इंस्पेक्टर विजय प्रताप विमला देवी मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल पहुँचा। रिसेप्शन पर अस्पताल के प्रबंशक डॉक्टर अजय चेतलानी के पास पहुँचा। डॉक्टर चेतलानी इस पतले दुबले शरीर का मालिक था। इस समय उसके शरीर मे सफेद रंग का ओवर कोट और कंधे में स्टेथेस्कोप लटक रहा था। नाक में एक पावर चश्मा टिकी हुई थी। देखने मे वह पूरी तरह से किसी पुरानी फ़िल्म का कमेडियन लग रहा था। इंस्पेक्टर विजय उसे ऊपर से नीचे गौर से देखे जा रहा था। इंस्पेक्टर को अपनी ओर इस तरह से देखता हुआ पाकर,असहज होते हुए डॉक्टर चेतलानी ने कहा - इस तरह से क्या देखता है,साईं? क्या कभी इससे पहले इंसान नही है क्या,तुमने? उसकी बातों को सुनकर,इंपेक्टर ने उसी के लहजे की नकल करते हुए कहा - इंसान तो बहुत देखे हैं सांई,लेकिन अजूबा इंसान पहली बार देख रहा हूँ। इंस्पेक्टर विजय की बात सुनकर खिसियाते हुए डॉक्टर चेतलानी ने कहा - वडी,मजाक अच्छा करता है तुम इंस्पेक्टर। अच्छा ये तो बताओ,इधर कैसे आया? इंपेक्टर ने फिर मजे लेने वाले अंदाज़ में कहा - वडी,अपनी पैरों से चल कर आया लेकिन वापस एम्बुलेंस से जाएगा,वो भी लाल बत्ती वाली एम्बुलेंस से। ओह! तो तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तो ऐसा बोलो ना। अब सकपकाने की बारी इंस्पेक्टर विजय की थी। डॉक्टर चेतलानी की बात सुनकर,हड़बड़ाते हुए इंस्पेक्टर विजय ने कहा - अभी तक तो होश ठिकाने में है,डाक्टर,अगर फिर गया तो तुम होश में नहीं रह सकोगे। डॉ चेतलानी ने कहा - अरे,सांई,बताओ भी,क्या मागता है? उस लालबत्ती वाली एम्बुलेंस को मांगता, डॉक्टर चेेतलानी जो इस अस्पताल से विपतपुर गई थी। वो भी, अभी के अभी। डॉ चेेतलानी ने कहा - मामला क्या है,साई?, हत्या का मामला है,साई,वो भी एक या दो नहीं,पूरे चार। अगर किसी तरह की होशियारी दिखाई या जानकारी छुपाई तो अस्पताल में तो ताला लटकेगा ही,साथ ही हथकड़ी लगेेेगी वो अलग। इंस्पेक्टर विजय ने कहा। सकपकाते हुुुए चेेतलानी ने कहा - पुलिस का सहयोग करना तो हमारा कर्तव्य है। नीली पट्टी वाली एम्बुलेंस का उपयोग मानसिक रोगियों के लिए किया जाता है। पिछले एक माह के इसके पूरी मूवमेंट की जानकारी आपको दे देता हूँ। इतना कह कर डॉक्टर चेतलानी,सामने रखे कम्प्यूटर में उलझ गया। करीब दस मिनट तक,की बोर्ड में उंगलियां खड़काने के बाद,प्रिंटर से कुछ कागज निकाल कर,इंस्पेक्टर को थमाते हुए कहा- लो,साई,ये रही आपकी पूरी जानकारी। देख लीजिए,हमारे अस्पताल से कोई एम्बुलेंस,विपतपुर नहीं गई। लिस्ट पर एक नजर डालते हुए इंस्पेक्टर ने कहा इस एम्बुलेंस के ड्राइवर को बुलाइये। मुझे पूछताछ करनी है। चेेतलानी ने इंटरकॉम का बटन दबाया और दयाराम को अपने चेम्बर में बुला लिया। कुछ ही मिनटों में एक लगभग 30 साल का एक युवक ने कक्ष में प्रवेश किया। तिरछी नजरो से इंस्पेक्टर विजय को देखते हुए डॉ चेतलानी से कहा - आपने मुझे बुलाया सर। हां,ये इंस्पेक्टर साहब तुमसे कुछ पूछना चाहते हैं? दया नाम के उस ड्राइवर की हरकतो को तीखी नजरो