Taste that too in the food prepared by your mother's hands in Hindi Short Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | स्वाद वो भी आपकी मां के हाथों के बनाए खाने में

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स्वाद वो भी आपकी मां के हाथों के बनाए खाने में

आज क्या बनाऊं समझ नहीं आ रहा, रागिनी ने अपने पति से कहा।

सुनो!! आज जैसे मेरी मां दाल बनाती थी वैसी दाल बनाओ ना! बड़ा मन है खाने का।
रागिनी का पति कुछ सोचते हुए बोला।

उसे भी खाने का क्या मन कर रहा है आपका! दाल होती थी वो! बिल्कुल कढ़ी लगती थी वो और छोंक के नाम पर सिर्फ जीरा।
रागिनी अपने पति की बात सुन तंज कसते हुए बोली।

हमें तो वही दाल पसंद थी सच कितनी स्वादिष्ट लगती थी। जब भी मां बनाती हम सभी बहन भाई टूट पड़ते।
रागिनी का पति मुस्कुराते हुए बोला।

वैसे आपको वही सब स्वादिष्ट लगती होगी और बनता भी क्या था यहां पर कभी दाल तो कभी आलू!!
मन ऊब जाता था मेरा तो वह सब खा कर कितना सादा खाना खाते थे। तुम लोग उस समय।।

रागिनी, कुछ भी कहो हमें तो वही अच्छा लगता था। माना उसमें ज्यादा तेल मिर्ची मसाला नहीं होते थे लेकिन फिर भी वह छप्पन भोग से बढ़कर था क्योंकि उसमें हमारी मां के हाथों का प्यार था । बचपन से वही खाना खाया है तो उसका स्वाद जीवन में कैसे भुलाया जा सकता है।

रागिनी का पति उसे समझाते हुए बोला।

जितनी तारीफ अपनी मां की बनाई रबड़ी दाल की करते हो। कभी मेरे खाने की तो नहीं करते ।
रागिनी मुंह बनाते हुए बोली।

करता क्यों नहीं। जब जो अच्छा लगता है उसकी तारीफ करता हूं। अब तुम भी ना क्या अपना और मां के खाने का कंपैरिजन लेकर बैठ गई। मां के हाथों का जादू अपनी तरफ और तुम्हारी खाने का स्वाद अपनी जगह!! दोनों का अपना महत्व है।
रागिनी का पति उसे देख मुस्कुराते हुए बोला।

बस आपसे जीतना मुश्किल है। सबको खुश रखना कोई आपसे सीखे।
रागिनी हंसते हुए बोली।

चलो तो इसी बात पर मैं बनाकर खिलाता हूं तुम्हें आज अपनी मां के जैसी दाल।। स्वाद का तो पता नहीं है लेकिन कोशिश करूंगा।।
रागिनी के पति ने हंसते हुए कहा।

अगले दिन संडे था। रागिनी अपने मायके गई। जिस समय वह अपने मायके पहुंची । उस वक्त सभी नाश्ता कर रहे थे। उसे देखते हुए उसके भाई भाभी और बच्चे सभी खुश हो गए।
अरे वाह वाह दीदी! बड़े अच्छे समय पर आई हो। चलो बैठो नाश्ता करो।
लो गरमा गरम आपके मनपसंद प्याज के परांठे
उसकी भाभी उसे चाय व परांठा देते हुए बोली।

भाभी पराठे तो आप बहुत टेस्टी बनाती हो लेकिन जैसे मां प्याज के परांठे बनाती थी। उनकी तो बात ही अलग थी।
रागिनी नाश्ता करते हुए बोली।

रागिनी यह बात तो तुम सही कह रही हो। मां के हाथों के बने प्याज के पराठे का टेस्ट आज भी जुबान पर वैसा का वैसा ही है।


तेरी भाभी बहुत ही बढ़िया परांठे बनाती है लेकिन मां के हाथों के बने प्याज के परांठे की बात ही कुछ और थी। रागिनी का भाई उसकी हां में हां मिलाते हुए बोला।

