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अतुल तू एक काम कर ! तू यह बैग लेकर फादर एंड्रू के चला जा । मैं शुभु के साथ रहता हूँ । हम आंटी की अंतिम यात्रा को पूरा करते है । तू विशाल के साथ जाकर इस किस्से को भी खत्म करने की शुरुवात कर'। यश ने शुभु को सँभालते हुए कहा । शुभांगी रोए जा रही है । अब भी उसको यहीं लगता है कि उसकी माँ जाग जाएंगी । अतुल ने यश की बात सुनी, फ़िर कुछ सोचकर बोला, "यार ! कह तो तू ठीक रहा है, मगर अपना और शुभु का ध्यान रख लियो और जल्द से जल्द वहाँ पहुँचने की कोशिश करियो । हाँ, चाहे मेरी जान चली जाये, मगर शुभु को कुछ नहीं होने दूँगा । यार! ऐसे मत बोल,हम पहले भी मौत के मुँह से निकल आये थे, इस बार भी हम बच जायेगे । अतुल ने यश को हिम्मत बंधाते हुए कहा। ठीक है, अब टाइम ख़राब मत कर। निकल यहाँ से। यश की बात सुनकर अतुल निकल गया। यश ने शुभु को गले लगाया । फ़िर कहीं फ़ोन करने लगा। शुभु ने माँ की आँखें बंद की । गले से रस्सी निकाली और माँ का सिर अपनी गोद में रख लिया ।
अतुल ने बैग लिया । अंदर खोलकर देखा तो लगा ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ है । वह भागता हुआ गाड़ी की तरफ़ बढ़ा। चल यार ! फादर एंड्रू के चलते है। अंदर क्या हुआ ? आंटी हमें छोड़कर चली गई । शुभु का रो-रोकर बुरा हाल है, यश उसके साथ है । थोड़ी देर में वो वहाँ पहुँच जायेगा। अतुल एक ही सांस में सब बोल गया । विशाल गाड़ी चलाते समय भी अपना हाथ गले पर रखे हुए है । पता नहीं, मुझे इतनी प्यास क्यों लगने लग जाती है । अभी इतनी बोतल पानी पी चुका हूँ । उसने ईशारा ख़ाली बोतलों की तरफ़ किया । भाई ! एक बार हम वहाँ पहुँच जाये, तब और पानी पी लियो । फिलहाल तो गाड़ी की स्पीड बढ़ा दें । तभी एक झटका सा लगा और गाड़ी रुक गई । आसपास देखा तो सड़क के किनारे एक-दो ईट-पत्थर के मकान है । यार ! यहाँ गाड़ी क्यों रोक दी । अतुल ने विशाल की ओर देखा । मैंने नहीं रोकी, रुक गई । विशाल ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और बाहर निकल आया । क्या यार ! अतुल ने टाइम देखा तो 10 बज चुके है । दोनों गाड़ी से बाहर खड़े हैं। विशाल ने बोनट का दरवाज़ा खोलकर इंजन चेक किया । इंजन गरम हो गया है । वैसे भी गाड़ी कब से भाग रही है । कहीं से पानी लाना होगा । विशाल ने आसपास देखा। दूर एक पान-बीड़ी और सिगरेट की दुकान है । इसके पास ज़रूर पानी होगा । अतुल ने दुकान को देखते हुए कहा । यह रास्ता कौन सा है ? हम यहाँ से थोड़ी न आये थे । हम यहाँ से नहीं आये थे, मगर शॉर्टकट के चक्कर में मैंने गाड़ी यहाँ घुमा ली ।
