Agnija - 73 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 73

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अग्निजा - 73

प्रकरण-73

केतकी दीदी ने घर खरीद लिया यह खबर सुन कर भावना की खुशी सातवें आसमान पर थी। अपनी मेहनत और अपनी हिम्मत के भरोसे अपने नाम पर घर लिया था उसने। अब उसको यह देखने की जल्दी मची थी। लेकिन केतकी ने उसे जैसे-तैसे समझाया, उसी समय फोन बजा।

भावना ने फोन उठाया, “हैलो...” “मैं जीतू। अपनी दीदी से कहना कि कल शाम को छह बजे मैं स्कूल के पास पहुंचूंगा...” वह कुछ उत्तर देती इसके पहले ही जीतू ने फोन रख दिया। भावना ने केतकी से पूछा, “अब ये क्या नाटक है? कल तो महीने का आखिरी दिन है। स्कूल तो आधा दिन ही रहेगा। मैं और तारिका दीदी एक टैटू आर्टिस्ट के पास जाने वाले हैं। तुम भी चलो।”

“वॉव...तुम लोग टैटू बनवाने वाले हो?”

“अभी तो मैं तारिका दीदी के साथ जा रही हूं। मुझे भी कभी बनवाने की इच्छा है। लेकिन कहां बनता है, देख कर रखना होगा।”

केतकी, भावना और तारिका दोपहर साढ़े तीन बजे इकट्ठा हुईं। थोड़ा सा कुछ खाया और फिर टैटू आर्टिस्ट अंकित मलिक के स्टूडियो में पहुंच गईं। टैटू दिखता तो बहुत अच्छा है, लेकिन बनवाते समय कितना दर्द होता है, केतकी ने देखा। भावना तो सुई देखते साथ बोल पड़ी, “ये काम अपने बस का नहीं है बाबा...” तारिका टैटू बनवाने बैठी। दाहिने हाथ की कलाई पर उसने अपने नाम का पहला अक्षर टी बनवाने वाली थी। पूछने पर पता चला कि उसमें बहुत समय लगने वाला था। इस लिए केतकी और भावना वहां से निकल गईं। जीतू मिलने वाला था इसलिए भावना, केतकी के साथ नहीं गई। केतकी का रिक्शा शाला की ओर मुड़ गया। रिक्शा धीमी गति से आगे बढ़ रहा था। केतकी के मन में टैटू का विचार चल रहा था। टैटू यानी केवल एक चित्र बस नहीं। यह अपने व्यक्तित्व को एक अलग पहचान देता है। आपके द्वारा पसंद किए गए चित्र आपके विचार, आपकी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। बनवाने में कोई एतराज नहीं, लेकिन कहां बनवाया जाए? शरीर के ऐसे स्थान पर बनवाया जाए कि सबका ध्यान उस तरफ जाए और जहां कभी किसी ने न बनवाया हो। ऐसी कौन सी जगह हो सकती है? इन विचारों और ट्रैफिक के बीच शाला तक पहुंचने में उसे साढ़े छह बज गए। जीतू गुस्से में वहां खड़ा था।

“सॉरी..ट्रैफिक बहुत था।”

“लेकिन आना तो यहां था, तो ट्रैफिक में फंसने के लिए गई कहां थी?”

“तारिका के साथ गई थी टैटू आर्टिस्ट के पास।”

“वो गोदना बनाते हैं उनके पास?”

“हां, उनके पास बहुत अच्छे-अच्छे डिजाइन हैं।”

“देखो, मेरी सुन लो...मुझे वह नहीं चलेगा...ये सब नखरे अब बस करो। मुझे एक सीधी सरल बीवी चाहिए। ये सब फालतू नखरे मेरे घर में नहीं चलेंगे। ”

“तुमको क्या पसंद है...तुम्हारे घर में क्या चलता है...बस इसी का महत्व है? मेरी इच्छा, पसंद का भी कुछ महत्व है कि नहीं?”

“नहीं, और हां, और इस तरह मुंह चलाने वाली मुझे नहीं चलेगी। समझ में आ गया? एक काम करो...तुम घर जाओ...तुमको कौन-कौन से काम करने हैं उसकी लिस्ट बनाओ...याने उसमें मेरी रोक-टोक नहीं चलेगी...ऐसी...समझ में आया ?”

“अरे, लेकिन आप इस तरह से कैसे बात करते हैं? कल मेरे पिताजी मुझ पर कितने नाराज हुए...आप अपने घर की बात उनको क्यों बताते हैं? वह तो हमारी आपस की बात थी न, तीसरे व्यक्ति को क्यों बताई जाए?”

“तो क्या करना चाहिए? सिर पटकना चाहिए? या जान दे देनी चाहिए?”

