Ishq a Bismil - 39 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 39

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इश्क़ ए बिस्मिल - 39

अज़ीन बिना कुछ कहे बस हदीद को देखे जा रही थी। वह जितना उसे देख रही थी हदीद का खून उतना ही ज़्यादा सूख रहा था।

“इतने दिन हो गए और अभी तक तुम्हें इसका नाम तक नहीं पता चला?” ज़मान खान को इस बात पर हैरानी हुई थी। उनकी बात पर हदीद का गला सूख गया था सो उसने फिर से पानी पीना शुरू कर दिया। उमैर हदीद की घबराहट को समझ गया था की वह क्यों अज़ीन को अपनी दोस्ती की औफर कर रहा है, उसे हदीद पर हँसी आ रही थी मगर फ़िल्हाल वह अपनी हंसी दबा गया था क्योंकि उसे अभी अभी ध्यान आया था की उसके बगल में अरीज बैठी है।

“चलो फ़िर मैं तुम दोनों को introduce भी करवा देता हूँ और तुम दोनों की दोस्ती भी।“ ज़मान खान ने हंस कर कहा था और उनकी बात पर आसिफ़ा बेगम पक रही थी। वह खा जाने वाली नज़रों से अज़ीन को घूर रही थी।

“अज़ीन ये है हदीद मेरे छोटे नवाब और हदीद ये है अज़ीन मेरी सब से छोटी शहज़ादी।“ उनकी बात पर आसिफ़ा बेगम ने डिश पर अपना गुस्सा निकाला था उस पर ज़ोर से चमच मार कर। ज़मान खान समझ गए थे की उनकी बेगम को उनकी ये बात पसंद नहीं आई थी मगर उन्होंने भी उनकी पसंद और ना पसंद की बिल्कुल भी परवाह नहीं की थी और आगे कहा था।

“ये मेरी शहज़ादी भी है और इस घर की मल्लिका यानी की तुम्हारी भाभी की बहन भी।“ उन्होंने आग मे जानबूझ कर घी डाली थी। उनका इतना कहना था की आसिफ़ा बेगम गुस्से से टेबल से उठी थी और नसीमा बुआ को ज़ोर से कहा था।

“मेरा खाना मेरे कमरे में ले आओ।“ इतना कह कर वह ज़मान खान को घूरती हुई वहाँ से चली गई थी। बदले में ज़मान खान ने भी अपने होंठों पर एक दिलकश सी मुस्कान सजा ली थी। अरीज को ये सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था वह ख्वामाख्वा में शर्मिंदा हो गई थी। बुरा तो उमैर को भी बोहत लगा था की ज़मान खान ने एक पराई लड़की के लिए उसकी माँ की insult की थी वह भी सबके सामने। वह अपने बाप की इस हरकत पर गुस्से से तिलमिला गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था की ज़मान खान के मन में आखिर चल क्या रहा है। एक तरफ़ तो वह ये कहते है की वह चाहे तो अरीज को तलाक़ दे दे और यहाँ उसके छोटे भाई को ये बता कर introduce करवा रहे थे की अरीज उसकी भाभी है।

नसीमा बुआ आसिफ़ा बेगम के लिए खाना प्लेट में निकाल रही थी तो ज़मान खान ने उस से कहा था।

“जो लोग यहाँ पर खाने के लिए बैठे है पहले उन्हें खाना सर्व करो और जो यहाँ पर नही है वह बाद मे खाते रहेंगे।“ नसीमा बुआ ने तुरंत उनकी हुक्म का पालन किया था और आसिफ़ा बेगम के लिए खाना निकालना बंद कर दिया था मगर अरीज ने उस से कहा।

“आप उन्हें खाना दे आये मैं यहाँ पे खाना सर्व करती हूँ।“ अरीज की बात पर नसीमा बुआ ने ज़मान खान को देखा तो उन्होंने इशारे से उसे जाने को कहा और अरीज को खाना सर्व करने की इजाज़त दे दी। अरीज ने सबसे पहले ज़मान खान को खाना परोसा उसके बाद वह उमैर की तरफ़ आई थी मगर इस से पहले की वह उसके प्लेट में कुछ डालती उमैर अपनी कुर्सी पीछे ढकेलता हुआ कुर्सी से उठ गया था और लंबी डिग भरता वहाँ से चला गया था। अरीज ज़मान खान के सामने नज़र उठाने के लायक नहीं रही थी उसे ऐसे लगा था की उमैर ने बिना उसे छुए ही उसके गाल पर थप्पड़ दे मारा हो।

“कोई बात नहीं बेटा आप हदीद और अज़ीन को सर्व कीजिए।“ उन्होंने उसे normalize करने को ऐसा कहा था मगर हक़ीक़त में उन्हें भी उमैर की ये हरक़त बिल्कुल भी पसंद नहीं आई थी। वह खामोशी से खाना खाते हुए कुछ सोचते रहे थे।


उमैर बाहर गार्डेन में अकेला कुर्सियों पर बैठा हुआ था। दिलो दिमाग़ में ऐसी हलचल मची थी की उसे सुकून नहीं मिल रहा था। जाने क्या यूँही खला (ब्लैंक स्पेस) में कुछ ढूंढ रहा था मगर उसके हाथ जैसे कुछ भी नहीं आ रहा था। कुछ देर यूँही देखने के बाद उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली थी और उसे सुलगा कर जैसे अपने अंदर की जलन को कम करने बैठ गया था।