वाह !! दोनों बहन एक साथ सुर में सुर मिला रहे हैं। दीदी, जब भी पराठे बनाती हूं। हमेशा आपके भैया यही बात कहते हैं।
बहुत कोशिश करती हूं कि मम्मी जी के जैसे पराठे बना सकूं लेकिन कितनी भी कोशिश करती हूं। उनके हाथों जैसा टेस्ट ही नहीं पाता।
रागिनी की भाभी हंसते हुए बोली।

यह देख रागिनी रानी से उसकी तरफ देखते हुए बोली
एक बात पूछूं भाभी हम दोनों बहन भाई तुम्हारा मजाक उड़ा रहे हैं लेकिन देख रही हूं तुम्हें हमारी बातों का बिल्कुल भी बुरा नहीं लग रहा।

यह सुन उसकी भाभी मुस्कुराते हुए बोली.

पहले बुरा लगता था दीदी! पहले जब आपके भैया यह बात कहते थे तो मुझे बड़ा गुस्सा आता था कि मैं इतना भरावन भरकर परांठा बनाती हूं और मम्मी जी तो आटे में ही प्याज गूंधकर बना देती थी। फिर भी इन्हें मेरे पराठे में कमी लगती है और अपनी मम्मी का बनाया परांठा अच्छा लगता है।
लेकिन मां बनने के बाद धीरे-धीरे यह बात समझ आई कि बच्चों के लिए क्यों उनकी मां के हाथ का बना खाना सबसे स्वादिष्ट होता है!!
खाना तो हम सभी बनाते हो लेकिन अपने बच्चों व परिवार के लिए खाना बनाते समय जो उसमें भावनाएं समाहित करते हैं। वही प्रेम रूपी भावनाएं उस खाने को स्वादिष्ट बनाती है।
एक मां कितनी भी थकी हो लेकिन अपने बच्चे को भूखा नहीं देख सकती आपने जो काम छोड़ वह पहले अपने बच्चे के लिए खाना बनाती हैं और बच्चों के नानकुर करने के बाद भी उन्हें प्यार से मनुहार कर खिलाती है ।


बस मां की खाना परोसते व खिलाते समय वही ममता व मनुहार उसके बच्चों को जीवनभर याद रह जाती।
सच ही कहा है किसी ने मां का स्थान दुनिया में कोई नहीं ले सकता।
लो इसी बात पर दोनों बहन भाई एक एक परांठा और खाओ।
रागिनी की भाभी ने मना करने के बाद भी जबरदस्ती मनुहार करते हुए एक एक पराठा दोनों की थाली में रख दिया।

रागिनी परांठा खाते हुए यही सोच रही थी कि जो बात वह अपनी भाभी से बड़े होकर भी ना समझ पाई। उससे उम्र में छोटी उसकी भाभी ने कितनी आसानी से उसे समझा दी।
चाय का घूंट भरते हुए वह अपनी भाभी से बोली.
थैंक्स भाभी मां के हाथों जैसे स्वादिष्ट परांठे खिलाने के लिए और जीवन का एक अनमोल पाठ पढ़ाने के लिए!!

अनमोल पाठ मैंने कौन सा अनमोल पाठ आपको पढ़ा दिया दीदी!!
सुन रागिनी ने उसे कल की बात बताई कि कैसे वह अपने पति का मां के खाने को लेकर मजाक उड़ा रही थी।
सच भाभी! मैं तो कभी तुम्हारी तरह बात की गहराई तक गई ही नहीं और हमेशा तुम्हारे जीजा जी के भावनाओं का मजाक उड़ाया लेकिन आज मुझे समझ आ गया।

कोई बात नहीं मेरे दीदी! किसी ने सच ही कहा है जब जागो तब सवेरा!!
इस बात पर दोनों ननद भाभी मुस्कुरा दी।

दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना व रागिनी की भाभी के विचार। पढ़ कर अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं।
सरोज ✍️