“भाई ऐसा है की ये बताओ की तुम घर कब आ रहे हो। हमको भी तुम लोगों के ये खेल खेलने मैं मजा आता है, पर हम रिया से हार जाते हैं। जरा हमको भी ट्रेन करो"“भाई ऐसा है की ये बताओ की तुम घर कब आ रहे हो। हमको भी तुम लोगों के ये खेल खेलने मैं मजा आता है, पर हम रिया से हार जाते हैं। जरा हमको भी ट्रेन करो" मुकेश रॉय ने बड़े मजे में कहा।
अजय बोला "लगता है आपको भी इन गेम्स का शॉक है।"
"बहुत ज्यादा हैं।" मुकेश रॉय ने कहा। दोनो बड़ी बेतकलुफी से बिलकुल हम उम्र लोगो की तरह बात कर रहे थे। रिया को गुस्सा आ रहा था, एक तो अजय से पापा का इतना लगाव, दुसरा अजय का जार्विस होना जिसने उसे खेल मैं हरया था। ये दोनो बात उसे बरदाश्त नहीं हो रही थी। तभी एक और बात बम की तरह रिया पे गिरी।
"अजय कल तो छुट्टी है ऑफिस की, कॉलेज मैं कोई जरूरी काम तो नहीं है कल?" मुकेश रॉय ने पूछा तो जवाब में अजय ने कहा "नहीं, कल तो कॉलेज भी बंद है।"
“तो भाई, हम तुमको बुलाते रहेंगे और तुम आते रहोगे, चलो आज शाम हमारे यहां। रात का डिनर हमारे साथ। कोई रात का कार्यक्रम तो नहीं है तुम्हारा।"
"नहीं कोई खास नहीं" अजय ने जवाब दिया।
"हां तो बस, आज रात तुम हमारे मेहमान रहे।" मुकेश रॉय ने फैसला सुना दिया।
अजय ने रज़ामंदी दी तो मुकेश रॉय बोले " रिया हम तो अभी निकल रहे हैं एक मीटिंग के सिलसिले मैं, तुम अजय को ले के आना घर। "ये कह कर मुकेश रॉय चले गए।
"बड़े बेडेंगे इंसान हो, मना नहीं कर सकते थे।" रिया ने खा जाने वाली नजरों से अजय को देखा तो अजय ने इतमीनान से कहा "सर इतनी मोहब्बत से बुला रहे थे, कैसा मना कर देता।"
"अरे कहते हैं कोई काम है, या दोस्तों के साथ का प्लान है।" रिया गुस्से से बोली।
"मैं झूठ नहीं बोलता हूं।" अजय ने कहा तो रिया बोली "हां एक तुम्ही तो सच्चे इंसान रह गए हो दुनिया मे। और तुम हमें सच तो नहीं बोलते होंगे।”
"सही कहा तुमने, मुझे मना कर देना चाहिए था। पर फिर मैंने सोचा की रोज- रोज मेस के खाना खा के बोर हो गया था, आज कुछ घर का खा लेता हूं।" अजय ने फिर छुटकी ली। रिया फिर गुस्से से बोली "बहुत खराब इंसान हो तुम। और बेहद बेहुदा, पता नहीं पापा तुमको किसलिये पसंद करते हैं।"
अजय रिया को देख मस्कुराने लगा तो रिया बोली "अब मुझे क्यूं घूर रहे हो, मुझे खाना है क्या।" ये सुन अजय की हसी निकल गई वो बोला "पता नहीं क्यूं मुझे तुम्हें गुस्सा दिलाने मैं और लडने में मजा आता है।" रिया के गाल गुस्से से लाल हो रहे थे "और मुझे तुम जैसे लड़कों का मुंह तोड़ने मे बड़ा मजा आता है।" उसकी बात सुन के अजय फिर हसने लगा। रिया गुस्से मैं उठने लगी तो उसका पैर चेयर मैं फंस गया और वो लड़खड़ा के गिरने लगी। अजय ने उसे संभला। दोनो के चेहरे एक दुसरे के करीब थे। अजय मुस्कुरा रहा था और रिया उसे गुस्से से उसे देख रही थी। अजय बोला "रिया लोग देख रहे हैं।" ये सुन रिया झट से अजय से अलग हो गई और दुबारा चेयर पे बैठ कर फाइल ठीक करने लगी। अजय उसके बिखरे हुए पेपर्स उसे मिलते हुए बोला
“तुम बार-बार मुझे पे ही क्यों गिरती हो। उस दिन अस्पताल मैं और आज यहां। बात क्या है।" उसकी बात सुनके रिया फिर गुस्से से उठने लगी तो अजय बोला "आज रात का खाना मैं क्या खिलाओगी।"
"ज़हर खिलाऊंगी" रिया ने उठते हुए गुस्से से बोला तो अजय ने खा "लज़ीज़ तो बनाओगी ना, उसे।" रिया फिर वहा नहीं रुकी, उसका बस चलता तो वो अभी अजय को जान से मार देती।
To be continued
in 34th part