बहुत बढ़िया, अब उस दुकान पर चलते है । अतुल और विशाल दोनों दुकान की तरफ़ बढ़ने लगे । इन मकानों में कोई रहता भी या यूँ ही कोई बनाकर छोड़ गया है । हमें क्या करना है, गाड़ी शुरू हो तो हम यहाँ से निकले । विशाल ने चिढ़कर कहा । भैया ! पानी है क्या ? गाड़ी में डालना है। पीछे जो नल है, उसे भर लो । अतुल साथ लाई, खाली बोतल लेकर पानी भरने चला गया और विशाल वहीं बैठकर सिगरेट पीने लगा। अतुल के आते ही उसने बोला, तू भी कुछ खा या पी ले । चिंता मत कर, हमें देर नहीं होगी । अतुल भी सिगरेट सुलगाने लगा । अच्छा भैया, इन घरों में कोई रहता है? पता नहीं, हम तो दो महीने से ही यह छोटी सी दुकान खोलकर बैठे है । दुकान वाले ने पैसे गिनते हुए ज़वाब दिया। यार! हम यहाँ चिट-चैट करने नहीं बैठे है, कोई पिकनिक पर नहीं जा रहे हैं। चल जल्दी, अतुल ने सिगरेट को पैर के नीचे कुचला और जाने के लिए खड़ा हो गया । तू गाड़ी के पास पहुँच, मैं पानी की बोतल लेकर आता हूँ । विशाल ने दुकानवाले को पैसे दिए और 8-10 बोतल खरीद ली । तभी पान वाले के पास एक लड़की आई उसने उसे बोतल माँगी । विशाल ने उसे गौर से देखा। खुले गले का सलवार-सूट, इतना गाढ़ा मेकअप, चुन्नी गले से चिपकी हुई है । वह पसीने -पसीने हो रही है । जब उसने विशाल को अपनी तरफ़ देखते हुए देखा तो उसे पीछे चलने का ईशारा किया । पहले तो विशाल ने अतुल को देखा जो बोनेट को खोलकर उसमे पानी डाल रहा है । फ़िर उस लड़की को देखा तो उसकी नीयत ख़राब हो गई ।
वह लड़की उसका हाथ पकड़कर उसे मकान के पीछे ले गई। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोल दी और दीवार से लड़की को टिका दिया । जैसे ही उसे लगा वह अब अपने जिस्म की प्यास बुझा सकता है तभी उसका गला जलने लगा। उसे प्यास लगने लगी । वह परे हटकर अपने साथ लाई पानी की बोतल से पानी पीने लगा । लड़की उसे एकटक घूरती जा रही है । उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान है । सारी प्यास पानी से बुझाओगे या फ़िर कुछ करने का इरादा भी है । लड़की ने अपने बालों की लट को छेड़ते हुए कहा । विशाल ने बोतल खाली की और फ़िर लड़की की तरफ़ पूरे गरमजोशी के साथ देखा । अब उसे लगा कि वह ठीक है तो उसने फ़िर उसके क़रीब जाना शुरू किया। मगर दोबारा उसका गला जलने लगा। वह दुकान की ओर जाने को हुआ तो लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया। कहाँ जा रहे हो, पानी मेरे पास भी है । यह कहते हुए उसने पानी की बोतल विशाल के मुँह से लगा दी। कुछ सेकंड्स बाद उसने देखा कि पानी खून में बदल गया । वह खून पिए जा रहा है । उसने बोतल हटानी चाही, मगर ऐसा नहीं हुआ। लड़की ज़ोर -ज़ोर से हँसने लगी और उसकी शक्ल बदल गई । उसने झटके से बोतल अपने मुँह से हटा ली। जब उसने लड़की की तरफ देखा तो उसका चेहरा जला हुआ है। आधे जले हुए चेहरे को देखकर वह समझ गया कि यह अवनी है। वह भागने को हुआ, मगर अवनी ने उसे पकड़ लिया।