से देख रहे इंस्पेक्टर ने कहा - हाँ,बेटे राम तुमसे। मुझे तुमसे ही पूछताछ करनी है। लेकिन कुछ नही,बहुत कुछ पूछना है। और बहुत कुछ पूछने के लिए यह जगह बिल्कुल ठीक नहीं है। वो क्या है न कि इन डॉक्टर साहब को शोर शराबा पसंद नहीं है। तो हम चलते है,हवालात। वहीं बात करते हैं। वहां,मुझे शांति अच्छी नहीं लगती। हम आराम से बात कर सकेंगे। इंस्पेक्टर विजय के मुंह से हवालात की बात सुनकर दया के होश फाख्ता हो गए। पूरा शरीर पसीना से नहा गया। उसने हकलाते हुए कहा - ले.......ले...किन सर,मैं....मैंने किया क्या है? मुझे क्यों पकड़ रहे हैं? दांत पीसते हुए इंस्पेक्टर ने कहा - चिंता मत करो बेटे राम जी। जरा हमारी मेहमान नवाजी तो कबूल करो। सब पता चल जाएगा। स...सर,मैंने कुछ भी गलत काम नहीं किया है। मेरा विश्वास कीजिए। मैं,अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से करता हूँ। अच्छा,तो तू इतनी ईमानदारी से ड्यूटी करता है कि बिना रिकार्ड में दर्ज हुए ही,तेरी एम्बुलेंस,विपतपुर पहुँच जाती है और वहां से एक लाश लेकर केशला घाट। भाई,ऐसी ईमानदारी को बड़ा इनाम मिलना चाहिए। क्यो डॉक्टर साहब,क्या कहते है? डॉक्टर चेतलानी की ओर देखते हुए इंस्पेक्टर विजय ने कहा। जवाब में डॉक्टर ने कंधे उचका कर,चुप्पी साध ली। चार चार हत्या की बात सुनकर,चेतलानी के चेहरे के रंग पहले से उड़े हुए थे। इंस्पेक्टर विजय ने ड्राइवर दया से कहा - हां,तो दया जी,आप हमें बताएंगे बिना रिकार्ड में दर्ज किए,एम्बुलेंस कैसे विपतपुर पहुँच और केशलाघाट पहुँच गई? बुरी तरह से डरे हुए दया ने बताया - साहब,उस दिन मुझे उदयगढ़ जाना था,एक पेशेंट को उसके घर तक छोड़ने। पेशेंट को ले जाने के समय ही एक व्यक्ति मेरे पास आया और उसने उदयगढ़ जाने के लिए लिफ्ट मांगी। मैंने नियमो का हवाला देते हुए,उसे मना किया,लेकिन अस्पताल में भर्ती अपने पिता के ऑपरेशन के लिए रुपये का इंतजाम करने की बात कह कर गिड़गिड़ाने लगा। इस पर मैंने उसे अपने बगल की सीट पर बैठने को कहा। उदयगढ़ जाने के दौरान अचानक मेरा सिर चकराने लगा। मैंने गाड़ी को सड़क किनारे खड़ा किया। इसके बाद मुझे होश नहीं रहा। मुझे होश आया तो मैं अस्पताल से कुछ दूरी पर एम्बुलेंस पर ही था। पेशेंट कहा गए,मुझे नहीं मालूम। नोकरी जाने के डर से मैंने इस घटना की जानकारी नही दी और ना ही किसी ने शिकायत की। इंस्पेक्टर ने ड्राईवर को घूरते हुए कहा - दोबारा देखोगे तो पहचान लोगे,एम्बुलेंस में लिफ्ट लेने वाले को। दया ने जल्दी से कहा - हां,साहब पहचान लूंगा। जरूर पहचान लूंगा। हु,वैसे भी,हराम की नगदाऊ देने वाले को कोई कैसे भूल सकता है? फिर डॉ चेतलानी से कहा - मुझे,आपके अस्पताल का सीसीटीवी फुटेज चाहिए। चल,उस आदमी की स्केच बनवा। कहते हुए,इंस्पेक्टर विजय ने दया का हाथ पकड़ा और उसे खिंचते हुए,बाहर खड़ी हुई पुलिस जीप में बैठा दिया। आधा घण्टे में अस्पताल के चीफ सिक्योरिटी आफिसर नागेश राव ने सीडी में रिकार्ड सीसीटीवी फुटेज ला कर दिया। उसे लेकर इंस्पेक्टर,वापस थाना रवाना हो गया।