“आप ही कहिए...कर्ज मैं लूं और घर आपके नाम से नहीं हो पाता, इसमें मेरा क्या दोष है? आपने ऐसा माहौल बना दिया कि इसमें मेरी गलती है। ”

“मैं या तुम्हारा बाप..पूरे पागल नहीं है...समझ में आया न? बहुत ज्यादा होशियारी दिखाने की आवश्यकता नहीं है। इस घर की बात छोड़ दो...तुमने कितनी ऐसी बातें हैं जो मानी नहीं हैं। शांति से याद करो। और आखिरी एक बार अपनी उस उपाध्याय मैडम से मिल कर पूछ लो कि मैं क्या करूं? तुमको सब मंजूर हो तो ही आगे की बातें होंगी।”

इतना कह कर केतकी को वहीं छोड़ कर जीतू चल पड़ा। ये आदमी तो हमेशा ऐसा ही बर्ताव करता रहेगा...मुझे धमकियां देता रहेगा...हुकुम चलाता रहेगा और रास्ते में मुझे अकेला छोड़ कर इस तरह चला जाया करेगा? कभी मेरी कोई बात नहीं मानेगा, मेरी नहीं सुनेगा? इसको जोड़ीदार चाहिए या गुलाम? ये जीवन मेरी परीक्षा लेना नहीं छोड़ेगा। तो मैं भी हार मानने वाली नहीं। नसीब में जितना गिरना-पड़ना लिखा है, हो ही जाने दो, मैं मैदान छोड़ कर नहीं जाऊंगी। इस बार तो केतकी ने मन ही मन तय कर लिया कि उपाध्याय मैडम के घर भी नहीं जाना है। इस बार मैं अपनी समस्या पर खुद विचार करूंगी और रास्ता निकालूंगी। वैसे भी समस्याएं मेरे लिए कोई नई बात नहीं हैं। समस्याओं का भरपूर अनुभव है। इस विचार से केतकी के चेहरे पर एक दुःख भरी मुस्कान फैल गई। उसको लगा कि उसके तप्त रेगिस्तान सरीके जीवन पर प्रेम के कुछ क्षणों की बारिश अब समाप्त हो चुकी है। व्यथा-वेदनाओं का सूरज आग उगल रहा है। अब केवल वेदनाएं ही अपने हिस्से में हैं। शायद यही वजह थी कि वह जीतू की धमकियों से घबराई नहीं और निराश भी नहीं हुई।

भावना बड़ी देर से राह देख रही थी। केतकी के पहुंचते साथ ही उसने पूछा, “केतकी बहन क्या हुआ?”

“विचार कर रही हूं कि टैटू बनवाया जाए। लेकिन कहां बनवाऊं, कुछ सुझाव दो।”

भावना ने अनुभव किया कि या तो केतकी बहुत दुःखी है या एकदम निश्चिंत है। “अरे मैं टैटू की बात नहीं कर रही...जीतू जीजाजी से मिलने के लिए गयी थी न...उसका क्या हुआ?”

“तुमने रेकॉर्ड प्लेयर देखा है क्या कभी?”

“हां, लेकिन वो कहां आ गया बीच में?”

“उस रेकार्ड प्लेयर की तरह ही जीतू ने अपनी पुरानी रेकॉर्ड बजा दी। इस बार बस पिन जरा घिस गई थी और आवाज कर्कश थी।”

“तो तुमने क्या बताया?”

“बताया कुछ नहीं। बस सुनने का काम किया। दोनों कानों से। एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया। एक काम करो जरा...ढेर सारी आइसक्रीम लेकर आओ। जिसको खाना हो खाए, नहीं तो हम तीन तो हैं ही। मौज करेंगे।”

“तीन कौन?”

“हम, तुम और आइसक्रीम। जाओ जल्दी...”

भावना ने महसूस किया कि केतकी आज एकदम अलग मूड में है। कोई अलग निर्णय लेने वाली है, पक्का...

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जीतू पव्या के साथ दारू पीते बैठा था। पव्या ने अपने हाथ उठा दिये। वह बोला, “भाभी का कहना सही है। अब मुझसे कुछ नहीं होने वाला। तुम्हारे पास बीवी के घर में रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।” इतना सुनते ही जीतू के तनबदन में आग लग गई। दूसरे दिन बेटे का रंगरूप देख कर मीना बहन ने पूछा। हकीकत जानने के बाद उन्होंने अपने बेटे को समझाना शुरू किया, “लड़की होशियार है, होशियार...अभी हमारे विरोध में है इस लिए अच्छी नहीं लग रही। लेकिन जब अपने घर में रहने के लिए आ जाएगी तो फायदा किसका होगा? कुछ और दिन गुजर जाने के बाद किसी बहाने से घर के कागजात अपने नाम से कर लेंगे। वो कैसे करना है सोचेंगे। लेकिन अभी तो तुम उसके साथ अच्छा व्यवहार करो। पहले जैसे खूब अच्छे बन गए थे, वैसे भी मत बनो और अभी जैसा बुरा व्यवहार कर रहे हो, वैसा भी मत करो। मीठा-मीठा बोलते रहो और मौका मिलते ही फटकारते भी रहो। ज्यादा प्रेम भी मत दिखाओ और ज्यादा ताव भी मत दिखाओ। लेकिन कुछ भी हो यह लड़की हाथ से जाने नहीं देना है। ”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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