फिर उसे पकड़ कर अपने दांतो से उसके जिस्म को चूमने लगी । वह चिल्लाया, क्योंकि उसके दांत उसकी देह के अंदर तक पहुँच रहे हैं । वह पूरी तरह उस प्रेत अवनि के वश में है । तभी वह उसे खींचती हुई मकान के अंदर ले गई । वहाँ अतुल गाड़ी के अंदर से निकल विशाल को यहाँ -वहाँ देख रहा है। मगर विशाल का कहीं कुछ पता नहीं । वह हारकर दुकान वाले के पास पहुँच गया । दुकान वाले से पूछने पर उसने बता दिया कि साहब किसी लड़की के साथ उस मकान के पीछे गए हैं । यार ! यह विशाल को ज़रा शर्म नहीं है । यहाँ जान पर बन आई है और वो मज़े लेने में लगा हुआ है । मैं जा रहा हूँ, जाये भाड़ में। यही सब सोचते हुए वो जाने को हुआ, मगर फ़िर अपनी पुरानी दोस्ती का ख्याल आते ही वह उस मकान की ओर चल दिया । बाहर से ही आवाज़ लगा लूंगा, आएगा तो ठीक वरना मैं निकल जाऊँगा । मकान के बाहर से उसने विशाल को आवाज़ लगाई । विशाल ! विशाल ! अंदर है तो भाई आजा। वरना में निकल जाऊँगा । अतुल ने तीन -चार बार आवाज़ लगाई मगर जवाब नहीं मिला । वह जाने को हुआ तो तभी दरवाज़ा खुल गया । वह थोड़ा सकुचाते हुआ अंदर घुसा । पता नहीं, किसका घर है ? कहीं भी शुरू हो जाता है । अंदर सिर्फ़ अँधेरा है । एक कमरे में रोशनी जल रही रही है । उसने फ़िर आवाज़ लगाई । विशाल ! वहाँ है, क्या ? तभी उसे कोई कमरे से निकलता हुआ दिखाई दिया । मगर अँधेरे क कारण उसका चेहरा साफ़ नज़र नहीं आया । विशाल चल यार ! ड्रामे मत कर ! बहुत देर हो रही है । "तू इधर आ जा। " जब उसने विशाल की आवाज़ सुनी तो वह झललाता हुआ उसकी ओर गया पर तब तक वह परछाई वहाँ से गायब हो चुकी है । वह रोशनी वाले कमरे में गया तो उसके होश उड़ गए । उसने देखा की नग्न अवस्था में विशाल हवा में लटका पड़ा है । उसके पूरे शरीर पर खून ही खून है । गले में रस्सी लटकी हई है । उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। अतुल को उलटी होने को हुई। वह कमरे में उबकाया पर सामने एक परछाई को देखकर बाहर की ओर लपका ।
मगर जाये कैसे ? हर जगह तो सिर्फ परछाई ही परछाई है । एक खुली खिड़की देखकर वो कूदने को हुआ तो उसे पीछे की तरफ ज़ोर से देखा धकेला गया। उसने देखा पर उसे कोई नज़र नहीं आया । वह महसूस कर चुका है कि कोई है जो इस घर में है । वह समझ गया कि यह सब उसी प्रेत का किया धरा है। विशाल की आवाज़ भी उसने निकाली थी । वह उठा दरवाज़े पर गया । मगर दरवाज़ा खुला नहीं । उसे फ़िर धक्का लगा । अबकी बार उसे कोई पैर से खींचता हुआ लेकर जा रहा है । उसने खुद को उसके चंगुल से छुड़ाने की बहुत कोशिश की । मगर कुछ नहीं हुआ। अब उसका दम घुट रहा है । उसका हाथ उसकी जेब में गया और उसने फादर एंड्रू का दिया कॉइन निकाला और अपने मुँह के सामने रख दिया। पकड़ अपने आप ढीली हो गई । उसकी सांस में सांस आई । वह भागा । मगर दरवाज़ा अब