दिल के किसी कोने में मैं अजय अब रिया को महसूस करने लगा था। उसे समझ नहीं आ रहा था की असल मैं बात क्या है। किसी से ज़िक्र भी नहीं करना चाहता था। उसकी ये बेनाम और अंसुलझे हुई सोच उसे समाज भी नहीं आती थी। ऐसे ही कुछ दिन और बीत गए।
एक सुबह कॉलेज की कैंटीन मैं अजय अखबार ले कर आया।
हीना बोली "क्या जरूरी कोई रिश्ते के लिए एड दिया है या कोई एड पसंद आया है?" सब हंसने लगे।
अजय बोला "कमबख्तो मैं सब के भले के लिए अखबार लाया हूं। जरा एक विज्ञापन देखो।"
सना ने पेपर हाथ मैं लिया और पढने लगी "कुछ ऊर्जावान लोगों को अंशकालिक आधार पर एक नया कार्यालय चलाने के लिए आवश्यकता है। फ्रेशर्स आवेदन कर सकते हैं। काम का समय दोपहर 2 बजे से रात 8 बजे तक। दिए गए पते पर संपर्क करें।"
राज बोला "ज्यादा दूर नहीं है। वर्किंग हाओर भी सही हैं। इंटरव्यू देने में कोई बुरा नहीं लगता। पर हम सबको कोई थोडे हायर कर लेंगे।”
“लेकिन अगर हम सबसे पहले पहुच जाए तो शायद हो सकता है, क्यों ये न्यूज आज ही आई है। अभी ऑफिस शुरू हुआ कोई एक घंटा हुआ होगा। हम अगर अभी चलते हैं तो शायद हम सबसे पहले कैंडिडेट्स होंगे" न्यूटन बोला।
"तो चलो धावा बोलते हैं!" रोहित बोला. और फिर सब एक साथ चल दिए उस दिए हुए एड्रेस की तरफ। थोड़ी डेर बाद सब उस पते पर खड़े थे। उन सभी चौथी मंजिल पर जाना था।
न्यूटन बोला "अबे मुझे डर लग रहा है यार। पता नहीं क्या होगा। जोश मैं आ तो गया, पर अब डर लग रहा है।"
रोहित बोला "यार सही कहा तुमने, मुझे भी लग रहा है।" राज, सना और हीना भी घबरा गये थे। तबी अजय बोला, "यार एक गड़बड़ हो गई, मैंने अपना रिज्यूमे टू प्रिंट किया ही नहीं।"
हीना बोली “तो अब क्या करोगे? वापिस हॉस्टल जाओगे तो वक्त लगेगा।”
“मेरी ई-मेल पर तो है। मैं एक काम करता हूं, आस पास से प्रिंट निकलवा कर आता हूं। तुम लोग ऊपर जाओ।"
इतना कह कर अजय चला गया। बाकी लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। जब अजय आया तो उसे देखा की मुकेश रॉय अपनी कार से उतर रहे हैं।
अजय को देखते ही वो बोले "तुम यहां कैसे। कॉलेज नहीं गए?"
अजय ने जवाब दिया "नहीं मुकेश साहब आज एक ही पीरियड था हमारा। तो जल्दी फ्री हो गए। यहां CWS एंटरप्राइजेज मे पार्ट-टाइम जॉब्स का इंटरव्यू है, तो हम सब दोस्त उसी सिलसिले मे आ गए।"
मुकेश रॉय बोले "बहुत खूब। भाई तुम और तुम्हारे दोस्त बड़े मेहनती हैं। अच्छा लगता है जब हम किसी नौजवान को इतनी मेहनत करते देखते हैं। वाइस CWD मे मेरी जान पहचान है कहो तो मैं बात करू"।
अजय बोला "माफी चाहता हूं, इस्को मेरा घमण्ड मत समाजिये गा, पर मैं अपनी काबिलियत पर मंजिलें हसील करना चहता हूं। इससे जिंदगी के किसी मोड़ पर मुझे ऐसा ना लगे की मैंने वो पाया, जिसका शायद मैं हकदार भी नहीं था।”
मुकेश साहब बोले " बहुत अच्छे बहुत कम उमर मैं बुलंद ख़यालत हैं तुम्हारे। तुमको कामयाबी जरूर मिलेगी।" इतना कह कर मुकेश साहब, तीसरी मंजिल पर उतर गए।
To be continued
in 14th part