
"बस कॉफी सर।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।
“भाई तकलुफ ना करो। तुम तो ज्यादातर हॉस्टल मैं खाते हो। कभी-कभी मेजर साहब के यहां घर का बना खाते हो। अरे भाई आज तो कुछ घर का खा लो।” ये कह कर मुकेश रॉय ने अपने नौकर को बुलाया। नौकर के आने पर उस बोले "शरफू बेटा, जरा बड़िया सी कॉफी बना लाओ और साथ में गरम - गरम कबाब और फुलकियान।" शरफू रजामंदी से सर हिला के अंदर चला गया।
“हां तो अजय, कुछ बताओ अपने बारे मे। तुमसे कभी ये सब बातचीत नहीं हुई।”मुकेश रॉय ने अजय से पुछा।
"बस सर, मौका ही कब मिला। मैं लखनऊ से हूं। हमारा खानदान लखनऊ का है।"
"वाह लखनऊ तो बड़ी अच्छी जगह है।" मुकेश रॉय ने कहा।
"जी अच्छी जगह है, आज भी असल लखनऊ मैं आपको अदब और एतराम मिलेगा।" अजय ने कहा।
“फिर यहाँ मुंबई कैसे आना हुआ। सिर्फ पढ़ाई ही वजह तो नहीं होगी, लखनऊ से खुद एक बड़ा शहर है एजुकेशन के लिहाज से।"मुकेश रॉय ने पुछा।
“जी, असल मैं मेरे माता-पिता की मौत हो गई थी एक्सीडेंट मैं। जब मैं बहुत छोटा था। दादा और दादी ने परवरिश कारी। फिर दादी की मौत हो गई। फिर दादाजी ने अपने आखिरी वक्त में मुझसे कहा उनके मरने के बाद लखनऊ छोड देना। क्योंकी मेरे रिश्तेंदारो को डर था की कहीं दादाजी सब मेरे ही नाम ना कर डालें। उन्होंने महसूस कर लिया था की उन के बाद मुझे कोई वहा सुकून नहीं लेने देता है। बस मैं उनके मौत के बाद यहां आ गया। "अजय ये बता कर चुप हो गया। उसकी आंखें नम हो गई थी।मुकेश रॉय से अजय के आंसू छुपे नहीं। वो बोले "ओह, मुझे अफ्सोस है। और देखो मैंने भी तुम्हारे अतित का पूंछ कर तुमको रूला दिया।”
"अरे नहीं, बस दादा और दादी याद आ गए थे।" अजय ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा।
“वैसे कभी अपने आप को अकेला मत समझना। यहां तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं। मेजर शेखर है। तुहारी रूबी आपा है। और हम भी तो है। क्या हुआ की तुम्हारे सगों ने तुमसे नाता न रखा। किसी भी रिश्ते में खून से ज़्यादा मोहब्बत मायने रखती है।”मुकेश रॉय ने अजय को दिलासा दिया।
"हां, भगवान ने मुझसे एक हाथ से ले के दो हाथों से लौटया है। मुझे तो यहां कितना अपनापन मिला है, उसकी उम्मीद नहीं थी।” अजय ने जवाब दिया।


"ये हुई ना बात। शाबाश "मुकेश रॉय ने माहोल को बदला। तभी शरफू कॉफी ले के आ गया था।


To be continued
in 36th Part