जब ही उसके पीछे से किसी ने कहा था।

“सुनिए!” उमैर ने अपने पीछे मुड़ कर देखा था और अरीज को देख कर वापस पहले वाली position मे हो गया था जैसे उसे उसके आने से या उसके पुकारने से उसे कोई मतलब नही हो। अरीज को देख कर एक बार ये ख़्याल ज़रूर आया था की ये सिगरेट फेक दे मगर फिर उसने उसे इतनी एहमियत देने की ज़रूरत नही समझी इसलिए उसके सामने एक कश और ले लिया था। हवाओं में सिगरेट का धुआँ जैसे घुल सा गया था। अरीज को सिगरेट की बदबू बिल्कुल पसंद नहीं थी और उस से बर्दाश्त भी नहीं होता था सिगरेट पीते हुए बंदे के सामने ठेहरना। मगर वह बर्दाश्त कर के वहाँ पर खड़ी रही थी।

वह कभी सिगरेट नहीं पिता था.... कॉलेज के ज़माने में दोस्तों के साथ ट्राई ज़रूर किया था और उसे ये चीज़ काफी बकवास भी लगी थी मगर अब जैसे वह इसका सहारा ले रहा था। उसे पता था की ये ज़हर है मगर वह फिर भी पी रहा था। वह ऐसे बोहत सारे ज़हर को पीना चाहता था जो उसके अंदर के जलन को सुकून बख़्श सके। उसे सब कुछ भूलने पर मदद कर सके उसकी मौजूदा situation से उसे बाहर निकाल सके।

“क्या मैं थोड़ी देर यहाँ पर रुक सकती हूँ। मुझे आप से कुछ बातें करनी है।“ अरीज को उसके सिगरेट पीने की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। उसके हाथों में सिगरेट देख कर एक पल को उसे लगा की वह वापस मुड़ जाए मगर फिर उसने सोचा ये उसकी लाइफ है वो जो चाहे करे। वो जब उसके सामने सिगरेट पी सकता है तो फिर वो क्यों उस से पर्दा करती फिरे।

“तुम्हें इजाज़त की क्या ज़रूरत है यहाँ वहाँ रुकने के लिए...ये तुम्हारा घर है... बल्कि इजाज़त तो हमें लेनी चाहिए तुम्हारी...सोर्री...आपकी। आप यहाँ की मल्लिका जो ठेहरीं।“ उसने हँसते हुए उसे तंज़ (व्यांग) किया था साथ में एक और कश भी लिया था। अरीज उसके पीछे खड़ी थी और वो उसे सिरे से इग्नोर कर के आगे खला में देख रहा था।

अरीज बिना कुछ आगे उस से बोले वह भी यूँही जाने क्या खला में देख रही थी। उमैर को हैरानी हुई के उसने आगे कुछ कहा क्यों नहीं। वह है भी या चली गई? उसे चेक करने के लिए वह मुड़ा था और उसे अपने पीछे ही पाया था।

आज सफ़ेद सलवार सूट में बिना किसी धूल या मैल के बिल्कुल फ्रेश वह किसी हूर से कम नहीं लग रही थी। चांदनी रात ने सब पर जैसे चांदी बिखेर दिया था। उस पर अरीज का सफ़ेद सूट उसे भी हूरों की तरह पुरनूर कर गया था। बोहत ही खूबसूरत काले लंबे घने रेशमी बाल यूँही खुले हुए थे जो हवा की अठखेलियों से बार बार यहाँ से वहाँ हो रहे थे ...तो कभी उसके चेहरे को ढांप रहे थे। सफ़ेद शिफोन का लंबा सा दुपट्टा दूर तक हवाओं मे उड़ रहा था वह अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी ये देखे बिना की उमैर उसे इतनी देर से देख रहा है।

अए दिल मुझे संभाल

अब होश खोने को है

मेरी अना (ego) का है सवाल

अए दिल मुझे संभाल

मुझे संभाल।।

उमैर के दिल को कुछ होने लगा था इसलिए वह अपनी सोच को झटकता हुआ वापस सीधा मुड़ गया था मगर दूसरे ही सेकंड एक लेहरता हुआ आँचल उसके मूंह पर लहराया था और वह वापस अपने पीछे देखने पर मजबूर हो गया था।

अरीज वापस जा रही थी बिना उस से कुछ कहे मगर उसके आँचल ने जैसे उमैर पर लहरा कर उसे अलविदा कहा था। उमैर उसे जाते हुए कुछ देर यूँही देखता रहा।

क्या कहना चाहती थी अरीज?

क्या उमैर को मनाने आई थी?

अपनी दिल की बात करने आई थी?

लाख चिढ़ और बेज़ारी होने के बावजूद उमैर उसे देखने पर मजबूर क्यों हो जाता था?

क्या ये अरीज की खुबसुरती का attraction था?

या फिर निकाह के पाक बंधन की कशिश थी जो उसे अरीज को देखने और उसे सोचने पर मजबूर कर देती थी?

क्या होगा आगे?

जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल