Shraap ek Rahashy - 21 in Hindi Horror Stories by Deva Sonkar books and stories PDF | श्राप एक रहस्य - 21

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श्राप एक रहस्य - 21

पटक इतनी ज़ोरदार थी की दर्द से उनकी एक हल्की आह निकल गयी। लेकिन उन्हें पटकने वाला घिनु नहीं था,.....वो प्रज्ञा की रूह थी। उसने उन दोनों को अपने पीछे आने का इशारा किया। सोमनाथ चट्टोपाध्याय तो सामान्य थे, लेकिन अखिलेश बर्मन का व्यवहार थोड़ा अलग था। वे डर रहे थे उसके पीछे जाने से। वो जो दिखती भी है, और नही भी। ऐसा लगता जैसे पानी से बनी है वो, हवा चलती तो हवा के बहाव के साथ वो भी हिलने लगती। रात के घुप्प अंधेरे में भी वो साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।

प्रज्ञा की रूह उन दोनों को वहीं लेकर आयी। उसी कुएं के पास जहां लिली कैद थी। लिली जिसने महीनों से नहाया नहीं था। ढंग से कुछ खाया भी नहीं था। उसकी आंखें अंदर की तरफ़ धस रही थी। लिली ने प्रज्ञा के साथ और दो लोगो को देखा तो कहीं ना कहीं उसे राहत महसूस हुई। उसने बेहद अफ़सोस के साथ उन दोनों को देखा। और फ़िर.... वे उन्हें लेकर उसी कुए के पास गयी। उसने झुककर दोनों को कुएं के भीतर देखने को कहा। हालांकि इतने अंधेरे में उन्हें कुए के भीतर कुछ दिखा तो नहीं लेकिन कुए के भीतर उन्हें एक अजीब सी भिनभिनाहट की आवाज़ सुनाई पड़ी। जैसे लाखों उड़ने वाले छोटे कीड़े एक साथ अपने पंख हिला रहे हो। इसके साथ ही किसी भारी भरकम चीज का कुए के अंदर होने का आभास भी उन्हें हुआ।

वे दोनों सवालिया नजरों से अब लिली को देख रहे थे, और लिली प्रज्ञा की रूह को देख रही थी जो कुएं से कुछ दूरी पर बैठी थी। वो ख़ामोश थी लेकिन उसके सुख चुके आंखों से भी पश्चाताप के भाव झलक रहे थे।

उसने कहा :-

" वो ख़ुद को तैयार कर रहा है। वो पूरे शहर को बर्बाद कर देगा, अब वो किसी की नही सुनेगा। और ये सब मेरी वजह से हो रहा है"

वो घिनु की ही रूह थी जो ख़ुद को एक नया रूप दे रहा था,,ताकि वो लोगों के सामने अब खुलकर आ सकें। वो ख़ुद को एक ऐसे ढांचे में लोगों के बीच लाना चाहता था कि अब तक जो लोग घिन्न से उसे देखकर भाग जाते थे, अब वो सब उसे देखकर डर कर मर ही जाएं। लेकिन उसके मरे हुए शरीर को इतनी ताक़त मिली कहा से..? क्योंकि प्रज्ञा के वजूद की बुराइयों की ताक़त अब उसके पास थी। हां कुए में फसे प्रज्ञा के बाल और उसकी वो गुड़िया जो अब तक कुएँ में ही फसी है, उनके भीतर प्रज्ञा ने ही किसी वक़्त में नकारात्मक शक्तियां भरी थी। उस वक़्त जब वो नफ़रत करती थी अपनी माँ से, अपने परिवार से और ईश्वर से। उस वक़्त उससे निकलने वाली सारी नकरात्मक ऊर्जा उसने अपने उन्हीं फंसे हुए बाल और उसकी गुड़िया के भीतर कैद कर लिया था। और अब वहीं हो रहा है, कहते है ना एक बुराई जब किसी दूसरे बुराई से मिलती है तो उसकी ताकत भी दुगुनी हो जाती है। घिनु भी उसकी बुराइयों का फायदा उठा रहा है। उसने शुरू से ही प्रज्ञा के मासूम और भोले मन का फ़ायदा उठाया और उस से मदद मांगी। उसने उसे झूठी कहानियां सुनाई और उसके मन में अपने प्रति दया के भाव भर दिए। प्रज्ञा को लगता रहा कि घिनु के साथ बहुत सारे धोखे हुए है जिसका बदला लेने ही वो आया है। वो उसकी मदद करती रही। लेकिन धीरे धीरे उसे आभास होने लगा घिनु सिर्फ़ उसका फायदा उठा रहा था। वो प्रज्ञा से वो काम भी करवाने लगा था जो वो नहीं करना चाहती थी। उसने ही लिली को कैद करवाया था प्रज्ञा के द्वारा और लिली को कहीं नही जाने देने के लिए बाध्य किया था।