भी जाम है । वह खिड़की से कूदकर गाड़ी की तरफ भागा । रास्ते में उसने देखा कि दुकानवाला नहीं है । तभी उसका पैर पेड़ के तने से टकराया और वह ज़मीन पर गिर गया । जब उठकर उसने पेड़ की तरफ देखा तो दुकान का भैया पेड़ पर लटका हुआ है । उसकी जीभ बाहर निकली हुई है । उसने अपने भागने की स्पीड और दुगनी कर दी । अब तो उसने गाड़ी में बैठकर ही सांस ली । उसने गाड़ी स्टार्ट की पर स्टार्ट नहीं हुई । उसने फ़िर कोशिश की । अबकी बार गाड़ी चल पड़ी। विशाल पता नहीं, कौन से शोर्टकट से लाया था । समझ नहीं आ रहा है । वह गाड़ी को इधर -उधर घुमाता रहा और फ़िर मैन रोड पर आ गया । चलो ! शुक्र है । यह अपनी जानी पहचानी रोड है। आधा घंटा बचा है। मुझे जल्द से जल्द फादर एंड्रू के पास पहुंचना होगा ।
यश, शुभु और उसके कुछ रिश्तेदारों ने अल्का का अंतिम संस्कार का कार्य संपन्न किया । सारे रिश्तेदार उसे दिलासा देते हुए चलते गए। यश ने शुभु का हाथ नहीं छोड़ा । मैं कभी भी शुभु को अकेले नहीं छोड़ सकता । वह अब मेरी ज़िम्मेदारी है । यश यह सब सोच ही रहा है, तभी उसकी नज़र घडी पर गई । अतुल और विशाल कबके वहाँ पहुँच चुके होंगे । हमें अब चलना चाहिए । यश ने शुभु से बात की, जो अब भी माँ की तस्वीर के आगे बैठकर आँसू बहा रही है । उसने उसे सहारा दिया और चलने के लिए कहा। जाने से पहले शुभु अपनी माँ के कमरे में गई । कमरे को उसने बड़े प्यार से देखा जैसे अपनी माँ को उसी कमरे में ढूँढ रही हो । तभी उसकी नज़र टेबल पर रखी पापा की तस्वीर पर गई । तस्वीर के नीचे एक डायरी है । उसने डायरी खोली तो शुरू के पन्नो पर कुछ लिखा हुआ है । हैंडराइटिंग तो माँ की लग रही है। उसने पढ़ना शुरू किया ।
आगे के पन्नों में शुभु ने अपने बचपन के बारे में पढ़ा। किस तरह मेरी माँ ने मुझे कठिनाई से पाला और मैंने,,,,,, शुभु फ़िर सिसक- सिसक कर रो पड़ी। उसने दूसरा पन्ना पलटा और उस पर जो लिखा था उसे पढ़कर उसे विश्वास नहीं हुआ ।
"मैंने शांतनु को मना भी किया था, मगर वह मेरी बात नहीं माने और वहाँ चले गए । दुनिया की नज़रो में भले ही वो एक्सीडेंट हो पर मुझे पता है कि यह कोई हादसा नहीं है । फ़िर सुधीर ने मुझे जो कुछ बताया उसके हिसाब से तो शांतनु अपनी मौत नहीं मरे है।" इस डायरी को पढ़कर ऐसा ही लग रहा है कि मेरे पापा की मौत एक्सीडेंट में नहीं हुई है।
डायरी के अगले पन्ने में सुधीर का पता है।
इसका मतलब मेरे पापा का भी मर्डर हुआ था । वह एक्सीडेंट में नहीं मरे। उसने जल्दी से यश से फ़ोन लिया और सुधीर के पत्ते की फोटो खींच ली । क्या मेरे पापा का कोई दुश्मन था या फ़िर यह जो कुछ हमारे साथ हो रहा है, उसका सम्बन्ध पापा की मौत से है। "शुभु हमें निकलना चाहिए देर हो रही है ।" यश ने ज़ोर देते हुए कहा तो शुभु जाने के लिए खड़ी हो गई ।