प्रज्ञा ने फ़िर कहा :- " जब मुझे लगने लगा कि घिनु की दुश्मनी किसी एक व्यक्ति विशेष से नहीं है, वो तो समस्त मानव जाती के ही पीछे पड़ा है। तब मुझे लगा कि मुझे इसका साथ और नही देना चाहिए और इसकी हरकतों को रोकना चाहिए। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वो मुझसे कहीं अधिक ताक़तवर था। मेरी बुरी शक्तियों को तो वो मुझसे छीन ही चुका था। तब मेरी बची हुई शक्तियों को लाने के लिए ही मैंने लिली को मेरी मां के पास भेजा था। हां मैं उस वक़्त जानती थी कि घिनु एक बुरी शक्ति है, लेकिन जान बूझकर ये बात मैंने लिली को नहीं बताई। दरसल मैं लिली के सामने ये ज़ाहिर नही करना चाहती थी कि मैं एक कमज़ोर रूह हूँ, जो चाहकर भी अब घिनु से सामने से भिड़ नहीं सकती, मैंने उसे इसी भ्रम में रहने दिया कि मैं अपनी इच्छा से घिनु की मदद कर रही हूँ। मैंने उसे कहा कि मैं माँ से मिलना चाहती हूं, लेकिन ये झूठ था। मैं कभी अपनी उस माँ से मिलना नहीं चाहती थी, जो किसी वक़्त में मुझे मारने के लिए हर दिन मुझे ज़हर दिया करती थी। हां ये बात सच है कि मेरी अच्छाइयों ने उनको बचाया जरूर था। और मैं बस उनसे उन्हीं अच्छी ताकतों को वापस लेना चाहती थी। इसलिए मैंने लिली को वहां भेजा था। वो बालों से बनी एक गुड़िया थी, जिसके भीतर मेरी अच्छाइयां कैद है। मुझसे जन्मी मेरी सकरात्मक ऊर्जाओं से बनी थी वो। मुझे लगा शायद उन्हीं ताकतों के बदौलत अब मैं घिनु से लड़ सकूँगी। लेकिन अफ़सोस मेरी माँ ने उस गुड़िया को भी खो दिया। वो यहां अकेली मुझसे मिलने चली आयी। समझ नहीं आता इन दिखावों की जरूरत ही क्यों होती है..? जो औरत कमज़ोर होने का रोना रोकर अपने बच्चों के लिए खड़ी नही हो सकती, उसकी मौत की वजह बन जाती है। वैसी औरतों को कोई अधिकार नही की वे किसी बच्चे को जन्म दे। माँ तो ताक़त होती है इस समस्त सृष्टि की....भगवान से बनी सबसे शानदार चीज और ईश्वर कि समस्त अच्छाइयों से बनी गुड़िया एक माँ ही होती है। जिसके भीतर सबकुछ होता है, दया,हिम्मत,ताक़त,हौसला और स्नेह भी। अगर आपके भीतर एक सच्ची मां है तो दुनियां की कोई बुरी शक्ति आपको कमज़ोर नही कर सकती। फ़िर मेरी माँ तो महज़ एक पुरुष की बातों में आकर मुझे मार रही थी। मैं नफ़रत करती हूं उनसे। बेहिसाब नफ़रत....!!!"

प्रज्ञा की बाते सुनकर वहां खड़े सबकी आंखें पनीली हो गयी। अखिलेश बर्मन एक बार फ़िर अपने आप को पश्चातप के एक विशाल समुंदर के बीच फंसे हुए पा रहे थे। उन्होंने भी तो एक महान माँ से उसकी औलाद को छीन लिया था। उन्होंने अपने हथेलियों से अपने आंखों को छिपा लिया, वे अपनी पत्नी के सामने जाकर फुट फुट कर रोना चाहते थे, उनसे माफ़ी मांगना चाहते थे।

सोमनाथ चट्टोपाध्याय भी इस वक़्त एक गहरी सोच में थे। वे सोच रहे थे, न जाने वो भी कैसी माँ थी जिसने उन्हें जन्म देकर छोड़ दिया, ना जाने उनकी कोई मजबूरी थी या कोई और वजह। और उनके जीवन मे आयी वो माँ कितनी महान थी, जिसने उन्हें जन्म नहीं दिया लेकिन दूर एक देश से ले जाकर उन्हें एक शानदार जीवन दिया। उनको मन हुआ वो ख़ुद को उनकी उसी महान माँ के पैरों के पास झुकाकर उनके पैरों को छू ले। वे उस वक़्त उनकी माँ के शीतल स्पर्श को पाने के लिए मचल उठे। लेकिन ये कहा सम्भव था, वो तो कब की जा चुकी थी।

क्रमश :-Deva sonkar